सेक्सुअल डिजायर बढ़ती उम्र पर हावी … 40 की उम्र के बाद कई नॉटी ‘अंकल’ लड़कियों-बच्चों के साथ कर जाते हैं गलत हरकतें, डिसऑर्डर या कुछ और…

आज मैं 28 साल की वर्किंग वुमन हूं। ये बात तब की है जब मैं पांचवी क्लास में थी। जब किसी 50 की उम्र के अंकल जी ने मेरा हाथ अपने शरीर पर गलत जगह रखवाया। मैं मना करती रही, लेकिन वो कहते रहे, ‘करो-करो ऐसा करो, अच्छा लग रहा है।’ मुझे समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है। मैं घबराकर वहां से भाग गई और मां के पास जाकर चिपट गई। यह अनुभव है गूगल में हिंदी भाषाविद 28 साल की महविश रिजवी का। महविश आज तक इस अनुभव की जहरीली सिरहन को भूलीं नहीं हैं। महविश इकलौती लड़की नहीं हैं जिसने किसी फोर्टी पार पुरुष को नॉटी होते देखा हो। उनकी जैसी लाखों लड़कियां हैं जो किसी बुजुर्ग की छेड़छाड़ का शिकार हो जाती हैं। दिल्ली में रहने वाली सुरभि सप्रू अब तक करीब 10 संस्थानों में काम कर चुकी हैं। इवेंट मैनेजमेंट, होटल और मीडिया इंडस्ट्री में भी काम किया है। वे कहती हैं इवेंट और होटल इंडस्ट्री में मैंने बहुत नौकरियां बदलीं, क्योंकि जब किसी संस्थान में ब्यूटी और नॉलेज का मिश्रण किसी लड़की में दिख जाता है तो नॉलेज को तो वे साइड कर देते हैं उसकी ब्यूटी पर फोकस करने लगते हैं। लड़की को सिर्फ एक ‘वस्तु’ की तरह देख जाता है।

आपने कई बार 40 पार के कुछ पुरुषों को अश्लील हरकतें करते देखा होगा।
आपने कई बार 40 पार के कुछ पुरुषों को अश्लील हरकतें करते देखा होगा।

‘40 पार पुरुष और नॉटी का रिलेशन’
सुरभि कहती हैं, ‘मेरे ज्यादातर पुरुष इंप्लॉयर जिनकी उम्र 60 के पार थी वे एकदम अजीब किस्म के व्यक्ति नजर आए। उनमें से बहुतों ने तो मुझे स्टाफ के बीच अपनी गर्लफ्रेंड तक घोषित कर रखा था। कइयों ने अलग-अलग ऑफर देने की कोशिश की, लेकिन मैंने उनके मुंह पर तमाचे जड़े और नौकर छोड़कर चलती बनी।
गुस्से में सुरभि कहती हैं, ‘बुड्ढे ठरकी होते हैं।’ अब सवाल यह है कि आखिर बुजुर्गों को ऐसा क्यों कहा जाता है। यहां इस शब्द का इस्तेमाल उन बुजुर्गों के लिए किया जा रहा है जो लड़कियों को छेड़ते, उनके सामने अश्लील हरकतें करते हैं या उन्हें जबरदस्ती कुछ गलत करने को कहते हैं।
खाली समय और बुजुर्ग
दिल्ली में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. प्रज्ञा मलिक का कहना है, ‘ऐसे बुजुर्ग जिनके पास करने के लिए कुछ भी क्रिएटिव और प्रोडक्टिव नहीं बचता, उनके पास बहुत खाली समय होता है, जिम्मेदारियां नहीं होती और उन्हें लगता है कि जिंदगी में अब जितना एंजॉय कर है, कर लो। यही वजह है कि कई बार ऐसे बुजुर्ग सामाजिक सीमाओं को लांघकर गलत व्यवहार करने लगते हैं। उनका दिमाग इतना भ्रष्ट हो चुका होता है कि वह सही गलत का अंतर भूलकर रिश्ते की सीमाएं तक लांघ बैठते हैं।
उदाहरण के लिए वे अगर खाना खा रहे हैं तो बाहर थूक देना या किसी राह चलती या अनजान लड़की को कुछ भी बोल देना। उसे छेड़ देना। जो लोग ऐसा काम करते हैं उनका दिमाग ठीक से फैसला कर पाने की स्थिति में नहीं होता और वे गलत हरकतें कर बैठते हैं। यह एक तरह की मानसिक बीमारी है जो कई तरह की कुंठाओं और दबी हुई अतृप्त इच्छाओं से मिलकर बनती है, लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं कि गलत करने वाला कोई बहाना लेकर गलती से मुकर जाए या बच जाए।

ऐसे बुजुर्ग ठीक तरह से फैसला नहीं ले पाते और किसी लड़की को छेड़ने से पहले सोचते भी नहीं।
ऐसे बुजुर्ग ठीक तरह से फैसला नहीं ले पाते और किसी लड़की को छेड़ने से पहले सोचते भी नहीं।

डॉ. प्रज्ञा का कहना है, ‘40 की उम्र के बाद सेक्सुअल डिसफंक्शनिंग यानी 40 पार के व्यक्ति में सुक्सुअल जरूरत बढ़ या घट सकती हैं। यह डिसफंक्शनिंग आसपास के माहौल, शारीरिक, आनुवांशिक व मानसिक डिसऑर्डर व कमियों की वजह से हो सकती है। कुछ लोगों का अपने ऊपर से कंट्रोल छूट जाता है और उन्हें अपनी सेक्सुअल जरूरतें बढ़ती लगती हैं। ’
सेक्सुअल डिसऑर्डर के कारण
दिल्ली विश्वविद्यालय में साइकोलॉजी की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मीतु दाश का कहना है कि जो बुजुुर्ग अपने ऊपर सेक्सुअल कंट्रोल नहीं रख पाते उन्हें सेक्सुअल डिसऑर्डर होता है। कोई भी साइकोलॉजिकल बीमारी बायोलॉजिकल, साइकोलॉजिकल, सोशल, कल्चरल और एनवायरमेंटल कारणों में से ही पनपती है।
बायोलोजिकल कारणों में हार्मोनल चेंजिस, गंभीर एक्सीडेंट, हाइपर सिक्रिशन या आनुवांशिक कारण हो सकते हैं। इसके अलावा साइकोलॉजिकल कारणों में टूटा परिवार, बचपन में तुलना या पिटाई, सेक्सुअल इच्छाओं का पूरा न होना, अकेलापन, परफेक्शन की आदत होना, कुछ काम न होना, जरूरत से ज्यादा खीझ, झुंझलाहट, तनाव और एंग्जायटी आदि होते हैं।
एनवायरमेंटल कारणों में क्लाइमेट चेंज, युद्ध, ट्रॉमा, कल्चर, रिलिजन डिमांड, नैतिक मूल्यों का न होना, कोई आदर्श न होना आदि शामिल हैं। इन वजहों से इंसान खुद पर काबू नहीं रख पाता और ऐसी हरकतें कर बैठता है जो उन्हें ‘आदर्श पुरुष’ नहीं बनाती हैं। बुजुुर्गों के बीच सेक्सुअल डिसऑर्डर कई कारणों से हो सकता है। इसमें उनको खुद भी और सामने वाले को भी प्रॉब्लम होती है क्योंकि ये सामाजिक रूप से पूरी तरह गलत आदत है।

साइकोलॉजिस्ट एरिक्सन की साइकोलॉजिकल डेवलपमेंट ऑफ ह्युमन बींग थ्योरी में जीवन को आठ भागों में बांटा गया। (Credit : Verywell / Joshua Seong)
साइकोलॉजिस्ट एरिक्सन की साइकोलॉजिकल डेवलपमेंट ऑफ ह्युमन बींग थ्योरी में जीवन को आठ भागों में बांटा गया। (Credit : Verywell / Joshua Seong)

बढ़ती उम्र होती है आउट ऑफ कंट्रोल
जामिया में रिसर्च स्कॉलर और दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ा चुके समीर अंसारी का कहना है कि बढ़ती उम्र के साथ बहुत सी हरकतें नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं। अगर कोई बुजुर्ग किसी तरह की अश्लील हरकत कर रहा है तो उसके पीछे क्लिनिकल प्रॉब्लम हो सकती है। हो सकता है उसे किसी तरह का कोई सेक्सुअल डिसऑर्डर हो।
ओल्ड एज में कई तरह की परेशानी होती हैं। जैसे बिस्तर गीला कर देना, अपने सारे कपड़े उतार देना, मास्टरबेशन करने लगना आदि। ये साइकोलॉजिकल और मेंटल हेल्थ से जुड़ा मामला है।
स्कॉलर समीर साइकोलॉजिस्ट एरिक्सन की थ्योरी का हवाला देते हुए कहते हैं कि ‘एरिक्सन की थ्योरी साइकोलॉजिकल डेवलपमेंट ऑफ ह्युमन बींग में जीवन को आठ भागों में बांटा गया है, जिसमें नवजात से लेकर मृत्यु तक का डेवलपमेंट बताया गया है।

ओल्ड एज में कई तरह की परेशानियां होने लगती हैं।
ओल्ड एज में कई तरह की परेशानियां होने लगती हैं।

इस थ्योरी की आठवीं स्टेज ‘इंटेग्रिटी बनाम डिस्पेयर’ की है। यानी जीवन में से जो कुछ पाया और जो नहीं मिल पाया इस सबके बीच छुपी असंतुष्टि ही इस शक्ल में बाहर आती है। इस उम्र में इंसान अगर अपने जीवन भर के कामों से संतुष्ट है तो कोई दिक्कत नहीं, लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो असंतुष्टि से भरा मन थकान देता है। जिंदगी में बहुत से काम अधूरे रह जाने या मन मुताबिक सफलताएं न पाने की वजह से खुद को लेकर नकारात्मक सोच बढ़ने लगती है। यही सोच स्वभाव में दिक्कतें बनकर उभरती है। ऐसे पुरुष असामान्य सेक्सुअल एक्टिविटी की तरफ आमाद हो सकते हैं।
साइको एनालिस्ट स्टिग्मंड फ्राइड की थ्योरी का हवाला देते हुए समीर बताते हैं स्टिग्मंड फ्राइड ने लाइफ की पांच स्टेजेस बताई हैं। इनकी थ्योरी कहती है कि हमारे शरीर में जो सेक्सुअल एनर्जी हैं वही हमारे व्यवहार और स्वभाव को गति देती है। उस सेक्सुअल एनर्जी को ‘लिबिडो’ कहा गया है। जब किसी व्यक्ति को सेक्सुअल सेंस में ‘ठरकी’ कहा जाता है तो इसका मतलब हुआ कि उनका लिबिडो ही बिगड़ गया।

लड़कियों को अपनी चुप्पी को तोड़ना चाहिए।
लड़कियों को अपनी चुप्पी को तोड़ना चाहिए।

लक्ष्य होगा तो नहीं बिगडेंगे…
डॉ. मीतु और डॉ. प्रज्ञा का कहना है कि अगर बुजुर्गों लक्ष्य निर्धारित कर लेंगे तो ऐसी हरकतें नहीं होंगी। उन्हें अपना रिटारमेंट प्लान करना चाहिए। खुद को अच्छे कामों में बिजी रखना चाहिए। उनके पास उम्र का तराशा हुआ ज्ञान है जिसे वह क्रिएटिव और सकारात्मक तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं। परिवारों को भी अपने बुजुर्गों को सही प्यार और सम्मान देना पड़ेगा। उन्हें अकेला न छोड़ें। कई बार ऐसा भी होता है कि बिना किसी क्लिनिकल प्रॉब्लम के बिना भी बुजुर्ग मस्ती के लिए अश्लील हरकतें करते हैं। ऐसे लोगों को अस्पताल नहीं जेल का दरवाजा दिखाना चाहिए और हां, रोजमर्रा में होने वाली छेड़छाड़ को चुप्पी में न बदलें। परिवार की चुप्पी खतरनाक हो सकती है।

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