10 साल में बदले 3 अध्यक्ष फिर भी कांग्रेस क्यों नहीं खोज पा रही जीत का फॉर्मूला !
10 साल में बदले 3 अध्यक्ष फिर भी कांग्रेस क्यों नहीं खोज पा रही जीत का फॉर्मूला; इन 3 रिपोर्ट से समझिए
जीत का फॉर्मूला खोजने के लिए पिछले 10 सालों में कांग्रेस के 3 राष्ट्रीय अध्यक्ष बदले गए. 2 संगठन महामंत्री की भी छुट्टी हुई, लेकिन बीजेपी के विजयी रथ को ध्वस्त करने में सब नाकाम रहे.
कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के साथ सोनिया और राहुल गांधी
चुनाव हारने के बाद पत्रकारों से बात करते हुए राहुल गांधी ने कांग्रेस के लिए विनिंग फॉर्मूला खोजने का दावा किया था, लेकिन 10 साल बाद भी कांग्रेस जीत का फॉर्मूला नहीं खोज पाई है.
जीत का फॉर्मूला खोजने के लिए पिछले 10 सालों में कांग्रेस के 3 राष्ट्रीय अध्यक्ष बदले गए. 2 संगठन महामंत्री की भी छुट्टी हुई. कई बार गठबंधन का भी प्रयोग हुआ, लेकिन बीजेपी के विजयी रथ को ध्वस्त करने में सब नाकाम रहे.
हालिया चुनाव में कांग्रेस के कई बड़े चेहरे को हार का सामना करना पड़ा है. इनमें छत्तीसगढ़ सरकार के डिप्टी सीएम रहे टीएस सिंहदेव, मध्य प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष एनपी प्रजापति और राजस्थान विधानसभा के स्पीकर सीपी जोशी का नाम शामिल हैं.
चार राज्यों में चुनाव क्यों हार गई कांग्रेस?
1. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के मुताबिक कांग्रेस की हार की मुख्य वजह ईवीएम का झोल है. सिंह का कहना है कि बैलेट वोट में कांग्रेस को 230 में से 199 सीटों पर जीत मिली थी. पोस्टल बैलेट की सुविधा सरकारी कर्मचारियो, दिव्यांग-बुजुर्ग और चुनाव कार्य में लगे लोगों के लिए है.
2. राजनीतिक विश्लेषक पार्थ दास के मुताबिक चार राज्यों में अगर कांग्रेस ने वोट शेयर के मामले में अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन पार्टी का कैंपेनिंग बहुत ही खराब रहा. पार्टी लोगों को यह नहीं बता पाई कि लोग उसे क्यों वोट दें?
3. कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री उमंग सिंघार के मुताबिक बीजेपी के चुनावी मशीनरी और उसके झूठ को हम नहीं रोक पाए, इसलिए चुनाव हार गए.
4. कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक क्षेत्रीय क्षत्रप टिकट वितरण में ज्यादा उलझे रहे. उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश में सज्जन वर्मा की सिफारिश पर कांग्रेस ने 39 टिकट बांटे, लेकिन सज्जन खुद चुनाव नहीं जीत पाए. उनके अधिकांश समर्थक चुनाव हार गए. वहीं दिग्विजय के भाई और भतीजे भी चुनाव हार गए.
विनिंग फॉर्मूला क्यों नहीं खोज पा रहे राहुल गांधी?
बड़ा सवाल यही है कि आखिर कांग्रेस पिछले 10 सालों से जीत का फॉर्मूला क्यों नहीं खोज पा रही है. कांग्रेस के ही 3 रिव्यू कमेटी की रिपोर्ट से इसे समझते हैं.
एंटोनी कमेटी रिपोर्ट- 2014 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद सोनिया गांधी ने एके एंटोनी की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था. कमेटी में एंटोनी के अलावा, मुकुल वासनिक, आरसी खुंटिया और अविनाश पांडेय शामिल थे.
इस कमेटी ने 2014 के आखिर में सोनिया गांधी को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में दिशाहीन कैंपेन, संगठन में गुटबाजी और बड़े नेताओं के चुनावी रणनीति को हार के लिए जिम्मेदार ठहराया.
सोनिया गांधी को रिपोर्ट सौंपने के बाद एके एंटोनी ने पत्रकारों से कहा था कि हार के लिए राहुल जिम्मेदार नहीं है. उस वक्त की मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक एंटोनी कमेटी ने कांग्रेस में जान फूंकने के लिए कई सुझाव कांग्रेस आलाकमान को दिए थे.
एंटोनी कमेटी ने कांग्रेस को ढर्रे पर लाने के लिए जो सुझाव दिए थे, वो निम्न हैं-
1. प्रदेश संगठन में मजबूत नेताओं को जगह दी जाए. कॉर्डिनेशन का काम बड़े लेवल पर हो.
2. बड़े नेता सॉफ्ट हिंदुत्व की रणनीति अपनाएं. तुष्टिकरण से बचने की कोशिश की जाए.
3. जमीन से जुड़े नेताओं को पार्टी के विभिन्न स्तरों पर शामिल कराया जाए, जिससे संगठन का विस्तार हो.
4. टिकट वितरण चुनाव की घोषणा से पहले किया जाए, जिससे आखिरी वक्त में गलत संदेश न जा पाए.
उमाशंकर दीक्षित रिपोर्ट- समीक्षा की यह रिपोर्ट काफी पुरानी है, लेकिन पहली बार उत्तर भारत में कांग्रेस के संकट के बारे में उमाशंकर दीक्षित ने अपनी रिपोर्ट में बताया था. 1989 में हार के बाद उमाशंकर दीक्षित की रिपोर्ट को कांग्रेस कार्यसमिति के सामने पेश किया गया था.
कांग्रेस नेता और गांधी परिवार के करीबी मणिशंकर अय्यर ने 2013 में इंडियन एक्सप्रेस के एक ओपिनियन में कहा कि कांग्रेस ने इस रिपोर्ट को कभी अमल में नहीं लाया. सत्ता मिलते ही पार्टी इस रिपोर्ट को भूल गई, जिससे कांग्रेस का जनाधार लगातार गिरता गया.
दीक्षित कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ताओं की निगरानी, ब्लॉक और प्रदेश स्तर पर निर्वाचन के जरिए संगठन तैयार करना और राष्ट्रीय स्तर पर सभी बड़े पदों पर चुनाव कराने की सिफारिश की थी.
एंटोनी कमेटी ने कांग्रेस के संगठन को सुस्त बताया था और कहा था कि अधिकांश कार्यकर्ता बड़े नेताओं के चक्कर लगाते रहते हैं, जिससे पार्टी का जनाधार कम हो रहा है.
उदयपुर डिक्लेरेशन रिपोर्ट- 2022 में यूपी, पंजाब समेत 5 राज्यों में चुनाव हारने के बाद कांग्रेस ने राजस्थान के उदयपुर में चिंतन शिविर का आयोजन किया था. पार्टी ने इस शिविर में एक राजनीतिक प्रस्ताव पास किया था, जिसे उदयपुर डिक्लेरेशन कहा जाता है.
इस रिपोर्ट को वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की अध्यक्षता में तैयार की गई थी. कमेटी में गुलाम नबी आजाद, अशोक चव्हाण, उत्तम रेड्डी, गौरव गोगोई, शशि थरूर, सप्तगिरी उल्का, पवन खेड़ा और रागिनी नायक शामिल थे.
कांग्रेस ने चुनाव जीतने के लिए उदयपुर डिक्लेरेशन के तहत कुछ सख्त नियम लागू करने की बात कही थी. इसके मुताबिक संगठन में 50 प्रतिशत पद 50 साल से कम उम्र के युवाओं को दी जाएगी. चुनाव के दौरान एक परिवार से एक ही टिकट दिए जाएंगे.
टिकट की घोषणा चुनाव से 3 महीने पहले करने की बात कही गई थी. साथ ही यह भी कहा गया था कि संगठन में कोई भी एक व्यक्ति एक टर्म से ज्यादा एक पद पर नहीं रह पाएंगे. सोनिया गांधी ने इसे जान फूंकने वाला फॉर्मूला बताया था.
हालांकि, यह फॉर्मूला डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी लागू नहीं हो पाया है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे खुद दो पड़े पद पर बैठे हैं. हालिया चुनाव में पार्टी ने गुटबाजी के आधार पर जमकर टिकट वितरण किए है.
एक परिवार- एक टिकट का फॉर्मूला भी लागू नहीं हो पाया. कई परिवार के 2-2 लोग टिकट लेने में कामयाब रहे हैं. राजस्थान और मध्य प्रदेश में आखिरी वक्त में पार्टी ने उम्मीदवारों के नाम के ऐलान किए.
इन फैक्ट्स को भी देखिए…
1. कांग्रेस की सबसे बड़ी इकाई कांग्रेस कार्य समिति में 39 सदस्य हैं, जिसमें से 11 सदस्य मोदी काल में चुनाव नहीं लड़े हैं. 13 सदस्य चुनाव लड़े तो बुरी तरह हारे. 2 की तो जमानत तक जब्त हो गई.
2. बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में पार्टी के पास फुल टाइम प्रभारी नहीं हैं. इन राज्यों में लोकसभा की 150 से ज्यादा सीटें हैं. 1990 से पहले इन राज्यों में कांग्रेस की तूती बोलती थी.
3. हार की जिम्मेदारी लेते हुए 2019 में राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद छोड़ दिया था, लेकिन कई बड़े नेताओं ने इस्तीफा नहीं दिया. संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल तो 4 साल से ज्यादा समय से इस पद पर काबिज हैं.