ग्वालियर ग्वालियर-चंबल अंचल में जितना दुग्ध उत्पादन पशु विभाग के कागजों में बताया जाता है उतना हकीकत में नहीं है। इसके जिम्मेदार खुद सरकार व बैंक हैं। शासन की योजनाओं में जिलेवार दो से पांच लोगों को ही दुग्ध डेयरी डालने के लिए पशु ऋण देने की योजना है और बैंक उससे भी कम लोगों को ऋण आवंटित कर दुग्ध उत्पादन की गति को धीमा कर देते हैं। पिछले एक साल के ग्वालियर चंबल अंचल में बैंक के आंकड़े बता रहे हैं कि आठ जिलों के 80 लोगों के पशु ऋण स्वीकृत किए गए हैं। इनमें से 50 फीसद लोगों को ही ऋण वितरित किए जा सके। इससे साफ है दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए शासन और उसकी बैंक पशु पालकों की कितनी मददगार है।

गजब की बात है कि बैंकों ने कोरोना का बहाना लेकर कोराना काल में एक भी ऋण स्वीकृत नहीं किया। शासन की योजनाएं कागजों में ही अच्छी दिखाई देती हैं। हकीकत में तो यह दम तोड़ रही हैं। खुद बैंकर्स कमेटी की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि जितने आवेदन पशु पालकों द्वारा बैंक से पशु ऋण पाने के लिए किए जाते हैं उसमें से महज 52 फीसद ही स्वीकृत हुए हैं। दो योजनाओं में मिलता पशु ऋण: शासन की ओर से दो योजनाएं पशु पालकों को ऋ़ण देने के लिए बनाई गई हैं। जिसमें एक योजना तो पिछले साल ही चालू हुई है।

मुख्यमंत्री सहरिया-बैगा-भारिया दुग्ध पशु प्रदाय योजना

इस योजना में सहरिया, बैगा, भारिया समुदाय के लोगों को शासन की ओर से दो भैंस या गाय खरीदने के लिए 90 फीसद अनुदान दिया जाता है। दस फीसद हितग्राही को जमा करना होता है। पिछले एक साल में 395 लोगों को भैंस या गाय देने का लक्ष्य रखा गया, जिन्हें 790 पशु वितरित करने थे, लेकिन अब तक 460 पशु की उपलब्धता ही कराई जा सकी।

प्रदेश में इन बैंकों ने सर्वाधिक स्वीकृत किए पशु ऋण

बैंक आवेदन स्वीकृत आवेदन

बैंक आफ इंडिया 92362 57643

पंजाब नेशनल बैंक 22843 13716

सहकारी बैंक 70270 38789

सेंट्रल बैंक आफ इंडिया 45454 23983

बैंक आफ महाराष्ट्र 10333 5211

प्रदेश भर में किए गए आवेदन

कुल आवेदन चार लाख 52 हजार 967 हुए, जिसमें चार लाख 32 हजार 613 आवेदन बैंकों के पास पहुंचे। इनमें से दो लाख 26 हजार 348 स्वीकृत किए गए। दो लाख दो हजार 553 निरस्त किए गए और 3712 आवेदन स्वीकृति के लिए बैंकों में लंबित पड़े हुए हैं। बैंक ऋण देने से कतराते हैं नाम न छापने की शर्त पर बैंक अधिकारियों ने बताया कि वे तीन साल भिंड में रहे, लेकिन उन्हें डेयरी उद्योग के लिए एक भी ऋण पास नहीं किया। पशु पालकों को दिया गया ऋण लौटने की गति काफी धीमी है। दूसरा पशु पालक केवल सब्सिडी पाने के लिए ऋण लेते हैं। उनकी मनोदशा दुग्ध का व्यापार करने की नहीं होती। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर बैंक ऋण देने से कतराते हैं।

आचार्य विद्यासागर डेयरी योजना

इस योजना में एक हितग्राही पांच से 10भैंस या गाय खरीद सकता है। उसे बैंक पांच से 10 लाख तक का ऋण आवंटित करता है। इसमें सामान्य और ओबीसी वर्ग के लिए 1.5 लाख और एससीएसटी वर्ग को दो लाख तक की सब्सिडी दी जाती है। इस योजना में ग्वालियर चंबल संभाग के आठ जिलों में करीब 80 केस ही स्वीकृत हुए हैं।

आचार्य विद्यासागर योजना में किसी जिले के पास तीन तो किसी के पास चार ऋण देने का लक्ष्य है। जैसे ग्वालियर में 20 से 25 हितग्राही के लिए ऋण देने का लक्ष्य है। अब नई योजना आ रही है डेयरी प्लस उसमें एक सैकड़ा से अधिक हिग्राहियों को ऋण देने का लक्ष्य रहेगा।

– डा़ अशोक तोमर संयुक्त संचालक, पशु पालन विभाग

पशु पालकों को बैंक ऋण देने से बचते हैं। पशु पालक बैंक को यह यकीन दिलाने में असफल रहते हैं कि बैंक का पैसा सुरक्षित है और पैसा बैंक के पास लौटकर आएगा। इसलिए हर बैंक अधिकारी इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर लोन पास करता है।

बृजभान सिंह भदौरिया, लीड बैंक मैनेजर, सेंट्रल बैंक ग्वालियर