नामकरण कौन करे,पंडित या अदालतें ?

नामकरण कौन करे,पंडित या अदालतें ?

आज का शीर्षक और विषय दोनों आपको चौंका सकते हैं,क्योंकि इसमें सियासत नहीं समाज और अदालत है । संस्कृति और वितृष्णा है । प्रेम और सहजता है। कुछ गंभीरता भी है और बहुत कुछ हास्यास्पद भी। दअरसल मामला मामला ममता बनर्जी के बंगाल सूबे में एक शेर-शेरनी के नामकरण का है। इस मामले को लेकर कलकत्ता उच्च न्यायालय को दखल देना पड़ा। अब लगता है कि हमारी अदालतें सिर्फ कानून की ही नहीं संस्कृति की भी रक्षक बन गयीं हैं या उन्हें जबरन खामखां के विवादों में उलझाया जाता है।
मामला त्रिपुरा के सिपाहीजाला प्राणी उद्यान के दो शेरों का है । प्राणी उद्यान संचालकों ने शेर का नाम अकबर और शेरनी का नाम सीता रखा था। दोनों को सिलीगुड़ी के बंगाल सफारी पार्क में 12 फरवरी को लाया गया था।धर्म ध्वजाएं लेकर चलनी वाली धर्म की स्वयंभू ठेकेदार विश्व हिंदू परिषद (विहिप) को इस नामकरण से पेट में दर्द हुआ और विहिप कलकत्ता उच्च न्यायालय की सर्किट पीठ के समक्ष एक याचिका दायर कर अनुरोध किया कि इन जानवरों के नाम बदले जाएं, क्योंकि इससे नागरिकों के एक वर्ग की धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं।
कलकत्ता हाई कोर्ट ने इस बेतुके मामले को ख़ारिज करने के बजाय प्राणी उद्यान संचालकों को मौखिक रूप से कहा कि शेरनी का नाम सीता और शेर का नाम अकबर रखने से बचना चाहिए था। पश्चिम बंगाल चिड़ियाघर प्राधिकरण इन दो जानवरों के नाम बदलकर विवेकपूर्ण निर्णय ले।
जस्टिस सौगत भट्टाचार्य ने पूछा कि क्या किसी जानवर का नाम देवताओं, पौराणिक नायकों, स्वतंत्रता सेनानियों या नोबेल पुरस्कार विजेताओं के नाम पर रखा जा सकता है ? उन्होंने मौखिक रूप से कहा कि विवाद टालने के लिए जानवरों के इस तरह के नामकरण से बचना चाहिए था। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल पहले से ही स्कूल में शिक्षकों की भर्ती में कथित घोटाले समेत कई अन्य मुद्दों को लेकर विवादों से घिरा हुआ है । उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए, विवेकपूर्ण निर्णय लें, इस विवाद से बचें. ’’ जस्टिस ने सुझाव दिया कि राज्य सरकार के वकील विवाद से बचने के वास्ते चिड़ियाघर अधिकारियों से शेर और शेरनी को अलग-अलग नाम देने के लिए कहें.
कोर्ट ने कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और हर समुदाय को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है. जस्टिस सौगत भट्टाचार्य ने पूछा, ‘‘आपको सीता और अकबर के नाम पर एक शेरनी और एक शेर का नाम रखकर विवाद क्यों खड़ा करना चाहिए.’। उन्होंने कहा कि नागरिकों का एक बड़ा वर्ग सीता की पूजा करता है, जबकि अकबर ‘‘एक बहुत ही सफल और धर्मनिरपेक्ष मुगल सम्राट थे.’’ जस्टिस भट्टाचार्य ने कहा कि वह दोनों जानवरों के नामों का समर्थन नहीं करते हैं। राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने दावा किया कि दोनों जानवरों के नाम त्रिपुरा में रखे गये थे, न कि पश्चिम बंगाल में और इसे साबित करने के लिए दस्तावेज उपलब्ध हैं। कोर्ट ने कहा कि यदि नामकरण वहां किया गया है तो त्रिपुरा में चिड़ियाघर प्राधिकरण को मामले में एक पक्षकार बनाया जाना जरूरी है।
सवाल ऐसा है कि जिसका अदालतों से कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए । इस देश में नामकरण कोई विचित्र परम्परा है और ऐसा कोई क़ानून नहीं है जो इस परम्परा को रोकता है । हमारे यहां शेर का नाम अकबर और शेरनी का नाम सीता भी हो सकता है और कुत्ते का नाम डर्बिन,तथा कुटिया का नाम दोना भी हो सकता है। मैंने अपने जीवन काल में कम से कम 25 कुत्ते पाले। सबके नाम अलग-अलग थे और किसी का नाम ये सोच कर नहीं रखा कि ऐसा कर किसी की भावनाओं को आहत किया जाये। त्रिपुरा वालों की भी शायद ऐसी कोई मंशा नहीं होगी । शेर का स्वरूप ही ऐसा होगा की देखने वाले के मुंह से अचानक ‘अकबर ‘ निकल गया होग। शेरनी में इतनी पाकीजगी दिखी होगी की उसके लिए मुंह से सीता नाम निकला हो।
नाम में क्या रखा है ? विवाद बहुत पुराना है । हमारे यहां नाम में सब कुछ है और कुछ भी नहीं।किसी के लिए कोइई नाम जीवन का आधार भी हो सकता है और किसी के लिए नाम से कोई फर्क नहीं पड़ता। हमारे गांव में पशु-पक्षियों को तो छोड़िये मनुष्यों के ऐसे नाम सुनने को मिल जायेंगे कि आपका मन या तो खिन्न हो जाएगा या फिर आप नाम सुनकर मुस्करा उठेंगे। आप कल्पना करिये यदि किसी का नाम ‘ कलुआ ‘या ‘घसीटा ‘ हो तो कैसा लगे ? किसी का नाम लपटा या रमोला हो तो क्या हो ? लेकिन ऐसे नाम होते हैं। हम व्यक्ति का नाम अकबर और सीता रख सकते हैं तो जानवर का क्यों नहीं ?। जानवर अकबर नहीं हो सकता किन्तु मनुष्य हो सकता है। वाह क्या सोच है ?
आपने शायद कभी गौर न किया हो किन्तु एक प्राणी प्रेमी होने के नाते मैंने कुत्तों के नामों पर हमेशा ध्यान दिया । मैंने अपने आस-पड़ौस और इष्ट-मित्रों के यहां पालतू कुत्तों के ऐसे -ऐसे नाम सुने की धन्य हो गय। क्या आप यकीनन करेंगे की कुत्तों के नाम ‘लूना ,चौकीदार ,बेला,मैक्स,ल्यूस। गुलबहार,कूपर,सैडी,आंगन,रॉकी,ओलिवर,क्लो,विंस्टन ,रॉक्सी,ड्यूक या लोला भी हो सकते है। मैंने ज़ीउस,हार्ले,सोफी,भालू,मार्ले,मुरलीवाला,आलू,रिले,जैक,एनी,माणिक और अक्सर नाम के भी पालतू जानवर देखे हैं,उनसे मिला हूँ।
नामों को लेकर पता नहीं क्यों हमारे राजनीतिक दल और संगठन बेहद संवेदनशील है। उनकी संवेदनशीलता व्यवहार में नजर नहीं आती । उनकी भावनाएं छुईमुई की तरह बड़ी जल्दी आहत हो जातीं है। भले ही जिनके नाम का इस्तेमाल किया गया हो उनकी आत्माएं कभी आहत न होती हों।हमारे देश में नामों को लेकर राजनीतिक दल ही नहीं बल्कि सरकारें तक बहुत संवेदनशील है। हमारी केंद्र सरकार पिछले एक दशक में अनेक शहरों और स्टेशनों के नाम बदल चुकी है । स्टेडियमों तक के नाम बदले गए है। हर विचार का राजनीतिक दल ये फालतू के काम करता है।
आपको याद होगा कि एक जमाने में उत्तर प्रदेश में बहन मायावती की सरकार ने तमाम जिलों के नाम बदल दिए थे। बाद में ये परम्परा खूब चली और योगी आदित्यनाथ की सरकार ने भी इलाहाबाद को प्रयाग और बनारस को काशी कर ही दिया । हमारा अच्छा खासा हबीबगंज अब रानी कमलापत रेलवे स्टेशन हो गया है । अब हबीब की आत्मा नाखुश है और रानी कमलापत की प्रसन्न। स्टेडियम का नाम बदलने से सरदार की आत्मा खिन्न है और मोदी जी की प्रसन्न। ये सब चलता आया है और चलता आएगा लेकिन ऐसे मामलों को अदालत कोई दहलीज तक नहीं जाना चाहिए । पर सवाल ये है कि ऐसा होने से रोके कौन ? सरकारें तो खुद नाम-नाम खेलती रहतीं हैं। वे जब कुछ नहीं कर पातीं तो नाम बदल देतीं हैं या फिर किसी भी नाम को चुनकर उसे भारतरत्न बना देती हैं। ये सब लोगों को खुश करने के लिए किया जाता है । ऐसा ही पालतू पशु-पक्षियों के नामकरण के जरिये उन्हें खुश करने के लिए किया जाता है।
अब जिस शेर का नाम अकबर रखा गया है उसे क्या पता की अकबर कौन था और उसका नाम मिलने से उसका कितना मान बढ़ा या घटा ? यही बात शेरनी सीता के बारे में भी लागू होती होगी। अब ये शेर शेरनी मुगलकाल या त्रेता के जमाने के तो होंगे नहीं जो उन्होंने अकबर या सीता को देखा ह। बेचारे निर्दोष हैं और वे भी निर्दोष हैं जिन्होंने इन वन्य प्राणयों को ये नाम दिए। अब ये तो हमारी सरकार ही कर सकती है कि वो आने वाली संसद में नारी शक्ति वंदना या समान नागरिक संहिता की तरह नामकरण करने के लिए भी एक क़ानून बना दे ताकि भविष्य में कोई अपने कुत्ते,तोते,गधे,घोड़े या शेर का नाम अकबर या सीता न रख सके। महाराण प्रताप ने अपने घोड़े का नाम चेतक किसकी सलाह पर रखा था ,ये भी पता किया जाना चाहिए। इस विषय पर पीएचडी की उपाधि हासिल की जा स्कातीहै।

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