बाल मन पर वैचारिक विष का तिलक क्यों?

स्कूलों में कभी बिंदी, तिलक, कभी पहनावे, मौली, कलावा जैसे विवादों का सिलसिला सही नहीं है। इसे हतोत्साहित करना चाहिए।

लो ग अपने बच्चों को उनके सुनहरे भविष्य का सपना गढ़ स्कूलों की चौखट तक पहुंचाते हैं। नौनिहालों वहां अपने गुरु, शिक्षक-शिक्षिकाओं से विषय ज्ञान के साथ सफलता की राह पर बढ़ने की सीख लेते हैं। लेकिन इन दिनों कभी सुसनेर (आगर), शाजापुर, छिंदवाड़ा, देवास और इंदौर के साथ प्रदेश के विभिन्न शहरों से जो सूचनाएं आ रही हैं, वे पूरे उद्देश्य को मटियामेट करने वाली हैं। कुछ स्कूलों में तिलक लगाकर पहुंचे विद्यार्थियों को स्कूल में प्रवेश से ही रोक दिया गया। बाल मन पर धर्म के नाम पर वैचारिक विष का यह तिलक लगाना अच्छा नहीं है। इस पर विचार किया जाना चाहिए कि क्यों विषय के प्रारंभिक ज्ञान के बजाय बिंदी, तिलक, पहनावे, मौली, कलावे बांधने जैसे विवादों का शिकार बनाया जा रहा है? आखिर वैमनस्यता का पाठ पढ़ाकर उन्हें किस दिशा में धकेला जा रहा है? एक तरफ हम नई शिक्षा नीति के माध्यम से नौनिहालों को भारत के इतिहास, महापुरुषों से सीख लेने का पाठ पढ़ाते हैं, उन्हें अनेकता में एकता की मिसाल देते हैं। गंगा-जमुनी संस्कृति के प्रति आकर्षित करते हैं। वहीं किसी भी धर्म, पंथ, विचारधारा के खिलाफ उनके बाल मन में ही नफरत के बीच बो रहे हैं। जब इसकी फसल बड़ी होगी, तब के समाज की कल्पना से ही सिहरन होने लगती है। वर्तमान दौर में बच्चों के मनोवैज्ञानिक विकास से लेकर कम उम्र में ही प्रतियोगिता या प्रतिस्पर्धा के लिए तैयारी का माहौल बनाया जा रहा है। माता-पिता अपने अधूरे सपने नन्हे-मुन्नों पर थोप रहे हैं। इस दबाव से बच्चे स्वच्छंद होकर बाहर भी नहीं आ पाते, उसके पहले ही जात-पात का पाठ उनके भोले-भाले मन पर हमला कर रहा है। किसी भी शहर, प्रदेश और राष्ट्र के विकास में आशा की किरण नौनिहाल ही होते हैं। ये नौनिहाल जैसा सीखेंगे वैसे शहर, प्रदेश और राष्ट्र के निर्माण में भागीदारी करेंगे। बाल मन पर यह हमला मानव अधिकारों का हनन है। संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर हमला है। स्कूलों को सिर्फ स्कूल की पोशाक सुनिश्चित करनी चाहिए। अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण कर धार्मिक स्वतंत्रता का हनन कर विवाद पैदा करने और इन्हें हवा देने वाली संस्थाओं को सख्ती से समझाइश देनी चाहिए। जरूरत लगे, तो उन्हें भी अनुशासन का पाठ पढ़ाने से परहेज नहीं करना चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *