ग्वालियर । स्मार्ट सिटी द्वारा शहर में प्रस्तावित एक हजार करोड़ रुपये के कार्य सिर्फ तीन इंजीनियरों के भरोसे चल रहे हैं। स्मार्ट सिटी में कुल 15 इंजीनियरों के पद स्वीकृत हैं। इनमें एक अधीक्षण यंत्री, दो कार्यपालन यंत्री, चार असिस्टेंट इंजीनियर और आठ सब इंजीनियर के पद शामिल हैं, लेकिन वर्तमान में एक अधीक्षण यंत्री, एक कार्यपालन यंत्री और एक सब इंजीनियर ही मौजूद हैं। इसका नतीजा यह है कि नोटशीट चलाने से लेकर कार्यों की निगरानी तक के सभी काम लेट होते चले जा रहे हैं। वहीं जो परियोजनाएं पूरी भी हो चुकी हैं, वे फिर बेकार हो रही हैं। इनमें खेल मैदान से लेकर पब्लिक बाइक शेयरिंग सिस्टम, पब्लिक ट्रांसपोर्ट जैसे प्रोजेक्ट शामिल हैं।

हाल ही में फिर से इन पदों को भरने की कवायद शुरू की गई है, लेकिन छह माह का कार्यकाल शेष होने के कारण इंजीनियर मिलना भी मुश्किल नजर आ रहा है। दरअसल, स्मार्ट सिटी के पास एक हजार करोड़ रुपये का बजट है। इस बजट से शहर विकास सहित सुंदरीकरण और आधुनिकीकरण के कार्य किए जा रहे हैं। इसके अलावा विभिन्न कार्यों के लिए 250 करोड़ रुपये के अतिरिक्त बजट का भी प्रविधान है, लेकिन इतनी राशि होने के बावजूद अधिकतर काम धरातल पर नजर नहीं आ रहे हैं। इसका कारण है फील्ड इंजीनियरों की कमी। स्मार्ट सिटी में सिर्फ तीन इंजीनियरों के भरोसे ही 18 से अधिक परियोजनाएं चल रही हैं। ऐसे में ये इंजीनियर सभी परियोजनाओं की निगरानी ठीक से नहीं कर पाते हैं। वर्तमान में स्मार्ट सिटी की स्मार्ट रोड, महाराज बाड़ा पेडस्टि्रयन जोन, गोरखी मल्टी लेवल कार पार्किंग, शहर के चार प्रवेश द्वार, शासकीय प्रेस बिल्डिंग का उन्नयन, हुजरात मंडी का पुनर्निर्माण, इंटर स्टेट बस टर्मिनल, गेंडे वाली सड़क निर्माण, किला गेट सुंदरीकरण का काम चल रहा है। इसके अलावा शहर की छह सड़कों को सुधारने और 10 नए टायलेट कैफे तैयार करने के प्रोजेक्ट पाइपलाइन में हैं।

निगम से प्रतिनियुक्ति पर एक इंजीनियर: अमले की कमी से जूझ रही स्मार्ट सिटी में नगर निगम से प्रतिनियुक्ति पर दो इंजीनियर भेजे गए थे। इसमें एक अनिल सिंह चौहान दोहरी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। उनके पास निगम के क्लस्टर आफिसर का भी दायित्व है, जबकि स्मार्ट सिटी की गेंडे वाली सड़क, कटोराताल म्यूजिकल फाउंटेन जैसे प्रोजेक्ट भी उनके पास हैं। एक उपयंत्री विशाल गर्ग को निगम से स्मार्ट सिटी में सब इंजीनियर बनाकर भेजा गया था, लेकिन बाद में उन्हें क्षेत्रीय अधिकारी का दायित्व मिल गया। ऐसे में स्मार्ट सिटी से उन्हें रिलीव कर दिया गया।

ये परियोजनाएं हुईं खराब

– पब्लिक बाइक शेयरिंग प्रोजेक्ट पूरी तरह से फेल हो चुका है। शहर में अब लोग इन साइकिलों का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। अधिकारी भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं।़नि ़ाशहर में प्रदूषण, ट्रैफिक, तापमान सहित अन्य जानकारी देने वाले वीएमएस बोर्ड बंद पड़े हुए हैं। इन पर जानकारियां भी अपडेट नहीं हो रही हैं।

– वर्षा के दौरान जीआर मेडिकल कालेज में तैयार किए गए खेल मैदानों में पानी भरने से बहुत नुकसान पहुंचा

– शहर में सूत्र सेवा के अंतर्गत शुरू की गई बसें भी फेल हो चुकी हैं। शहर में विकसित किए गए तीन पार्कों में लगाए गए झूले, फिसलपट्टी व जिम उपकरण खराब हो चुके हैं।

ये परियोजनाएं हैं लेट

1 डिजिटल म्यूजियम व प्लेनेटोरियम अभी तक शुरू नहीं हो पाया है।

– प्रवेश द्वार की परियोजना भी देरी से शुरू हुई है।

– गेंडे वाली सड़क के काम में देरी हो रही है।

स्मार्ट सिटी में पीडीएमसी के पास पर्याप्त तकनीकी अमला मौजूद है। इसके चलते परियोजनाओं का कार्य प्रभावित नहीं हो रहा है। नगर निगम से भी कुछ इंजीनियरों को स्मार्ट सिटी की जिम्मेदारी दी गई है। हमें सब इंजीनियरों की आवश्यकता है। इसके लिए हमने संभागीय आयुक्त को पत्र लिखकर अटैचमेंट की मांग की है।

नीतू माथुर, सीईओ स्मार्ट सिटी