देश की जेलों में सबसे असुरक्षित महिला कैदी, भेदभाव की शिकार
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महिला आरक्षण विधेयक पारित होने के उल्लास के बीच पेश रिपोर्ट ..
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चिंता : संसदीय समिति की रिपोर्ट में खुलासा, जेलों में भीड़भाड़ भी मुद्दा
नई दिल्ली. देश की जेलों में महिला कैदी पुरुषों के मुकाबले अधिक असुरक्षित हैं। इन्हें लैंगिक भेदभाव के अलावा अस्वच्छ परिस्थितियों और भीड़भाड़ वाली जेलों में रहने सहित हिरासत में बलात्कार जैसी कई तरह की समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है। महिला कारागारों की कम संख्या और जेलकर्मियों में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व इनकी परेशानियों को और बढ़ा रहा है।
यह चौंकाने वाला खुलासा गृह मंत्रालय संबंधी स्थायी संसदीय समिति की रिपोर्ट में किया गया है। संसद के विशेष सत्र में महिला आरक्षण विधेयक पारित होने के उल्लास के बीच समिति की यह रिपोर्ट शुक्रवार को संसद के दोनों सदनों में पेश की गई।
सांसद ब्रजलाल की अध्यक्षता वाली समिति ने देश की जेलों में भीड़भाड़ और खासकर विचाराधीन कैदियों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताते हुए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर क्षमता से अधिक भरी जेलों से कैदियों को उसी राज्य या अन्य राज्यों की खाली सेल वाली जेलों में स्थानांतरित करने की सिफारिश की है। समिति ने कहा कि देश की जेलों में 22,918 महिला कैदी हैं। इनमें से 1650 के साथ 1867 बच्चे भी हैं। महिला जेल नहीं होने से कई तो सामान्य कारागारों में कैद हैं। महिलाओं की गरिमा बनाए रखने के लिए उच्च सुरक्षा के साथ इन्हें जेलों में अलग बैरक में रखने के साथ महिला कैदियों की जरूरतों को समझकर देखभाल के लिए पर्याप्त महिला कर्मचारी नियुक्त किए जाने चाहिए।
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कारागार हैं देश में
4,27,165 विचाराधीन कैदी
22,918
(स्रोत: एनसीआरबी की 2021 में प्रकाशित रिपोर्ट)
स्पष्ट हो युवा अपराधी की परिभाषा
समिति ने गृह मंत्रालय से युवा अपराधी (18-21 वर्ष) की परिभाषा स्पष्ट करने की सिफारिश भी कहा। समिति ने कहा कि कि राज्यों को ऐसे अपराधियों के नियंत्रण के लिए सामान्य दिशा-निर्देश दिए जाने की जरूरत है। राज्य सरकारें युवा अपराधियों की शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण व समग्र विकास के लिए कदम उठाएं। ऐसे अपराधी दुबारा अपराध की ओर अग्रसर न हो, इसकी नियमित निगरानी किए जाने की व्यवस्था होनी चाहिए। साथ ही समिति ने सभी राज्यों में इनके लिए बोस्टर्ल स्कूल खोले जाने की भी सिफारिश की।