अपनी मिट्टी पर गर्व करने के लिए खुद को काबिल बनाएं !
अपनी मिट्टी पर गर्व करने के लिए खुद को काबिल बनाएं
अमेरिका सऊदी अरब से तेल आयात करता है, जापान से कारें, कोरिया से टीवी, स्कॉटलैंड से व्हिसकी और आप जानकर चौंक जाएंगे कि यह भारत से क्या आयात करता है। इससे पहले कि मैं जवाब दूं, पहले हम समझते हैं कि वहां क्या चल रहा है। उनके रक्षा विभाग ने साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, मैथ्स, जिसे स्टेम कहते हैं, उसको बढ़ावा देने के लिए बड़ा अभियान शुरू करने को कहा है।
अमेरिकी जानते हैं कि आधुनिक टेक्नोलॉजी ही दुिनया को कम से कम अगले 50 सालों तक चलाएगी और यह बाकी देशों से आएगी, न कि अमेरिका से। मनोविज्ञान के प्रोफेसर, जिम स्टिगलर, जो टीचिंग का तरीका व गणित जैसे विषय की लर्निंग सिखाते हैं, उनका मानना है कि बाकी देशों के पास वह बौद्धिक पूंजी है, जो अमेरिका के पास नहीं है। इस साल जुलाई में उनके थिंक टैंक ने आगाह किया कि टेक्नोलॉजी में उनके प्रभुत्व को बाकी देश चुनौती दे रहे हैं।
इस बीच, अमेरिकन ब्यूरो ऑफ लेबर स्टैटिस्टिक्स ने भविष्यवाणी की है कि इस दशक के अंत तक अमेरिका में गणित से जुड़े पेशों में हर साल 30 हजार से ज्यादा नौकरियां बढ़ेंगी और अधिकांश अमेरिकी छात्र ऐसी नौकरियों के लिए तैयार नहीं हैं। गणित में तंग हाथ का मतलब आज के अमेरिकी बच्चों को कम वेतन मिलेगा।
स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री का अनुमान है कि अगर अमेरिका में गणित सीखने में आ रही गिरावट ठीक नहीं हुई, तो केजी से बारहवीं तक के बच्चे करिअर में 2 से 9% तक कम कमाएंगे, यह इस पर निर्भर है कि वह किस प्रांत में रह रहे हैं। यह तुलना महामारी से ठीक पहले शिक्षित हुए बच्चों से की गई है। इसका ये भी मतलब है कि देश की उत्पादकता-प्रतिस्पर्धात्मकता में कमी आ सकती है। मिशीगन यूनिवर्सिटी में MiSTEM अभियान की कार्यकारी निदेशक मेगन स्क्राउबेन कहती हैं, ‘गणित हर चीज की नींव है’। वह कहती हैं कि यह छात्रों और समुदाय की कल की समृद्धि के लिए बेहद जरूरी है।
इसका मतलब है कि स्थानीय अमेरिकी बच्चे इन नौकरियों के योग्य नहीं होंगे और बाकी देशों के युवा ये हासिल कर लेंगे और इत्तेफाक से उन्हें इंडियन इंटेलिजेंस पसंद है। संक्षेप में कहें तो अमेरिका अपने देश में काम करने के लिए भारतीयों को इंपोर्ट करती है। हाल ही में जब मैंने उप्र के बुलंदशहर में चावली गांव की सलीमा खान के बारे में सुना, तो मुझे ये आंकड़े याद आ गए। वह 92 साल की उम्र में पिछले छह महीने से स्कूल जा रही हैं, ताकि आसपास के लोग उन्हें ‘साक्षर’ कह सकें!
हालांकि उन्हें स्कूल लाने-ले जाने के लिए एक परिजन की जरूरत पड़ती है जैसे हम केजी में बच्चों को छोड़ते हैं, उनका वीडियो सोशल मीडिया पर तहलका मचा रहा है, जिसमें वह एक से 100 तक गिनती कर रही हैं। छोटे बच्चों को उनके चारों ओर भीड़ लगाकर शरारतें करते देखना मजेदार है और वह पोपले मुंह से खिलखिला पड़ती हैं।
हालांकि बच्चे क्लास में इन बूढ़ी महिला को देखने के आदी हो चुके हैं, फिर भी उनके लिए इतनी बुजुर्ग महिला का साथ मनोरंजक है। 15 साल और उससे ऊपर के निरक्षर लोगों के लिए केंद्र सरकार के साक्षर भारत अभियान के तहत उन्होंने इस रविवार को परीक्षा दी और रिजल्ट का इंतजार है। आज वह अपना नाम लिखकर साइन करती हैं, नोट गिनती हैं, पैसों के मामलों में अब उन्हें कोई धोखा नहीं दे सकता।
सलीमा का उत्साह देखते हुए गांव की 25 और महिलाओं ने क्लास जॉइन की है, इनमें उनकी दो बहुएं भी हैं, इसके चलते स्कूल की प्रधानाचार्या डॉ. प्रतिभा शर्मा को उनके लिए अलग से क्लास शुरू करनी पड़ी है। संक्षेप में कहें तो इस छोटे-से गांव के 26 लोगों ने अपनी गुणवत्ता में सुधार करने का निश्चय किया है!
हमारी मिट्टी में कुछ बात तो है। अगर आप अपनी धरती को गर्व महसूस कराना चाहते हैं और खुद पर भी गर्व करना चाहते हैं तो अपने आपको ‘एक्सर्पोटेबल’ बनाएं।