MP चुनाव में नेता पुत्र मांग रहे टिकट ?

MP चुनाव में नेता पुत्र मांग रहे टिकट …..भाजपा नेताओं के बेटे ज्यादा एक्टिव; कांग्रेस से भी कई नेता पुत्र चुनाव लड़ने को तैयार

12 सितंबर को मध्यप्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा का एक बयान सामने आया। उन्होंने कहा कि नेता पुत्र होना अपराध नहीं है। नेता पुत्र कार्यकर्ता की तरह ही काम करता है। जनता उसे चाहती है, तो टिकट देने के मामले में उस पर भी विचार होगा। ये बयान तब आया, जब भाजपा 5 सीटों पर ऐसे नेताओं को टिकट दे चुकी है, जिनके पिता पहले विधायक-मंत्री रहे हैं।

 

 पिता पहले से राजनीति में हैं, उनके बेटे-बेटियां क्या कर रहे हैं। कुछ कह रहे हैं कि हम पिता को जिताने के लिए लगे हुए हैं, तो कुछ कह रहे हैं कि जो पार्टी कहेगी, वो करेंगे। कुछ तो टिकट की दावेदारी भी कर रहे हैं। भाजपा से टिकट मांगने वाले नेता पुत्रों की संख्या कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा है।

भाजपा नेताओं के बेटे

सुकर्ण मिश्रा: जहां पार्टी कहेगी, काम करूंगा

दतिया से विधायक और प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा के बेटे सुकर्ण ने कहा कि भाजपा का कार्यकर्ता हूं और रहूंगा। पार्टी जहां जिम्मेदारी देगी, वहां काम करूंगा। चुनाव लड़ने की बात पर सुकर्ण ने कहा- मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात से सहमत हूं। उनका कहना है कि एक बार में एक परिवार का एक व्यक्ति ही पार्टी की तरफ से चुनाव लड़ सकता है, तो मैं उसका पालन करूंगा।

सुकर्ण ने कहा कि अगर मैं वंशवाद के दायरे में आता हूं, तो मुझे कार्यकर्ता की तरह काम करना चाहिए। पार्टी की हजार आंखें हैं। मुझे भी कहीं ना कहीं स्थान मिलेगा। मुझे करैरा और भांडेर उपचुनाव में जिम्मेदारी मिली थी। मैंने काम किया। मैं पिताजी के गृह क्षेत्र में भी सक्रिय रहता हूं।

बेटे सुकर्ण के साथ नरोत्तम मिश्रा। सुकर्ण ने कहा कि मेरी भूमिका गिलहरी की है। वो जनता के लिए जो भी करते हैं। मैं उन योजनाओं को जनता तक पहुंचाने में मदद करता हूं।

देवेंद्र प्रताप सिंह: ग्वालियर पूर्व से टिकट के दावेदार

देवेंद्र, नरेंद्र सिंह तोमर के बड़े बेटे हैं। नरेंद्र तोमर 1977 से राजनीति में सक्रिय हैं। 1998 में पहली बार ग्वालियर से विधायक और 2009 में पहली बार मुरैना से सांसद चुने गए थे। अभी केंद्रीय कृषि मंत्री एवं किसान कल्याण मंत्री हैं।

नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे देवेंद्र प्रताप सिंह उर्फ रामू भैया, 2008 से भाजपा के सदस्य हैं। 2014-15 से राजनीति में सक्रिय हैं। ग्वालियर पूर्व विधानसभा सीट से टिकट की दावेदारी है। नरेंद्र के छोटे बेटे प्रबल तोमर भी ग्वालियर में सक्रिय हैं। भाजपा के अभियानों को जनता तक पहुंचाने में सक्रिय भूमिका निभाते हैं।

मौसम बिसेन: नेता की बेटी होना अपराध नहीं है

भाजपा के कद्दावर नेता और मंत्री गौरी शंकर बिसेन की बेटी हैं। गौरीशंकर पहली बार बालाघाट विधानसभा से 1985 में विधायक बने थे। तब से लेकर अब तक कुल 6 बार विधायकी का चुनाव जीत चुके हैं। पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष हैं। पिछले महीने ही तीसरी बार मंत्री बनाए गए हैं। बिसेन 1998 और 2004 में सांसद भी रह चुके हैं। गौरी शंकर कह चुके हैं कि आगामी मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में पार्टी चाहे तो उनकी बेटी मौसम को टिकट दे सकती है। बेटी को टिकट दिया तो वो दावेदारी नहीं करेंगे।

गौरी शंकर की बेटी मौसम भी विधानसभा चुनाव के लिए खुलकर दावेदारी पेश कर रही हैं। उनका कहना है कि मैं चाहती हूं कि एक बार मुझे भी मौका मिले। जनता की सेवा के साथ भाजपा को और मजबूत बनाने में योगदान देना चाहती हूं।

मैं सिविल सर्विसेस की तैयारी छोड़ने के बाद 2004 से क्षेत्र में सक्रिय हूं। पार्टी के प्रति मेरे समर्पण और बालाघाट की जनता में मेरी स्वीकार्यता देखते हुए 2014 में लोकसभा के लिए मेरा सिंगल नाम भेजा गया था, लेकिन पिता के मंत्री रहने की वजह से मुझे टिकट नहीं मिला। मैंने 2019 में भी ट्राई किया, लेकिन पापा विधायक थे और मम्मी जिला पंचायत सदस्य, फिर टिकट नहीं मिला। पार्टी का कहना था कि एक परिवार से एक ही व्यक्ति को टिकट मिलेगा। संगठन में मैं प्रदेश कार्यसमिति सदस्य रही हूं। अभी भाजपा जिला महामंत्री हूं। परिवारवाद के आरोपों पर कहना चाहूंगी कि सालों से जमीनी स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ता पर ये आरोप नहीं लगाया जा सकता। नेता का बेटा या बेटी होना अपराध नहीं है।

मुदित शेजवार: पिता के साथ बेटा भी दावेदार

पूर्व मंत्री गौरी शंकर शेजवार के बेटे हैं। गौरी शंकर सांची से 5 बार विधायक रहे हैं। जनसंघ के समय से सक्रिय हैं। शिवराज सरकार में 2013-18 तक कैबिनेट मंत्री रहे हैं। आखिरी चुनाव 2013 में लड़े थे।

साल 2018 के चुनावों में भाजपा ने गौरी शंकर के बेटे मुदित को टिकट दिया था। मुदित तब के कांग्रेसी प्रभुराम चौधरी से चुनाव हार गए थे। इसके बाद प्रभुराम सिंधिया के साथ बीजेपी में आ गए। 2020 के उपचुनावों में भाजपा ने उन्हें टिकट दिया। अब सांची से प्रभुराम के साथ मुदित भी टिकट की दावेदारी कर रहे हैं।

नीतीश सिलावट: मैं छोटा सा कार्यकर्ता हूं, चुनाव नहीं लड़ूंगा

नीतीश, सांवेर से विधायक तुलसी सिलावट के बेटे हैं। तुलसी जल संसाधन मंत्री हैं और सिंधिया समर्थक हैं। उन्होंने 2020 में सिंधिया के साथ भाजपा जॉइन की थी। बेटे नीतीश ने कहा कि चुनाव की तैयारियां जबरदस्त चल रही हैं। पिताजी को जिताने के लिए भाजपा कार्यकर्ता बनकर काम कर रहा हूं। विधानसभा में सक्रिय हूं। लोगों से मिल रहा हूं, उनकी समस्याएं दूर करने में लगा रहता हूं। खुद को भाजपा एक छोटा सा कार्यकर्ता मानता हूं। चुनाव लड़ने की मेरी कोई इच्छा नहीं है। बस जनता की सेवा करना चाहता हूं।

आकाश राजपूत: चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं है

आकाश, मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के बेटे हैं। गोविंद सिंह 2003 में पहली बार सुरखी विधानसभा से विधायक बने थे। तब से अब तक 4 बार विधायक रह चुके हैं। वर्तमान में राजस्व एवं परिवहन मंत्री हैं। गोविंद के बेटे आकाश ने कहा कि मैं चुनाव नहीं लड़ रहा हूं। मेरे पिताजी चुनाव लड़ेंगे। मैं कार्यकर्ता की भूमिका में हूं। भाजपा को जिताने में मदद कर रहा हूं।

पिताजी 25 साल से सुरखी के लोगों की सेवा कर रहे हैं। मैं भी क्षेत्र में एक्टिव हूं। जन-जन तक पहुंचने की कोशिश में लगा हूं। अभी भी मैं क्षेत्र में ही हूं। अभी मेरा चुनाव लड़ने का कोई सपना नहीं है। जनसेवक होने के नाते लोगों की मदद करने का प्रयास कर रहा हूं।

पिता गोविंद राजपूत के साथ आकाश।

महाआर्यमन सिंधिया: पिता की तरह क्रिकेट से राजनीति में आए

महाआर्यमन, ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेटे हैं। सिंधिया वर्तमान में केंद्र सरकार में मंत्री हैं। कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे 2020 के बाद से भाजपा में बड़े नेता के तौर पर सक्रिय हैं। सिंधिया मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन में लंबे समय तक एक्टिव रहे हैं। उन्होंने क्रिकेट के रास्ते ही राजनीति में एंट्री की थी। अब पिता की तरह महाआर्यमन भी क्रिकेट में सक्रिय हैं।

साल 2022 में ग्वालियर डिवीजन क्रिकेट एसोसिएशन में उपाध्यक्ष बने थे। इसके बाद से ही उनकी राजनीति में एंट्री को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं। हाल ही इंदौर में उन्होंने इन अटकलों पर विराम लगाया। महाआर्यमन ने कहा कि मुझे क्रिकेट पसंद है। जो काम सौंपा है, वही करूंगा।

तुष्मुल झा: पार्टी कहेगी तो जरूर चुनाव लड़ूंगा

तुष्मुल, प्रभात झा के बेटे हैं। प्रभात भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। मप्र से राज्यसभा सांसद भी रह चुके हैं। साल 2010 से 2012 तक मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। तुष्मुल ने कहा कि चुनाव लड़ना और अपनी पार्टी के लिए योगदान देना हर कार्यकर्ता का सपना होता है। काम करना चाहता हूं। काम कर रहा हूं। पार्टी मौका देगी तो नि:संदेह चुनाव लड़ूंगा। अभी ग्वालियर दक्षिण विधानसभा में सक्रिय हूं। पूरी मेहनत कर रहा हूं, बाकी पार्टी पर छोड़ रखा है। प्रधानमंत्रीजी परिवारवाद की व्याख्या आसान शब्दों में कर चुके हैं। उन्होंने कहा है कि एक बार में एक परिवार का एक व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है।

सिद्धार्थ मलैया: टिकट मिलेगा तो जरूर उतरूंगा मैदान में

सिद्धार्थ, पूर्व मंत्री जयंत मलैया के बेटे हैं। जयंत 1984 में पहली बार लोकसभा के चुनाव जीते थे। इसके बाद 1990 से 2013 तक लगातार 5 बार विधायक रहे। साल 2004 में उमा भारती की सरकार में मंत्री भी रहे। शिवराज सरकार में भी मंत्री रहे। 2008 में दमोह से विधायक का चुनाव जीते थे। 2013 में फिर विधायक का चुनाव जीते और तीसरी बार प्रदेश के मंत्री बने।

सिद्धार्थ ने कहा कि स्कूल में था तब पापा के लिए प्रचार करता था। इसके बाद भाजपा के लिए करने लगा। पिछले लोकसभा चुनावों और नगरीय निकाय चुनावों में भाजपा का प्रभारी रहा हूं। इस बार चुनाव के लिए दावेदारी है। पार्टी दमोह से टिकट देगी तो चुनाव लड़ूंगा। मेरी पूरी तैयारी है। प्रदेश नेतृत्व ने स्पष्ट किया है कि नेता का बेटा अगर जमीनी स्तर पर कार्यकर्ता की तरह निष्ठा से काम करता है तो उसे भी टिकट मिल सकता है। इसे परिवारवाद नहीं माना जाएगा।

हर्षवर्धन सिंह: जो पार्टी कहेगी मैं वही करूंगा

हर्षवर्धन, पूर्व सांसद नंद कुमार सिंह के बेटे हैं। नंदकुमार खंडवा लोकसभा सीट से 6 बार सांसद रहे हैं। वो भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भी रहे थे। हर्षवर्धन कहते हैं कि पिता के देहांत के बाद पार्टी ने खंडवा लोकसभा उपचुनाव में टिकट के लिए खुद उनका नाम बढ़ाया था। फिर पार्टी ने ही टिकट काट दिया। इसके बाद से मीडिया में खबरें चलीं कि मैंने चुनाव से दूरी बना ली है। ऐसा नहीं था। मेरा वर्तमान और भविष्य भारतीय जनता पार्टी के साथ है। पार्टी जहां जब भी जो जिम्मेदारी सौंपेगी, एक कार्यकर्ता के तौर पर उसका निर्वहन करूंगा। खंडवा में सक्रिय हूं।

अभिषेक भार्गव: लोकसभा चुनाव में वापस ली थी दावेदारी

अभिषेक, गोपाल भार्गव के बेटे हैं। भार्गव रहली विधानसभा से 8 बार के विधायक हैं। वर्तमान में लोक निर्माण विभाग मंत्री हैं। गोपाल भार्गव कहते हैं कि मेरे बेटे को 20 साल का राजनीतिक, प्रशासनिक अनुभव है। 2003 में जब मैं मंत्री बना था, तब बहुत व्यस्तता रहती थी। मैं क्षेत्र के समाज सेवा के कई काम उसे सौंप जाता था, वो पूरे भी करता था। अभिषेक बुंदेलखंड में सक्रिय हैं, कार्यकर्ता को तौर पर काम कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव में अभिषेक ने अपनी दावेदारी खुद वापस ले ली थी। उनका कहना था कि मैं परिवारवाद और वंशवाद के खिलाफ हूं। अपराधबोध में रहते हुए राजनीति नहीं कर सकता।

पिता गोपाल भार्गव के साथ अभिषेक।

मंदार महाजन: जहां से पार्टी कहेगी, वहां से लड़ सकता हूं

मंदार पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के बेटे हैं। सुमित्रा इंदौर से लगातार 8 बार सांसद रही हैं। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने रिटायरमेंट ले लिया था। चुनाव नहीं लड़ी थीं। अब बेटे मंदार महाजन इंदौर की किसी भी सीट से टिकट मांग रहे हैं।

मंदार का कहना है कि पार्टी जब तक उम्मीदवार घोषित नहीं कर देती तब तक साफ तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। हां, मेरी इच्छा जरूर है चुनाव लड़ने की। इंदौर में पार्टी जहां से उचित समझे मैं वहां से चुनाव लड़ सकता हूं। पूरे इंदौर लोकसभा क्षेत्र में मेरी सक्रियता है। मैंने ताई यानी सुमित्रा महाजन का पूरा लोकसभा क्षेत्र देखा है। जब वो चुनाव लड़ती थीं तब भी मैं क्षेत्र में पूरी तरह सक्रिय रहता था। पूरा चुनाव का काम देखता था। जनता के बीच रहता था। अभी भी हूं। मुझे उम्मीद है पार्टी मुझे टिकट देगी। मेरे हिसाब से राजनीति में कभी उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए।

कार्तिकेय सिंह चौहान: मेरी चुनाव की कोई मंशा नहीं

कार्तिकेय सिंह चौहान मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बेटे हैं। कार्तिकेय खुद को पार्टी का एक सामान्य कार्यकर्ता बताते हैं। भाजपा के अलग-अलग अभियानों का हिस्सा रहते हैं। भाजपा के कार्यक्रमों में शामिल होते हैं। प्रदेश के जिलों का दौरा करते हैं। लोगों के सरकार की योजनाओं की जानकारी देते हैं। बुधनी समेत पूरे मालवा क्षेत्र में सक्रिय सक्रिय हैं। दावा करते हैं कि इस बार फिर प्रदेश में शिवराज सरकार बनेगी। प्रदेश की जनता का आशीर्वाद बना हुआ है। कहते हैं चुनाव लड़ने की कोई मंशा नहीं है। कार्यकर्ता के तौर पर काम करना है।

कांग्रेस नेताओं के बेटे…

निधि चतुर्वेदी: मैं अपने दम पर हूं, टिकट की दावेदार हूं

निधि, सत्यव्रत चतुर्वेदी की बेटी हैं। सत्यव्रत कांग्रेस के वरिष्ठतम नेताओं में से एक रहे हैं। लोकसभा के सदस्य और प्रदेश सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। 10 साल तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे हैं।

निधि ने कहा कि चुनाव को लेकर जैसी हर उम्मीदवार की तैयारी होती है, मेरी तैयारी भी वैसी ही है। पार्टी टिकट देगी तो चुनाव लड़ूंगी ही। दावेदारी कर रही हूं। सब पार्टी पर डिपेंड करता है। मुझे पार्टी से पूरी उम्मीद है। मैं एक कार्यकर्ता की तरह कई सालों से पार्टी के लिए लगातार काम कर रही हूं। क्षेत्र में काम कर रही हूं। एक अच्छी पॉलिटिकल फैमिली से हूं। महिला, युवा और पढ़ी-लिखी भी हूं।

2018 और 2019 में मैंने पार्टी के लिए काम किया। 2020 के उपचुनाव में मैं कमलनाथ जी के वॉररूम की इंचार्ज रही हूं। अभी कर्नाटक चुनाव में मुझे मैसूर का संभागीय प्रभारी बनाया गया था। उसके अंतर्गत 8 जिले थे। पॉलिटिकल फेमिली होने की वजह से टिकट मिलना आसान नहीं है।

अपने क्षेत्र में निधि चतुर्वेदी। बोली- मैं जहां हूं परिवार या पापा की वजह से नहीं हूं। खुद की सक्रियता और मेहनत की दम पर पहुंची हूं।

विक्रांत भूरिया: दोबारा टिकट की दावेदारी

विक्रांत, कांतिलाल भूरिया के बेटे हैं। कांतिलाल देश के बड़े आदिवासी नेताओं में से एक हैं। विधायक होने के सात 4 बार के सांसद भी रहे हैं। कृषि राज्य मंत्री रह चुके हैं। केंद्र सरकार में जनजातीय कार्य मंत्री भी रहे हैं।

बेटे विक्रांत प्रदेश यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। साल 2018 में झाबुआ से चुनाव लड़े थे। हार गए थे। अब दोबारा टिकट की दावेदारी कर रहे हैं।

अजीत बौरासी: इस बार दावेदारी नहीं करूंगा

अजीत, प्रेमचंद गुड्डू के बेटे हैं। साल 1999 में सांवेर से पहली बार विधायक बने थे। साल 2003 में कांग्रेस ने आलोट से टिकट दिया। दोबारा जीते। साल 2009 में उज्जैन लोकसभा से सांसद का चुनाव जीते थे। साल 2018 के विधानसभा चुनाव के समय प्रेमचंद गुड्डू अपने बेटे अजीत के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे। वजह- मनचाही जगह से टिकट ना मिलना थी। इसके बाद 2 साल बाद 2020 में उन्होंने सिंधिया पर आरोप लगाते हुए भाजपा छोड़ दी और वापस कांग्रेस में शामिल हो गए। साल 2020 के उपचुनाव में सांवरे से मौजूदा विधायक तुलसी सिलावट के खिलाफ लड़े थे। हार का सामना करना पड़ा था।

प्रेमचंद के बेटे अजीत साल 2013 में कांग्रेस की टिकट पर आलोट विधानसभा से चुनाव लड़ चुके हैं। इसके बाद 2018 में भाजपा के टिकट पर घट्टिया विधानसभा से चुनाव लड़े थे। दोनों बार हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद पिता के साथ वापस कांग्रेस में आ गए हैं। अजीत ने कहा इस बार पिताजी चुनाव लड़ेंगे। मैं नहीं लड़ूंगा। ना ही कोई दावेदारी है। हां, पिताजी चुनाव लड़ेंगे तो क्षेत्र का पूरा काम मैं ही देखूंगा।

रीना अपने पिता प्रेमचंद गुड्‌डू के क्षेत्र से टिकट के लिए दावेदारी कर रही हैं।

रीना सेतिया: पिता की सीट से मांग रही हैं टिकट

रीना, प्रेमचंद गुड्डू की बेटी हैं। कांग्रेस पार्टी की सदस्य हैं। पिछले 3 साल से सांवेर विधानसभा में सक्रिय हैं। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को लगातार अपने कार्यक्रमों में बुलवाती रहती हैं। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को भी एक रात के लिए क्षेत्र में रुकवा चुकी हैं। पिता की इच्छा के विरुद्ध जाकर सांवेर से कांग्रेस का टिकट मांग रही हैं। इसी सीट से पिता प्रेमचंद भी चुनाव लड़ना चाहते हैं।

भाजपा नेता पुत्र जिनको टिकट मिल चुका है
  1. पूर्व विधायक शिवराज लोधी के बेटे वीरेंद्र लोधी: बंडा विधानसभा से टिकट मिल चुका है। लोकसभा सांसद रहे शिवराज सिंह लोधी के बेटे हैं। वीरेंद्र लोधी पेशे से शासकीय शिक्षक थे। बंडा लोधी बाहुल्य सीट है यहां करीब 50 हजार वोटर लोधी समाज से आते हैं। साल 2008 में इस सीट से वीरेंद्र के भाई रक्षपाल सिंह लोधी भी चुनाव लड़ चुके हैं।
  2. पूर्व विधायक मानवेंद्र सिंह के बेटे कामाख्या सिंह: महाराजपुर सीट से टिकट मिल चुका है। कामाख्या के पिता इसी सीट के 2 बार के विधायक रह चुके हैं। पहली बार 2008 में वो निर्दलीय चुनाव जीते थे। इसके बाद 2013 में भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते। 2018 का चुनाव भी लड़े थे, लेकिन हार का सामना करना पड़ा था। अब बेटे कामाख्या मैदान में हैं।
  3. पूर्व विधायक प्रतिभा सिंह के बेटे नीरज सिंह: नीरज को जबलपुर जिले की बरगी विधानसभा का टिकट मिल चुका है। नीरज की मां प्रतिभा सिंह भाजपा की टिकट पर बरगी से 2 बार विधायक रह चुकी हैं। उन्होंने 2008 और 2013 में विधायकी का चुनाव जीता था। अब इस बार नीरज मैदान में हैं।
  4. ध्रुव नारायण सिंह: पूर्व मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह के बेटे हैं। गोविंद मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और बिहार के गवर्नर रहे हैं। 2011 से पहले तक भाजपा के प्रभावी नेताओं में से एक रहे हैं। ध्रुव नारायण सिंह 2008 में पहली बार भोपाल मध्य सीट से विधायक बने थे। इस सीट की गठन भी 2008 में ही हुआ था। अब भाजपा की तरफ से फिर से मैदान में हैं।
  5. महेंद्र सिंह चौहान: पूर्व विधायक केसर सिंह चौहान के बेटे हैं। केसर सिंह भैंसदेही विधानसभा से ही 2 बार विधायक रह चुके हैं। महेंद्र सिंह के दादा दद्दू सिंह भी यहां से विधायक रह चुके हैं। महेंद्र खुद बैतूल जिले की भैंसदेही सीट से छठवीं बार बीजेपी के प्रत्याशी बने हैं। तीन बार यानी साल 1998, 2003 और 2013 में विधायकी का चुनाव जीते भी रहे। साल 2008 में 6 वोटों से हारे थे।

भाजपा नेता पुत्र जो पहले से विधायक-सांसद हैं

  • विश्वास सारंगभाजपा के दिग्गज नेता और राज्यसभा सांसद कैलाश सारंग के बेटे हैं। कैलाश मध्यप्रदेश में भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे हैं। साल 1990 से 1996 तक राज्यसभा सांसद भी रह चुके हैं। नवंबर 2020 में इनका निधन हो गया। 2008 से भोपाल की नरेला विधानसभा सीट से लगातार विधायक बनते आ रहे हैं। चिकित्सा शिक्षा मंत्री हैं।
  • ओम प्रकाश सकलेचा: पूर्व सीएम वीरेंद्र सकलेचा के बेटे हैं। वीरेंद्र मध्यप्रदेश के 10वें मुख्यमंत्री थे। 1978 से 1980 तक उन्होंने इस पद को संभाला। मध्यप्रदेश में भाजपा के दिग्गज नेता रहे हैं। साल 1999 में इनकी मृत्यु के बाद बेटे ने विरासत संभाली। ओम प्रकाश 2003 से जावद विधानसभा सीट के लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं। वर्तमान में मध्यप्रदेश शासन में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री हैं।
  • अशोक रोहाणी: पूर्व विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी के बेटे हैं। ईश्वरदास महाकौशल रीजन के दिग्गज भाजपा नेता रहे हैं। 2013 में इनके निधन के बाद बेटे अशोक रोहाणी इनकी राजनीतिक विरासत संभाल रहे हैं। साल 2013 से अब तक भाजपा से विधायक हैं। आगे भी प्रबल दावेदारी है।
  • आकाश विजयवर्गीयभाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के बेटे हैं। कैलाश भाजपा के कद्दावर नेता माने जाते हैं। 1993 से लेकर अब तक कुल 6 बार विधायक रह चुके हैं। इसके साथ ही 2000 से 2005 तक इंदौर मेयर भी रह चुके हैं। बेटे आकाश इंदौर 3 विधानसभा क्षेत्र से 2018 में पहली बार विधायक बने थे। अब फिर दावेदारी है।
  • कविता पाटीदार: पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष भैरूलाल पाटीदार की बेटी हैं। भैरूलाल 1993 से 1998 तक महू से विधायक भी रहे हैं। 1990 से 1992 तक मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री थे। साल 2005 में भैरूलाल के निधन के बाद से कविता पिता की विरासत संभाल रही हैं। मई 2022 में भाजपा ने उन्हें राज्यसभा सांसद बना दिया है।
  • राज्यवर्धन सिंह: पूर्व विधायक प्रेम सिंह दत्तीगांव के बेटे हैं। दत्ती गांव कांग्रेस के प्रभावशाली नेता रहे हैं। माधवराव सिंधिया के करीबी माने जाते रहे हैं। उनके बाद उनके बेटे राज्यवर्धन सिंह उनकी विरासत संभाले हुए हैं। राज्यवर्धन बदनावर विधानसभा से 2003 से 2013 तक विधायक रहे। इसके बाद 2018 से अब तक विधायक हैं। वर्तमान में उद्योग नीति और निवेश प्रोत्साहन मंत्री भी हैं।
  • कृष्णा गौर: पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर की बहू हैं। बाबूलाल गौर पहली बार 1974 में भोपाल दक्षिण विधानसभा से निर्दलीय विधायक बने थे। दोबारा 1977 में फिर यहीं से जीते। 1980 में गोविंदपुरा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और 2013 तक लगातार आठ बार विधानसभा चुनाव जीतते रहे। साल 2004 में एक साल तक एमपी के सीएम भी रहे। 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। उनकी जगह उनकी पुत्रवधु कृष्णा गौर को टिकट दिया। कृष्णा चुनाव जीत गई। अब फिर दावेदारी है। सरकार की तरफ से इन्हें राज्यमंत्री का दर्जा मिला हुआ है।

कांग्रेस नेता पुत्र जो पहले से विधायक, सांसद हैं

  • जयवर्धन सिंह: मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बेटे हैं। दिग्विजय सिंह 1993 से 2003 तक मुख्यमंत्री रहे। जयवर्धन सिंह भी दो बार से विधायक हैं। राघोगढ़ विधानसभा से साल 2013 और 2018 में चुनाव जीते। दूसरी बार विधायक बनने के बाद कांग्रेस के कार्यकाल में नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भी रह चुके हैं। अब फिर मैदान में हैं।
  • सचिन यादवपूर्व विधायक सुभाष चंद्र यादव के बेटे हैं। सुभाष 1993 से 2008 तक विधायक रह चुके हैं। कांग्रेस के प्रभावशाली नेता माने जाते रहे हैं। सचिन के भाई अरुण यादव भी कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और सांसद रह चुके हैं। सचिन कसरावद विधानसभा से 2013 से लगातार विधायक हैं। सचिन कांग्रेस के पिछले शासनकाल के दौरान कृषि मंत्री भी रहे हैं।
  • कमलेश्वर पटेल: पूर्व मंत्री इंद्रजीत कुमार पटेल के बेटे हैं। इंद्रजीत विंध्य क्षेत्र में कांग्रेस का बड़ा चेहरा था। पहली बार 1977 में विधायक बने थे। इंद्रजीत की तर्ज पर ही उनके बेटे कमलेश्वर कांग्रेस की टिकट पर पहला विधायकी का चुनाव 2008 में लड़े थे। हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद साल 2013 में सिहावल विधानसभा सीट के विधायक बने थे। तब से लेकर अब तक विधायक हैं। कांग्रेस के पिछले शासनकाल में पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री भी रहे हैं।
  • तरुण भनोत: जबलपुर पूर्व सीट से कांग्रेस के पूर्व विधायक कृष्णावतार भनोट के बेटे हैं। तरुण खुद 2008 से लेकर अब तक जबलपुर पश्चिम विधानसभा से विधायक हैं। इस सीट से आगे भी इन्हीं की दावेदारी है। विधायक बनने से पहले वो पंडित बनारसी दास भनोट वार्ड से पार्षद भी रहे हैं। कांग्रेस शासन काल के दौरान वित्तमंत्री भी रहे हैं।
  • हिना कांवरे: पूर्व मंत्री लिखीराम कांवरे की बेटी हैं। लिखीराम कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे हैं। दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में मंत्री भी रहे हैं। 20 साल पहले यानी साल 1999 में कुछ माओवादियों ने मिलकर लिखीराम की हत्या कर दी थी। तब हिना 13 साल की थीं। बाद में हिना ने पिता की राजनीतिक विरासत को संभाला। 2013 में पहली बार विधायक बनी। तब से लेकर अब तक लगातार विधायक है। 2019 में कांग्रेस शासनकाल के दौरान विधानसभा उपाध्यक्ष भी रह चुकी हैं।
  • नकुलनाथ: मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के बेटे हैं। कमलनाथ 1998 से 2019 तक लगातार छिंदवाड़ा से सांसद रहे। इसके बाद 2019 से कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ सांसद हैं। नकुल इन विधानसभा चुनावों में भी सक्रिय हैं। कांग्रेस के लिए लगातार प्रचार कर रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *