ग्वालियर-चंबल संभाग की 34 सीटों की स्थिति !
आज जानिए ग्वालियर-चंबल संभाग की 34 सीटों की स्थिति …
इलेक्शन ग्राउंड रिपोर्ट राउंड-2 में दैनिक भास्कर ने दोनों संभाग की सीटों का दौरा कर ताजा स्थिति को समझा। चंबल के मुरैना जिले की दिमनी हॉट सीट बन गई है। यहां केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर जातिगत समीकरण में उलझते हुए दिख रहे हैं। जाति का फैक्टर पूरे मध्यप्रदेश में ग्वालियर-चंबल संभाग में ही सबसे ज्यादा रहता है।
ग्वालियर संभाग के पांच जिलों में कहां, क्या स्थिति
ग्वालियर जिला : दो पूर्व विधायकों के बगावती तेवरों का असर तीन सीटों पर
ग्वालियर सीट पर सिंधिया खेमे के प्रद्युम्न तोमर की अनोखी कार्यशैली ही उनके लिए काम कर रही है। ग्वालियर पूर्व सीट पर सतीश सिकरवार का क्षेत्र में संपर्क और पत्नी के मेयर होने का फायदा मिल रहा है। ग्वालियर दक्षिण में प्रवीण पाठक पांच साल से इलाके में कनेक्टेड रहने की अपनी ताकत को भुना रहे हैं। बसपा से विधायक रहे मदन कुशवाह और भितरवार से विधायक रहे ब्रजेंद्र तिवारी कांग्रेस में शामिल हाे गए हैं। इन दोनों नेताओं का प्रभाव ग्वालियर ग्रामीण, ग्वालियर दक्षिण, भितरवार तीन सीटों पर पड़ेगा।
गुना जिला: आप ने बदले समीकरण, अंतर्कलह से भाजपा को फायदा
गुना में कांग्रेस के पंकज कनेरिया परिणाम बदलने का पूरा प्रयास कर रहे हैं लेकिन संघ के प्रभाव और मजबूत पकड़ के कारण भाजपा के पन्नालाल शाक्य के सामने चुनौती नहीं दिख रही। गुना में भाजपा ने मौजूदा विधायक का टिकट काटकर सबसे आखिरी में प्रत्याशी घोषित किया था। चाचौड़ा में आम आदमी पार्टी ने अपनी मौजूदगी का अहसास करा दिया है। भाजपा से बगावत कर आप के टिकट पर लड़ रही पूर्व विधायक ममता मीना के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी आ चुके हैं। एक पखवाड़े पहले तक दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह को बढ़त दिख रही थी लेकिन यहां अब मुकाबला कांटे का हो गया।
शिवपुरी जिला : विरोध के कारण त्रिकोणीय मुकाबले में मंत्री धाकड़ मुश्किल में
शिवपुरी में इस बार सिंधिया परिवार से कोई मैदान में नहीं है। इसका असर अब दिखने लगा है। कांग्रेस मुकाबले को कांटे की टक्कर की स्थिति में ले आई है। करैरा और पोहरी में भाजपा प्रत्याशियों को कुछ गांवों में विरोध झेलना पड़ रहा है। मंत्री सुरेश धाकड़ की बजाय कांग्रेस और बसपा के प्रद्युम्न वर्मा के बीच मुकाबला बनता जा रहा है। पिछोर छोड़कर केपी सिंह के शिवपुरी से लड़ने के फैसले ने प्रीतम की राह आसान बना दी है। कोलारस में भाजपा और कांग्रेस के यादव प्रत्याशियों के बीच मुकाबला कांटे का हो गया है। गैर यादव वोट निर्णायक होंगे।
दतिया जिला : कांग्रेस में ‘एकता’ से कांटे की टक्कर में फंसे नरोत्तम मिश्रा
दतिया में कांग्रेस ने अवधेश नायक से टिकट वापस लेकर राजेंद्र भारती को दिया। दाेनों ने एक बाइक पर घूमकर एकता का संदेश दिया। अब ये संदेश असर दिखाने लगा है। यहां से भाजपा के उम्मीदवार नरोत्तम मिश्रा कांटे की टक्कर में फंस गए हैं। नरोत्तम के करीबी लोगों के खिलाफ भी नाराजगी है। बसपा ने सेवढ़ा सीट को त्रिकोणीय बना दिया है। लाखन 2018 में बसपा से ही उम्मीदवार थे और दूसरे नंबर पर रहे थे। भांडेर में एंटी-इनकम्बेंसी का फायदा कांग्रेस को हो सकता है। फूलसिंह बरैया का ग्राउंड कनेक्ट भी उनके पक्ष में जा रहा है।
अशोकनगर जिला : जज्जी से मूल भाजपाई अब भी नाराज, एंटी इनकम्बेंसी से भी नुकसान
अशोकनगर और मुंगावली सीट पर एंटी इनकम्बेंसी की खाई समय के साथ और गहरी हो रही है। ये पार्टी या नेता से ज्यादा नेताओं के करीबियों से हैं। नुकसान भाजपा को हो सकता है। तीनों सीटों पर प्रत्याशियों का व्यवहार निर्णायक होगा। जजपाल सिंह जज्जी सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। उनके खिलाफ पार्टी के पुराने कैडर बेस कार्यकर्ताओं की नाराजगी अब भी दूर नहीं हुई है। जज्जी इसे मैनेज नहीं कर पाए तो इसका नुकसान भाजपा को हो सकता है।
चंबल संभाग के तीन जिलों में कहां, क्या स्थिति
मुरैना जिला : जातियों के गणित में फंसे तोमर, बसपा-आप का फैक्टर भी
केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की उम्मीदवारी से दिमनी हॉट सीट है। कांग्रेस के मौजूदा विधायक रवींद्र तोमर और आम आदमी पार्टी से सुरेंद्र तोमर मैदान में हैं। तीन तोमरों के बीच बसपा के ब्राह्मण प्रत्याशी बलवीर दंडौतिया की वजह से जाति का गणित उलझ गया है। दिमनी क्षेत्र में गुर्जर समाज के युवक की हत्या के बाद समाज की नाराजगी भी है। आरोपी तोमर समाज के हैं, इसलिए तीनों तोमर प्रत्याशियों को गुर्जर वोटरों की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। मुरैना में बसपा के राकेश गुर्जर त्रिकोणीय में मजबूत दिख रहे हैं। जातिगत समीकरण उनके पक्ष में हैं। सुमावली में भी जातिगत समीकरण और सहानुभूति बसपा प्रत्याशी कुलदीप सिकरवार के पक्ष में जा रही है। कुलदीप का टिकट कांग्रेस ने काट दिया था।
भिंड जिला: दो सीटों पर बसपा ने बिगाड़े भाजपा-कांग्रेस के समीकरण
भिंड में रवि सेन जैन ने समाजवादी पार्टी से लड़ने का ऐलान किया। एक दिन वो लापता हो गए। कुछ घंटे बाद जब मिले तो बोले – सपा छोड़कर भाजपा ज्वाइन कर रहे हैं। इसे जैन समाज दबाव की राजनीति मान रहा। इसे लेकर नाराजगी है। यहां जैन वोट निर्णायक। अटेर सीट से प्रदेश में सबसे ज्यादा 38 उम्मीदवार मैदान में हैं। त्रिकोणीय मुकाबले में मंत्री अरविंद भदौरिया फंसते दिख रहे हैं। भाजपा छोड़कर बसपा से लड़ रहे संजीव कुशवाह भिंड में भाजपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। गोहद में लाल सिंह आर्य एंटी इंकम्बेंसी का सामना कर रहे हैं।
श्योपुर जिला : बसपा और भाजपा में बगावत का फायदा कांग्रेस को
श्योपुर में बाबू जंडेल का ग्राउंड कनेक्ट उनके लिए फायदेमंद साबित होता दिख रहा है। भाजपा के बागी पूर्व जिला उपाध्यक्ष बिहारी सिंह सोलंकी पिछली बार बसपा से लड़े थे, इस बार बसपा ने टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय उतरे हैं। भाजपा से दावेदार पूर्व जिला अध्यक्ष राधेश्याम रावत के समर्थक अब भी नाराज हैं। भितरघात का डर है। विजयपुर में निर्दलीय मुकेश मल्होत्रा ने मुकाबले को कांटे का बना दिया है।
3 फैक्टर जो ग्वालियर-चंबल संभाग में चुनाव की दिशा तय कर रहे हैं..
1.जाति ही सबसे बड़ा मुद्दा
भाजपा और कांग्रेस ही नहीं बसपा और आम आदमी पार्टी ने भी जातिगत गणित देखकर ही चुनाव में उम्मीदवार उतारे हैं। दोनों संभाग की सबसे हॉट सीट दिमनी में नरेंद्र सिंह तोमर भी इसी चक्रव्यूह में घिरे हैं। यहां तीन तोमर और एक ब्राह्मण उम्मीदवार हैं। मेहगांव में भाजपा ने इस बार ठाकुर की बजाय ब्राह्मण उम्मीदवार को टिकट दिया तो कांग्रेस ने भी तुरंत पैंतरा बदला और ब्राह्मण की बजाय ठाकुर उम्मीदवार मैदान में उतारा। पिछोर में लोधी समाज के वोटर ज्यादा होने के कारण कांग्रेस ने यहां टिकट बदलकर लोधी प्रत्याशी को मैदान में उतारा।
2. मिलनसार और लोगों से कनेक्ट रहने वाला पसंद
ग्वालियर पूर्व सीट पर कांग्रेस के सतीश सिकरवार हों या ग्वालियर सीट पर भाजपा के प्रद्युम्न सिंह तोमर, आम लोगों से सीधा कनेक्ट ही प्लस पाइंट है। इन्हें इसका फायदा दिख रहा है। मुरैना सीट पर राकेश गुर्जर को अपने पिता रुस्तम सिंह की छवि का फायदा मिल रहा है। बसपा प्रत्याशी राकेश भाजपा-कांग्रेस के सामने मजबूत बनकर उभरे हैं। जो नेता चुनाव बाद जनता से कट गए उन्हें नाराजगी भी झेलनी पड़ रही है। इनमें मंत्री सुरेश धाकड़, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, लालसिंह आर्य जैसे नेता शामिल हैं। दूसरी ओर चुनाव हारने के बाद भी लोगों से जुड़े रहने का फायदा प्रीतम लोधी और प्रवीण पाठक जैसे नेताओं को हो रहा है।
3. राष्ट्रीय-प्रादेशिक से ज्यादा स्थानीय मुद्दे काम कर रहे
ज्यादातर इलाकों में लोग राष्ट्रीय या प्रादेशिक स्तर के मुद्दों से ज्यादा स्थानीय मुद्दों की बात कर रहे हैं। मसलन इलाके में नाली, सड़क और पीने के पानी की स्थिति। मेहगांव के राउतन का पुरा में नालियों और स्कूल के टॉयलेट के सामने पानी जमा रहने का मुद्दा है तो दिमनी के आदिकापुरा में श्मशान और सड़क का मामला। गोहद के बरथरा गांव में लोग सड़क,नाली और पेयजल की समस्या बताते हैं। जौरा के ग्रामीण इलाकों में पानी की टंकी होने के बाद भी पेयजल सप्लाय नहीं होने का मुद्दा सामने आया। कुछ इलाकों में प्रत्याशी से ज्यादा लोग उनके करीबियों से नाराज दिखे। अटेर में ‘दद्दा टैक्स’ की भी चर्चा है।