बढ़ रही हैं नफरत की भावनाएं …
युद्ध से कैम्पस में भी बढ़ रही हैं नफरत की भावनाएं …
इस बात से निराश होकर कि ये प्रेसिडेंट्स इजराइल के हमले का विरोध कर रहे छात्रों के खिलाफ कार्रवाई करने को तैयार नहीं थे, 70 से अधिक लेजिस्लेटर्स ने विश्वविद्यालयों के प्रशासन को हस्ताक्षरित पत्र भेजकर उन्हें पद से हटाने की मांग की। बेशक, लेजिस्लेटर्स के पास निजी विश्वविद्यालयों के प्रेसिडेंट्स को बर्खास्त करने की शक्ति नहीं है। वे विश्वविद्यालय प्रशासन पर दबाव ही बना सकते हैं। लेकिन इसे वे एक मिशन की तरह गम्भीरता से ले रहे हैं।
जैसा कि यू-पेन प्रेसिडेंट के इस्तीफे के बाद एक कांग्रेस-वुमन एलिस स्टेफनिक ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ‘एक गया, दो बाकी!’ लेकिन हार्वर्ड प्रेसिडेंट क्लॉडिन गे के कार्यकाल पर लगभग एक सप्ताह तक अनिश्चितता की स्थिति रहने के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनके लिए अपने समर्थन की सूचना दी। मीडिया में इस बात का काफी मखौल उड़ाया जा रहा है कि तीनों प्रेसिडेंट्स यहूदी-विरोधी भावनाओं पर अपने विश्वविद्यालय की नीतियों को स्पष्ट रूप से नहीं बता सके।
लेकिन अधिकांश टिप्पणियां उस प्रश्न पर मौन रही हैं, जिसके कारण गड़बड़ी हुई। रिप्रेजेंटेटिव स्टेफनिक ने पूछा था, ‘क्या ‘इंतिफाद’ कहकर यहूदियों की हत्या की वकालत करने वाले और ‘फ्रॉम द रिवर टु द सी’ का नारा बुलंद करने वाले छात्रों या एप्लिकेंट्स के दाखिला प्रस्ताव रद्द किए जाएंगे या उन पर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी?’ फिर उन्होंने दो बार दोहराया, ‘कार्रवाई की जाएगी या नहीं?’ स्टेफनिक ऐसा करके सुर्खियों में आने की कोशिश कर रही थीं, क्योंकि तीनों प्रेसिडेंट्स ने पहले ही कांग्रेस को दिए अपने लिखित प्रस्तुतिकरण में इस पर अपने विश्वविद्यालयों का रुख बता दिया था।
डॉ. क्लॉडिन गे ने लिखा, ‘हार्वर्ड समझता है कि घृणा अज्ञानता का लक्षण है। अज्ञानता का इलाज ज्ञान है। लेकिन सत्य की खोज तभी संभव है, जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा और उसकी आजमाइश की जाए। हम हार्वर्ड में उचित रूप से व्यक्त की गई राय के साथ असुविधा या असहमति प्रकट करने की अनुमति नहीं देंगे।’ इन एलीट यूनिवर्सिटी का गुनाह यह था कि उन्होंने हमास के हमले की मुखर निंदा नहीं की थी, जिसके लिए उन्हें मीडिया, उनके प्रमुख फंडर्स और फैकल्टी से तीखी आलोचना का सामना करना पड़ा।
विश्वविद्यालय प्रशासन पर दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप लगाया जा रहा है। इजराइल-गाजा युद्ध के संदर्भ में अमेरिकी लेजिस्लेटर्स और बाइडेन प्रशासन के बीच इस तरह की बातें बहुत आम हो गई हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिकी सरकार ने गाजा पर हमले का समर्थन करने के लिए इजराइल के लिए अपना युद्ध-भंडार खोल दिया था। इससे इजराइली सरकार को हमास को खत्म करने के लिए अमेरिकी-समर्थन की हरी झंडी मिली थी। लेकिन इस मुहिम में निर्दोष नागरिकों की हत्या का जोखिम भी शामिल था।
इजराइली अधिकारियों के अनुमानों के अनुसार, हमास के एक सदस्य की हत्या के साथ कोलैटरल डैमेज के रूप में दो नागरिकों को भी अपनी जान से हाथ गंवाना पड़ रहा है। अमेरिका का दोहरापन यह है कि इजराइली हमले में अपनी भागीदारी और समर्थन के बावजूद वह गाजा को मानवीय और चिकित्सा सहायता प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धता के लिए दुनिया से सराहना चाहता है!
लेकिन विश्वविद्यालय प्रेसिडेंट्स को हटाने भर से कैम्पस में बढ़ती यहूदी-विरोधी भावनाओं और इस्लामोफोबिया की घटनाओं में कमी नहीं आएगी। उलटे इससे इनके बढ़ने की संभावना है, क्योंकि मध्य-पूर्व में युद्ध लंबा खिंच रहा है और गाजा में मरने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है। हमास के 7 अक्टूबर के हमले में मारे गए 1200 से अधिक लोगों के जवाब में अभी तक गाजा पट्टी में 18000 से अधिक लोग मारे गए हैं। दोनों ही तरफ पीड़ित हैं; उनकी अनदेखी करना और एक पक्ष की खातिर दूसरे पर हो रही हिंसा के प्रति आंखें मूंदे रहना आला दर्जे का नस्लवाद ही है!
- विश्वविद्यालय प्रेसिडेंट्स को हटाने भर से कैम्पस में बढ़ती यहूदी-विरोधी भावनाओं और इस्लामोफोबिया में कमी नहीं आएगी। उलटे इनके बढ़ने की संभावना है, क्योंकि युद्ध लंबा खिंच रहा है और मरने वालों की तादाद बढ़ रही है।