2023 में 6500 करोड़पति छोड़ सकते हैं भारत ..?
लगभग 6,500 करोड़पति लोग भारत छोड़ने वाले हैं. ये सभी करोड़पति इसी साल दूसरे देश में बस जाएंगे. भारत के टैक्स कानून, बाहर पैसा भेजने के सख्त नियम और अन्य कारणों को इसकी वजह माना जा रहा है.
2023 में 6500 करोड़पति छोड़ सकते हैं भारत, किस देश को होगा सबसे ज्यादा फायदा?
इंडियन एक्सप्रेस ने प्राइवेट वेल्थ एंड फैमिली ऑफिस की पार्टनर सुनीता सिंह-दलाल के हवाले से लिखा, भारत के टैक्स कानून, बाहर पैसा भेजने के सख्त नियम और अन्य कारणों से लोग देश छोड़ रहे हैं.
कंपनी के निजी ग्राहकों के समूह प्रमुख डोमिनिक वोलेक ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन और यहां तक कि क्रिप्टो पर सरकार की तरफ से बनाए गए नियमों के अलावा और भी कई दूसरी वजहें हो सकती हैं.
हेनले एंड पार्टनर्स के सीईओ जुएर्ग स्टेफेन ने फोर्ब्स को बताया कि करोड़पतियों का जाना अक्सर अधिकारियों के लिए एक चेतावनी का संकेत होता है. उन्होंने कहा, “संपन्न परिवार बेहद गतिशील होते हैं, उनका देश छोड़ के जाना देश के आर्थिक दृष्टिकोण और भविष्य के लिए एक चेतावनी हो सकती है.
किन देशों को कितना होगा नुकसान
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक करोड़पतियों के चीन से विदेश जाने पर चीन को 13,500 एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल’) का नुकसान होगा. रिपोर्ट के मुताबिक, “चीन का बड़े पैमाने पर धनी लोगों को खोना जारी है.
बीते कुछ सालों में धन बढ़ना धीमा हो गया है. इससे धनी लोगों के देश छोड़ने का पहले से ज्यादा नुकसान होगा. बता दें कि चीन की वावे कंपनी पर अमेरिका, यूके और ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़े बाजारों में प्रतिबंध है. इसका गहरा असर पड़ सकता है.
ब्रिटेन को 3,200 एचएनआई और रूस को 3,000 एचएनआई का नुकसान होने की आशंका जताई गई है.
अपना देश छोड़ कहां जांएगे ये भारतीय
फर्स्ट में छपी रिपोर्ट के मुताबिक विशेषज्ञों का कहना है कि देश छोड़ने वाले ज्यादातर भारतीय करोड़पति दुबई और सिंगापुर जैसे देशों में जा सकते हैं. बिजनेस स्टैंडर्ड के अनुसार दुबई का ‘गोल्डन वीजा प्रोग्राम’, इसके कर कानून और व्यापार प्रणाली भारत के अमीरों के बीच बारहमासी पसंदीदा हैं. फोर्ब्स के अनुसार पुर्तगाल हाल तक भारतीय अमीरों के लिए लोकप्रिय स्थान था.
कोरोना से पहले तक करोड़पतियों का सबसे पंसदीदा देश अमेरिका था.
फोर्ब्स ने रिपोर्ट के हवाले से कहा, “सिंगापुर, स्विट्जरलैंड और यूएई ने न केवल रहने के लिए बल्कि धन के संरक्षण के लिए भी अपनी प्रतिष्ठा बनाई है. इन देशों ने खुद को अत्यधिक आकर्षक व्यापार केंद्रों के रूप में भी स्थापित किया है. इन देशों में कंपनियां अनुकूल कॉर्पोरेट टैक्स दरों का फायदा उठाती हैं.
बिजनेस टुडे में छपी रिपोर्ट के मुताबिक जिन देशों में एचएनआई की आमद देखी जाती है, उनमें लगभग हमेशा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के माध्यम से नागरिकता की अनुमति दी जाती है.
क्या देश को इससे कोई नुकसान होगा?
न्यू वर्ल्ड वेल्थ के रिसर्च हेड एंड्रयू एमोइल्स ने द इंडियन एक्स्प्रेस को बताया, ‘ये पलायन विशेष रूप से चिंताजनक नहीं हैं, क्योंकि भारत प्रवासन की तुलना में कहीं अधिक नए करोड़पति पैदा करता है.
हेनले एंड पार्टनर्स इंडिया के निदेशक (निजी ग्राहक) रोहित भारद्वाज ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि भारत में करीब 3,57,000 एचएनआई बचे हैं.भारद्वाज ने कहा कि भारत एक ‘मजबूत धन उपस्थिति’ दिखाता है.
दिसंबर 2021 में लोकसभा में पेश किए गए गृह मंत्रालय (एमएचए) के आंकड़ों के अनुसार, 8,81,254 भारतीयों ने 2015 के बाद से विभिन्न कारणों से देश छोड़ दिया. इसका मतलब है कि पिछले सालों से रोजाना 345 लोग देश छोड़कर जा रहे हैं.
इन्हीं प्रवासियों में एचएनआई भी शामिल हैं, जो कई कारणों से वर्षों से भारतीय नागरिकता का त्याग कर रहे हैं.
ग्लोबल वेल्थ माइग्रेशन रिव्यू के अनुसार, एचएनआई के प्रवासन से धन प्रवासन भी होता है. जो दूसरे देश यानी वो देश जिसमें लोग जा कर बस रहे हैं, उसके लिए फायदेमंद होता है.
अगर कोई देश प्रवासन की वजह से बड़ी संख्या में एचएनआई खो रहा है, तो यह उस देश में गंभीर समस्याओं के कारण हो सकता है जैसे कि उच्च अपराध दर, व्यावसायिक अवसरों की कमी, और राजनीतिक अस्थिरता.
ग्लोबल वेल्थ माइग्रेशन रिव्यू द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, एचएनआई अन्य देशों में जाना पसंद करते हैं:
- महिलाओं और बच्चों के लिए सुरक्षा
- जीवन शैली: बेहतर जलवायु, कम प्रदूषण, प्रकृति
- अपने बच्चों के लिए बेहतर शिक्षा
- काम और बेहतर व्यापार के अवसर (व्यापार करने में आसानी)
7 साल में 8.81 लाख भारतीयों ने छोड़ी नागरिकता
दिसंबर 2021 में लोकसभा में एक सवाल के जवाब में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा कि 1 जनवरी 2015 से 21 सितंबर 2021 के बीच 8,81,254 लोगों ने अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ दी थी.
भारत से पढ़े-लिखे लोगों का प्रवासन सबसे ज्यादा
फरवरी 2020 में छपी आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत से ओईसीडी क्षेत्र में सबसे ज्यादा प्रवासन हुआ है. जिसमें 3 मिलियन से ज्यादा तृतीयक-शिक्षित यानी किसी खास प्रोफेसन में पढ़ाई-लिखाई वाले प्रवासी हैं.
ओईसीडी में वर्तमान में 38 सदस्य देश हैं, जिनमें ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं.
ओईसीडी की रिपोर्ट के अनुसार, 2015-16 में ओईसीडी देशों में रहने वाले आप्रवासियों के लिए मुख्य मूल देशों की लिस्ट में भारत दूसरे नंबर पर था. भारत से 48 कोरड़ प्रवासी यहां रह रहे हैं. जिनमें से एक-चौथाई से ज्यादा पिछले पांच सालों के दौरान आए थे.
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की एक रिपोर्ट से पता चला है कि शिक्षा के साथ बेरोजगारी का स्तर बढ़ता जा रहा है. सितंबर-दिसंबर 2018 से, स्नातक या उच्च शिक्षा (स्नातक +) पूरा करने वालों के बीच बेरोजगारी दर 13.2 प्रतिशत तक पहुंच गई थी. 2017 में यह आंकड़ा 12.7 प्रतिशत था.
प्रवासी समुदायों के लिए म्यूनिख स्थित वैश्विक सोशल नेटवर्किंग साइट इंटरनेशंस के अनुसार, “भारतीय प्रवासी अपने काम के घंटों खुश हैं, जहां काम की नई अवधारणाएं इन भारतीयों को आकर्षित करती हैं. भारतीय विदेशों में बेहतर कामकाजी घंटों और बेहतर कार्य-जीवन संतुलन इन भारतीय प्रवासियों को पंसद आ रहा है.
ये देश भी झेल रहे पलायन की मार
यूनाइटेड किंग्डम, रूस और ब्राजील जैसे देश भी अमीर लोगों का पलायन झेल रहे हैं. यूनाइटेड किंग्डम में3,200, रूस में 3000 और ब्राजील में 1,200 लोगों के देश छोड़ने की संभावना है. ब्रिटेन से इस साल भी बड़ी संख्या में पलायन होने वाला है, क्योंकि पिछले साल वहां से 1,600 धनी लोग किसी और देश में जाकर बस गये थे.