गाजा और यूक्रेन युद्ध का स्वरूप अलग लेकिन सबक एक जैसे ?

दोनों युद्धों के परिणाम अनिश्चित हैं पर यह सबक स्पष्ट है कि युद्ध के लिए पूरी तैयारी न होने की कीमत जान व माल से चुकानी ही पड़ेगी

सरसरी तौर पर देखा जाए तो गाजा और यूक्रेन युद्ध में काफी समानता नजर आती है। यूक्रेन युद्ध दो राष्ट्रों के बीच होने वाला सामान्य संघर्ष है जबकि गाजा युद्ध एक आतंकी गुट के खिलाफ संषर्ष है। हाल ही मेरी बातचीत कुछ मौजूदा व सेवानिवृत्त अमरीकी जनरलों के साथ हुई, जो इन दोनों युद्धों पर अध्ययन कर रहे हैं। निष्कर्ष यह है कि दोनों युद्धों से कई समान सबक सीखने को मिलते हैं। हमास मात्र आतंकी संगठन नहीं है, बल्कि यह एक छद्म सरकारी इकाई है। करीब 30,000 लड़ाकों के साथ यह युद्ध में कूद पड़ा। ठीक उसी तरह युद्ध अपराधों में लिप्त पाया गया, जिस तरह यूक्रेन में रूसी सेना। दोनों ही युद्धों में दुश्मन को घुटनों पर लाने के लिए बर्बर हिंसा का सहारा लिया गया। हमास ने इस बात की परवाह नहीं की कि निर्दोष नागरिकों और उसके अपने ही लड़ाकों को युद्ध की क्या कीमत चुकानी होगी? इसी प्रकार रूस ने भी यूक्रेनी नागरिकों के साथ-साथ अपने खुद के सैनिकों के युद्ध में कुचले जाने को लेकर कोई हिचक नहीं दिखाई।

यूक्रेन के कमांडर जनरल वेलरी जालुझनी ने हाल ही स्वीकार किया कि वे गलत थे जो यह समझ रहे थे कि अगर वे रूस के आक्रमणकारियों को भारी संख्या में मार गिरा देंगे तो रूस पीछे हट जाएगा। इसी तरह इजरायली कमांडर गलत हैं यदि वे सोचते हैं कि फिलीस्तीनी नागरिकों को पीड़ित करने से हमास युद्ध रोक देगा। कुछ निष्कर्ष हो सकता है एकदम स्पष्ट नजर आने वाले हों लेकिन ये पश्चिम की आधुनिक प्रवृत्ति के विपरीत है। इजरायली और अमरीकी दोनों सशस्त्र सेनाएं युद्ध को लंबी दूरी के मारक प्रहारों तक सीमित रखने की कोशिश करती हैं। ये क्षमताएं काफी महत्त्वपूर्ण हैं लेकिन यूक्रेन और इजरायल दोनों ही नजदीकी प्रहार की नई जरूरत को समझ रहे हैं। शहरों में हमले करना मुश्किल है, जहां सामने वाले योद्धा अक्सर इमारतों की आड़ में छिप जाते हैं और निर्दोष नागरिक हमलावरों का शिकार बन जाते हैं जैसा कि यूक्रेन के मारीपोल, बखमुत, अवदीव्का और खेरसॉन में हुआ। अब गाजा पट्टी में इजरायली सेनाएं दो बड़े शहरों गाजा सिटी और खान यूनिस में बराबर से लड़ रही हैं, जहां हमास का बड़ा सुरंग नेटवर्क एक और खतरा बन कर खड़ा है।

इस तथ्य के मद्देनजर कि विश्व की 68 प्रतिशत आबादी 2050 तक शहरों में ही रहने वाली है, यह अति महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि शहरी क्षेत्रों में सैन्य कार्यवाही, जिसे ‘माउट’ (मिलिट्री ऑपरेशन ऑन अर्बनाइज्ड टरेन) कहा जाता है, में सेनाएं दक्षता हासिल करें। अमरीकी नौसेना के सेवानिवृत्त एडमिरल जेम्स स्टावरिडिस, जो यूरोप में सहायक कमांडर रह चुके हैं, के मुताबिक यूक्रेन से एक और सबक सीख कर गाजा में जबरन लागू किया गया और वह यह कि हमें सूचना युद्ध् भी लड़ना और जीतना चाहिए यानी कि समाचार नेटवर्क पर प्रभुत्व। इस मोर्चे पर यूक्रेन का रिकॉर्ड बेहतर है। यूक्रेन ने हमले के जवाब में हमलावर रूसी नागरिकों को निशाना नहीं बनाया जिससे यूक्रेन को सहानुभूति मिली। इसके विपरीत हमास, फिलीस्तीनी नागरिकों को मानव कवच के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। इस कारण इजरायली सेनाओं के लिए निर्दोष नागरिकों को मारना मजबूरी हो गया। इजरायल का कहना है कि वह युद्ध के नियमों का पालन करता है, पर ऐसे तर्क तब बेमानी हो जाते हैं जब एक मृत फिलीस्तीनी शिशु की तस्वीर मीडिया में आती है। पीड़ितों की पीड़ा व्यक्त करने के मामले में इजरायल का पक्ष मजबूत रहा — जैसे, 7 अक्टूबर को हुए हमास हमले की बर्बरता दुनिया के सामने लाना।

अमरीकी सेना के सेवानिवृत्त जनरल डगलस ल्यूट के मुताबिक खुफिया जानकारी पर भी भलीभांति गौर करने की जरूरत है। अमरीकी खुफिया समुदाय की यह जानकारी तो सही थी कि पुतिन यूक्रेन पर हमला करेंगे पर खुफिया एजेंसियां यह अंदाजा नहीं लगा पाईं कि यूक्रेन इन हमलों का प्रतिकार कैसे करेगा। इसी तरह इजरायली खुफिया व सैन्य एजेंसियां हमास की क्षमताओं को पूरी तरह से कम आंकती रहीं, जैसे अमरीका 11 सितंबर से पहले अलकायदा को कम आंकता रहा। जब कभी भी आपका सामना स्वयं से कम ताकतवर दुश्मन से हो तो जीत के प्रति आश्वस्त होकर बैठ जाना सबसे बड़ा सैन्य पाप है।

तकनीक पर अधिक निर्भरता की भी अलग कमजोरियां हैं। हमास और रूस द्वारा इन युद्धों में प्रयुक्त की गई तकनीक दुनिया के दूसरे देशों, चीन से लेकर ईरान तक, के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत करता है कि अमरीकी सेंसरों को धोखा देकर कैसे उसकी सैन्य क्षमता को विफल किया जा सकता है। दोनों युद्धों से एक और सबक रक्षा उद्योग को सुदृढ़ करने के रूप में मिलता है, क्योंकि बड़े युद्धों में हमेशा भारी मात्रा में हथियार-बारूद का इस्तेमाल होता है। फिलहाल, गाजा और यूक्रेन दोनों युद्धों के परिणाम अनिश्चित हैं। यदि अमरीका समर्थन नहीं देता तो यूक्रेन में परिणाम भयावह हो सकते हैं। उधर, इजरायल में कहा नहीं जा सकता कि नागरिकों की मृत्यु के बढ़ते आंकड़ों पर वैश्विक आक्रोश देखते हुए इजरायली रक्षा बल (आइडीएफ) को हमास को नेस्तनाबूद करने के लिए कितना समय मिलेगा। भविष्य जो भी हो, यह सबक सीखना होगा कि युद्ध के लिए पूरी तैयारी न होने की कीमत जान और माल से चुकानी ही पड़ती है।

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