मानव की तस्करी .! पानी महंगा, खून सस्ता .?

मानवता का ह्रास ही विकास है। जब तक विकास नहीं था, केवल परिवर्तन था, ऋतु-चक्र के साथ, चांद-सूरज के साथ-साथ जीवन चलता था। ये ही हमारे देवी-देवता थे, पालनहार थे। विकास ने हमको इनसे भी अधिक सक्षम और क्षमतावान बना दिया। आज सामाजिक विकास चरम पर पहुंच रहा है। जिन्दगी से चांद-तारे खो गए, सगे-सम्बन्धियों की चर्चा भी लुप्त हो गई। विकास ने जीवन को स्वयं पर ला खड़ा कर दिया। बाकी संसार, जीवन से बाहर।

आज धरती छोटी पड़ने लगी, हम चन्द्रमा-मंगल पर जगह ढूंढने लग गए। वहां खेती शुरू कर दी और यहां की खेती विषैली कर डाली। अमृत जैसे दूध को विषैला कर डाला। वहां भी कर देंगे। सिद्धान्त साफ है-जो कुछ प्राकृतिक था, उसको बदल देना ही विकास है। जो जीवन का अमृत तत्व है, पहले उसे विषाक्त बनाओ, फिर चिकित्सा प्रणाली विकसित करो। अपनी कमाई का एक भाग बीमार होने में खर्च करो और एक भाग इलाज पर। साधारण लोगों के तो घर बिक जाते हैं, परिजन साथ छोड़ जाते हैं। यही विकास है। हम इसी विकास पर गौरवान्वित हैं।

विकास तो और आगे निकल गया। हम ध्यान-प्राणायाम का जीवन जी रहे थे। आज तकनीक ने जीवन को नए आयाम दे दिए। नए-सपने नई महत्वाकांक्षाएं हमारे सामने हैं। भौतिक सुखों की एक लम्बी कतार हमारे सामने है। और, हम उसमें इतना खो गए कि स्वयं को ही भूल बैठे। सरस्वती का नया रूप आया, उससे लक्ष्मी का सृजन हुआ। हम लक्ष्मी पर मोहित हो गए। धीरे-धीरे उसके गुलाम होने लगे। आज सम्पूर्ण वैश्विक पटल लक्ष्मी से आच्छादित है। हर वस्तु, हर प्राणी पर उसका मोल चिपका हुआ है।

लक्ष्मी के वाहन उल्लू को अंधेरे (तम) में ही दिखाई देता है, अत: अनैतिक रूप से लक्ष्मी का वास ‘अंधकार’ और अंधेरे के कर्म हैं। जो दिन के उजाले में साधारणत: नहीं किए जाते। आज विकास और भी आगे निकल गया। अंधेरे ने उजाले को भी ढंक दिया। सम्पूर्ण जीवन ही लक्ष्मी का यात्रा-पथ बन गया। सारा तंत्र इसकी चपेट में आ गया। अंधेरे की काली कमाई का प्रभाव इतना हो गया कि उतना कीमती सामान ही उपलब्ध नहीं रहा। शराब-मादक पदार्थ-हथियार सब बौने हो गए। धन और बरसने लगा। धरती खोद डाली। तेल, खनिज, जल सब बेच खाया। अब क्या खरीदा जाए? अब एक ही मूल्यवान वस्तु बची और वह था-इंसान! वह बिकाऊ नहीं था तो पहले उसे नशे में डाला और फिर बिकाऊ बना डाला। हत्याएं और बलात्कार तो रोजमर्रा की बातें हो गईं। धनबल से भुजबल जुड़ गया। आदमी शैतान बन गया। तब मानव बिकने लगा। पहले शादी के नाम पर लड़कियां बिकने लगी। इन्हीं को बाद में वेश्यावृत्ति में धकेला गया। आज मानव तस्करी सबसे बड़ा व्यापार हो गया। कमाई का सर्वाधिक मूल्यवान व्यापार। सारा धन भी नेताओं, अफसरों और उद्योगपतियों की काली कमाई का। तब इसे रोका जाए या प्रोत्साहित किया जाए?

आपने भी पढ़ा होगा कि तस्करी कर सबसे ज्यादा बच्चे तो जयपुर लाए जाते हैं। कौन लाता है, कौन इस काम में जुड़े हैं, सरकार भी जानती है, जनता भी जानती है। सरकार की अवैध कमाई का बड़ा साधन बन गई है- मानव तस्करी। पिछले दिनों ये समाचार भी सामने आए कि लड़कियों को काटा जाने लगा है। यह कार्य भी वर्षों से चल रहा है, केवल स्वरूप बदला है। तस्करी छोटी उम्र के बच्चों की ही होती है। उनमें भी लड़कियों का शरीर अधिक स्वस्थ होता है। इनके अंग ऊंचे दामों पर बिकते हैं। एक शरीर के सभी अंगों का अलग-अलग मोल कितना होगा, जरा सोचिए तो! आज मानव अंगों की तस्करी सबसे महंगा व्यापार बन गया। लागत? आप चाहो तो खरीद लो, होशियार हो तो अपहरण कर लो।

इस देश में यह कार्य वर्षों से चल रहा है। अधिकांशत: धर्म की आड़ में होता रहा है। चार-पांच दशक पहले हैदराबाद से अरब देशों के शेख लोग लड़कियों को ले जाते थे।

पानी महंगा, खून सस्ता

लभर की यह संख्या बहुत बड़ी थी। आज यह व्यवसाय बन गया। केरल में लड़कियों को ‘नन’ बनाकर सुनियोजित तरीके से बाहर भेजा जाता रहा है। छत्तीसगढ़ में तो कई शहर जाने जाते हैं-मानव तस्करी के कारण। रायपुर के कई होटल इस तरह की गतिविधियों के लिए जाने जाते हैं। क्या पुलिस को कुछ नहीं सूझता या सरकार ही व्यापारी है? छत्तीसगढ़ का आदिवासी क्षेत्र मानव तस्करी का बहुत बड़ा केन्द्र बना हुआ है। स्वयं सरकार नियोजित रूप से आदिवासियों को बेदखल करने में लगी रहती है। गांव के गांव खाली करवाकर ऊंचे दामों में बेचे जा सकते हैं-उद्योगों के लिए। पानी महंगा, खून सस्ता। पहले भी एक बार सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार की सलवा जुडूम योजना को अवैध ठहरा दिया था। अब रूप बदल गया है। उत्तर-पूर्व तो सदा से ही इस कृत्य के लिए बदनाम है।

यूं तो राजस्थान भी कभी पीछे नहीं रहा। अभी तो सारा प्रशासन इन शरणाथियों को, पश्चिम बंगाल की तरह, बुला-बुलाकर स्थायी रूप से बसाने में लगा हुआ है। इसी में से मानव तस्करी के बीज स्थायी खेप तैयार करते हैं। हमारे शेखावाटी क्षेत्र के लोग मजदूरी के नाम पर बाहर जाते रहे हैं। आदिवासी क्षेत्र भी बहुत बड़ा है, किन्तु ये नया प्रवाह इस समस्या को हवा देने लगा है। कानून व्यवस्था भंग होने लगी है। चन्द्रमा की ताकत से ही चकोर अंगारा खा जाता है। एक बार तो दो जनप्रतिनिधि एक अफसर पर रोब डाल रहे थे कि आप यह जो मुफ्त अनाज बांट रहे हैं, उसकी जगह हमारे लोगों को मांस बंटवाना शुरू कर दें। यह तो अफसर दमदार था, भगा दिया इनको। यह इस बात का प्रमाण है कि ये किस विभाग में क्या नहीं करा सकते और क्यों?

आज के हालात ही कल का भविष्य है। प्रदेश हथियार और मादक पदार्थों की तस्करी का बड़ा केन्द्र बन चुका है। वोट के चक्कर में सरकार मौन रही तो पता नहीं कितने बच्चे बिक जाएंगे, कितनों के अंग तुल जाएंगे। यहां तो बल, धन, सत्ता तीनों साथ रहते हैं।

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