खुलासा: बिहार के 13 निगम, बोर्ड वर्षों से नहीं दे रहे सालाना रिपोर्ट

पटना: बिहार में भले ही सरकार ‘सुशासन’ का दावा कर रही हो, मगर हकीकत का पता इससे चल जाता है कि यहां के कम से कम 13 ऐसे बोर्ड, निगम और आयोग हैं, जिन्होंने पिछले कई वर्षो से अपना वार्षिक प्रतिवेदन (सालाना रिपोर्ट) दाखिल नहीं किया है. प्रावधानों के मुताबिक, इन आयोगों, बोर्डों और निगमों का प्रतिवर्ष वार्षिक रिपोर्ट देना अनिवार्य है.

बिहार में सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई एक सूचना के बाद इसका खुलासा हुआ कि बिहार में 13 आयोगों, बोर्डों और निगमों ने अपनी विधायी रिपोर्ट कई वर्षो तक राज्य विधायिका को नहीं दी है.

एक अधिकारी बताते हैं कि वार्षिक रिपोर्ट में आयोगों, बोर्डों और निगमों को उपलब्धियों के अलावा एक वित्तीय वर्ष के दौरान किए गए खर्चो का विवरण देना होता है. बिहार राज्य सूचना आयोग के प्रावधानों के अनुसार, वार्षिक रिपोर्ट दाखिल करना अनिवार्य है. विडंबना यह है कि राज्य सूचना आयोग ने भी 2015-16 के बाद अपनी वार्षिक रिपोर्ट दाखिल नहीं की है.

उल्लेखनीय है कि किसी भी संगठन या एजेंसी द्वारा वार्षिक रिपोर्ट दाखिल करना उसकी पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य है. ऐसे में बिहार में कथित ‘सुशासन’ की स्थिति स्पष्ट दिख रही है. सूत्रों का कहना है कि यह एक वित्तीय अनियमितता के संकेत भी हो सकते हैं.

सूचना के अधिकार के तहत मिले जवाब में कहा गया है कि बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) एकमात्र संगठन है, जिसने अपनी 2017-18 की वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत की है. बिहार पुलिस भवन निर्माण निगम लिमिटेड ने वर्ष 2004-05 से अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की है, जबकि बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम ने 2005-06 से अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की है.

बिहार राज्य भंडारण निगम ने 2010-2011 के बाद अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की है, जबकि बिहार राज्य वित्तीय निगम ने 2013-2014 के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की है. इसके अलावे बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 2007-2008 के बाद अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की है. प्रदूषण बोर्ड के एक अधिकारी ने कहा, “देरी कम स्टाफ की वजह से हो सकती है. बोर्ड इसे विधानसभा समिति को समझाएगा.”

बक्सर के सूचना के अधिकार से जुड़े कार्यकर्ता शिवप्रकाश राय द्वारा मांगी गई सूचना के जवाब में कहा गया है कि बिहार राज्य सूचना आयोग, बिहार राज्य बाल श्रम आयोग, बिहार राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग, बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग और बिहार विद्युत नियामक आयोग ने भी वार्षिक रिपोर्ट देने में देरी की है.

राय ने कहा कि प्रावधान है कि वित्तीय वर्ष के अंत में निगम, बोर्डों, आयोगों का सालभर का लेखा-जोखा विधानसभा पटल में रखना होता है. लेखा-जोखा नहीं देना वित्तीय अनियमितता के संकेत हैं.

इधर, बिहार विधानसभा के जनसंपर्क अधिकारी संजय कुमार भी मानते हैं कि 2018-19 वित्तीय वर्ष में कोई भी रिपोर्ट नहीं आई है. वे कहते हैं, “वर्ष 2018-19 की वार्षिक रिपोर्ट किसी भी आयोग या बोर्ड द्वारा अब तक विधानसभा की एस्टीमेट कमेटी विंग को नहीं सौंपी गई हैं.”

इस बीच बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी इसे गंभीर मामला बताया है. उन्होंने कहा कि यह बहुत गंभीर मामला है. इन मामलों को देखने के लिए हमारे पास एक सार्वजनिक उपक्रम समिति है. हम इसके लिए नोटिस भेजेंगे. उन्होंने इस मामले की समीक्षा करने की भी बात कही.

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