बचपन के छोटे-मोटे अपराध भी दशकों बाद करिअर में सता सकते हैं!
बचपन के छोटे-मोटे अपराध भी दशकों बाद करिअर में सता सकते हैं!
वे दिन याद हैं, जब बच्चे के साथ सफर कर रही मां उसकी उम्र को लेकर झूठ बोल देती थीं, ताकि उसका आधा टिकट भी न लेना पड़े? और जब कंडक्टर बच्चे से उम्र पूछता तो बच्चा गर्व से कहता, “मैं सात साल का हूं, मम्मी झूठ बोल रही हैं!’ और फिर मां को मजबूरन किराया चुकाना पड़ता और झूठ बोलने का वो अपराध भविष्य के किसी संदर्भ के लिए कभी दर्ज नहीं होता।
ऑफिस डायरी में दर्ज करने के लिए कंडक्टर न तो मां का नाम पूछता और न ही बच्चे का। पर अब कंप्यूटरीकरण और दुनियाभर में बढ़ती क्लाउड सुविधा के कारण रिकॉर्ड नहीं रखने वाले दिन बीत गए।
इन दिनों, बाल अपराध जैसे बिना टिकट बस या ट्रेन में चढ़ जाने और टीसी द्वारा पकड़े जाने या बिना अधिकार किसी की साइकिल लेकर दूर तक चले जाने और फिर साइकिल मालिक के स्कूल अधिकारियों को बताने और यहां तक कि कुछ मामलों में दुकानों से बच्चे जो सामान उठा लेते हैं, ये सब चीजें लोगों के करिअर पर असर डाल रही हैं, और नया नियोक्ता उनको नौकरी पर रखने से पहले उनका दशकों पुराना आपराधिक रिकॉर्ड चेक कर रहे हैं।
कल्पना करें, कुछ दिनों पहले हुई पुणे पोर्शे वारदात में 17 साल के लड़के ने दो इंजीनियर्स को मार दिया था और बॉम्बे हाईकोर्ट में मामला पहुंचने के बाद राष्ट्रीय सुर्खियां बना था? या फिर बिहार का ताजा मामला, जहां छह साल का छात्र पिता की लाइसेंसी बंदूक स्कूल लाया और दुर्घटनावश 10 साल के साथी छात्र की कलाई पर गोली मार दी।
आपको लगता है कि जब ये बच्चे 30 या 40 साल के होंगे, तो भविष्य के नियोक्ताओं को ये सब मामले पता नहीं चलेंगे? हाल के आंकड़ों के अनुसार, 4406 सर्वाधिक नाबालिग अपराध महाराष्ट्र में दर्ज हुए, फिर मप्र में 3,795 मामले और राजस्थान में 3,063 मामले दर्ज हुए।
ऐसे अपराधों की दर दिल्ली में 42% बढ़ी है तो महाराष्ट्र में 12 और मप्र में 13%। मोटर अपराध, किशोर अपराधों से हुई क्षति और छोटे-मोटे प्रकरण भी विकसित देशों में ऐसे लाखों लोगों को डरा रहे हैं, जिनके बचपन का आपराधिक रिकॉर्ड संबंधित नियोक्ता से साझा किया जा रहा है।
ये रिकॉर्ड साझा करना इतना सहज हो गया है कि ब्रिटेन जैसे देशों में तो एक अभियान चलाया जा रहा है, जहां लोग बचपन में किए गंभीर अपराधों को छोड़कर बाकी सारे अपराधों को क्लीन करने के लिए कह रहे हैं।
याद रहे, भारतीय पुलिस के रिकॉर्ड भी कंप्यूटरीकृत हो रहे हैं, और बढ़ते सफेदपोश अपराधियों से निपटने एआई का बड़े पैमाने पर प्रयोग हो रहा है, जहां पांच दशक पुराने रिकॉर्ड भी चंद सेकंड्स में सामने आ जाएंगे।
ब्रिटेन में कई अभियानकर्ताओं का कहना है, “जिनने युवावस्था में मामूली अपराध किए, उन्हें दशकों बाद इन्हें बताने के लिए मजबूर किया जाता है जब रिकॉर्ड की कोई प्रासंगिकता नहीं होती।’ सिर्फ ब्रिटेन में 1,63,345 लोगों के बाल अपराधों की सूचना नियोक्ताओं को मिली, जबकि उनमें से अधिकांश को तब अधिकारियों से सिर्फ चेतावनी मिली थी।
इन शर्मनाक स्थितियों के बारे में बात करते हुए, एक संभावित कर्मचारी ने कहा, ‘मैंने जिस भी रोल के लिए आवेदन किया, वहां बात हमेशा या तो कुछ शर्मिंदगी से शुरू होती है या खत्म होती है, जब नियोक्ता इस संवेदनशील मुद्दे पर बात करते हैं। शानदार साक्षात्कार के बावजूद मुझे अंत में बताना होगा कि 14 साल की उम्र में सहपाठी के साथ दुर्व्यवहार करने का मेरा रिकॉर्ड है।’
वहीं यूके पुलिस का कहना है कि वे ‘लोगों की सुरक्षा का ख्याल’ रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। आने वाले दिनों में परवरिश आसान नहीं रहने वाली, खासकर आपस में जुड़ी ऐसी दुनिया में जहां बच्चों की हर चीज (कानून इसे किशोर अपराध कह सकता है) रिकॉर्ड में दर्ज हो रही है और कैमरा चौबीसों घंटे उन पर नजर रखे हुए है।
…… बच्चे के जन्म से लेकर उसके 18 साल के होने तक माता-पिता को बहुत सतर्क रहने की जरूरत है, ताकि वे अनजाने में ऐसी गतिविधि में शामिल न हो जाएं, जो कानून की नजर में अपराध हो। उनकी जिंदगी को पुलिस रिकॉर्ड से मुक्त रखना भी हमारी जिम्मेदारी है।
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बाल अपराध की ओर बढ़ता ‘बचपन’, आंकड़े हैरान करने वाले
Published : Oct 4, 2020, 5:51 PM IST
देश में लगातार जुवेनाइल क्राइम बढ़ता जा रहा है. बच्चों का भविष्य अंधकार की ओर जा रहा है. आइये जानते हैं साल 2019 में नाबालिग द्वारा किए गए अपराधों के आंकड़े.
हैदराबाद : पिछले कुछ वर्षों में अपने देश में बच्चों में अपराधिक प्रवृति में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि हुई है, जो चिंता का विषय है. इस बात में दो मत नहीं कि बाल- अपराधों की बढ़ती संख्या हमारे देश के भविष्य के लिए खतरे का संकेत है.
देश में लगातार जुवेनाइल अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं. आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2019 में देश में जुवेनाइल द्वारा कुल 750 हत्याएं की गईं. 2019 के दौरान जुवेनाइल के खिलाफ कुल 6,872 मामले दर्ज किए गए हैं, 2018 की (6,798) तुलना में 1.1 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई.
साल 2019 में 6,872 मामलों में कुल 8,432 नाबालिग पकड़े गए, जिनमें 7,806 किशोर आईपीसी मामलों के तहत और 626 किशोर एसएलएल मामलों में गिरफ्तार किए गए.
2019 में (73.4%) नाबालिग किशोर जो 16 से 18 वर्ष के थे. उन्हें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और स्पेशल और लोकल लॉ (एसएलएल) अपराधों के तहत गिरफ्तार किया गया था. वहीं, पॉक्सो अधिनियम के तहत किशोरियों के खिलाफ 1492 मामले दर्ज किए गए.
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झारखंड में बच्चों के खिलाफ लगातार बढ़ रहे अपराध, जाननेवालों से ज्यादा खतरा, आंकड़ें कर देंगे हैरान
झारखंड में बच्चों के खिलाफ अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं. 2022 में पूरे देश में 1,62, 449 अपराध बच्चों के खिलाफ दर्ज हुए. वहीं अकेले झारखंड में बच्चों के खिलाफ अपराध के कुल केस 1917 और कुल पीड़ित 1984 दर्ज हैं. NCRB की रिपोर्ट के अनुसार, बच्चों को सबसे ज्यादा नुकसान खुद अपने जाननेवालों ने पहुंचाया है.
रांची,: झारखंड में बच्चों के खिलाफ लगातार अपराध बढ़ रहा है. नेशनल क्राइम रिकॉडर्स ब्यूरो (एनसीआरबी) ने वर्ष 2022 की जारी रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 2020 व 2021 की तुलना में झारखंड में बच्चों के खिलाफ अपराध के मामले बढ़े हैं. वर्ष 2020 में 1795, 2021 में 1867 और 2022 में 1917 केस दर्ज किये गये हैं. एनसीआरबी के मुताबिक 2022 में 1917 केस में 1984 पीड़ित बच्चे हैं. रिपोर्ट के अनुसार बच्चों के अपहरण के कुल 650 मामले सामने आये हैं. इनमें 652 बच्चे पीड़ित हैं. बच्चों की खरीद-फरोख्त के भी 321 मामले सामने आये हैं. वहीं बच्चों की तस्करी के 114 और रेप के 184 मामले राज्य के विभिन्न थानों में दर्ज हुए हैं. वहीं पोक्सो एक्ट के कुल 884 केस दर्ज हुए हैं. एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, बच्चों को सबसे ज्यादा नुकसान खुद अपने जाननेवालों ने पहुंचाया है. इनमें 562 जाननेवाले, पांच पारिवारिक सदस्य, 333 पारिवारिक मित्र और नजदीकी के अलावा दोस्त व ऑनलाइन फ्रेंडस की संख्या 224 है. वहीं आठ अज्ञात लोगों ने बच्चों के साथ गलत किया है. वर्ष 2022 तक बच्चों से जुड़ा 5451 केस ट्रायल के लिए लंबित थे.
- 2020 और 2021 की तुलना में 2022 में झारखंड में बढ़े अपराध
- 2022 में पूरे देश में 1,62, 449 अपराध बच्चों के खिलाफ हुए दर्ज
- यानी पिछले साल हर घंटे बच्चों के खिलाफ औसतन 18 अपराध हुए
- 2022 में झारखंड में बच्चों के खिलाफ अपराध- कुल केस 1917, कुल पीड़ित 1984
- केस 1- शिक्षक के थप्पड़ मारने से बच्चे के कान का पर्दा फटा
डोरंडा थाना क्षेत्र के मास्टर कपाउंड, कुसई चौक स्थित एक प्राइमरी स्कूल के शिक्षक पर सात वर्षीय छात्र कुणाल दत्ता के साथ मारपीट कर कान का पर्दा क्षतिग्रस्त करने का आरोप लगाया गया है. इस संबंध में छात्र की मां बनानी दत्ता ने डोरंडा थाना में शिकायत दर्ज करायी है. आवेदन में बनानी दत्ता का कहना है कि उनका पुत्र पहली कक्षा में पढ़ता है. वह अपने पुत्र को स्कूल लेने गयी थी, उसी समय उनके पुत्र ने कान में दर्द की बात बतायी. उसने बताया कि उसे स्कूल के शिक्षक ने कान में मारा है. बनानी दत्ता पुत्र को लेकर कान के डॉक्टर के पास गयी, तो डॉक्टर ने बताया कि उनके पुत्र का कान क्षतिग्रस्त हो गया है. उसके बाद उन्होंने डोरंडा थाना में आवेदन दिया है. पुलिस ने सनहा दर्ज कर लिया है. छात्र की मां ने आवेदन के साथ डॉक्टर के दिखाने का पर्ची भी जमा किया है. पुलिस मामले की जांच कर रही है.
- केस 2- 15 वर्षीया नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म
रांची के तुपुदाना हुलहुंडु चर्च के पास से 15 साल की नाबालिग का अपहरण कर उसके साथ गैंग रेप किया गया. वह अपने प्रेमी से मिलने के लिए खूंटी से रांची आयी थी. लेकिन शनिवार की रात को प्रेमी के साथ उसकी कुछ अनबन हो गयी और वह उसके घर से बाहर निकल कर सड़क पर आ गयी. नाबालिग को अकेली देखकर बाइक सवार तीन युवकों ने उसका अपहरण कर लिया. फिर उसे खरसीदाग स्थित एक सुनसान किस्की गांव के चुकरु जंगल में ले जाकर सामूहिक दुष्कर्म किया.
- केस 3- सात साल के बच्चे को किया था अगवा
सुखदेवनगर थाना क्षेत्र स्थित गंगानगर के रोड नंबर दो से कृष्णा मिश्रा (साढ़े सात साल) को अगवा किया गया था, जिसे बाद में पुलिस ने बरामद कर लिया. कृष्णा के अपहरण के बाद रांची एसएसपी ने टीम का गठन किया था. टीम ने तुपुदाना ओपी क्षेत्र के चितवादाग से बच्चे को बरामद कर लिया. मामले के तीन साजिशकर्ताओं को भी पुलिस ने गिरफ्तार भी किया. बच्चे की मां ने दो युवकों के खिलाफ नामजद प्राथमिकी दर्ज करायी थी.
- केस 4 – बच्चे का अपहरण कर हत्या की
राजधानी के एदलहातू इलाके से इस साल मार्च महीने में अपहरण कर एक बच्चे की हत्या कर दी गयी थी. उसका शव रांची के ही नगड़ी थाना क्षेत्र अंतर्गत सपारोम गांव स्थित तालाब से बरामद किया गया था. वारदात के बाद शहर के बरियातू-एदलहातू इलाके में सनसनी फैल गयी थी.
लोगों ने जतायी चिंता
- बच्चों की सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौती
बच्चों की सुरक्षा आज कल के अभिभावकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है. इसलिए अभिभावकों को चाहिए कि वह बच्चों की हर पल मॉनिटरिंग करें. बच्चे क्या कर रहे हैं, कहां जा रहे हैं और किनसे मिल रहें, इन सब पर नजर रखें. डिजिटल जमाने में आज कल बच्चों का दोस्त स्मार्ट फोन बन गया है. स्मार्ट फोन बच्चों को बिगाड़ भी रहा है. ऐसे में अभिभावकों को चाहिए कि उनके दोस्त बनें और बच्चों से बातें करें – नीता नारायण, समाजसेवी
- बच्चों को हेल्पलाइन की जानकारी दें
अभिभावकों को चाहिए कि बच्चे कहा जा रहे हैं, उसकी पूरी जानकारी लें. अभिभावकों को बच्चों के हर फ्रेंडस की जानकारी भी होनी चाहिए. बच्चे जब भी बाहर जायें, तो फोन से या जिनके घर जा रहे हैं, उनसे लगातार संपर्क में रहना चाहिए. बच्चों को घटनाओं अथवा आपबीती के बारे में उदाहरण देकर या कहानियों के माध्यम से बतायें. हर अभिभावक को अपने बच्चों को चाइल्ड हेल्पलाइन एवं अन्य हेल्पलाइन की जानकारी अवश्य देनी चाहिए. जिससे जब जरूरत हो, बच्चे उसका प्रयोग कर सके. – शोमा देवघरिया, शिक्षिका
- अपने हाथों में है बच्चों की सुरक्षा
बच्चों की सुरक्षा सबसे पहले अपने हाथों में है. आप अपने बच्चों को सही और गलत की परिभाषा समझायें. बच्चों को हमेशा समसामयिक घटनाओं के बारे में बतायें. आज कल परिवार छोटे हो गये हैं. ऐसे में अभिभावकों को चाहिए कि अपने बच्चों को ज्यादा से ज्यादा समय दें. बच्चों से बाते करें. हर दिन की गतिविधियों के बारे में बच्चों से जानकारी लें. बच्चों को परेशानी में देखकर उनसे दोस्त की तरह पेश आयें. – रंजना तिवारी, अभिभावक
- बच्चों को वक्त देना सीखें
बच्चों के हाव-भाव को देख कर आप समझ सकते हैं कि आपका बच्चा क्या कर रहा है. अपने बच्चों को हमसे ज्यादा कोई नहीं जानता. यदि आपको अपने बच्चे के व्यवहार में कोई परिवर्तन दिख रहा हो, तो उससे फौरन बात करें. बच्चों को वक्त देना सीखें. आज कल अभिभावक कामकाजी हो गये हैं. मां भी बच्चों को समय नहीं दे पाती हैं. ऐसे में हर दिन अपने बच्चों को क्वॉलिटी टाइम दें. उनसे उनके जीवन से जुड़ी हर बात को शेयर करने की शुरू से आदत डालें. – रेखा देवी, कामकाजी महिला
बच्चों को शिकार बनने से रोकने के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी सोशल मीडिया पर निर्भरता, विलासितापूर्ण जीवनशैली, साथियों का दबाव और अपेक्षाओं का तनाव बच्चों को ऑनलाइन गेम, ई-सिगरेट, धूम्रपान और यहां तक कि नशीली दवाओं के रूप में समस्याओं से भटकाने लगा है. बच्चे आसानी से जाल में फंस जाते हैं. खर्चा मैनेज करने के लिए छात्र झूठ बोलते हैं और चोरी भी करते हैं. इससे छात्रों में अपराध और धन जुटाने के लिए अवैध तरीके अपनाने की प्रवृत्ति बढ़ गयी है. बच्चों को शिकार बनने से रोकने के लिए परिवार, दोस्तों, स्कूलों और समाज को सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है.
डॉ सुमित कौर, प्रिसिंपल, गुरुनानक स्कूल
विलुप्त हो रहीं सामाजिक संस्थाएं मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. जन्म से मृत्यु तक मनुष्य परिवार और समाज में रहता है. वर्तमान में सामाजिक संस्थाएं विलुप्त सी हो गयी है. संयुक्त परिवार का विघटन व नातेदारी व्यवस्था के कमजोर होने का असर भारतीय सामाजिक संस्था पर पड़ा है. औद्योगीकरण एवं पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव भी हमारे परिवार और समाज पर पड़ा है. भारतीय समाजशास्त्री प्रो योगेंद्र सिंह ने अपनी पुस्तक मॉडर्नाइजेशन इन इंडियन ट्रेडिशन में बिखराव की चर्चा की है. पारिवारिक एवं सामाजिक विघटन का प्रभाव बच्चों पर देखा जा रहा है. शिक्षा और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का प्रभाव बच्चों के ऊपर पड़ता नजर आ रहा है. स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के भारतीय परिवार और समाज में अंतर दिखायी देता है. समाज वैज्ञानिकों के साथ-साथ परिवार, समाज और सही शिक्षा के माध्यम से आधुनिक भारत के बच्चों को भारतीय सामाजिक संस्था का दर्शन बता कर नये आयामों के माध्यम से भविष्य के नागरिक को बचाया जा सकता है.
डॉ प्रभात कुमार सिंह, समाजशास्त्री
बच्चों की सुरक्षा के लिए सीबीएसइ ने जारी की है गाइडलाइन
राजधानी रांची के स्कूलों के प्राचार्य और शिक्षाविदों के बीच बच्चों की सुरक्षा को लेकर लगातार मंथन चल रहा है. सीबीएसइ की ओर से भी गाइडलाइन जारी की गयी है. इसे लेकर समय-समय पर शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाया जाता है. पेश है उनकी राय.
स्कूल स्तर पर छात्रों की सुरक्षा के लिए हैं कई गाइडलाइन बच्चों के खिलाफ बढ़ रहे अपराध को लेकर राजधानी के निजी स्कूलों में कई व्यापक प्रबंधक किये गये हैं. इसे लेकर सीबीएसइ के द्वारा स्कूलों को गाइडलाइन भी जारी की गयी है. स्कूलों में छात्रों को फिजिकल व मेंटल स्तर पर सुदृढ़ करने के लिए कई कार्य किये जा रहे हैं. स्कूल में काउंसलर नियुक्त किये गये हैं, जो समय-समय पर छात्रों को टिप्स देते हैं और जीवन स्तर बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. वहीं छात्रों की सुरक्षा को लेकर सीसीटीवी कैमरा लगाने, सिक्यूरिटी गार्ड, स्टॉफ द्वारा नियमित निगरानी और स्कूल बिल्डिंग के बरामदे को लोहे के ग्रिल से घेराबंदी आदि कार्य किये जा रहे हैं. वहीं वर्तमान प्रतिस्पर्द्धा को देखते हुए छात्रों को सीबीएसइ की गाइडलाइन के अनुसार खेल का समय बढ़ाने के साथ योगा क्लास भी दिया जाता है. शिक्षकों को छात्रों के साथ अच्छा व्यवहार करने और उनके स्वभाव में आये परिवर्तन को परखने का भी प्रशिक्षण दिया जाता है.
डॉ राम सिंह, सीबीएसइ के सिटी को-ऑर्डिनेटर सह डीपीएस के प्राचार्य
स्कूलों में हो काउंसलिंग की विशेष व्यवस्था स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा के लिए काउंसलिंग आवश्यक है. इसके लिए सीबीएसइ ने गाइडलाइन भी जारी की है. समय-समय पर बच्चों और शिक्षकों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है. शिक्षकों को छात्रों में आये बदलाव को देखते हुए काउंसलिंग के माध्यम से माता-पिता की जानकारी में प्रशिक्षण दिया जाता है. वहीं स्कूल में सीसीटीवी कैमरा लगाने, किसी भी खेल से जोड़ने और सोशल मीडिया से दूर रहने की बात कही जाती है. बच्चों में पढ़ाई का तनाव नहीं हो, इसके लिए स्कूल पर विभिन्न तरह की गतिविधियों का आयोजन करने का निर्देश सीबीएसइ की ओर से जारी किया गया है.