नई दिल्ली। विपक्ष के 95 सांसदों के निलंबन और अन्य विपक्षी सांसदों की अनुपस्थिति के बीच लोकसभा में आपराधिक न्याय प्रणाली से जुड़े तीन विधेयकों पर चर्चा शुरू हो गई। आइपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम जुड़े तीनों विधेयकों पर के साथ चर्चा शुरू हुई। बुधवार को अमित शाह चर्चा का जवाब देंगे और उसके बाद तीनों विधेयकों को पारित किया जाएगा।

माना जा रहा है कि सरकार गुरूवार और शुक्रवार को राज्यसभा में भी इन विधेयकों पर चर्चा कराकर पास कराने की कोशिश करेगी। विपक्ष की गैरमौजूदगी में चर्चा की शुरूआत वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के टी रंगैय्या ने की। तीनों संशोधन विधेयकों का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा कि भारत की जरूरत के अनुसार आपराधिक न्याय प्रणाली को बदलने की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी।

बीजद सांसद ने भी दिया अपना समर्थन

वहीं, बीजद के भतृहरि माहताब ने कहा कि भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली लोगों को समय पर न्याय दिलाने में विफल साबित हो रही थी। इसके लिए मुख्य तौर पर औपनिवेशिक कानूनों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा था। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी में भी हम 160 साल पुराने कानूनों से काम चला रहे थे। इनकी जगह भारतीय जरूरतों के मुताबिक प्रस्तावित नए कानूनों का उन्होंने समर्थन किया।

उन्होंने हिंदी में इन कानूनों के नाम के उच्चारण में दिक्कत की विपक्षी नेताओं की शिकायत का जवाब देते हुए कहा कि लोगों ने इसका भी हल निकाल लिया है और भारतीय न्याय संहिता को वीएनएस के संक्षिप्त नाम से बुलाने लगे हैं। वहीं लोक जनशक्ति पार्टी के प्रिंस राज ने नए कानूनों में जांच और अदालती सुनवाई की समय सीमा निर्धारित किये जाने को न्याय प्रक्रिया में बड़े बदलाव का संकेत बताया। उन्होंने कहा कि जनता को सिर्फ इस बात से मतलब है कि उन्हें कितने समय में न्याय मिलता है और ये तीनों कानून ये सुनिश्चित करते हैं।

पूर्ववर्ती सरकारों पर रविशंकर प्रसाद का निशाना

वहीं, भाजपा की ओर से रविशंकर प्रसाद ने औपनिवेशिक दासता के प्रतीक इन तीनों कानूनों को अभी तक नहीं बदलने के लिए कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद कई आयोगों ने इन कानूनों को भारतीय जरूरत के मुताबिक बदलने का सुझाव दिया था। लेकिन गुलाम मानसिकता के कारण इसे नहीं किया जा सका।

उन्होंने कर्तव्य पथ पर सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति को लगने और राम मंदिर के निर्माण में देरी को भी इसी गुलाम मानसिकता की देन बताया। उनके अनुसार इसी मानसकिता के कारण कृष्ण जन्मभूमि और काशी विश्वनाथ मंदिर के लिए आज भी संघर्ष करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लालकिले के प्राचीर से गुलामी के सभी प्रतीकों को खत्म करने का आह्वान किया था और इस क्रम में अंग्रेजों के जमाने के 1500 से अधिक कानून को खत्म किया जा चुका है।

विपक्ष के हंगामे के कारण नहीं हो पाई चर्चा

गृहमंत्री अमित शाह ने लंबे विचार-विमर्श के बाद तैयार तीनों संशोधन विधेयक को संसद के मानसून सत्र में लोकसभा में पेश किया था, जहां उसे गृह मंत्रालय से संबंधित स्थायी समिति के पास और अधिक विचार-विमर्श के लिए भेज दिया गया था। स्थायी समिति के सुझावों को शामिल करते हुए नए संशोधित विधेयक को अमित शाह ने मंगलवार को लोकसभा में पेश किया था और गुरूवार और शुक्रवार को 14 घंटे की चर्चा तय हुई थी, लेकिन विपक्ष के हंगामे के कारण इस पर चर्चा शुरू नहीं हो पाई थी।