‘कितने आए चले गए’ वाला भाव गलत, कार्रवाई जरूरी है !

 ‘कितने आए चले गए’ वाला भाव गलत, कार्रवाई जरूरी है
सनातन मान्यताएं, सनातन ग्रंथ, सनातन जीवन पद्धति और पूरा सनातन धर्म इस समय पर राजनीति के एक वर्ग के निशाने पर है. यह सब कुछ उस सनातन धर्म के खिलाफ हो रहा है जिसे जानने, समझने और जीने के लिए दुनिया भर के लोग आते हैं और इसी में रम कर रह जाते हैं. प्रश्न यह है कि सनातन धर्म का यह विरोध केवल राजनीतिक स्वार्थ से संचालित है या फिर विचारों में सड़न बुद्धि को ही जड़ बना चुकी है? प्रश्न यह है कि कुछ लोग सनातन धर्म को लेकिन इतनी कुंठा से क्यों भर गए हैं?

दीपावली के मौके पर दुनिया भर से भारतवासियों और सनातन धर्मावलम्बियों को शुभकामनाएं मिली. परन्तु भारत में ही जिस तरह की टिप्पणी देखने और पढ़ने को मिली वह हैरान करने वाली है. समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने मां लक्ष्मी के अवतार और विग्रह पर आपत्तिजनक टिप्पणी की. निश्चित तौर पर दीपोत्सव के अवसर पर आया यह बयान लाखों-करोड़ों को दुखी कर गया. हालांकि स्वामी प्रसाद मौर्य की ऐसी हरकत कोई नई नहीं है.

शाब्दिक उद्दंडता का उनका प्रयास अब पुराना हो चला है. यहां गौरतलब यह है कि इतना सब कुछ करने के बाद भी वो सपा में सम्मान के साथ बने हुए हैं. तब क्या इसका मतलब यह समझा जाए कि सपा यह मानकर चल रही है स्वामी प्रसाद मौर्य का सनातन विरोधी रुख पार्टी के हित में है? अन्यथा धार्मिक विषयों पर इतना जहर उगलने के बाद किसी का एक मिनट भी पद पर रहना तो छोड़िए पार्टी में रहना भी असंभव हो जाना चाहिए था.

हालांकि ऐसा नहीं है कि सनातन विरोध की आंधी उत्तर भारत में ही चल रही है. यह तूफान दक्षिण भारत की तरफ से भी चल रहा है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के पुत्र और प्रदेश के खेल मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म को खत्म करने की बात की. उदयनिधि के समर्थन में नेताओं ने सनातन धर्म की तुलना एचआईवी वायरस तक के कर डाली. रही बात नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी की तो जब बयानबाजी करने वाला व्यक्ति खुद पार्टी मुखिया का बेटा हो तब फिर पार्टी में रहने या न रहने के मसले पर उलझना ही ठीक नहीं है. 

अब प्रश्न यह है कि सनातन विरोध की जो धारा बह रही है क्या ये राजनैतिक स्वार्थ तक की सीमित है? प्रश्न यह है कि सेक्युलर देश में सनातन धर्म का विरोध इतना सहज कैसे बन गया है? प्रश्न यह भी है कि आज के दौर में सनातन धर्म का विरोध सेक्युलर होने का प्रमाण पत्र कैसे बन गया है? हैरान यह स्थिति भी करती है कि इन हरकतों पर देश के सभी दल और बड़े बड़े सियासी सूरमा चुप्पी साधे हुए हैं. भारतीय जनता पार्टी की तरफ से विरोध के सुर उठते हैं लेकिन यूपी में सनातन अपमान पर जहरीली बातों पर कितनी कठोर कार्रवाई की गई वह भी सबके सामने है.

तो क्या सत्य यह है कि सनातन और सनातन मान्यताओं का विरोध किसी खास वोट बैंक को साधने के लिए किया जा रहा है?  ऐसे धार्मिक अपमान पर मुखर और सख्त के बजाय सधा और सीमित विरोध भी क्या किसी राजनैतिक पक्ष को देख कर ही किया जा रहा है?

यह स्थिति ऐसी है कि जिसमें केवल प्रश्न ही किए जा सकते हैं और इस शर्त के साथ कि उत्तर आने की संभावना न के बराबर है. फिर भी प्रश्न तो करना होगा क्योंकि यह प्रश्न देश के सद्भाव से जुड़ा हुआ है, यह प्रश्न देश की अखंडता से जुड़ा हुआ है और यह प्रश्न भारत के मूल में सन्निहित सनातन धर्म से जुड़ा हुआ है.

यह प्रश्न गंभीर है कि क्योंकि इस बार आक्रमण बाहर से नहीं देश के भीतर से ही हो रहा है. यह प्रश्न इसलिए भी गंभीर है क्योंकि सनातन पर आक्रमण उस राजनैतिक वर्ग से हो रहा है जिस पर देश को गढ़ने की जिम्मेदारी है. अंदाजा लगाइए कि जब सृजनकर्ता विनाश के विचार से ओत-प्रोत हो जाएगा तो स्थिति कितनी भयावह हो सकती है. वक्त रहते इस तरह की हरकतों पर लगाम लगना वक्त की जरूरत है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि  …. न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]

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