बिहार में बेरोज़गारों का ज़िम्मेवार कौन?

 बिहार में बेरोज़गारों के साथ बदसलूकी का ज़िम्मेवार कौन?
पटना के डीएम चंद्रशेखर सिंह ने कहा कि सरकार का काम इम्तेहान करवाना है, उम्मीदवारों के ठहरने का कोई इंतजाम कराना सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, और न ही प्रशासन को सरकार की तरफ से इस तरह का कोई निर्देश मिला है।

बिहार से चौंकाने वाली तस्वीरें आईं। पटना, जहानाबाद, आरा, नालंदा, हाजीपुर जैसे कई शहरों में अफरा-तफरी है। रेलवे स्टेशनों पर, बस अड्डों पर, मंदिरों में, सड़कों पर, जबरदस्त भीड़ है, जैसे कोई मेला  लगा हो। हर जगह लोग चादर बिछाकर बैठे हुए हैं क्योंकि बिहार में बिहार लोक सेवा आयोग का इम्तेहान हो रहा है और 8 लाख से ज्यादा नौजवान नौकरी की उम्मीद में इम्तेहान देने पहुंचे हैं। लेकिन किसी शहर में युवाओं को सिर छुपाने की जगह नहीं मिल रही है। हजारों युवा स्टेशन पर बैठे हैं, कुछ मंदिर में रुके हैं, कोई बस स्टेशन पर चादर बिछाकर वक्त काट रहा है और बहुत से छात्र तो परीक्षा केंद्र के आसपास सड़क पर ही बैठे हैं। होटलों में जगह नहीं हैं, इतने होटल हैं नहीं कि इतने सारे युवाओं के ठहरने का इंतजाम हो सके। सरकार ने कोई इंतजाम किया नहीं, टेंट तक नहीं लगवाए कि परीक्षा देने आए पहुंचे छात्र धूप और बारिश से बचने के लिए उनका सहारा ले सकें। इसी चक्कर में ज्यादातर लड़के लड़कियों ने प्लेटफॉर्म पर ही रात गुजारी। इन नौजवानों और उनके परिवार वालों की तकलीफ सुनेंगे तो अंदाजा होगा कि सरकार और नेता कितने संवेदनहीन हैं, अफसर कितने बेपरवाह हैं और भीड़ की तस्वीरें देखेंगे तो समझ आएगा कि बेरोजगारी का आलम क्या है

पटना से जो तस्वीरें आईं, उन्हें देखकर अफसरों से, मंत्रियों से सवाल पूछे गए तो जवाब मिला कि सरकार सिर्फ इम्तेहान करवाती है, परीक्षा केंद्रों की व्यवस्था करती है, सरकार का काम परीक्षा देने के वालों को ठहराने का इंतजाम करवाना नहीं हैं। बात सही है। लेकिन सवाल ये है कि सरकारी नौकरी के लिए फॉर्म भरवाए गए, युवाओं से फीस ली गई। सरकार को ये पता था कि कितनी संख्या में उम्मीदवार आने वाले हैं। तो फिर क्या ये देखना सरकार का काम नहीं है कि अगर उम्मीदवार आएंगे तो रहेंगे कहां ? क्योंकि परीक्षा  सिर्फ एक दिन नहीं हैं, तीन दिन तक इम्तहान होने हैं। अलग-अलग शिफ्ट में होने हैं। सोचिए, जिन छात्रों ने पूरी रात प्लेटफॉर्म पर जाग कर गुजारी हो, वो अगले दिन परीक्षा केंद्र तक किस हाल में पहुंचेंगे, फिर कैसे परीक्षा देंगे? और अगले दिन के इम्तहान के लिए चौबीस घंटे कहां गुजारेंगे? नीतीश कुमार के सुशासन की पटना रेलवे स्टेशन का हाल देखकर आपको समझ आ जाएगी। पटना जंक्शन रेलवे स्टेशन की तस्वीरें शिक्षक नियुक्ति परीक्षा से 10 घंटे पहले की हैं। नौजवानों की ये भीड़ शिक्षक बनने की उम्मीद में पहुंचे लोगों की है। चूंकि सुबह दस बजे पहली शिफ्ट का इम्तहान था इसलिए एक रात पहले से ही छात्र पटना पहुंचने लगे, और कुछ ही घंटों में पटना रेलवे स्टेशन पर हजारों की भीड़ जमा हो गई।

रात 12 बजे से बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से परीक्षार्थी पटना पहुंचने लगे थे। रात को पटना रेलवे स्टेशन का एक नंबर प्लेटफॉर्म खचाखच भरा हुआ था। इनमें से कुछ लोग ऐसे थे, जिन्हें पटना शहर में होटल नहीं मिला, या मिला भी तो इतना महंगा कि उसका किराया दे पाना इनके लिए मुश्किल था। इसलिए ये लोग रात गुजारने के लिए रेलवे स्टेशन पर ही ठहरे, जबकि कुछ लोग ऐसे थे, जो दूसरे राज्यों से पहले पटना पहुंचे। उनका सेंटर पटना के आसपास के शहरों में था, उन्हें वहां पहुंचना था लेकिन न पटना में ठहरने की जगह थी, न आगे जाने के लिए कोई साधन था। इसलिए वे भी सुबह होने के इंतजार में स्टेशन पर ही रुक गए। आलम ये था कि लोग प्लेटफॉर्म पर चादर डालकर बैठे रहे, लेटे रहे। नौकरी की उम्मीद में बड़ी संख्या में लड़कियां और महिलाएं भी पहुंची थीं। उनके साथ परिवार के सदस्य भी थे। कुछ महिलाओं की गोद में छोटे-छोटे बच्चे थे। सबको रात स्टेशन पर ही काटनी पड़ी।

बिहार में 1 लाख 70 हजार 461 शिक्षकों की बहाली होनी है। इनमें 80 हजार शिक्षकों की नियुक्ति प्राथमिक स्कूलों में होनी है। 57 हजार 618 भर्तियां उच्चतर माध्यमिक स्कूलों में होनी है और 32 हजार 916 शिक्षकों के पद माध्यमिक स्कूलों में भरे जाने हैं। इसके लिए बिहार लोक सेवा आयोग बिहार के कई शहरों में 2 चरणों में परीक्षा करवा रहा है। गुरुवार को इम्तेहान का पहला दिन था। इसके बाद शनिवार को फिर परीक्षा होनी है। करीब पौने दो लाख पदों के लिए 8 लाख से ज्यादा युवाओं ने फॉर्म भरा है। परीक्षा के लिए पूरे बिहार में 859 परीक्षा केंद्र बनाए गए हैं। पटना में सबसे ज्यादा 40 परीक्षा केंद्र बनाए गए। इसलिए पटना में भीड़ सबसे ज्यादा थी। जब हर तरफ अफरा तफरी मची तो पटना के डीएम चंद्रशेखर सिंह ने कहा कि सरकार का काम इम्तेहान करवाना है, लेकिन उम्मीदवारों के ठहरने का कोई इंतजाम कराना सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, और न ही प्रशासन को सरकार की तरफ से इस तरह का कोई निर्देश मिला है। पटना जैसा हाल जहानाबाद और आरा में भी था। होटल मालिकों ने कमरों के किराये बढ़ा दिये। मुज़फ्फरपुर में बारिश हो रही थी, छात्र सड़क पर थे, किसी तरह परीक्षा केंद्र पहुंचे तो वहां भी पानी भरा हुआ था। आलम ये था कि नौकरी की उम्मीद में पहुंचे लड़के लड़कियां पानी में भींगते हुए, जूते चप्पल हाथ में लेकर, दो-दो फीट पानी से गुजर कर परीक्षा केंद्र पहुंचे।

नालंदा में 32 परीक्षा केंद्र बनाए गए हैं। यहां सुबह से बारिश भी हो रही थी। परीक्षा केंद्रों के आसपास के इलाके में पानी भरा हुआ था जिसकी वजह से ट्रैफिक जाम हो गया। सुबह जब हज़ारों युवा परीक्षा केंद्रों के लिए निकले तो उन्हें बारिश, जलभराव और ट्रैफिक जाम, तीनों का सामना करना पड़ा।  कई परीक्षार्थी वक्त पर नहीं पहुंच पाए। इन लोगों को परीक्षा केंद्र के हॉल में घुसने से रोक दिया गया। बहुत से नौजवान तो वहीं बैठकर रोने लगे। उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने माना कि परीक्षा देने वालों की संख्या ज्यादा है, इसलिए दिक्कतें हुई, लेकिन बड़ी बात ये है कि उन्होंने बिहार के लोगों से नौकरी का जो वादा किया था, उसे पूरा कर रहे हैं, इसकी तारीफ होनी चाहिए। बिहार बीजेपी के अध्यक्ष सम्राट चौधरी का कहना है कि जब 80 हजार स्टूडेंट्स पहले ही STET की परीक्षा पास कर चुके हैं, तो फिर उन्हें नौकरी देने के लिए BPSC की तरफ से परीक्षा क्यों कराई जा रही है, इस परीक्षा का कोई मतलब ही नहीं है। जिन्होंने STET की परीक्षा पास की है, उन्हें सीधे नौकरी मिलनी चाहिए। मैं ये सब देखकर आहत हूं, कि नौकरी के लिए इम्तिहान देने आए लड़के लड़कियों को इस कदर बदइंतजामी का सामना करना पड़ा। किस बेहाली में एग्जाम देने पड़े। समझ नहीं आया कि अधिकारियों की संवेदना कहां मर गई थी। कार्यकुशलता भले ही न हो लेकिन इंसानियत तो होनी चाहिए।

क्या अपने देश के नौजवानों के प्रति बिहार के नेताओं और अफसरों की कोई जिम्मेदारी नहीं है? घर जब कोई बच्चा परीक्षा देने जाता है तो माता पिता उसे रात में आराम से सुलाते हैं, सुबह दही-पेडा खिलाकर, भगवान के आगे हाथ जोड़कर परीक्षा के लिए भेजते हैं। बिहार में स्टेशन पर रात बिताकर, बुरी तरह धक्के खाकर, बिना खाए पिए परीक्षा में बैठने वाले ये युवक युवतियां कितने मजबूर, कितने बेबस होंगे, कितने दुखी होंगे, इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। क्या इनका गुनाह ये है कि ये शिक्षक बनना चाहते हैं? शिक्षकों की भर्ती तो दूसरे राज्यों में भी होती है, वहां भी परीक्षाएं होती हैं, लेकिन इस तरह के हालात तो कभी नहीं बनते। आखिर बिहार में ही ऐसा क्यों होता है? बिहार में पौन दो लाख शिक्षकों के पद खाली क्यों हैं? कब से खाली हैं? अचानक एक साथ इतने पदों की भर्ती क्यों करनी पड़ी कि 8 लाख लोग परीक्षा देने पहुंच गए? असल में पहले बिहार में शिक्षकों की भर्ती सेन्ट्रल टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट और स्टेट टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट में रैंकिंग के आधार पर होती थी। लाखों नौजवान ये परीक्षा पास करके नियुक्ति पत्र मिलने का इंतजार कर रहे थे। 6 साल से नीतीश की सरकार ने भर्ती नहीं की और इस साल अचानक फैसला कर दिया कि अब सीटैट या एसटैट के जरिए भर्ती नहीं होगी। शिक्षकों की भर्ती BPSC के जरिए की जाएगी। इसके खिलाफ छात्रों ने कई बार आंदोलन किया, पुलिस की लाठियां खाईं लेकिन नीतीश कुमार अपनी ज़िद पर अड़े रहे।

चूंकि तेजस्वी यादव ने 10 लाख नौकरियां का वादा कर दिया था, इसलिए आनन-फानन में शिक्षकों की भर्ती शुरू की गई। पौने दो लाख पदों के लिए  परीक्षा का आयोजन किय़ा गया। आठ लाख से ज्यादा नौजवानों ने फॉर्म भर दिया। सरकार ने इतनी बड़ी संख्या में नौजवानों को परीक्षा केंद्र तोआवंटित कर दिए लेकिन उनके लिए कोई और इंतजाम नहीं किया। बड़ी बात ये है कि रेलवे ने छात्रों की संख्या को देखते हुए 5 स्पेशल ट्रेन चलाने का फैसला किया लेकिन नीतीश कुमार की सरकार सोती रही और नतीजा ये हुआ कि हजारों लोग स्टेशन पर रात गुजराते दिखे। हजारों छात्र ऐसे थे जो बारिश में भीगकर, कई-कई किलोमीटर पैदल चलकर परीक्षा केंद्र तक पहुंचे, लेकिन उनमें से बहुतों को घुसने नहीं दिया गया। क्या कोई बताएगा कि बिहार में परीक्षा देने आए इन नौजवानों के साथ इस बदसलूकी का जिम्मेदार कौन है? मंत्री और अफसर जो चाहें बहाना बनाएं, छात्र-छात्राएं इम्तिहान देने के लिए बिहार आए, उनके रहने-ठहरने का इंतजाम और उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है, जिसमें नीतीश कुमार की सरकार पूरी तरह फेल हुई

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