अंग्रेजों की बनाई पुरानी संसद का अब क्या होगा? क्यों पड़ी नई इमारत बनाने की जरूरत…
नई संसद एक त्रिकोणीय इमारत है जिसमें गोलाकार संसद भवन से ज्यादा जगह भी है और सुविधाएं भी. पुरानी संसद में लोकसभा की 552 सीटें थीं तो नई संसद में 888 सीटें हैं.
बस कुछ ही घंटों में देश का इतिहास बदलने वाला है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे शानदार मंदिर के कपाट खुलने वाले हैं. कुछ ही घंटों बाद देश को नया संसद भवन मिलने वाला है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कल यानी रविवार (28 मई) को नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे. बीजेपी जहां इसे गर्व का पल बता रही है. वहीं, 21 विपक्षी दलों ने उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने का फैसला लिया है.
पीएम मोदी जब नई संसद का उद्घाटन करेंगे तो गैर-एनडीए वाले दल भी इस समारोह में उपस्थित रहेंगे. इन सबसे इतर अहम सवाल ये हैं कि आखिर कैसी है सबसे शक्तिशाली लोकतंत्र की ये सबसे बड़ी इमारत? आखिर क्यों पड़ी इसको बनाने की जरूरत और क्या होगा अंग्रेजों की बनाई पुरानी बिल्डिंग के साथ? आइए जानते हैं इन सवालों के जवाब…
बदल दिया औपनिवेशिक काल की गुलामी का इतिहास
20 मई 2014 को पीएम नरेंद्र मोदी ने पहली बार संसद में कदम रखने से पहले अपना सिर सीढ़ियों पर रख दिया था. ठीक उसी तरह जैसे किसी मंदिर में प्रवेश करते समय भक्त अपना सिर श्रद्धा से झुका लेते हैं. वहीं, 28 मई 2023 को पीएम मोदी नए संसद भवन का उद्घाटन करने जा रहे हैं. देश में मौजूद औपनिवेशिक काल की गुलामी की इमारत का इतिहास पीएम मोदी ने 9 साल 8 दिन के कार्यकाल में बदल कर रख दिया.
कैसे बनी थी संसद?
ये इमारत जिसे आज भारत की संसद कहा जाता है, इसका उद्घाटन वायसराय हाउस के तौर पर 1927 में लॉर्ड इरविन के हाथों हुआ था. गुलामी के वक्त भारतीय नागरिकों के खून पसीने की कमाई के 83 लाख रुपये लगाकर इस इमारत को अंग्रेजों ने अपनी ताकत और ऐश्वर्य की इमारत के तौर पर तैयार करवाया था.
आजादी से लेकर अब तक ये इमारत देश के बदलते इतिहास के हर कदम की गवाह रही है. इस इमारत ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को देखा- 1947 में आजादी की आधी रात को अंग्रेजों ने इसी जगह सत्ता सौंपी. यही इमारत आजाद भारत की पहली संसद बनी. यहीं पर आजादी का पहला भाषण पढ़ा गया.
अमृतकाल में लिखी गई नई इबारत
अब इसी इमारत के सामने आजाद भारत के अमृतकाल की नई इबारत लिखी जा चुकी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नौ साल के शासन काल में तीन साल के अंदर 971 करोड़ की लागत से नए संसद भवन का निर्माण पूरा हो चुका है. दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र गुलामी के वक्त की इमारत से बाहर निकल कर अपने सामर्थ्य और शक्ति का अहसास करा रहा है.
नया संसद भवन पूरी तरह से भारतीय तकनीक, भारतीय वास्तुकला, भारतीय इंजीनियर और भारत के लोगों के हाथों बना है. पुरानी इमारत को बनाने वाले तो ब्रिटिश थे, लेकिन पैसा और हाथ भारतीयों का था. इसमें गर्व करने वाली कोई बात नहीं थी, क्योंकि ये इमारत गुलामी का प्रतीक थी.
क्यों छोटी पड़ गई अंग्रेजों की इमारत?
औपनिवेशिक काल की इस इमारत में 95 सालों में काफी टूट फूट हो चुकी है. कहा जा सकता है कि आधुनिक वक्त की जरूरतों के हिसाब से पुरानी पड़ चुकी है. यहां सांसदों के बैठने की जगह तक बढ़ाई नहीं जा सकतीहै. ऐसे में नए संसद भवन की जरूरत काफी वक्त से महसूस की जा रही थी. इसे लेकर यूपीए सरकार के दौरान लोकसभा स्पीकर रही मीरा कुमार ने 2012 में ही नए भवन की मांग सरकार के सामने रखी थी.
उसके बाद एनडीए शासनकाल में लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने 2015 में और वर्तमान लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने 2019 में भी इस मांग को केंद्र सरकार के सामने रखा था. एक साल से ज्यादा विचार करने के बाद 10 दिसंबर 2020 को प्रधानमंत्री मोदी ने नए संसद भवन की आधारशिला रखी.
कैसी है नई संसद?
नई संसद एक त्रिकोणीय इमारत है जिसमें गोलाकार संसद भवन से ज्यादा जगह भी है और सुविधाएं भी. पुरानी संसद में लोकसभा की 552 सीटें थीं तो नई संसद में 888 सीटें हैं. पुरानी संसद में राज्यसभा की 245 सीटें थीं तो नई संसद में 384 सीटें हैं. इसके अलावा संसद के संयुक्त सत्र के लिए लोकसभा हॉल में पहले से 1,272 सीटें मौजूद हैं. सेंट्रल लाउंज में राष्ट्रीय वृक्ष बरगद मौजूद है.
संसद भवन पर कांस्य से बना राष्ट्रीय प्रतीक 9,500 किलो वजनी है. नई संसद में सुविधाओं की बात की जाए तो हर बेंच पर सिर्फ दो सदस्य बैठेंगे. सीट पर टच स्क्रीन ऑडियो-वीडियो सिस्टम लगा होगा, जो यूपीएस पावर बैकअप के साथ होगा. नई संसद में मंत्रि परिषद के लिए 92 कमरे बनाए गए हैं. वहीं, हर सांसद के लिए खुद का ऑफिस स्पेस होगा. नई संसद में पुरानी संसद से 17,000 वर्गमीटर ज्यादा बड़ी जगह है. नई लोकसभा मौजूदा पुरानी लोकसभा से तीन गुना बड़ी है.
क्या होगा पुरानी संसद की इमारत का?
अब सवाल ये खड़ा होता है कि नई संसद के बनने के बाद पुरानी संसद का क्या होगा? अब तक इस बारे में जितनी जानकारी मिल पाई है उसके मुताबिक पुरानी संसद नई संसद के पूरक के तौर पर काम करेगी. संसदीय काम का कुछ हिस्सा यहां से भी किया जाएगा. इसके साथ ही पुरानी संसद को आधुनिक सुविधाओं से लैस भी किया जाएगा और साथ ही इसके एक हिस्से को म्यूजियम बना कर आम लोगों के लिए खोल दिया जाएगा.