MP में चुनावी “भक्तिकाल’ खत्म …?
MP में चुनावी “भक्तिकाल’ खत्म …
मतदान से पहले प्रदीप मिश्रा, धीरेंद्र शास्त्री और पंडोखर सरकार की 20 कथाएं हुईं, अब एक भी नहीं
चुनाव से पहले बीजेपी-कांग्रेस नेताओं ने कथाएं करवा कर राजनीतिक पुण्य हासिल करने की कोशिश की। जैसे ही टिकट बंटे और चुनाव आचार संहिता लागू हुई, कथाएं बंद हो गईं। दरबार भी नहीं सजे। मप्र में वोटिंग हो चुकी है। तीन दिसंबर को चुनाव नतीजों का इंतजार किया जा रहा है, लेकिन नतीजों के बाद भी नेताओं की कथा करवाने में कोई दिलचस्पी नजर नहीं आती।
………..ने पड़ताल की तो पाया कि किसी भी कथावाचक का नवंबर और दिसंबर में मप्र में कोई शेड्यूल नहीं है।
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए दिसंबर 2022 से ही नेताओं की तैयारियां अलग-अलग स्तर पर शुरू हो गई थी। इसमें कथावाचकों की कथाओं का आयोजन भी शामिल था। इसी साल मई से अक्टूबर तक हर महीने बड़े प्रवचनकारों की औसतन तीन कथाएं हो रही थीं।
तीन कथावाचक- कुबेरेश्वर धाम के पंडित प्रदीप मिश्रा, बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री और दतिया के पंडोखर सरकार की मांग सबसे ज्यादा रही। इनके अलावा जया किशोरी, कमल किशोर नागर, देवकीनंदन ठाकुर जैसे कथावाचकों को भी नेताओं ने आमंत्रित किया।
प्रदीप मिश्रा- चुनाव से पहले एमपी में 10 कथाएं, दिसंबर के बाद एक भी नहीं
पं. प्रदीप मिश्रा की चुनाव से पहले मप्र में 10 कथाएं हुई थीं। उज्जैन में 4 से 10 अप्रैल तक शिव महापुराण कथा से इसकी शुरुआत हुई थी। इसके बाद देपालपुर, जबलपुर, भोपाल, सीहोर, मंदसौर, छिंदवाड़ा और खंडवा में कथाओं का आयोजन हुआ। छिंदवाड़ा में कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ कथा के यजमान थे तो भोपाल में चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग। देपालपुर में कांग्रेस नेता विशाल पटेल और मंदसौर में हरदीप सिंह डंग ने आयोजन किया था। पंडित मिश्रा की आखिरी कथा तो चुनाव के दौरान ही 26 अक्टूबर से 1 नवंबर तक खंडवा में हुई। आयोजन बीजेपी के सांसद ज्ञानेश्वर पाटिल ने करवाया था।
मप्र के साथ पं. प्रदीप मिश्रा ने चुनावी राज्य, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी कथाएं की थीं। यहां भी बीजेपी और कांग्रेस नेताओं ने इनका आयोजन करवाया था। दिसंबर के बाद अगले साल जनवरी तक उनकी कथाओं का मप्र में कोई शेड्यूल नहीं है। उनकी समिति की तरफ से तीन कथाओं की जानकारी दी गई है। पं. मिश्रा की पहली कथा 22 से 28 नवंबर तक यूपी के कौशांबी में, दूसरी कथा 5 से 11 दिसंबर तक महाराष्ट्र के जलगांव में प्रस्तावित है। वहीं 25 से 31 दिसंबर तक यूपी के आंवला बरेली में कथा होगी।
धीरेंद्र शास्त्री: चुनाव से पहले एमपी में छह कथाएं, दूसरे राज्यों में 15
दिसंबर में एमपी के बजाए दूसरे राज्यों में आयोजन
चुनावी साल में सनातन धर्म के पोस्टर बॉय बने पंडित धीरेंद्र शास्त्री की भी खूब डिमांड रही, हालांकि धीरेंद्र शास्त्री ने मप्र से ज्यादा कथाएं दूसरे राज्यों में की। मप्र में मंदसौर के सुवासरा से उनकी कथा और दरबार की शुरुआत हुई थी। इसके बाद धीरेंद्र शास्त्री ने बालाघाट, राजगढ़, छिंदवाड़ा भोपाल और छतरपुर में दिव्य दरबार लगाया।
वोटिंग से पहले 13 से 19 नवंबर तक धीरेंद्र शास्त्री अज्ञातवास में चले गए। कहा गया कि वे साधना के लिए गए हैं, हालांकि चुनावी साल में उनकी कथाएं दूसरे राज्यों में ज्यादा हुई इसमें गुजरात, दिल्ली, पंजाब, बिहार, कर्नाटक, झारखंड, उत्तराखंड और महाराष्ट्र शामिल है। बागेश्वर धाम की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक नवंबर और दिसंबर में पं. धीरेंद्र शास्त्री महाराष्ट्र, झारखंड, दिल्ली, गुजरात और कर्नाटक में दरबार लगाने वाले हैं।
पंडोखर सरकार का जनवरी तक एक भी दरबार नहीं
चुनावी साल में दतिया के पंडोखर धाम के पंडोखर सरकार यानी गुरुशरण शर्मा की भी अच्छी खासी चर्चा रही। बाबा पर्चियां लिखकर भक्तों की समस्याओं का समाधान बताते हैं। मंत्री तुलसीराम सिलावट ने 9 से 11 जून तक इनके दिव्य दरबार का आयोजन किया था। इस दरबार में राऊ से कांग्रेस प्रत्याशी जीतू पटवारी भी पहुंचे थे। इसके बाद पंडोखर सरकार का राऊ के बीजलपुर में भी दरबार लगा था।
यहां जीतू पटवारी समर्थक कैलाश पंचोली की पर्ची निकली, जिसमें पूछा गया था कि जीतू पटवारी चुनाव जीतेंगे या नहीं। इस पर पंडोखर सरकार ने कहा- जीतू भैया चुनाव में विजयी होंगे, डबल मार्जिन से 101 परसेंट विजयी होंगे और अभी से मेहनत करेंगे तो 40 हजार से ज्यादा मार्जिन से विजयी होंगे। चुनावी राज्य छत्तीसगढ़ में भी पंडोखर सरकार के दरबार लगे, लेकिन मतदान के बाद अभी कोई कार्यक्रम मंदिर के बाहर होता नहीं दिख रहा है। पंडोखर धाम के मीडिया विभाग से बताया गया कि दो महीने तक यहां के मंदिर में ही सारे आयोजन होने हैं।
नेताओं ने हवा बनाने के लिए बाबाओं का इस्तेमाल किया- एक्सपर्ट
चुनाव के बाद नेताओं का कथाकारों से फोकस क्यों हट गया? इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार अरुण दीक्षित का कहना है- बीजेपी तो 1990 से रामरथ पर सवार है। अब तो वह इसकी फसल काट रही है, लेकिन इस बार कांग्रेस नेता भी भक्ति के रंग में नजर आएं। चुनाव करीब आते-आते दोनों को एहसास हुआ कि मप्र में ये भक्ति काम नहीं आने वाली, इसलिए बाबाओं से नेताओं का फोकस हट गया। नेताओं ने हवा बनाने के लिए बाबाओं का इस्तेमाल किया था, अब कोई आयोजन नहीं है जबकि ये कथा-प्रवचनों के आयोजन का समय है।
ऐसे आयोजनों में विवाद भी खूब हुए
- बालाघाट के परसवाड़ा में मई में पं. धीरेंद्र शास्त्री की वनवासी रामकथा का आयोजन हुआ। मंत्री रामकिशोर कांवरे इसके आयोजक थे। आयोजन में सरकारी अधिकारियों की ड्यूटी लगाई गई। आयोजन स्थल पर पेड़ों को काटने पर भी विवाद हुआ। आदिवासियों ने इसे देवस्थान बताते हुए कथा का विरोध किया। हाईकोर्ट में इसे लेकर याचिका भी लगी, जो बाद में खारिज हो गई।
- पं. प्रदीप मिश्रा की कथा 7 जुलाई को जबलपुर में प्रस्तावित थी। प्रशासन ने अनुमति नहीं दी, कथा रद्द करना पड़ी। इंडियन पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष पुरुषोत्तम तिवारी ने कथा का आयोजन किया था। तिवारी ने आरोप लगाया, राजनीतिक वजह से प्रशासन ने अनुमति नहीं दी।
- इंदौर के दयालबाग में 10 अक्टूबर से जया किशोरी की कथा प्रस्तावित थी। कांग्रेस विधायक संजय शुक्ला इसके आयोजक थे। 9 अक्टूबर को शुक्ला ने कथा रद्द करने का फैसला लिया। शुक्ला ने आरोप लगाया, प्रशासन ने बेटे के बजाय उनके नाम से कथा की अनुमति दी।