आसपास के बदलावों से अनजान बने नहीं रह सकते …
आसपास के बदलावों से अनजान बने नहीं रह सकते …
पूरा देश- विशेषकर महाराष्ट्र- अगस्त में अल्पवर्षा का सामना कर रहा है। इस बीच शुक्रवार को मैंने अन्य राज्य में रह रहे मेरे मित्र को फोन किया, उसने कहा, ईश्वर का शुक्र है कि मैं वहां नहीं रहता। मैंने कहा, इसका ये मतलब नहीं कि इससे आप प्रभावित नहीं होंगे। वे मेरी यह बात सुनकर हंस पड़े, तब मुझे उन्हें ये दो उदाहरण देना पड़े।
1. इस शुक्रवार को फ्रांसीसी कृषि मंत्री मार्क फेस्न्यॉ ने वाइन उत्पादकों के समर्थन और कीमतों में उछाल लाने के लिए जरूरत से अधिक उत्पादन को नष्ट करने के लिए 20 करोड़ यूरो देने की घोषणा की। क्या आप यकीन करेंगे कि ये देश 20 करोड़ यूरो केवल अतिरिक्त वाइन नष्ट करने पर खर्च कर रहा है, क्योंकि बाजार की मांग को समझे बिना उत्पादन कर दिया था!
इसके बाद सरकार वाइनरी के मालिकों को नष्ट की गई वाइन से निर्मित अल्कोहल को उन कम्पनियों को बेचने में भी मदद करेगी, जो सैनिटाइजर, सफाई उत्पाद, परफ्यूम जैसी गैर-खानपान वस्तुएं बनाती हैं। वे यहां पर नाकाम रहे थे कि उपभोग की आदतों में आए बदलाव, जीवन की लागतों के संकट और कोविड के बाद के प्रभावों को पहचान नहीं सके और जरूरत से ज्यादा उत्पादन कर बैठे, जिससे कीमतें गिर गईं।
वे खाद्य-पदार्थों, ईंधन की कीमतों में हाल में आए उछाल को भी देख नहीं सके और यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद पूरी दुनिया में ऊर्जा की कीमतों में हुई बढ़ोतरी से इसे जोड़ नहीं सके। इस वैश्विक परिघटना का सीधा असर यह रहा है कि अनेक खरीदारों ने वाइन जैसे गैर-अनिवार्य उत्पादों पर खर्चों में कटौती कर दी है। जब वाइन के सबसे बड़े बाजारों ने भी उपभोग में कटौती की, जैसे इटली (7%), स्पेन (10%), फ्रांस (15%), जर्मनी (22%), पुर्तगाल (34%) तो वे इससे अनजान रहे, और परिणाम हम देख सकते हैं।
2. अब ध्यान भारत में अनिवार्य वस्तुओं पर केंद्रित करें। अगस्त में हुई अल्पवर्षा से कृषि-भूमि सूख रही है। टमाटर, प्याज के बाद इस महीने कमोडिटी बाजार में चावल की चर्चा है, जिसके उत्पादन के लिए खासी मात्रा में पानी चाहिए होता है और जो अधिकतर एशियाई परिवारों का प्रमुख भोजन है।
चावल की वैश्विक कीमतें 11 वर्षों में उच्चतम पर हैंं। जैसे-जैसे एल नीनो का खतरा फसलों पर मंडराता जा रहा है, कीमतें और बढ़ेंगी। एल नीनो का असर किसी एक देश तक सीमित नहीं है, इसने बांग्लादेश, चीन, इंडोनेशिया, थाईलैंड, वियतनाम सहित भारत जैसे चावल-उत्पादक देशों में उपज पर असर डाला है।
लगता है सितम्बर में बाजार शकर की बातें कर रहा होगा, क्योंकि 2023-24 में महाराष्ट्र के अनुमानित शकर उत्पादन में 11% की गिरावट की अपेक्षा है, जबकि इस राज्य में पहले ही 2022-23 के उत्पादन में 17% की गिरावट रही थी। राष्ट्रीय शकर उत्पादन के 330 लाख टन रहने की अपेक्षा है, जो 2022-23 से 56 लाख टन कम है।
केंद्र सरकार टमाटर-प्याज की कीमतों का नियमितीकरण करने की तरह किसी भी अनिवार्य वस्तु के खुदरा मूल्यों पर नियंत्रण लगाने के कदम उठा सकती है, लेकिन कमोडिटी बाजार का मानना है कि पिछले साल का 65 लाख टन का कैरी-ओवर स्टॉक इस साल के उपभोग की जरूरतें पूरी करने के लिए काफी होगा।
जहां अनेक खरीफ फसलें वर्षा की प्रतीक्षा कर रही हैं, वहीं बारिश की लम्बी खेंच (अनुमान है ये दौर सितम्बर के पहले हफ्ते तक चलेगा) सोयाबीन, अरहर, बाजरा, मक्का, प्याज जैसी अनेक फसलों के लिए अच्छी खबर नहीं होगी।
महाराष्ट्र प्याज, अरहर, शकर का सबसे बड़ा और सोयाबीन, कपास का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। साथ ही वह मक्का-ज्वार का भी बड़ा उत्पादक राज्य है। एक राज्य में जलवायु की बदहाली जरूरी चीजों की कीमतों पर असर तो डालेगी ही।
शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सिर घुसाकर आप यह नहीं सोच सकते कि आपके बिजनेस (घरेलू खर्चे) पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ने वाला। अगर जागरूक रहकर जिंदगी को आगे बढ़ाएंगे तभी बाहरी ताकत आपको नुकसान नहीं पहुंचा सकती।