हेल्थ इंश्योरेंस में ब्लैक लिस्ट है भिंड-मुरैना के अस्पताल

हेल्थ इंश्योरेंस में ब्लैक लिस्ट है भिंड-मुरैना के अस्पताल
जिला कंज्यूमर फोरम में इन दिनों सबसे ज्यादा मामले बीमा क्लेम के आ रहे हैं यानी लगभग 50 से 60 प्रतिशत मामले सिर्फ और सिर्फ बीमा क्लेम के ही होते हैं।

ग्वालियर। जिला कंज्यूमर फोरम में इन दिनों सबसे ज्यादा मामले बीमा क्लेम के आ रहे हैं यानी लगभग 50 से 60 प्रतिशत मामले सिर्फ और सिर्फ बीमा क्लेम के ही होते हैं। बीमा कंपनियो का कहना है कि अधिकतर मामले ऐसे सामने आते हैं जिनमें फर्जी तरीके से बिल लगाकर बीमा क्लेम लेने का प्रयास किया जाता है। ऐसी स्थिति के चलते ही कंपनियों ने हैल्थ इंश्योरेंस के नियमों को पहले से काफी कड़ा कर दिया है। इसके साथ कई अस्पतालों को भी ब्लैक लिस्टेड किया है।

ध्यान दें तो मुरैना के सबसे ज्यादा अस्पताल ब्लैक लिस्टेड है। इसके बाद भिंड और अब ग्वालियर के अस्पतालों को इस सूची में शामिल किया जा रहा है। कंज्यूमर कोर्ट के अधिवक्ता राहुल यादव का कहना है कि फोरम में आने वाले मामलों के अधिकतर मामले ऐसे होते हैं जिनमें एक अस्पताल से बिल लगाए जा रहे हैं, खास तौर पर तब जब उस अस्पताल का कोई ख्यातिप्राप्त नाम नहीं है। यह सब साठगांठ के चलते करते हैं तो कंपनियां ऐसे मामलों में क्लेम को होल्ड कर देती हैं।

सांठगांठ से लगाए जाते हैं क्लेम
हैल्थ इंश्योरेंस की बात करें तो एजेंट और कंज्यूमर की मिली जुली सांठगांठ होती है। इसमें किसी सामान्य से अस्पताल में व्यक्ति को भर्ती दिखाया जाता है। फिर उसका बिल बनाकर कंपनी के पास क्लेम के लिए भेजा जाता है। पहले क्लेम मिले भी, लेकिन जब कंपनी ने देखा कि ऐसा कुछ हो रहा है, तो कंपनी ने नियमों मे बदलाव किए, बदलाव के चलते लोगों नियम इतने सख्त हुए हैं कि अब जो आदमी वास्तव में बीमार है, उसका भी क्लेम लेना मुश्किल हो जाता है।
नियमों के अंतर्गत नहीं खुले वो ब्लैकलिस्ट

अधिवक्ता राहुल यादव का कहना है कि जिस एक्ट के आधार पर अस्पताल खोला जाता है उसमें यह पहले से तय कर दिया जाता है कि कितने एमबीबीएस डाक्टर होंगे और कितने एमडी। अन्य सीमाएं और नियम तय किए जाते हैं, जो अस्पताल इन नियमों को पूरा नहीं कर पाते हैं, ब्लैक लिस्टेड की सूची में वह सबसे ज्यादा शामिल है। कई अस्पताल ऐसे है जिनमें एमबीबीएस के स्थान पर बीएएमएस डाक्टरों को बैठा दिया जाता है।

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