क्या हम एक और शीत युद्ध की तरफ बढ़ रहे हैं?
क्या हम एक और शीत युद्ध की तरफ बढ़ रहे हैं?
क्या आज हम एक निर्णायक मोड़ पर हैं? यकीनन। लेकिन क्या हम एक और शीत युद्ध की कगार पर भी हैं? इतिहासकार नियाल फर्ग्यूसन की मानें तो हम पहले से ही शीत युद्ध के दौर से गुजर रहे हैं। अगर यह सच है तो वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए इसके क्या मायने होंगे? और एक विभाजित दुनिया में आर्थिक खुलेपन से होने वाले लाभों को हम कैसे सुरक्षित रख सकेंगे?
महामारी, युद्ध और दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं- अमेरिका और चीन- के बीच बढ़ते तनाव ने निस्संदेह वैश्विक आर्थिक संबंधों की रणनीति बदल दी है। अमेरिका मैत्रीपूर्ण सहयोग का आह्वान करता है, यूरोपीय संघ जोखिम कम करने की बात करता है और चीन आत्मनिर्भरता की बात छेड़ता है। राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताएं दुनिया भर में आर्थिक नीतियों को आकार दे रही हैं।
लेकिन दुनिया के नियमों का निर्माण राष्ट्रीय सुरक्षा-आधारित व्यापार संघर्षों को हल करने के लिए नहीं किया गया था। इसलिए आज हमारे सामने ऐसे देश हैं, जो असमान नियमों के साथ और किसी प्रभावी रेफरी के बिना ही प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। यह प्लेबुक उनके लिए काम की है, क्योंकि वे अपनी आपूर्ति-शृंखलाओं को जोखिम से मुक्त करने और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने का प्रयास करते हैं।
लेकिन अगर इस स्थिति का उचित तरीके से प्रबंधन नहीं किया गया तो यह संभावित रूप से लगभग तीन दशकों की वैश्विक शांति, एकीकरण और विकास को उलट सकती है, जिसने अरबों लोगों की गरीबी से निकलने में मदद की है। आज जब दुनिया अनेक दशकों में पहली बार विकास की इतनी कम संभावनाओं के साथ आगे बढ़ रही है, महामारी- युद्ध से अमीर-गरीब देशों के बीच आय की विषमता की स्थिति उत्पन्न हो गई है, तब हम एक और शीत युद्ध को बर्दाश्त नहीं कर सकते।
इतिहास में झांककर देखें तो यह पहली बार नहीं है, जब वैश्वीकरण पर खतरे की स्थिति निर्मित हुई है और भू-राजनीतिक चुनौतियों के कारण विश्व-व्यापार बाधित हुआ है। 1789 में फ्रांसीसी क्रांति के साथ शुरू हुई ‘125 साल लंबी’ 19वीं शताब्दी में अंतरराष्ट्रीय व्यापार में जैसे विस्फोट हुआ था। लेकिन प्रथम विश्व युद्ध ने वैश्वीकरण के उस सुनहरे युग को अचानक समाप्त कर दिया।
युद्ध के बाद निर्मित हुई आर्थिक कठिनाइयों ने राष्ट्रवादी और तानाशाह नेताओं के उदय का मार्ग प्रशस्त किया, जिसने दुनिया को द्वितीय विश्व युद्ध में झोंक दिया। इसके बाद, दो महाशक्तियों- अमेरिका और सोवियत संघ- के साथ एक खंडित, दो-ध्रुवीय दुनिया उभरी, जो विचारधारा, राजनीति और आर्थिक संरचनाओं के आधार पर विभाजित थी।
लेकिन 1940 के दशक के उत्तरार्ध और 1980 के दशक के अंत तक का शीत युद्ध का काल वैश्वीकरण के विरोध में नहीं था। युद्ध के बाद और वेस्टर्न ब्लॉक के कई देशों द्वारा अपनाई गई उदारीकरण की नीतियों से विश्व व्यापार में तब वृद्धि ही हुई थी। हालांकि इस दौरान विरोधी गुटों के बीच का व्यापार पूरी दुनिया में होने वाले व्यापार की तुलना में लगभग 10 से 15 प्रतिशत घटकर 5 प्रतिशत से भी कम रह गया था।
लेकिन शीत युद्ध के समापन के बाद तेजी से विरोधी गुटों में भी परस्पर व्यापार बढ़ा और उसके बाद वाले दशक में पूरी दुनिया के एक चौथाई हिस्से तक पहुंच गया। तकनीकी इनोवेशन, बहुराष्ट्रीय व्यापार समझौतों और भू-राजनीतिक बदलावों ने भी इसमें अहम योगदान दिया और दुनिया का आर्थिक-एकीकरण अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गया।
लेकिन 2008 के बाद से वैश्वीकरण की गति स्थिर हो गई है, क्योंकि हाइपर-वैश्वीकरण को बढ़ावा देने वाली ताकतें कम हो गई हैं। पिछले 5 वर्षों में तो भू-राजनीतिक जोखिम बढ़ने के कारण पूंजी और वस्तुओं के मुक्त प्रवाह की राह में और रोड़े आए हैं। अकेले पिछले साल ही 3,000 से ज्यादा व्यापार-प्रतिबंध लगाए गए हैं, जो 2019 की तुलना में तीन गुना से भी अधिक हैं।
तो क्या हम आज एक और शीत युद्ध की शुरुआत में हैं? इसकी मुख्य प्रेरक-शक्ति पहले जैसी ही है- दो महाशक्तियों के बीच टकराव। पहले यह अमेरिका और सोवियत संघ थे, अब अमेरिका और चीन हैं। लेकिन जिस मंच पर ये ताकतें उजागर होती हैं, वह कई मायनों में पहले से अलग है। शीत युद्ध द्वितीय पहले से ज्यादा महंगा साबित हो सकता है। क्योंकि आज दुनिया बहुत ज्यादा एकीकृत हो गई है और हम अभूतपूर्व रूप से अनेक ऐसी साझा चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जिनसे एक विभाजित दुनिया नहीं निपट सकती।
- शीत युद्ध द्वितीय पहले से ज्यादा महंगा साबित हो सकता है। क्योंकि आज दुनिया बहुत ज्यादा एकीकृत हो गई है और हम अभूतपूर्व रूप से अनेक ऐसी साझा चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जिनसे एक विभाजित दुनिया नहीं निपट सकती।
शीत युद्ध क्या है ?
शीत युद्ध एक ऐसी स्थति है जहां दो देशों के बिच युद्ध की स्थति बन जाती है लेकिन धरातल पर कोई टकराव नहीं होता। यानि वो देश सिर्फ विचारों का युद्ध लड़ रहे होते हैं। इसी तरह की घटना 90 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बिच उत्पन्न हुई जिसके कारण विश्व राजनीती पर गहरा प्रभाव पड़ा।
शीत युद्ध एक विचारधारों का टकराव था। जिसमे दोनों देश यह साबित करना चाहते थे की उनकी विचारधारा ही अच्छी है। अमेरिका को लगता था की उसकी पूंजीवाद की विचारधारा विश्व के लिए अच्छी है जबकि रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) को लगता था की उसकी समाजवाद या साम्यवादी की विचारधारा बेहतर है। इसने विश्व को दो भागो में बाँट दिया, पश्चिमी गुट जिसका नेतृत्व संयुक्त राज्य अमेरिका कर रहा था और दूसरा पूर्वी गुट जिसका नेतृत्व सोवियत संघ (रूस) कर रहा था। [शीतयुद्ध क्या है शीत यद्ध के दायरे और कारण]
पूंजीवाद:
इस विचारधारा के अनुसार व्यापार में राज्य का कम से कम हस्तकक्षेप होना चाहिए तथा खुली पर्तिस्पर्धा होनी चाहिए। पूंजीवाद एक उद्यमशील और स्वतंत्र अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है जो निजी स्वामित्व, विनियमित बाजार और कारोबारी प्रतिस्पर्धा पर आधारित है।
साम्यवाद या समाजवाद:
साम्यवाद या समाजवाद एक आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विचारधारा है जो सामाजिक न्याय, सामाजिक समानता, और सामाजिक सुधार के मूल्यों को प्रमुखता देती है।
साम्यवाद के मुख्य आदर्शों में शामिल हैं सामाजिक न्याय, सामाजिक समानता, और सामाजिक सुधार की प्राथमिकता। इसका मकसद विशेषाधिकार, समानता, और न्याय के आधार पर एक ऐसे समाज की स्थापना करना है जहां सभी लोगों को उच्चतम स्तर के जीवन और सुरक्षा का अधिकार हो। साम्यवादिक विचारधारा का मानना है कि सामाजिक संपत्ति, सामाजिक सुरक्षा, और सुविधाओं का वितरण न्यायपूर्ण होना चाहिए।
पूंजीवाद:
इस विचारधारा के अनुसार व्यापार में राज्य का कम से कम हस्तकक्षेप होना चाहिए तथा खुली पर्तिस्पर्धा होनी चाहिए। पूंजीवाद एक उद्यमशील और स्वतंत्र अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है जो निजी स्वामित्व, विनियमित बाजार और कारोबारी प्रतिस्पर्धा पर आधारित है।
साम्यवाद या समाजवाद:
साम्यवाद या समाजवाद एक आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विचारधारा है जो सामाजिक न्याय, सामाजिक समानता, और सामाजिक सुधार के मूल्यों को प्रमुखता देती है।
साम्यवाद के मुख्य आदर्शों में शामिल हैं सामाजिक न्याय, सामाजिक समानता, और सामाजिक सुधार की प्राथमिकता। इसका मकसद विशेषाधिकार, समानता, और न्याय के आधार पर एक ऐसे समाज की स्थापना करना है जहां सभी लोगों को उच्चतम स्तर के जीवन और सुरक्षा का अधिकार हो। साम्यवादिक विचारधारा का मानना है कि सामाजिक संपत्ति, सामाजिक सुरक्षा, और सुविधाओं का वितरण न्यायपूर्ण होना चाहिए।
द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के साथ ही शीतयुद्ध की शुरुआत हो गई थी। द्वितीय विश्व युद्ध में दो गुटों के बिच संघर्ष चल रहा था।
1. मित्र राष्ट्र:
मित्र राष्ट्र गुट का मुख्य उद्देश्य विश्वशांति और सुरक्षा को स्थापित करना था। यह गुट ब्रिटेन, USSR, फ्रांस, संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, चीन और अन्य कई देशों से मिलकर बना था। द्वितीय विश्व युद्ध में इनकी विजय हुई।
2. धुरी राष्ट्र:
धुरी राष्ट्र गट का मुख्य उद्देश्य युद्ध में आक्रमण करने वाले राष्ट्रों के खिलाफ खड़ा होना था। इस गुट में जर्मनी, इटली, जापान और अन्य देश शामिल थे। इस युद्ध में इन देशों को हार का सामना करना पड़ा था। [शीतयुद्ध क्या है शीत यद्ध के दायरे और कारण]
इसकी समाप्ति 25 दिसंबर 1991 में मानी जाती है।
शीत युद्ध के प्रमुख कारण
#1 महाशक्ति बनने की होड़
दोनों देशों के बिच संघर्ष का प्रमुख कारण महाशक्ति बनने को लेकर था। रूस चाहता था की वो महाशक्ति बन जाय और अमेरिका चाहता था की वो महाशक्ति हो। इसलिए दोनों देश अपनी-अपनी विचारधारों को सर्वश्रेष्ठ साबित करना चाहते थे।
#2 हथियारों की होड़
द्वितीय युद्ध के कारण विश्व में हथियारों की होड़ शुरू हो गई जो शीत युद्ध का एक प्रमुख कारण बना। दोनों गुट घातक हथियारों का निर्माण का रहे थे। एक को देखकर दूसरा गुट भी उससे घातक हथियार बनाना चाहता था।
#3 अपरोध का तर्क
अपरोध का तर्क:– जब कोई देश किसी दूसरे देश पर हमला करता है तो दूसरे देश के पास हमले के बाद भी इतने हथियार बच जाते हैं जिससे की वो हमलावर देश को भारी जान-माल का नुकसान पहुंचा सकता है।
अपरोध के तर्क ने वास्तविक युद्ध को रोके रखा जिसके कारण जमीनी स्तर पर कोई संघर्ष नहीं हुआ और विचारों का युद्ध चलता रहा।
#4 यूरोप का विभाजन :-
यूरोप का पश्चिमी और पूर्वी गुटों में विभाजन शीत युद्ध का एक महत्वपूर्ण कारक बन गया। संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके पश्चिमी यूरोपीय सहयोगियों ने नाटो (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) का गठन किया, जबकि सोवियत संघ और उसके पूर्वी यूरोपीय सहयोगियों ने वारसॉ संधि की स्थापना की। यूरोप के विभाजन ने एक भौतिक और वैचारिक विभाजन पैदा किया जिसने दोनों पक्षों के बीच प्रतिद्वंद्विता को तीव्र कर दिया।
#5 अंतरिक्ष में प्रतिस्पर्धा :-
इस युद्ध का प्रभाव सिर्फ जमीन तक ही नहीं रहा बल्कि अंतरिक्ष में भी देखने को मिला। दोनों राष्ट्र अपने अपने उपग्रह अंतरिक्ष में भेज रहे थे। इसको लेकर दोनों के बीच होड़ शुरू हो गई।
शीत युद्ध के परिणाम
शीत युद्ध के कारण पूरा विश्व है दो गुटों में बंट गया। जो कभी भी युद्ध शुरू कर सकते थे, जिससे कि विश्व में अशांति उत्पन्न हुई।
हथियारों की होड़ के कारण लगातार नए-नए घातक हथियार बन रहे थे। इसके कारण अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा हथियारों के निर्माण में लग रहा था।
यह बात भी सही है कि शीत युद्ध ने वास्तविक युद्ध को रोके रखा था। शीत युद्ध के ही कारण दोनों गुट मैदान में युद्ध नहीं लड़ रहे थे। जिससे विश्व एक भारी नुकसान से बचा हुआ था।
शीत युद्ध ने दुनिया भर में कई क्षेत्रीय संघर्षों को बढ़ावा दिया, जहां संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ ने विरोधी पक्षों का समर्थन किया। कोरियाई युद्ध और वियतनाम युद्ध जैसे इन संघर्षों के परिणामस्वरूप प्रभावित क्षेत्रों में महत्वपूर्ण मानवीय पीड़ा और राजनीतिक अस्थिरता पैदा हुई।
अंतरिक्ष दौड़ में संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच प्रतिस्पर्धा से अंतरिक्ष अन्वेषण और प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण प्रगति हुई। स्पुतनिक के प्रक्षेपण और अपोलो चंद्रमा लैंडिंग जैसे मील के पत्थर ने वैज्ञानिक और तकनीकी सीमाओं को आगे बढ़ाया।
यूरोप के पश्चिमी और पूर्वी ब्लॉकों में विभाजन, जो आयरन कर्टेन का प्रतीक है, ने एक भौतिक और वैचारिक विभाजन पैदा किया। इस विभाजन के परिणामस्वरूप नाटो और वारसॉ संधि जैसे सैन्य गठबंधनों का निर्माण हुआ और सोवियत प्रभाव के तहत पूर्वी यूरोपीय देशों में स्वतंत्रता और मानवाधिकारों का दमन हुआ।
शीत युद्ध ने पूंजीवाद और साम्यवाद के बीच वैचारिक और सांस्कृतिक प्रतिस्पर्धा को बढ़ा दिया। प्रत्येक पक्ष ने प्रचार, मीडिया और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से अपनी विचारधारा को बढ़ावा दिया। शीत युद्ध के समय में कई देशों में सेंसरशिप, वैचारिक अनुरूपता और सैन्य-औद्योगिक परिसर का विकास भी देखा गया।
शीत युद्ध ने सैन्य प्रतिस्पर्धा से प्रेरित महत्वपूर्ण तकनीकी नवाचार और वैज्ञानिक प्रगति को बढ़ावा दिया। हथियारों की होड़ और सैन्य अनुसंधान की माँगों के कारण एयरोस्पेस, कंप्यूटिंग, दूरसंचार और अन्य क्षेत्रों में प्रगति तेज हो गई।
शीत युद्ध के युग में गुटनिरपेक्ष आंदोलन का उदय हुआ, जिसने दो महाशक्तियों से तटस्थता और स्वतंत्रता बनाए रखने की मांग की। इसने वैश्वीकरण और अंतर्संबंध की प्रक्रियाओं को भी तेज कर दिया क्योंकि देशों ने शीत युद्ध की जटिलताओं से निपटने और अपने स्वयं के गठबंधन और आर्थिक संबंध बनाने की कोशिश की।
1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत में शीत युद्ध के अंत में महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक परिवर्तन आए। सोवियत संघ का पतन, जर्मनी का पुनर्मिलन, और अधिक परस्पर जुड़े और बहुध्रुवीय विश्व की ओर बदलाव ने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में एक नए युग की शुरुआत की। [शीतयुद्ध क्या है शीत यद्ध के दायरे और कारण]
शीत युद्ध का दौर
इस दौरान कई सैनिक संधियां भी हुई। जिनमे प्रमुख निम्न लिखित हैं :-
नाटो:
- यह पश्चिमी गठबंधन के देशों का सैनिक गठबंधन था। इसके अनुसार इस गुट में अगर किसी भी देश पर कोई भी बाहरी देश आक्रमण करता है तो वो सब देशों पर आक्रमण माना जायेगा। इसकी स्थापना अप्रैल 4, 1949 में वाशिंगटन डीसी में की गई थी।
वारसा पैक्ट
- सोवियत संघ और उसके साथी देशों ने पश्चिमी जर्मनी के नाटो में शामिल होते ही इस संधि पर हस्ताक्षर कर दिया। इसकी स्थापना मई 14 1955 को में पोलैंड में की गई थी। इसका प्रमुख उद्देश्य पश्चिमी यूरोप में नाटो का मुकाबला करना था।
SEATO- दक्षिण-पूर्व एशियाई संधि संगठन
- साम्यवादी विचारधारा को दक्षिण-पूर्व भू-भाग में रोकने के उद्देश्य से इस संधि की स्थापना 1954 में की गई थी।
CENTO
- मध्य-पूर्व में साम्यवादी या समाजवाद की विचारधारा के प्रभाव को रोकने के उद्देश्य से इसकी स्थापना 15 जुलाई 1955 में की गई थी।
याल्टा सम्मेलन (1945) :-
फरवरी 1945 में आयोजित याल्टा सम्मेलन में यूरोप के युद्धोपरांत विभाजन और संयुक्त राष्ट्र की स्थापना पर चर्चा करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और यूनाइटेड किंगडम के नेताओं को एक साथ लाया गया।
जर्मनी का विभाजन (1945) :-
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, जर्मनी को संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ, यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस द्वारा नियंत्रित चार कब्जे वाले क्षेत्रों में विभाजित किया गया था। बाद में विभाजन के कारण बर्लिन की दीवार की स्थापना हुई।
मार्शल योजना (1948-1952) :-
मार्शल योजना, जिसे आधिकारिक तौर पर यूरोपीय रिकवरी प्रोग्राम के रूप में जाना जाता है, एक अमेरिकी पहल थी जिसका उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पश्चिमी यूरोपीय देशों को उनकी अर्थव्यवस्थाओं के पुनर्निर्माण में मदद करने और साम्यवाद के प्रसार को रोकने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करना था।
कोरियाई युद्ध (1950-1953) :-
कोरियाई युद्ध 1950 में शुरू हुआ जब उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया पर आक्रमण किया। यह संघर्ष एक पूर्ण पैमाने पर युद्ध में बदल गया जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगी दक्षिण कोरिया का समर्थन कर रहे थे और चीन और सोवियत संघ उत्तर कोरिया का समर्थन कर रहे थे। युद्ध युद्धविराम में समाप्त हुआ लेकिन औपचारिक शांति संधि नहीं हुई।
वियतनाम युद्ध (1955-1975) :-
वियतनाम युद्ध सोवियत संघ और चीन द्वारा समर्थित उत्तरी वियतनाम और संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा समर्थित दक्षिण वियतनाम के बीच एक लंबा संघर्ष था। युद्ध के परिणामस्वरूप वियतनाम और संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों में महत्वपूर्ण जानमाल की क्षति हुई और राजनीतिक विभाजन हुआ।
बर्लिन की दीवार का गिरना (1989) :-
नवंबर 1989 में बर्लिन की दीवार का गिरना शीत युद्ध की समाप्ति और पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के पुनर्मिलन का प्रतीक बन गया। यह घटना पूर्वी यूरोप में साम्यवादी शासन को ख़त्म करने में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई।
शीत युद्ध का अंत
दिसंबर 1991 में सोवियत संघ का विघटन शीत युद्ध की आधिकारिक समाप्ति का प्रतीक था। सोवियत संघ का स्थान रूसी संघ ने ले लिया और पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया में स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ। [शीतयुद्ध क्या है शीत यद्ध के दायरे और कारण]
शीतयुद्ध के अंत के कारण :-
सोवियत संघ में राजनीतिक सुधार: मिखाइल गोर्बाचेव के नेतृत्व में सोवियत संघ ने ग्लासनोस्त (खुलापन) और पेरेस्त्रोइका (पुनर्गठन) जैसे राजनीतिक सुधार लागू किये। इन सुधारों का उद्देश्य सोवियत संघ के भीतर आर्थिक स्थिरता और राजनीतिक दमन को नियंत्रित करना था, लेकिन इससे राजनीतिक खुलापन भी बढ़ा और समाज पर राज्य के नियंत्रण में ढील भी मिली।
सोवियत संघ में आर्थिक चुनौतियाँ: सोवियत संघ को गंभीर आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसमें एक स्थिर अर्थव्यवस्था, अक्षमता और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ महंगी हथियारों की दौड़ शामिल थी। पूर्वी यूरोप में सैन्य समानता बनाए रखने के तनाव ने सोवियत अर्थव्यवस्था पर काफी बोझ डाला। इन आर्थिक कठिनाइयों ने सोवियत संघ की स्थिति और शीत युद्ध प्रतिद्वंद्विता को बनाए रखने की उसकी क्षमता को कमजोर कर दिया।
पूर्वी यूरोपीय क्रांतियाँ: सोवियत प्रभाव के तहत पूर्वी यूरोपीय देशों ने साम्यवादी शासन के प्रति व्यापक असंतोष का अनुभव किया। पोलैंड, हंगरी, पूर्वी जर्मनी, चेकोस्लोवाकिया और रोमानिया जैसे देशों में लोकप्रिय विद्रोह और लोकतंत्र समर्थक आंदोलन उभरे। इन देशों में साम्यवादी शासन के पतन के कारण लोकतांत्रिक सुधारों की लहर चली और सोवियत समर्थित पूर्वी ब्लॉक का विनाश हुआ।
FAQs :-
प्रश्न 1. शीतयुद्ध का चरम बिंदु क्या था ?
प्रश्न 2. शीतयुद्ध की समाप्ति कब हुई ?
उत्तर: सन् 1991 में सोवियत कमजोर पड़ गया और सोवियत संघ के विघटन के साथ ही शीतयुद्ध भी खत्म हो गया।
प्रश्न 3. शीत-युद्ध का अंत के क्या कारण थे ?
उत्तर: बर्लिन की दिवार का 1989 में गिरना एवं 1990 में पूर्वी जर्मनी का पश्चिमी में पुनर्मिलन तथा 1991 में सोवियत संघ का विघटन शीतयुद्ध की समाप्ति के कारण थे।
प्रश्न 4. शीतयुद्ध के शुरुआत के क्या कारण थे ?
उत्तर: अमेरिका और सोवियत संघ के बिच चल रही वैचारिक लड़ाई ने शीतयुद्ध को जन्म दिया। जिसके कारण हथियारों की भयंकर होड़ की शुरुआत हुई।