109 रुपये की किताब पर लगा था 209 रुपये का स्टीकर …?
109 रुपये की किताब पर लगा था 209 रुपये का स्टीकर, जज ने पकड़ा
जज की नाराजगी के बाद पुलिस, शिक्षा विभाग व राजस्व की टीम जांच करने पहुंची।
न्यायाधीश द्वारा पकड़ी गई वह किताबें जिन पर दो गुनी रेट के स्टीकर लगे हुए थे।
मुरैना-जौरा। बेहतर पढ़ाई के लिए निजी प्रकाशकों की किताबों के नाम प्राइवेट स्कूल संचालक किस तरह पालकों की जेब पर डाका डाल रहे हैं, इसका खुलासा जौरा कोर्ट के एक न्यायाधीश ने शुक्रवार को किया। किताब खरीदने पहुंचे जज ने असली रेट चेक की तो पता चला कि दुकानदार किताब पर दर्ज असली रेट पर दोगुनी रेट का स्टीकर लगाकर बेच रहा है। खुलेआम हो रही ठगी पर जज ऐसे नाराज हुए कि तत्काल प्रशासन की टीम जांच करने के लिए उक्त दुकान पर पहुंच गई। जौरा न्यायालय में पदस्थ एक जज का भतीजा पुलिस थाने के सामने स्थित किड्स कैसल स्कूल में पहली कक्षा में पढ़ता है।
जज शुक्रवार की दोपहर अपने बेटे व भतीजे को लेकर हनुमान चौराहा स्थित मंगल पुस्तक भंडार पर किताबें लेने पहुंचे। दुकानदार ने स्कूल की नौ किताब व एक डायरी कोर्स के तौर पर पकड़ाईं और इसी के साथ 1750 रुपये का बिल न्यायाधीश के बेटे को पकड़ा दिया। खरीदी करने के बाद कार में बैठे जज ने किताबों के पन्ने पलटना शुरू किया देखा कि हिंदी व्याकरण की किताब पर 209 रुपये की एमआरपी का स्टीकर चिपका हुआ है। जज ने इस स्टीकर को हटाया तो किताब पर 109 रुपये की रेट प्रिंट थी।
जज ने तुरंत पुलिस और अफसरों को दी सूचना
इसके बाद दूसरी किताब रेन ग्रामर चेक की तो उस पर भी 180 रुपये की एमआरपी पर स्टीकर लगा था, यह स्टिकर हटाकर तो किताब की सही रेट 140 रुपये निकली। दुकान संचालक ने बताया कि उसे स्कूल संचालक ही यह किताबें उपलब्ध करवाता है। किताबों पर नई रेट लिस्ट के स्टीकर उसने नहीं चिपकाए, बल्कि इसी हालत में उसे किताबें बेचने के लिए दी गई हैं। यह देख जज ने तत्काल पुलिस थाने व अन्य अफसरों को फोन कर पूरा वाक्या सुनाया।
किताब की दुकान पर जांच करने पहुंचे अधिकारी
इसके बाद ब्लाक शिक्षा अधिकारी बीके शर्मा, नायब तहसीलदार डीएस लकड़ा, आरआइ राकेश कुलश्रेष्ठ, पटवारी मानवेंद्र सिंह सिकरवार, एसआइ रामवीर सिंह राजावत आदि मंगल पुस्तक भंडार पर पहुंच गए। जज ने उक्त दुकान को सील कर जांच के लिए कहा था, लेकिन घर के ऊपर का रास्ता दुकान से होकर था, इसलिए टीम ने पंचनामा बनाकर जांच कर ली।
कक्षा एक के बच्चे के बस्ते का वजन 15 किलो
प्राइवेट स्कूलों द्वारा निजी प्रकाशकों की किताबें खपाने के लिए बच्चों व पालकों पर दवाब सा बनाया जाता है, वह इसलिए क्योंकि प्राइवेट प्रकाशन की किताबों पर निजी स्कूल संचालकों को 40 से 45 फीसद तक का कमीशन मिलता है। कई प्राइवेट प्रकाशक स्कूल प्रबंधन के कहे अनुसार किताबों पर रेट भी अंकित कर देते हैं।
मुरैना शहर में ही चल रहे प्राइवेट स्कूलों के निजी प्रकाशकों की किताबों की रेट में इतना अंतर है, कि कि किसी स्कूल में पहली कक्षा की किताबें 1600 रुपये में आ रही हैं तो किसी स्कूल की पहली कक्षा की किताबें 2400 रुपये तक में आ रही हैं। जिला शिक्षा अधिकारी के निर्देश पर एक टीम ने गुरुवार को शहर के दो निजी स्कूलों के पहली कक्षा के बच्चों के बस्तों का वजन करवाया तो पांच साल के बच्चे के बस्ते में 15 किलो तक वजन निकला।
दुकानों पर नहीं मिली रेट लिस्ट
प्रशासन की टीम ने जौरा में हनुमान चौराहा क्षेत्र में चल रहीं स्थित महावीर पुस्तक भंडार का भी निरीक्षण किया गया, इस दुकान पर मेरीटोरियस एवं एचएल स्कूल की किताबों बेची जा रही थीं, प्रशासन की टीम ने जांच के लिए किताबों के सेंपल लिए हैं। इस दुकान पर किताबों की रेट लिस्ट भी टीम को नहीं मिली। इसके बाद टीम ने विजय पुस्तक भंडार पर भी औचक निरीक्षण किया गया, जहां किसी भी प्राइवेट स्कूल की किताबें बिकते नहीं मिलीं, इस दुकान पर एमपी बोर्ड व सीबीएसई की किताबें बेची जा रही थीं।
प्रिंट रेट पर ही किताब को बेचा जा सकता है, इस तरह स्टीकर लगाकर ज्यादा रेट पर किताब बेचना गलत है। पूरे जिले से ऐसी शिकायतें मिली हैं, इसलिए हमने जिला स्तरीय एक समिति बनाई है और इसके अलावा हर ब्लाक में भी निजी प्रकाशकों की किताबों की जांच के लिए समिति गठित की है, जो हर निजी स्कूल में चल रही किताबों की जांच करके रिपोर्ट देगी। एके पाठक, जिला शिक्षा अधिकारी