भारतीय विदेश नीति का ‘गुजराल सिद्धांत’ क्या है?
भारतीय विदेश नीति का ‘गुजराल सिद्धांत’ क्या है?
भारत में गुजराल सिद्धांत का पालन करके कई रणनीतियां बनाई गईं, जिसका देश को फायदा हुआ. इस सिद्धांत को आई.के. गुजराल ने देश को दिया था.भारत में गुजराल सिद्धांत पूर्व प्रधानमंत्री आई.के.गुजराल ने दिया था
30 नवंबर को गुजराल सिद्धांत के जनक भारत के 12वें प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल की 11वीं पुण्यतिथि मनाई गई. गुजराल एकमात्र प्रधानमंत्री थे, जिनके पास विदेश नीति का गुजराल सिद्धांत दृष्टिकोण था, जिसे उन्हीं के नाम से जाना गया.
इस सिद्धांत के चलते भारत को बहुत फायदा पहुंचा. हालांकि आई. के. गुजराल का प्रधानमंत्री के तौर पर कार्यकाल एक साल ही चल पाया. तो चलिए आज हम इस आर्टिकल में गुजराल सिद्धांत को समझते हैं.
कौन थे इंद्र कुमार गुजराल?
इंद्र कुमार गुजराल ने 21 अप्रैल 1997 को भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली थी और उन्होंने 29 मार्च 1998 तक इस पद को संभाला. इसके अलावा गुजराल वीपी सिंह और संयुक्त मोर्चा की सरकार में दो बार विदेश मंत्री भी रह चुके हैं.
उन्हें बेहद निडर स्वभाव का माना जाता था. इसका सबसे अच्छा उदाहरण तब था जब आपातकाल के दौरान संजय गांधी को समाचार पत्रों के लिए अनौपचारिक सेंसर के रूप में नियुक्त किए जाने पर उन्होंने सूचना और प्रसारण मंत्री के रूप में इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल को छोड़ दिया था.
इसके अलावा ये वही गुजराल हैं जिन्होंने विदेश मंत्री रहते हुए 1996 में भारत को CTBT पर साइन नहीं करने दिए थे. जिसके चलते भारत आज अपने आप को परमाणु शक्ति घोषित करने में कामयाब सिद्ध हुआ. वहीं आई.के. गुजराल ही वो व्यक्ति थे जो गुजराल सिद्धांत लाए थे.
क्या है गुजराल सिद्धांत?
गुजराल सिद्धांत को भारत की विदेश नीति में मील का पत्थर माना जाता है. इसका प्रतिपादन इंद्र कुमार गुजराल ने 1996 में किया था. ये सिद्धांत कहता है कि यदि किसी देश को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना दबदबा कायम करना है तो उसे सबसे पहले अपने पड़ोसी देशों के साथ सामान्य रिश्ते बनाने होंगे.
उन्हें अपने विश्वास में लेना होगा और सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक रिश्ते मजबूत करने होंगे.
गुजराल सिद्धांत का मूल मंत्र ये है कि भारत को अपने पड़ोसी देशों जैसे मालदीव, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका और भूटान के साथ विश्वनीय संबंध बनाने होंगे, उनके साथ विवादों को बातचीत से सुलझाना होगा और उन्हें दी गई किसी मदद के बदले में उनसे तुरंत कुछ लेने की उम्मीद नहीं करनी होगी.
साथ ही किसी भी तरह के प्राकृतिक, राजनीतिक और आर्थिक संकट को सुलझाने में भी मदद करनी होगी. यही वजह है कि भारत अक्सर अपने पड़ोसी देशों की मदद के लिए तैयार रहता है.
गुजराल सिद्धांत ये भी कहता है कि किसी भी देश को एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देना चाहिए. जिससे रिश्ते सामान्य रह सकें. इस सिद्धांत का एक नियम ये भी है कि दक्षिण एशिया का कोई भी देश अपनी जमीन से किसी दूसरे देश के खिलाफ देश विरोधी गतिविधियां नहीं चलाएगा.
सिद्धांत के नियम के अनुसार सभी दक्षिण एशियाई क्षेत्र के विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाएं.
कितना सफल साबित हुआ गुजराल सिद्धांत?
विदेश नीति के प्रति गुजराल के दृष्टिकोण ने भारत के पड़ोसी देशों के प्रति विश्वास और सहयोग की भावना को मजबूती देने में मदद की. जिससे पड़ोसी देशों से भारत के संबंध अच्छे हुए.
इसके अलावा भारत और बांग्लादेश के बीच जल-साझा संधि-1977 साल 1988 में खत्म हो गई थी. वहीं दोनों पक्षों के बीच स्पष्टता न होने के चलते इस बात को आगे बढ़ाना भी संभंव नहीं हो रहा था. ऐसे में गुजराल सिद्धांत के चलते बांग्लादेश के साथ जल-साझा विवाद का समाधान साल 1996-97 में केवल तीन महीने में कर लिया गया.
इस सिद्धांत के चलते भारत ने गंगा में जल प्रवाह को बढ़ाने के लिए सएक नहर परियोजना के लिए भूटान से मंजूरी ले ली थी. इसके अलावा नेपाल के साथ भी इस सिद्धांत ने जल विद्युत उत्पादन के लिए महाकाली नदी को नियंत्रित करने की संधि भी हुई थी.
इसके बाद विकास को बढ़ावा देने के लिए श्रीलंका के साथ कई समझौतों में भी मदद मिली. साथ ही पाकिस्तान के साथ बातचीत की शुरुआत करने में भी इस सिद्धांत ने भूमिका निभाई थी.
क्यों होती है इस सिद्धांत की आलोचना?
इस सिद्धांत के चलते पड़ोसी देशों के साथ नरम रुख अपनाना होता है. ऐसे में पाकिस्तान के साथ नरम रुख अपनाने पर भविष्य में आतंकी हमलों के खतरों के बढ़ने का खतरा बढ़ सकता है. ऐसे में इस सिद्धांत की आलोचना की गई.
इसके अलावा कुछ लोगों का मानना था कि ये सिद्धांत बहुत आदर्शवादी है और भारत की सुरक्षा चिंताओं के खिलाफ है. आलोचकों ने तर्क दिया कि ये सिद्धांत भारत के कुछ पड़ोसियों द्वारा पैदा किए गए संघर्षों का सही समाधान नहीं देता.
इसके अलावा इस सिद्धांत की घरेलू स्तर पर भी आलोचना की गई. कुछ लोगों का मानना था कि आपसी भाईचारे पर जोर देना हमारी कमजोरी माना जा सकता है और विरोधी इसका फायदा उठा सकते हैं