भारत में 40% अन्न होता है बर्बाद, हर दूसरा बच्चा कुपोषित
भारत में हर दूसरा बच्चा कुपोषण का शिकार है। यूनिसेफ की सोमवार को जारी हुई रिपोर्ट यह चौंकाने वाले आंकड़े पेश करती है। यह हालात तब हैं जबकि देश में हर साल 1 लाख करोड़ का अनाज बर्बाद हो जाता है। पूरी दुनिया को 2030 तक भुखमरी से मुक्ति दिलाने का संकल्प लिया गया है। संयुक्त राष्ट्र के इस लक्ष्य से भारत भी जुड़ा है इसलिए देश को भुखमरी मुक्त करने के लिए सरकार के पास 11 साल का ही समय बाकी है। इतने कम समय में बड़ा लक्ष्य पाने के लिए जरूरी है कि देश में गरीब-अमीर के बीच की खायी पटे, भोजन व्यर्थ न हो।
अब मोटापे का मतलब भी कुपोषण
बीस साल बाद प्रकाशित हुई दुनिया में बच्चों की स्थिति पर यूनिसेफ की रिपोर्ट बताती है कि इस समय में हुए बड़े बदलावों ने बच्चों में कुपोषण की परिभाषा को भी बदल दिया। अब ऐसे बच्चे भी कुपोषित की श्रेणी में आते हैं जिनका वजन ज्यादा है या जो मोटापा ग्रस्त हैं। साथ ही ऐसे बच्चे भी कुपोषित माने जाएंगे जिनमें जरूरी विटामिन की कमी है और उम्र के हिसाब से जिनकी लंबाई कम है। रिपोर्ट में इस बदलाव का कारण सामाजिक व्यवस्था में बदलाव, आधुनिक भोजन का आकर्षण, शहरीकरण, जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ी झुग्गयां, नवजात को स्तनपान न मिलना और शरणार्थी संकट को बताया है। यूनिसेफ के पोषण कार्यक्रम प्रमुख विक्टर अगुआयो मुताबिक, ‘मोटापे से ग्रस्त मां के बच्चे बेहद पतलेपन के शिकार हो सकते हैं। कुपोषण, अहम पोषक तत्वों की कमी और मोटापे का तिहरा बोझ चिंताजनक है।’
यूनीसेफ रिपोर्ट में पांच चिंताजनक खुलासे
1. विश्वभर में दो अरब लोगों का खानपान ठीक नहीं हैं, जिससे मोटापा, हृदय संबंधी बीमारी और मधुमेह की बीमारियां बढ़ रही है।
2. फार्मूला मिल्क की बिक्री विश्वभर में 40 प्रतिशत बढ़ी है। छह माह से कम आयु के हर पांच में से केवल दो शिशुओं को ही केवल मां का दूध मिल रहा है।
3. विश्वभर में पांच साल से कम आयु के करीब 70 करोड़ में से एक तिहाई बच्चों पर जीवनपर्यन्त स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त रहने का खतरा है।
4. गरीब देशों में चार साल या इससे भी कम आयु के 14 करोड़ 90 लाख बच्चों का कद अब भी अपनी आयु के हिसाब से छोटा है।
5. विश्वभर में पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में से करीब आधे बच्चों को आवश्यक विटामिन और खनिज नहीं मिल रहे।
भारत में हर दिन 244 करोड़ का भोजन व्यर्थ
1. 2.1 करोड़ टन गेहूं हर साल नष्ट हो रहा
2. 23 करोड़ टन है वार्षिक भोजन आवश्यकता
3. 40% भोजन वार्षिक उत्पादन में बेकार हो रहा
4. “88,800 करोड़ हर साल भोजन बेकार
5. 1 लाख करोड़ की फसल कटाई के बाद खराब हो रही
इसलिए है भारत में समस्या
1. 14.5 % आबादी कुपोषण का शिकार है देश की
2. 37.9% 5 वर्ष से छोटे बच्चे वजन से कम लंबाई के हैं
3. 51.4% महिलाएं अनीमिया की शिकार हैं देश की
(सभी आंकड़े संयुक्त राष्ट्र की पोषण रिपोर्ट-2018 से लिए गए हैं)
बर्बादी
1. ब्रिटेन जितना खाता है उतना भारत में हर साल व्यर्थ
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की रिपोर्ट के हिसाब से भारत में पैदा होने वाला 40 प्रतिशत भोजन व्यर्थ हो जाता है, यह मात्रा ब्रिटेन में हर साल उपयोग होने वाले भोजन के बराबर है। भारत में हर साल 2.1 करोड़ टन गेहूं खराब हो जाता है। कृषि मंत्रालय के अनुसार, हर साल 50 हजार करोड़ रुपये का अनाज बिना इस्तेमाल हुए ही नष्ट हो जाता है।
2. फटाफट नूडल्स भोजन में दुनिया का चौथा बड़ा बाजार
वर्ल्ड इंस्टेंट नूडल्स एसोसिशन, इंडिया की बीती मार्च में आई रिपोर्ट कहती है कि दुनिया के फटाफट नूडल्स भोजन में भारत चौथा सर्वाधिक बड़ा बाजार है। 2017 तक इसका बाजार 93.66 अरब रुपये का था जो कि 5.6 की चक्रवृद्धि वार्षिक दर से बढ़ रहा है। इसका मतलब है कि भारतीय परिवार देश में पैदा होने वाला अनाज खाने की जगह ऐसे नूडल्स खा रहे हैं जो सेहत के लिए हानिकारक हैं।
3. ज्यादा खाने से 5 करोड़ लोग मोटापे के शिकार
इस साल आई दुनिया के मोटापा ग्रस्त देशों की सूची में भारत की 1,366,417,754 जनसंख्या के 3.90% लोग यानी लगभग 5 करोड़ लोग मोटापे के शिकार हैं। इसके अहम कारणों में जरूरत से अधिक और असंतुलित भोजन करना है।
बेहाली
1. भूख सूचकांक में 102वें स्थान पर भारत
वैश्विक भूख सूचकांक-2019 में भारत की दैयनीय स्थिति दर्शाती है कि दुनिया की महाशक्ति बनने के लिए उसे 117 देशों की इस सूची में ऊपर आना होगा। यह सूचकांक बताता है कि देश में कुपोषण, बाल कुपोषण, बाल मृत्युदर और बच्चों में बौनापन की स्थिति गंभीर है।
2. 19 करोड़ लोग हर रात भूखे सोते हैं
संयुक्त राष्ट्र के भोजन व कृषि संगठन की रिपोर्ट ‘दुनिया में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति – 2019’ के अनुसार, दुनियाभर में सबसे ज्यादा 14.5 प्रतिशत यानी 19.44 करोड़ कुपोषित भारत में हैं। ये वे लोग हैं जिन्हें दोनों वक्त का भोजन नसीब नहीं है, इनमें से ज्यादातर को भूखे ही सो जाना पड़ता है।
3. देश में हर दिन 3000 बच्चे कुपोषण से मर रहे
संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2018 बताती है कि देश में हर दिन 3000 बच्चों की कुपोषण से जुड़ी बीमारियों के कारण मौत हो जाती है। यह स्थिति तब है जबकि दुनिया में भारत भैंस का सबसे बड़ा दूध उत्पादक है और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सब्जी, फल व मछली उत्पादक देश है।
नोबेल विजेता भारतीय अर्थशास्त्रियों की राय
अभिजीत बनर्जी
भुखमरी पर
पश्चिमी देशों में आमतौर पर गरीबी और भुखमरी को एक-दूसरे का पर्याय मान लिया जाता है। वास्तव में ऐसा नहीं है। वर्ल्ड बैंक समेत तमाम संगठनों के पास गरीबी आंकने का फॉर्मूला है- एक डॉलर में कम में दिन गुजारने वाले लोग। ऐसे दुनिया में लाखों लोग हैं। पर वे सब भूखे नहीं हैं। योजनाएं बनाते समय इनका विश्लेषण जरूरी है।
पोषण पर
बचपन में अच्छा पोषण मिलने का जीवन में दूरगामी प्रभाव पड़ता है। अजन्मे भ्रूण और बच्चे, जो पर्याप्त पोषण पाते हैं, कालांतर में उनकी आय बाकी के मुकाबले बेहतर होती है। यानी बचपन में सही पोषण मिलने पूरे जीवनकाल पर असर दिखता है।
खाद्य सुरक्षा पर
भोजन की व्यवस्था और खर्च सही दिशा में होना जरूरी है। दुनिया के कई देशों में अध्ययन से पता चलता है कि गरीब भोजन पर खर्च करते समय पोषक तत्वों की तुलना में बेहतर स्वाद को ज्यादा तवज्जो देते हैं। ये मिथक है कि गरीब उतना ज्यादा खाते हैं जितना वे खा सकते हैं। ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में खपत का अनुपात अलग-अलग होता है।
भुखमरी पर
दुनिया के कई हिस्सों में भुखमरी है लेकिन यह व्यापक समस्या नहीं है। दरअसल, इसके पीछे व्यवस्था की असफलताएं हैं। हर क्षेत्र विशेष में अलग-अलग कारक और परिस्थितियां इसके लिए जिम्मेदार हैं। समकालीन विश्व में भुखमरी के कारणों और निदान में प्रकृति के साथ हमारे व्यवहार की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
पोषण पर
गरीबी का निर्धारण करने के लिए अलग-अलग मानक हैं, जिन्हें नीति निर्धारक इस्तेमाल करते हैं। कुपोषण गरीबी की अवधारणा का केवल एक पहलू है।
खाद्य सुरक्षा पर
खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सबसे पहले संतुलन बनाना जरूरी है। उत्पादन और जनसंख्या में समन्वय के बिना इस चुनौती से निपटना आसान नहीं है।