मंत्री रहे अमरमणि त्रिपाठी की सजा हॉस्पिटल में कटी !

मर्डर, धमकियां, जेल, 20 साल बाद रिहाई:मंत्री रहे अमरमणि त्रिपाठी की सजा हॉस्पिटल में कटी, बेटा भी 6 साल से जमानत पर

केस का स्टेटस: 20 साल बाद 24 अगस्त, 2023 को अमरमणि और मधुमणि त्रिपाठी रिहा हो गए। दोनों की सजा का ज्यादातर वक्त गोरखपुर मेडिकल कॉलेज के प्राइवेट वार्ड में बीता।

9 जुलाई, 2015: अमरमणि त्रिपाठी की बहू सारा सिंह की कार एक्सीडेंट में मौत हो गई। सारा के परिवार ने हत्या का शक जताया। आरोप अमरमणि के बेटे अमनमणि पर लगा।
केस का स्टेटस: 2017 में केस शुरू हुआ। 9 मार्च, 2017 को अमनमणि को जमानत मिल गई। तभी से वो जेल से बाहर है।

दो केस, दोनों की CBI जांच हुई, आरोपी बाप-बेटे सरकार के करीबी, एक पर कथित गर्लफ्रेंड और दूसरे पर पत्नी की हत्या का आरोप। दोनों फिलहाल जेल से बाहर हैं।

अमरमणि त्रिपाठी की जेल से रिहाई के बाद दैनिक भास्कर ने मधुमिता शुक्ला और सारा सिंह के परिवार से बात की। दोनों परिवारों ने लंबे वक्त तक कानूनी लड़ाई लड़ी है। उनका आरोप है कि बाप-बेटे रसूख का इस्तेमाल कर केस अपने पक्ष में करने की कोशिश करते रहे हैं।

मधुमिता की बहन बोलीं- फोन पर लोकेशन नहीं बता सकती, सरकार कॉल रिकॉर्ड कर रही है
सबसे पहले हमने मधुमिता शुक्ला की बहन निधि शुक्ला से बात की। लखीमपुर में रह रहीं निधि मिलने के लिए तैयार थीं, लेकिन कहां, ये नहीं बताया। बोलीं- फोन पर लोकेशन नहीं बता सकती, सरकार हमारा फोन रिकॉर्ड करवा रही है। मैं आपको बताऊंगी, तब आप आइए।

कुछ देर बाद निधि शुक्ला का फोन आया। उन्होंने कहा कि मैं लखीमपुर में हूं। आप आ जाइए। हम अगले दिन लखीमपुर पहुंचे। निधि शुक्ला के बताए पते पर गए, तो घर में पुलिस का एक जवान मिला। तलाशी लेने के बाद ही हमें अंदर जाने दिया। हमने उनकी फोटो लेनी चाही, तो रोक दिया।

निधि हमें अंदर ले गईं। वहां एक टेबल पर मधुमिता के केस से जुड़े कागज बिखरे पड़े थे। हमने पूछा- आप यहां अकेले रहती हैं? जवाब मिला- पहले मां रहती थीं, लेकिन उनकी उम्र हो चुकी है। इसलिए भाई के पास भेज दिया है। यहां मैं और मेरे पति रहते हैं। डेढ़-दो साल पहले ही हमारी शादी हुई है।

निधि को मधुमिता केस की हर जानकारी तारीख के साथ याद है। वे कहती हैं, ‘मुझे याद है, जब CBI जांच कर रही थी, तो मायावती सरकार ने कितनी रुकावटें डाली थीं। केस कोर्ट में पहुंचा, तो सबसे ज्यादा मुश्किल हुई। अमरमणि ने पूरी गैंग हमारे गवाहों के पीछे लगा दी।’

‘उसके लोग लखनऊ में खुलेआम घूम रहे थे। किसी गवाह को मार रहे थे, किसी गवाह के बच्चे को किडनैप कर लिया। लखनऊ से 5 पुलिसवाले भेजे, जो पुलिसवाले कम गुंडे ज्यादा दिख रहे थे। इतना प्रेशर बना दिया कि मैं गवाही के लिए नहीं गई। इसके लिए CBI कोर्ट ने हम पर 2 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया था।’

‘अमरमणि के डर से हमारे दो-तीन गवाह पलट गए। मैं सुप्रीम कोर्ट चली गई। इसके बाद केस देहरादून ट्रांसफर किया गया। वहां की स्पेशल कोर्ट ने अमरमणि और मधुमणि त्रिपाठी को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।’

‘सजा पूरी होने से पहले ही दोनों को रिहा कर दिया गया। रिहाई का आधार अच्छा बर्ताव बताया गया है। आप देखिए, उस वक्त भी सरकार दोषियों के साथ थी, और आज भी है। हमें सरकार से उम्मीद भी नहीं है। अमरमणि का केस UP आया था, तभी लग गया था कि ऐसा कुछ जरूर होगा।’

25 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई थी, एक दिन पहले ही रिहाई…
निधि शुक्ला बताती हैं, ‘2007 में अमरमणि और मधुमणि समेत 4 लोगों को मधुमिता हत्याकांड में सजा सुनाई गई। 2008 में उसने UP में अपने ऊपर फर्जी चेक बाउंस का केस करवा दिया। इसी केस की सुनवाई के लिए अमरमणि और मधुमणि गोरखपुर आए और खुद को बीमार बताकर BRD मेडिकल कॉलेज में भर्ती हो गए। इसके बाद इनका जेल से आना-जाना जारी रहा। उत्तराखंड सरकार ने नहीं पूछा कि उनका कैदी कहां है, या सब जानकर चुप रहे।’

‘2013 में अमरमणि ने अखिलेश सरकार के वक्त मर्सी पिटीशन डाली थी, लेकिन सरकार ने उसे दूसरे प्रदेश का कैदी बताकर रिजेक्ट कर दिया था।’

अमरमणि की रिहाई पर निधि कहती हैं, ‘मुझे पहले ही पता चल गया था कि 15 अगस्त को वो छूटने वाला है। हंगामा होने लगा, इसलिए उसे 24 अगस्त को रिहा किया गया। मैं कोशिश कर रही थी कि अमरमणि न छूटे, लेकिन मुझसे एक गलती हो गई। मैंने सबको बता दिया कि 25 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई है। इसीलिए उसे 24 अगस्त को रिहा कर दिया गया।’

25 अगस्त को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने अमरमणि की रिहाई पर रोक नहीं लगाई। कोर्ट ने एक मेडिकल टीम बनाकर 4 हफ्तों में रिपोर्ट देने के लिए कहा है। ये डेडलाइन 25 सितंबर को पूरी होगी।

UP आने के बाद सिर्फ 16 महीने जेल में रहे अमरमणि और मधुमणि
देहरादून सेशन कोर्ट से अमरमणि और मधुमणि को 24 अक्टूबर, 2007 को सजा सुनाई थी। मधुमणि को 4 दिसंबर, 2008 और अमरमणि को 13 मार्च, 2012 को हरिद्वार जेल से गोरखपुर शिफ्ट किया गया। गोरखपुर में 11 साल 5 महीने की सजा के दौरान अमरमणि ने सिर्फ 16 महीने जेल में काटे। बाकी वक्त BRD मेडिकल कॉलेज के प्राइवेट वार्ड में बीता।

मधुमणि त्रिपाठी को चेक बाउंस के एक मामले में उत्तराखंड से गोरखपुर जेल लाया गया था। इसके बाद वे वापस नहीं गईं। 16 अप्रैल, 2012 को जेल के एक डॉक्टर की सिफारिश पर उन्हें BRD मेडिकल कॉलेज भेजा गया था।

अमरमणि को 27 फरवरी, 2014 को मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया। तभी से वे हॉस्पिटल में भर्ती हैं। यानी अमरमणि 11 साल 5 महीने की सजा में सिर्फ 16 महीने जेल में रहे।

क्या अमरमणि और मधुमणि की रिहाई नियमों के मुताबिक नहीं हुई…
इसके जवाब में निधि कहती हैं, ‘UP सरकार अमरमणि के हिसाब से चलती है। वो जेल में बैठकर ट्रांसफर-पोस्टिंग करवा लेता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जेल में कैदी बढ़ रहे हैं, इसलिए अच्छे बर्ताव वाले बुजुर्ग कैदियों को छोड़ दिया जाए।’

‘नियम ये है कि कैबिनेट की मीटिंग में ऐसे कैदियों पर विचार किया जाता है। कमेटी के बाईलॉज में लिखा है कि रेप और मर्डर के आरोपियों को समय से पहले नहीं छोड़ा जाएगा। मुख्यमंत्री अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करें, तभी ऐसे कैदियों को छोड़ा जा सकता है।’

‘मुख्यमंत्री ने विशेषाधिकार इस्तेमाल कर गर्वनर के पास कागज भेज दिए। अमरमणि और उसकी पत्नी फौरन रिहा कर दिए गए।’

अमरमणि की रिहाई के बाद 6 बार धमकी मिली
निधि कहती हैं, ‘अमरमणि के रिहा होने के बाद से मुझे छह बार जान से मारने की धमकी मिल चुकी है। अमरमणि का शूटर संतोष राय लखीमपुर भी आया था। उसने मेरी सुपारी ली है। अब मेरी जान को खतरा है। और वो शूटर क्यों न घूमे, जब उसका सरगना ही बाहर घूम रहा है।’

अमरमणि को आरोपी बताया, तो मायावती सरकार ने CBCID के डायरेक्टर को सस्पेंड किया..
निधि शुक्ला कहती हैं, ‘एक हफ्ते तक मधुमिता का केस लखनऊ पुलिस के पास था। मामला दबाने की कोशिश तभी से शुरू हो गई थी। 17 मई, 2003 को केस CBCID को ट्रांसफर कर दिया गया।

CBCID ने जांच समय पर पूरी की और जून में CM मायावती को रिपोर्ट सौंप दी। इस रिपोर्ट में अमरमणि त्रिपाठी को आरोपी बताया गया था। इससे नाराज मायावती ने CBCID के डायरेक्टर समेत 6 पुलिसवालों को सस्पेंड कर दिया था। इसके बाद 17 जून, 2003 को केस CBI को ट्रांसफर किया गया।’

मधुमिता मंच से वीर रस की कविताएं सुनाती थीं। वे 15 साल की उम्र से कवि सम्मेलनों में जाने लगी थीं। इसी वजह से उनकी पहचान अमरमणि त्रिपाठी से हुई थी।

मधुमिता केस को किस तरह प्रभावित करने की कोशिश की गई, ये जानने के लिए हम लखनऊ में रिटायर्ड IPS राजेश पांडेय से मिले। राजेश पांडेय मधुमिता हत्याकांड के वक्त लखनऊ के SP क्राइम थे। मधुमिता की हत्या के बाद मौके पर सबसे पहले पहुंचने वाले बड़े अधिकारी वही थे।

अफसरों पर दबाव बनाया, फेक CDR बनाई, नकली गवाह तैयार किए…
रिटायर्ड IPS राजेश पांडेय बताते हैं, ‘9 मई, 2003 को लखनऊ के चौक थाने में अधिकारियों की मीटिंग थी। अगले दिन चुप ताजिया का जुलूस निकलना था, इसलिए सभी अधिकारी सिक्योरिटी का रिव्यू कर रहे थे।

शाम करीब 6:30 बजे वायरलेस पर मैसेज आया कि निशातगंज में एक महिला की गोली मारकर हत्या कर दी गई है। तब SSP रहे अनिल अग्रवाल ने मुझसे कहा कि आप वहां पहुंचिए, हम भी आ रहे हैं। मैं पहुंचा, तब मकान के सामने भीड़ लगी हुई थी। घर के अंदर बेड के किनारे एक महिला की डेडबॉडी पड़ी थी।

‘हम लोगों ने पूछताछ शुरू की। पता चला कि मरने वाली महिला का नाम मधुमिता है। वहीं उसकी बहन निधि भी थी। उसने बताया कि वो शॉपिंग करने गई थी। करीब 3 से 4 बजे दो लाेग घर आए थे। मधुमिता ने उन्हें अंदर बुलाया और नौकर देशराज को चाय बनाने के लिए कहा। देशराज जैसे ही चाय बनाने गया, दोनों ने मधुमिता को गोली मार दी। देशराज ने उन्हें बाइक से भागते देखा था।’

‘निधि से बात हो रही, तभी SSP साहब आ गए। उन्होंने निधि से पूछा कि घटना 4 बजे की है, पुलिस चौकी भी करीब है, तब आपने इतनी देर से खबर क्यों दी। निधि ने जो बताया, उससे सभी के कान खड़े हो गए। उसने कहा कि मैं मंत्रीजी को फोन लगा रही थी। बात नहीं हो पाई, तो पुलिस को बुलाया।’

SSP साहब ने सख्ती से पूछा, तो उसने बताया कि मधुमिता मंत्री यानी अमरमणि त्रिपाठी से प्रेग्नेंट थी। उसका 3 से 4 महीने का गर्भ था। इस बात की तुरंत तस्दीक कराई गई। बात सही निकली। इसके बाद मामला संवेदनशील होता गया। सुबह मधुमिता का पोस्टमॉर्टम हुआ, तो अमरमणि भी वहां आ गया।’

‘निधि शुक्ला और उसकी मां से अमरमणि की कहासुनी भी हुई, लेकिन पोस्टमॉर्टम होने तक वो वहीं रहा। इसके बाद बॉडी लखीमपुर भेज दी गई। मधुमिता की हत्या की खबर अखबारों में आ चुकी थी। CM मायावती ने अमरमणि से पूछा, तो उसने कहा कि ये उसके विरोधियों की साजिश है।’

‘मधुमिता की बॉडी रवाना हो गई, तब किसी ने SSP साहब को याद दिलाया कि फीटस का DNA नहीं लिया होगा, तो कोर्ट में साबित करना मुश्किल हो जाएगा कि मर्डर अमरमणि ने करवाया है। उन्होंने तुरंत बॉडी को दोबारा लखनऊ बुलवा लिया। यहां फीटस का DNA सैंपल लिया गया। इसके बाद बॉडी लखीमपुर भेजी गई। यही DNA टेस्ट बाद में अमरमणि के खिलाफ सबसे पुख्ता सबूत बना।’

‘अमरमणि ने IIT कानपुर के एक स्टूडेंट अनुज शुक्ला को इस केस में फंसाने के लिए फर्जी पंडित तक तैयार कर लिया था। वो साबित करना चाहता था कि अनुज और मधुमिता की शादी हो चुकी है। CBI ने जांच की, तो सच सामने आ गया। CBI जांच की वजह से अमरमणि जेल भी गया और सजा भी काटी।’

अब अमरमणि के बेटे अमनमणि त्रिपाठी की कहानी…

सारा ने परिवार को बिना बताए अमनमणि से शादी की, दिल्ली जाते वक्त मौत
अमनमणि त्रिपाठी की पत्नी सारा सिंह की मां सीमा सिंह लखनऊ के गोमती नगर में रहती हैं। उनका घर पॉश एरिया विराम खंड-5 में है। घर में सिर्फ मां और बेटा हैं। सीमा सिंह बताती हैं, ‘सारा और अमनमणि एक पार्टी में मिले थे। इसके बाद दोनों की बातचीत होने लगी। मुझे इस बारे में पता नहीं था। एक दिन सारा ने मुझे अमनमणि की फोटो दिखाई और पूछा कि मम्मी ये लड़का कैसा है। मैंने पूछा कौन है, किसका लड़का है। उसने कहा- बाद में बता देंगे।’

दो-तीन बाद सारा ने बताया कि अमनमणि UP के पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी का बेटा है। मुझे मधुमिता शुक्ला हत्याकांड के बारे में पता था। इसलिए मैंने सारा को शादी के लिए मना कर दिया।

‘एक दिन अमनमणि त्रिपाठी मेरे घर के बाहर आया और नशे में फायरिंग की। सारा से इस बारे में पूछा तो उसने बताया कि वो धमकी दे रहा था कि मुझसे शादी करो, नहीं तो पूरे परिवार को खत्म कर दूंगा। सारा मुझसे ये सब बातें नहीं करती थी, अगर करती तो ऐसा दिन नहीं देखना पड़ता।’

सारा सिंह की पढ़ाई लखनऊ में हुई थी। 2013 में उन्होंने परिवार को बताए बिना अमनमणि से शादी की थी।

सीमा सिंह आगे बताती हैं, ‘मुझे पता नहीं चला कब सारा ने अमनमणि से शादी कर ली। एक दिन सारा ने कहा- मम्मी, मै अमन के साथ दिल्ली जा रही हूं। 9 जुलाई, 2015 को मेरे पास कॉल आया कि फिरोजाबाद में सारा का एक्सीडेंट हुआ है और वो नहीं रही। हम वहां पहुंचे, तो देखा कि बेटी खून से लथपथ पड़ी है। अमनमणि एकदम ठीक-ठाक था।’

‘इतने भयानक एक्सीडेंट में अमनमणि कैसे सेफ बच गया। इससे दिमाग में शक पैदा हुआ। हमने केस की CBI जांच की मांग की। अक्टूबर, 2015 में केस CBI को ट्रांसफर हो गया।’

सीमा सिंह आरोप लगाती हैं कि इस हत्या के पीछे अमरमणि का हाथ था। उसे ये रिश्ता मंजूर नहीं था। अमनमणि अमरमणि का इकलौता बेटा है, उसे अपनी राजनीतिक विरासत के लिए बचाकर रखना था। मां-बाप की बातों में आकर उसने मेरी बेटी को मार दिया।’

केस CBI कोर्ट में, कई जजों का ट्रांसफर
केस के स्टेटस पर सीमा सिंह कहती हैं, ‘हमारा केस CBI कोर्ट में पेंडिंग है। दो साल तक कोरोना की वजह से और कई बार जजों के न रहने से सुनवाई नहीं हो पाई।’

सीमा केस के बारे में बहुत कुछ नहीं बता पा रही थीं, इसलिए हमने उनके वकील नवनीत त्यागी से फोन पर बात की। नवनीत त्यागी बताते हैं, ‘केस की शुरुआत 2017 में हुई थी। 9 मार्च, 2017 को अमनमणि की जमानत हो गई थी। तभी से वो जेल से बाहर है। इसके बाद जजों के ट्रांसफर होते रहे।’

क्या अमनमणि ने केस को प्रभावित किया?
नवनीत त्यागी कहते हैं, ‘CBI जांच में कई सबूत मिले, जिनसे पता चलता है कि सारा की हत्या अमनमणि ने की थी। जैसे..

1. बताया गया कि कार के सामने आई लड़की को बचाने की कोशिश में एक्सीडेंट हुआ, CBI जांच में ये बात झूठी पाई गई।

2. सारा सिंह की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट को जानबूझकर बदला गया। उसके शरीर में अंदरूनी चोट थी। गले पर निशान थे। जांच में सामने आया था कि उसका गला चार्जर केबल से कसा गया था।

3. ये फैक्ट गलत पाया गया कि कार बहुत स्पीड में सड़क किनारे गिरी थी। कार का जिस स्पीड में गिरना बताया गया, उसमें वो बुरी तरह डैमेज होती और कार चलाने वाले को भी चोट आती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ था।

4. CFS रिपोर्ट, FSL रिपोर्ट और IIT दिल्ली की रिपोर्ट में भी हादसे को संदिग्ध माना गया था।

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