जॉब सिक्योरिटी से जुड़ा है देश के वर्क फोर्स का मानसिक स्वास्थ्य ?
जॉब सिक्योरिटी से जुड़ा है देश के वर्क फोर्स का मानसिक स्वास्थ्य, पढ़ें 10 अक्टूबर का एडिटोरियल
असंगठित कर्मचारी, राष्ट्रीय आय में बड़ा योगदान देने के बावजूद, साल भर तमाम आर्थिक, शारीरिक और मानसिक समस्याओं से लड़ते रहते हैं। इस वर्ष विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (10 अक्टूबर) का मुख्य विषय ‘मानसिक स्वास्थ्य एक व्यापक मानव अधिकार’ है। जब मानसिक स्वास्थ्य की बात आती है तो असंगठित कर्मचारी के इस वर्ग को अक्सर नजरअंदाज किया गया है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के एक शोध में कहा गया है कि विश्व स्तर पर कामकाजी उम्र के 15% वयस्क मानसिक विकार से परेशान हैं। एक ओर, ठीक- ठाक कार्य मानसिक स्वास्थ्य को सकारात्मक तरीके से प्रभावित करता है, वहीं दूसरी ओर, बेरोजगारी, अस्थिर या अनिश्चित रोजगार, कार्यस्थल में भेदभाव, या खराब और विशेष रूप से असुरक्षित कामकाजी वातावरण, एक कर्मचारी के मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। कम वेतन वाली, असंतोषजनक या असुरक्षित नौकरियों में या अलग-थलग काम करने वाले कर्मचारी के मनोसामाजिक जोखिमों के संपर्क में आने की संभावना अधिक होती है, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य से समझौता होता है।
सामाजिक सुरक्षा में भारत की स्थिति
भारत में असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों की आबादी 90% से अधिक है। इन कर्मचारियों को अक्सर नियामक सुरक्षा के बिना, असुरक्षित कामकाजी माहौल में लंबे समय तक काम करना पड़ता है। उन्हें बहुत कम सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा मिलती है, और भेद भाव का सामना करना पड़ता है। उन्हें सीमित मानसिक देखभाल तक पहुंच, गहरी अनिश्चितता और अपरिपक्वता के कारण मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट झेलनी पड़ती है। ये सभी मानसिक स्वास्थ्य को कमजोर करते हैं और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक की पहुंच को सीमित करते हैं। लैंगिक असमानताएं भी गंभीर हैं। भारत की 95% से अधिक कामकाजी महिलाएं अपने सामाजिक और पारिवारिक स्थानों में पितृसत्तात्मक संरचनाओं और प्रथाओं से पीड़ित होने के अलावा, असंगठित, कम वेतन वाले अनिश्चित रोजगार में सामाजिक सुरक्षा के बिना काम कर रही है।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के अनुसार, बेरोजगारी और खराब गुणवत्ता वाले रोजगार लगातार मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़ के लोकनीति समूह ने भारत के 18 राज्यों में 15 से 34 वर्ष की आयु के 9,316 युवाओं के साथ साक्षात्कार किया, जिससे पता चला कि वे नकारात्मक भावनाओं के प्रति अतिसंवेदनशील हैं। भारत में युवा बेरोजगारी सबसे अधिक है, जो बेरोजगारी के धब्बे के साथ-साथ उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है। इसके अलावा, ILO की एक रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे युवा कर्मचारी हताशा के कारण अधिक अनिश्चित और असंगठित काम, कम वेतन और खराब कामकाजी परिस्थितियों को स्वीकार कर रहे हैं।
भारत में असमानता की स्थिति पर जारी रिपोर्ट 2022 में पाया गया है कि बेरोजगारी दर वास्तव में शैक्षिक स्तर के साथ बढ़ती है, खासकर शिक्षित युवा महिलाओं में जहां बेरोजगारी दर 42% देखी गई है। जनसांख्यिकीय लाभांश के इस चरण में, जहां भारत की आधी आबादी कामकाजी उम्र की है और दो दशकों तक ऐसा ही रहने का अनुमान है, उनके लिए रोजगार की गुणवत्ता और लंबे समय तक सामाजिक सुरक्षा के बारे में सोचना जरूरी है।
भारत भी 20 वर्षों में एक वृद्ध समाज बन जाएगा, इस तेजी से बढ़ते समूह के लिए कोई स्पष्ट सामाजिक सुरक्षा योजना नहीं है, जो विशेष रूप से खराब मानसिक स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील है। भारत की जनगणना 2011 से पता चलता है कि 3.3 करोड़ बुजुर्ग लोग सेवानिवृत्ति के बाद भी अनौपचारिक तौर पर काम कर रहे हैं। भारत में बुजुर्गों के रोजगार पर ILO द्वारा किया गया एक अन्य अध्ययन, आर्थिक निर्भरता और सीमित आर्थिक संपत्ति दर्शाता है। वृद्धों में उच्च गरीबी देखी गई है। कामकाजी बुजुर्गों के बीच उचित वित्तीय और स्वास्थ्य देखभाल सुरक्षा का अभाव उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है, जिससे उनकी अतिसंवेदनशीलता बढ़ा सकती है।
सामाजिक सुरक्षा पर एक दृष्टि
असंगठित कर्मचारी चढ़ते कर्ज और बढ़ते इलाज के दामों के कारण मानसिक तनाव में हैं, चूंकि ये दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। विमेन इन इनफॉर्मल एम्प्लॉयमेंट : ग्लोबलाइजिंग एंड ऑर्गनाइजिंग (WIEGO) ने असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं ने, जिनमें अधिकतर प्रवासी हैं, पाया की एक साथ काम कर रही महिलाओं में कोविड के बाद सुधार का स्तर अलग अलग है। अब भी कई महिलाएं खाद्य अनिश्चितता, भोजन में कमी और कम खपत से जूझ रही हैं। केशव देसीराजू इंडिया मेंटल हेल्थ ऑब्जरवेटरी ने पाया कि मानसिक स्वास्थ्य और सलामती पर खाद्य सुरक्षा, रोजगार के अवसर और आर्थिक स्थिरता जैसे मामलों का असर पड़ता है।
सामाजिक सुरक्षा बाहरी परेशानियों से भी बचाव करती है। सोशल सिक्योरिटी कोड 2020 दर्शाती है कि कैसे असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा से जुड़े मुद्दे को अनदेखा किया गया है। हालांकि, भारत में सामाजिक सुरक्षा सभी के लिए लागू कर देना चाहिए, लेकिन मौजूदा कोड में इसे लक्ष्य नहीं बनाया गया है।
व्यापक सुधार की है जरूरत
असंगठित कर्मचारी, राष्ट्रीय आय में बड़ा योगदान देने के बावजूद, साल भर तमाम आर्थिक, शारीरिक और मानसिक समस्याओं से लड़ते रहते हैं। भारतीय बजट का मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च (फिलहाल पूरे स्वास्थ्य बजट का 1%) प्रमुख रूप से डिजिटल मेंटल हेल्थ प्रोग्राम पर केंद्रित है। वर्ल्ड मेंटल हेल्थ रिपोर्ट के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य में समुदाय द्वारा देखभाल और लोक केंद्रित देखभाल शामिल हैं। मानसिक स्वास्थ्य के लिए सुधार और मानव अधिकार पर जोर दिया है। मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों को पहचानें और इनपर कार्य करने की नीतियों को बनाने की सख्त जरूरत है।
यह, अच्छे स्वास्थ्य के मौलिक मानव अधिकार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। और इससे अच्छे स्वास्थ्य पर आधारित सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल (SGD3) और सबके लिए संतोषजनक काम/आर्थिक विकास (SGD8) को हासिल करने में मदद मिलेगी।