रोजगार नहीं, शिक्षा के बुरे हाल, अब हल्ला बोल की तैयारी
● इंदौर के अलावा राजस्थान, महाराष्ट्र और दिल्ली तक पलायन …
निमाड़ में रोजगार नहीं, शिक्षा के बुरे हाल, अब हल्ला बोल की तैयारी ….
निमाड़ी महासंघ की इंदौर तो बाकी निमाड़ के लिए अलग-अलग रणनीति
लोगों ने एकजुट होकर निमाड़ महासंघ का किया गठन, करेंगे आवाज बुलंद …
भोपाल. बुंदेलखण्ड के बाद अब निमाड़ के रहवासी सरकारी उपेक्षा से उबरने और स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने अपनी आवाज बुलंद करने जा रहे हैं। इसके लिए इंदौर में खरगोन, बड़वानी, खंडवा, बुरहानपुर, धार जैसे निमाड़ के जिलों के हर वर्ग के लोग एकजुट होकर निमाड़ महासंघ का गठन कर चुके हैं। महासंघ के बैनर तले संघर्ष तेज किया जाएगा। जल्द ही बैठक कर एक दिन का इंदौर बंद रखने की कार्ययोजना बनाई जाएगी।
जनता का कहना है कि सीएम ने निमाड़ विकास प्राधिकरण की घोषणा तो की लेकिन आज तक ये आकार नहीं ले पाया। कृषि प्रधान क्षेत्र होने के बाद भी लेकिन खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों जैसा कुछ नहीं हो पाया कि पलायन को लोग मजबूर न हों। शिक्षा और स्वास्थ्य के तो और भी बुरे हाल हैं। इसके अलावा निमाड़ महासंघ राजनीति में भी अपने मूल के लोगों को प्रतिनिधित्व चाहता है। उसका दावा है कि किसी दल ने अब तक निमाड़ के बारे में नहीं सोचा।
निमाड़ में खरगोन, बड़वानी, खंडवा व बुरहानपुर जिले पूरी तरह आते हैं, जबकि धार जिले का आधा हिस्सा निमाड़ तो आधा मालवा में आता है। औसतन हर एक जिले की आबादी 7 से 8 लाख है। इंदौर में भी इसी के आसपास लोग रहते हैं। इस तरह देखा जाए तो औसतन 50 लाख के करीब निमाड़ी लोग हैं। ये न केवल इंदौर बल्कि खरगोन, बड़वानी, मनावर, महेश्वर, मंडलेश्वर, सनावद, बड़वाह, बेड़िया आते हैं तो जनजातीय बहुल अंचल वाले जिले खरगोन के भगवानपुरा, धूलकोट, धार में धरमुपरी, मनवार, कुक्षी, बांकानेर, धामनोद भी हैं, जिनमें निमाड़ महासंघ की इकाइयां काम कर रही हैं। इन इकाइयों के माध्यम से इंदौर समेत देश में अन्य जगह पलायन करके पहुंचने वालों को एकजुट करने का प्रयास जारी है। निमाड़ महासंघ में सर्वधर्म जाति-संप्रदाय से सरोकार रखने वाले निमाड़ीजनों को करीब एक दशक से संगठित करने में जुटा है। इसमें सक्रिय सदस्यों की संख्या 10 हजार से अधिक है।
कृषि प्रधान निमाड़ में किसानों की स्थिति तभी सुधरेगी जब कृषि आधारित औद्योगिक विकास होगा। निमाड़ में कृषि वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र खोलकर इस काम को करेंगे तो समृद्धि और खुशहाली आएगी। कृषि उत्पादन बढ़ाने के साथ ही खाद्य प्रसंस्करण की इकाई लगाने के प्रयासों की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की जा रही है। निमाड़ विकास प्राधिकरण का गठन हो ताकि स्थानीय स्तर पर विकास और रोजगार की संभावनाएं तेजी विस्तारित हों। स्वास्थ्य सेवाओं का हाल ये है कि बड़वानी के पाटी में आज भी एशिया में सबसे गभवर्ती महिलाओं की मृत्यु दर है। शिक्षा का स्तर भी गुणवत्तामूलक नहीं है। शैक्षणिक संस्थान प्राइवेट हैं या फिर जनप्रतिनिधियों के। सरकारी प्रयासों से स्तरीय संस्थान न के बराबर हैं।
महासंघ के अनुसार इंदौर की लड़ाई अलग है, वहां हम चाहते हैं कि निमाड़ीजनों का राजनीतिक नेतृत्व कायम हो। देश की स्वतंत्रता के 75 साल बाद भी ये उपेक्षा क्यों है। वहां के लोग दो तरह की समस्याओं के चलते पलायन करते हैं, एक तो विकास और दूसरा रोजी-रोटी। निमाड़ से पलायन करके आज की तारीख में इंदौर में ही 7 से 8 लाख की आबादी हो चुकी है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि आबादी के लिहाज से मुख्य धारा के राजनीतिक दलों ने इनके बीच कोई राजनैतिक नेतृत्व खड़ा करने का प्रयास नहीं किया।