अपराधियों के महिमामंडन का रोग ?
अपराधियों के महिमामंडन का रोग, अस्मिता की राजनीति में बढ़ावे के साथ देखे जाने लगे पंथ, क्षेत्र और जाति
लगता है वे दिन चले गए हैं जब गलत को गलत कहा जाता था। जिसने गलती की है उसके साथ खड़े होने में पहले लोग शर्मिंदा महसूस करते थे। जब से देश में पहचान अस्मिता की राजनीति का बोलबाला हुआ है तब से अपराध किसने किया क्यों किया अपराध की गंभीरता कितनी थी इसके मुकाबले अपराधी की जाति मजहब प्रदेश भाषा आदि देखी जाने लगी है।
पिछले दिनों देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद के परिसर में उत्पात मचाने वाले लोगों में नीलम नाम की एक महिला भी शामिल है। दुर्भाग्य देखिए कि उसके और उसके साथियों पक्ष में भी बहुत से लोग आ गए हैं। कुछ कह रहे हैं कि नीलम को पुलिस जल्दी से जल्दी छोड़े, वरना ठीक नहीं होगा। देश में ऐसी बातें अर्से से देखी जा रही हैं। यह भी देखना कितना दुखद है कि आजकल कुछ लोग उनके प्रति भी सहानुभूति दिखाने लगते हैं, जिन्होंने कोई अपराध किया होता है। वहीं जिनके खिलाफ अपराध किया गया होता है या जो इन उच्छृंखल प्रवृत्ति के लोगों का शिकार बनते हैं, उनके प्रति कोई सहानुभूति शायद ही दिखाई देती है। संसद के भीतर-बाहर सनसनी फैलानी वाली घटना को लेकर कई नेता कह रहे हैं कि अरे ये तो भटके हुए नौजवान हैं। कुछ कह रहे हैं ये बेरोजगार हैं। यानी ऐसे लोग अपना गुस्सा दिखाने के लिए अगर संसद को चुनते हैं, वहां बैठे लोगों के जीवन को खतरे में डालते हैं तो इसमें भी कुछ गलत नहीं है।