राजस्थान की राजनीति : सबसे ज्यादा 4 मंत्री बर्खास्त करने वाली सरकार ..!
राजस्थान की राजनीति में इन दिनों राजेंद्र गुढ़ा सबसे चर्चित चेहरा हैं। गुढ़ा कुछ दिनों पहले तक राजस्थान सरकार में सैनिक कल्याण मंत्री थे।
महिलाओं के साथ अपराधों के मामले में विधानसभा में अपनी सरकार को घेरने के बाद उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया। अब गुढ़ा एक लाल डायरी के जरिए सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं।
आमतौर पर ऐसे केस कम ही होते हैं जब सरकार अपने ही मंत्री को बर्खास्त कर दे। अक्सर सत्ता, संगठन, समर्थक और क्षेत्रीय संतुलन को ध्यान में रखते हुए सरकारें मंत्रियों को बर्खास्त करने से बचती ही हैं।
………… राजस्थान का राजनीतिक इतिहास टटोला तो ऐसे कई किस्से सामने आए, जब मंत्रियों के नाम विवादों से जुड़े। मंत्रियों से इस्तीफे भी मांगे गए, लेकिन ऐसी घटनाएं कम ही हुईं, जब मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया गया। इस सरकार में ऐसा पहली बार हुआ, जब 4 मंत्रियों को बर्खास्त किया गया।
सरकारों से विवाद और मंत्रियों के पद खाेने के किस्से…
वर्तमान कांग्रेस सरकार में बर्खास्त 4 मंत्री
- सचिन पायलट : सचिन पायलट राजस्थान सरकार में उप-मुख्यमंत्री और कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष थे। उनके पास कई बड़े विभाग थे। जुलाई 2020 में जब पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ मानेसर चले गए तब कांग्रेस ने अहम निर्णय लेते हुए उन्हें डिप्टी सीएम के पद से बर्खास्त कर दिया।
- रमेश मीणा, विश्वेंद्र सिंह : जुलाई 2020 में मानेसर जाने वाले विधायकों में रमेश मीणा और विश्वेंद्र सिंह भी थे। दोनों उस दौरान मंत्री थे। मगर जब मानेसर चले गए तो सचिन पायलट के साथ इन्हें भी बर्खास्त कर दिया गया। हालांकि बाद में पार्टी में संतुष्टि होने पर दोनों को दोबारा से मंत्री बना दिया गया।
- राजेंद्र गुढ़ा : राजेंद्र गुढ़ा की बर्खास्तगी के पीछे जानकार बड़ी वजह उनके विवादित बयानों को मानते हैं। पिछले साल सितंबर के बाद से ही गुढ़ा गहलोत और सरकार को घेरते हुए आ रहे हैं। इसके अलावा गुढ़ा खुलकर सचिन पायलट के भी समर्थन में बोलते आए हैं।
पुरानी सरकारों में बर्खास्त मंत्री और उनके विवाद
महिपाल मदेरणा : अश्लील सीडी, अपहरण-हत्या
कांग्रेस की पिछली सरकारों में महिपाल मदेरणा सबसे विवादित नेताओं में रहे। कांग्रेस सरकार में नर्स भंवरी देवी के अपहरण और हत्या के मामले में मंत्री महिपाल मदेरणा और विधायक मलखान सिंह पर आरोप लगे। भंवरी देवी से जुड़ी सीडी सामने आने के बाद गहलोत सरकार पर काफी दबाव बन गया।
जानकारों का कहना है कि इसके बाद तत्कालीन जल सिंचाई मंत्री महिपाल मदेरणा को इस्तीफा देने की सलाह दी गई थी। मदेरणा ने यह दावा किया था कि पुलिस जांच में उनके खिलाफ काेई बात सामने नहीं आई है। इस पर सीएम ने तत्कालीन राज्यपाल शिवराज पाटिल से मदेरणा को हटाने की सिफारिश की, जिसे राज्यपाल ने मंजूर कर दिया। मामले में मदेरणा जेल भी गए थे।
रामलाल जाट : महिला की मौत और पोस्टमार्टम से जुड़ा विवाद
कांग्रेस की ही पिछली सरकार में मंत्री रामलाल जाट पर भी गंभीर आरोप लगे थे। रामलाल जाट तब राज्य के वन, पर्यावरण और खनन मंत्री थे। भीलवाड़ा में एक महिला की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत और फिर उसके पोस्टमार्टम को लेकर रामलाल जाट विवादों में रहे थे। इसके बाद नवंबर 2011 में रामलाल जाट ने इस्तीफा दे दिया था।
बाबूलाल नागर : रेप का आरोप
दूदू विधायक बाबूलाल नागर को कांग्रेस की ही पिछली सरकार में मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। नागर पर महिला से रेप का आरोप लगा था। तब बाबूलाल नागर राजस्थान के डेयरी एवं ग्रामोद्योग राज्यमंत्री थे। 2013 में चुनाव से ठीक पहले यह मामला तेजी से उठने के बाद कांग्रेस सरकार और मंत्री नागर पर दबाव बन गया। इस पर नागर ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफे के बाद नागर ने कहा था कि उन्होंने निष्पक्ष जांच के चलते मंत्री पद से इस्तीफा दिया है।
देवीसिंह भाटी : सचिव को मार दिया था थप्पड़
1997 में भैरोंसिंह शेखावत की सरकार में बीजेपी के कद्दावर नेता देवीसिंह भाटी सिंचाई मंत्री थे। उस दौरान सिंचाई विभाग में सचिव पीके देब थे। जानकारों का कहना है तब एक फर्म को पीके देब ने ब्लैक लिस्टेड कर दिया था। इससे भाटी नाराज थे। ऐसे में उन्होंने देब को सचिवालय में अपने कमरे में बुलाया और थप्पड़ जड़ दिया।
कुछ सूत्र बताते हैं कि मामला थप्पड़ से बढ़कर मारपीट तक भी पहुंचा था। मामले को लेकर भाटी के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज हुई। उस दौरान विपक्षी पार्टी कांग्रेस के दबाव में आकर देवीसिंह भाटी को इस्तीफा देना पड़ा। जानकार कहते हैं कि सीएम भैरोंसिंह शेखावत भी इस बात से खुश नहीं थे।
सुरेंद्र व्यास, नरेंद्र भाटी : पीएम को सीएम की शिकायत करने जा रहे थे
1984 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर ने दो मंत्रियों को बर्खास्त किया था। उस दौर में सुरेंद्र व्यास डीपीआर और उच्च शिक्षा राज्यमंत्री हुआ करते थे। वहीं नरेंद्र सिंह भाटी पर्यटन मंत्री थे। इन्हीं के साथ कुछ और नेता भी शिवचरण माथुर से संतुष्ट नहीं थे। नरेंद्र सिंह भाटी तब राजीव गांधी के करीबी हुआ करते थे।
ऐसे में सीएम माथुर से असंतुष्ट दोनों मंत्री और एक विधायक शिकायत लेकर दिल्ली जा रहे थे। बहरोड़ में ही दोनों मंत्री सहित तीनों लोगों को रुकवाकर पुलिस बल की मदद से बीच रास्ते से ही वापस बुलवा लिया गया। इसके बाद दोनों मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया गया था।
इनके साथ एक नेता और भी थे जिन पर गाज गिरी थी। ये नेता माथुर को सीएम नहीं देखना चाहते थे। जानकार बताते हैं कि सुरेंद्र व्यास खुद को सिर्फ राज्यमंत्री बनाए जाने से नाराज थे। वहीं बाकी नेताओं की भी माथुर से अनबन थी। इस वाकये के ठीक बाद चुनावों से पहले चंद दिनों के लिए हीरालाल देवपुरा को सीएम बनाया गया था।
इस्तीफा मांग लेते हैं, बर्खास्तगी कठोर कदम : पूर्व विधानसभा अध्यक्ष
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष शांतिलाल चपलोत कहते हैं कि नेताओं को मंत्री पद से बर्खास्त किया जाना बहुत कठोर कदम होता है। सामान्यत: ऐसे कठोर स्टेप नहीं लिए जाते हैं। अगर कहीं कोई समस्या है तो इस्तीफे मांग लिए जाते हैं। आमतौर पर बर्खास्तगी नहीं की जाती है। मैंने अपने करियर में कई किस्से देखे, मगर नेताओं से इस्तीफे ही मांगे जाते थे। पुराने दौर में तो बर्खास्तगी जैसी चीज होती ही नहीं थी।
राजनीतिक जानकार और विशेषज्ञ अर्जुन देथा कहते हैं- स्वस्थ्य परंपरा तो यही है कि अगर किसी व्यक्ति से कोई समस्या है तो उसे ग्रेसफुल तरीके से कहा जाए और इस्तीफा ले लिया जाए। लोकतंत्र में ऐसा ही होता आया है। पुराने नेता ऐसा ही किया करते थे।
सबसे ज्यादा 4 मंत्री बर्खास्त करने वाली सरकार…पहले भी रेप-बगावत के दाग छीन चुके पद; 2 मंत्री सीएम की शिकायत करने दिल्ली जा रहे थे
सत्ता से बगावत पर गए सबसे ज्यादा पद
कांग्रेस और बीजेपी की सरकारों में कई मंत्री और नेता विवादों में रहे। कई ऐसे मंत्री रहे जिन पर करप्शन, हत्या, रेप, अपहरण सहित कई मामलों के चार्ज लगे। कांग्रेस और बीजेपी की सरकारों में कई केबिनेट, राज्य मंत्रियों के खिलाफ मुकदमे तक हुए। मगर ज्यादातर मामलों में मंत्रियों को पद तब ही गंवाना पड़ा जब उन्होंने सत्ता और अपनी सरकार के खिलाफ आवाज उठाई।
जानकारों का यह भी कहना है कि पुराने दौर में विवादों पर मंत्रियों से इस्तीफे मांगे जाते थे। ऐसा नहीं कि तब विवाद नहीं होते थे, मगर तब विवाद होने पर संगठन के मार्फत या सरकार अपने तरीके से इस्तीफे मांग लेती थी।
विधायकों को सस्पेंड करने में बीजेपी आगे
मंत्रियों के अलावा अगर विधायकों की भी बात करें तो उनका भी सस्पेंशन होता रहा है। सदन में कई कारण से विधायकों का सस्पेंशन किया जाता रहा है। इन सस्पेंशन में भाजपा सरकार के कार्यकाल वाले विधानसभा अध्यक्ष आगे रहे हैं। बीजेपी सरकार में विधायकों के सस्पेंशन ज्यादा हुए हैं।
वर्तमान सरकार की बात करें तो अब तक 7 विधायकों को निलंबन हुआ है। इनमें कांग्रेस के पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा भी शामिल हैं। गुढ़ा को विधानसभा की पूरी अवधि के लिए सस्पेंड किया गया है। उनके साथ-साथ मदन दिलावर को भी सस्पेंड किया गया। इसी तरह इस विधानसभा में अविनाश, चंद्रभान सिंह आक्या, मदन दिलावर, राजेंद्र राठौड़, रामलाल शर्मा और वासुदेव देवनानी को सस्पेंड किया जा चुका है।
पिछली सरकार में 16 विधायकों को किया था सस्पेंड
इससे पिछली बीजेपी की सरकार में 16 विधायकों को सस्पेंड किया गया था। इनमें कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, आरएलपी अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल सहित कई विधायक शामिल थे। इससे पिछली कांग्रेस सरकार में 5 विधायक सस्पेंड हुए थे।
वहीं 2003 से 2008 की वसुंधरा राजे सरकार में 16 विधायक सस्पेंड किए गए थे। इससे पहले 1998 से 2003 की अशोक गहलोत सरकार में 3 विधायक सस्पेंड किए गए थे और 1993 से 1998 में भैरोंसिंह शेखावत की सरकार में 6 विधायकाें को सस्पेंड किया गया था।