बिहार में नीतीश का जाति कार्ड !
बिहार में नीतीश का जाति कार्ड
बिहार के इस जातिगत सर्वे को हर नेता अपनी जाति के चश्मे से देख रहा है। जातिगत जनगणना हो गई, पर क्या इससे वाकई में गरीबों का भला होगा? क्या वाकई में सरकार जाति के आधार पर कल्याणकारी योजनाएं बना पाएगी?
नीतीश सरकार ने बिहार की जातिगत सर्वे रिपोर्ट विधानमंडल में पेश कर दी। कई चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए और इन आंकड़ों से ये राज भी खुल गया कि नीतीश कुमार ने सर्वे क्यों कराया। बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार ने कहा कि अब संख्या के आधार पर रिजर्वेशन का कोटा भी पचास परसेंट से बढ़ कर कम से कम पैंसठ परसेंट किया जाना चाहिए। ये ऐसा मुद्दा है जिस पर विधानसभा में तो किसी ने विरोध नहीं किया। रिपोर्ट पेश होने के कुछ ही घंटे बाद मंत्रिमंडल ने नया आरक्षण बिल लाने को मंजूरी दे दी। इसके बाद ओवैसी की पार्टी के नेताओं ने ये कहा कि जब सभी वर्गों को आबादी के हिसाब से रिजर्वेशन की बात हो रही है तो फिर मुसलमानों ने किसी का क्या बिगाड़ा है। मुसलमानों को भी आरक्षण मिलना चाहिए। नीतीश ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। जातिगत जनगणना में सामने आया कि बिहार में सवर्णों की आबादी कुल करीब बारह परसेंट हैं लेकिन उनमें से 25 परसेंट ग़रीब हैं। सवर्णों में सबसे ज्यादा गरीबी भूमिहारों में है जबकि गरीबी के मामले में ब्राह्मण दूसरे नंबर पर हैं। चौंकाने वाली बात ये है कि बिहार में SC ST की आबादी करीब 22 परसेंट है लेकिन उनमें से पैंतालीस परसेंट गरीबी की सीमा रेखा से ऊपर हैं जबकि अब तक ये माना जाता था कि भूमिहार बिहार में सबसे ज्यादा ताकतवर हैं, अमीर हैं और SC ST के ज़्यादातर लोग गरीब हैं।
सवाल ये है कि ग़रीबी का पैमाना क्या है? तो नीतीश सरकार ने उस परिवार को गरीब माना है जिसकी आमदनी हर महीने छह हजार रूपए से कम है। सर्वे में बताया गया कि पिछड़े वर्ग में 33 परसेंट और अति पिछड़े वर्ग में भी करीब 34 परसेंट लोग ग़रीबी रेखा के नीचे हैं। पिछड़े वर्ग में सबसे ज्यादा आबादी यादवों की हैं। बिहार में यादव करीब 15 परसेंट हैं लेकिन उनमें गरीबी भी सबसे ज्यादा है। सर्वे के मुताबिक, करीब 33 परसेंट यादव ग़रीब हैं। नीतीश कुमार कुर्मी जाति से हैं, उनकी जाति की आबादी घटी है, तीन परसेंट से भी कम है। लेकिन कुर्मियों में भी करीब तीस परसेंट गुरबत के शिकार हैं। नीतीश कुमार और तेजस्वी का पूरा फोकस पिछड़े वर्ग पर ही है। कुछ और हैरान करने वाले आंकड़े इस रिपोर्ट में हैं। बिहार में कुल 2 करोड़ 76 लाख परिवार हैं, इनमें से 94 लाख परिवार गरीब हैं। करीब साठ परसेंट लोगों के पास अपने पक्के मकान हैं, 49 लाख परिवार कच्चे घरों में रहते हैं, जबकि करीब 64 हजार लोग ऐसे हैं जिनके पास न घर है, न ज़मीन है लेकिन रिपोर्ट में चौंकाने वाली बात ये है कि बिहार में अनुसूचित जाति और जनजाति के आधे से ज्यादा लोग गरीबी के दायरे से बाहर हैं।
सर्वे की रिपोर्ट कहती है कि बिहार में अनूसुचित जाति के 57 परसेंट लोग और अनुसूचित जनजाति के भी 57 परसेंट लोग गरीब नहीं हैं। रिपोर्ट के इस हिस्से पर पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने सवाल उठाया। मांझी ने अपनी जाति की बात की। कहा कि सरकार दावा कर रही है कि 45 परसेंट मुसहर अमीर हैं। मांझी ने कहा कि वो सरकार को चुनौती देते हैं कि किसी भी ज़िले में चलकर दिखा दें, अगर दस परसेंट से ज़्यादा मुसहर परिवार ग़रीबी रेखा से ऊपर मिलेंगे, तो वो राजनीति छोड़ देंगे। नीतीश कुमार असली मुद्दे पर आए। कहा, सर्वे हो गया। सर्वे में हर जाति की संख्या और उनकी आर्थिक स्थिति का पता लगा है। अब बिहार सरकार उन 64 हजार परिवारों को मकान बनाने में ढाई लाख रूपए की मदद देगी जिनके पास न घर है, न जमीन है। इसके बाद जिन परिवारों के पास न खेती के लिए जमीन है,न रोजगार है, ऐसे गरीब परिवारों को एक मुश्त दो लाख रूपए की मदद करेगी।
नीतीश ने कहा कि बिहार सरकार जो कर सकती है, वो करेगी लेकिन असली काम तो तब होगा जब पिछड़े वर्ग को, SC ST को उनकी आबादी के हिसाब से आरक्षण मिलेगा। नीतीश ने कहा कि अब SC ST के कोटे में पांच परसेंट का इजाफा होना चाहिए और पिछड़े वर्ग के आरक्षण को कम से कम 16 परसेंट बढ़ाना चाहिए। कुल मिलाकर आरक्षण का कोटा पचास परसेंट से बढ़ा कर 65 परसेंट किया जाना चाहिए। केन्द्र सरकार इसके बारे में जितनी जल्दी फैसला लेगी, उतनी जल्दी पिछड़ों को उनका हक मिलेगा। शाम को नीतीश ने विधानसभा में बयान दिया और कुछ घंटों के भीतर उनकी कैबिनेट ने आरक्षण को बढ़ाकर 75 परसेंट करने के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी। अब ये प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा जाएगा।
वैसे, बिहार के इस जातिगत सर्वे को हर नेता अपनी जाति के चश्मे से देख रहा है। जातिगत जनगणना हो गई, पर क्या इससे वाकई में गरीबों का भला होगा? क्या वाकई में सरकार जाति के आधार पर कल्याणकारी योजनाएं बना पाएगी? सारी बातों का उत्तर ना में है। ये तो पहले से पता था कि जातिगत जनगणना का मकसद राजनीतिक है। इरादा पिछड़ी जातियों का वोट पाने का है। और आज इस बात की एक बार फिर पुष्टि हो गई। नीतीश कुमार ने सच उजागर कर दिया। उन्होंने आरक्षण का कोटा बढ़ाकर करने की बात की और कैबिनेट में 75 परसेंट आरक्षण का प्रस्ताव भी पास करवा दिया। हालांकि नीतीश कुमार भी जानते हैं कि ये सुप्रीम कोर्ट के सामने नहीं टिकेगा लेकिन अब नीतीश कुमार 75 परसेंट आरक्षण लागू करने का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजेंगे। फिर रोज़ इसी बहाने मोदी और बीजेपी पर हमले करेंगे। कुल मिलाकर आम लोगों को कुछ नहीं मिलेगा लेकिन नीतीश को वोट पाने का मसाला मिल जाएगा।
नीतीश और सेक्स शिक्षा
नीतीश कुमार ने जातिगत सर्वे की रिपोर्ट के बहाने महिलाओं की भी खूब बात की। उन्होंने कहा कि बिहार में साक्षरता दर बढी है। दसवीं और बारहवीं पास महिलाओं की संख्या में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा हुआ है। नीतीश ने कहा कि लड़कियां पढ़ लिख रही हैं, इसका असर बिहार की जनसंख्या वृद्धि दर पर दिख रहा है, जन्म दर कम हुई,बच्चों की संख्या घट गई है। इसके बाद नीतीश बहक गए। उन्होंने विधानसभा में बताया कि लड़कियां पढ़ रही है, उसकी वजह से सुरक्षित सेक्स के कारण जनसंख्या वृद्धि दर घट रही है। नीतीश ने जिस तरीके से सुरक्षित सेक्स का वर्णन किया, उसे सुनकर लोग हैरान रह गए। नीतीश कुमार पुराने नेता हैं। संभल कर बोलते हैं लेकिन मंगलवार को ऐसा लगा कि वो ये तय करके आए थे कि उन्हें जनसंख्या वृद्धि दर से महिलाओं की साक्षरता दर को जोड़ना है और उसे विस्तार से समझाने के लिए यही कहना है। नीतीश ने सिर्फ विधानसभा में ये बात नहीं कही, जब वो विधान परिषद में पहुंचे तो वहां भी यही बोले और ज़्यादा खुलकर बोले। जब महिला विधायकों और विपक्ष ने काफी हंगामा किया, तो बुधवार को नीतीश कुमार ने एक बयान में कहा, “मेरी तरफ से कुछ ऐसी बात हो गयी तो मैंने माफ़ी मांग ली है, अगर आपको बुरा लगा तो हम अपना बयान वापस लेते हैं, मेरी बात से आप सबको दुःख हुआ तो मैं अपने शब्द वापस लेता हूं, बात ख़त्म करते हैं।”