‘पर्ची सीएम’ कितने फायदेमंद?

‘पर्ची सीएम’ कितने फायदेमंद?
बीजेपी के 14 में से 8 मुख्यमंत्री कुर्सी नहीं बचा पाए; कांग्रेस की सरकार ही चली गई
एक इंटरव्यू में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था कि बीजेपी में मुख्यमंत्री का चयन डेटा और भविष्य के आधार पर किया जाता है. पार्टी अगले 30 साल तक का सोचकर ही किसी शख्स को मुख्यमंत्री बनाती है. 
2014 के बाद ऐसे 14 मौके आए, जब मुख्यमंत्री चयन की प्रक्रिया में भारतीय जनता पार्टी ने आम लोगों और खासकर मीडिया को चौंकाया. हालिया मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान चुनाव के बाद तो मुख्यमंत्री की चयन प्रक्रिया काफी सुर्खियों में रही.

तीनों ही राज्यों में बीजेपी हाईकमान ने मुख्यमंत्री चुनने में 15 दिन से ज्यादा का समय लगा दिया. आखिर में पर्ची सिस्टम से इन राज्यों में मुख्यमंत्री का चयन किया गया. राजस्थान में पर्ची से सीएम सिलेक्शन का वीडियो तो सोशल मीडिया पर खूब वायरल भी हुआ.

वीडियो में बीजेपी के कद्दावर नेता वसुंधरा राजे एक पर्ची पढ़कर मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा करते हुए दिख रही हैं. यह पर्ची दिल्ली से आए पर्यवेक्षक राजनाथ सिंह ने उन्हें दी थी. राजनाथ सिंह को पर्ची किसने दी थी, यह सवाल अभी भी बना हुआ है. 

एक इंटरव्यू में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था कि बीजेपी में मुख्यमंत्री का चयन डेटा और भविष्य के आधार पर किया जाता है. पार्टी अगले 30 साल तक का सोचकर ही किसी शख्स को मुख्यमंत्री बनाती है. 

(वायरल वीडियो से ली गई तस्वीर)

संविधान में मुख्यमंत्री का पद और उसका काम
भारत में संविधान के अनुच्छेद-164 में मुख्यमंत्री के बारे में विस्तार से बताया गया है. इसके मुताबिक विधानसभा चुनाव के बाद बहुमत वाली पार्टी के जो नेता होंगे, उसे राज्यपाल मुख्यमंत्री मनोनीत करेंगे. मुख्यमंत्री की सिफारिश पर ही कैबिनेट का गठन किया जाता है. 

संवैधानिक जानकारों के मुताबिक, चुनाव के बाद जिस दल के पास बहुमत होता है, वो दल सभी विधायकों के साथ एक औपचारिक मीटिंग आयोजित करता है. इसे विधायक दल की बैठक कहा जाता है.

विधायक दल की बैठक में सभी विधायकों से नेता के बारे में पूछा जाता है. सर्वसम्मति नहीं बनने पर वोटिंग होती है और जिसे सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं, उसे नेता माना जाता है.

विधायक दल की बैठक का ब्यौरा राज्यपाल को सौंपा जाता है और फिर राज्यपाल विधायक दल के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त करते हैं.

बीजेपी में कैसे चुना जाता है मुख्यमंत्री?
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के मुताबिक, पार्टी में सभी कार्यकर्ताओं पर गहराई से नजर रखी जाती है. जिसे मुख्यमंत्री और मंत्री बनाना होता है, उनके इतिहास, उनकी गतिविधियों और उनकी प्रतिक्रियाओं पर नजर रखते हैं. 

नड्डा के मुताबिक, पार्टी के पास अपने कार्यकर्ताओं का एक विशाल डेटा बैंक है, जिसका समय-समय पर अध्ययन किया जाता है. मुख्यमंत्री कौन बनेगा, ये चयन प्रक्रिया चुनाव से पहले ही शुरू हो जाती है, लेकिन पत्ता आखिरी में खोला जाता है. 

2014 के बाद 14 मुख्यमंत्रियों का चयन इसी प्रक्रिया से किया गया. इनमें गुजरात में आनंदी बेन पटेल और विजय रुपाणी, उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह, तीरथ सिंह और पुष्कर धामी, झारखंड में रघुबर दास,  यूपी में योगी आदित्यनाथ का नाम शामिल हैं. 

14 में से 8 मुख्यमंत्री कुर्सी पर काबिज नहीं रह पाए
बीजेपी ने 2014 के बाद गुजरात में आनंदी बेन पटेल को मुख्यमंत्री बनाया था. पटेल 2 साल तक ही इस कुर्सी पर रह पाईं. पटेल के बाद विजय रुपाणी को मुख्यमंत्री बनाया गया. विजय रुपाणी 5 साल मुख्यमंत्री जरूर रहें, लेकिन गुजरात चुनाव 2021 से पहले उन्हें पद से हटा दिया गया.

रुपाणी वर्तमान में संगठन में काम कर रहे हैं. 2014 में ही बीजेपी को झारखंड की सत्ता मिली. यहां पार्टी ने नए चेहरे रघुबर दास को मुख्यमंत्री बनाया. उस वक्त अर्जुन मुंडा, सरयू राय जैसे नेता सीएम पद की रेस में शामिल थे. 

रघुबर दास 5 साल का कार्यकाल पूरा करने में सफल रहे, लेकिन 2019 में पार्टी को दोबारा सत्ता नहीं दिलवा पाए. दास खुद भी जमशेदपुर सीट से विधायकी का चुनाव हार गए. कुछ दिन संगठन में रहने के बाद दास अब ओडिशा के राज्यपाल बनाए गए हैं.

2014 में बीजेपी को महाराष्ट्र की सत्ता भी मिली. पार्टी ने यहां नितिन गडकरी, विनोद तावड़े जैसे दिग्गज नेताओं पर देवेंद्र फडणवीस को तवज्जो दी. फडणवीस 2014 से 2019 तक शासन करने में सफल रहे, लेकिन 2019 में अकेले दम पर पार्टी को बहुमत नहीं दिलवा पाए.

वर्तमान में फडणवीस गठबंधन की सरकार में उपमुख्यमंत्री हैं. महाराष्ट्र के सियासी गलियारों में यह भी कहा जाता है कि फडणवीस डिप्टी सीएम नहीं बनना चाहते थे, लेकिन हाईकमान के कहने पर उन्होंने यह पद स्वीकार किया. 

2016 में असम की सत्ता में आने के बाद बीजेपी ने सर्वानंद सोनोवाल को मुख्यमंत्री बनाया. 2021 में सोनोवाल से यह पद ले लिया गया. कहा गया कि सोनोवाल अपने इलाके में अच्छा परफॉर्मेंस करने में नाकाम रहे.

2017 में बीजेपी को 3 राज्यों की सत्ता मिली. हाईकमान ने यूपी में योगी आदित्यनाथ, उत्तराखंड में तीरथ सिंह रावत और गोवा में मनोहर पार्रिकर को मुख्यमंत्री बनाया. यूपी के सीएम योगी को छोड़कर बाकी के दोनों अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए.

उत्तराखंड में तो बीजेपी ने चुनाव से पहले त्रिवेंद्र की जगह तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया था, लेकिन कुछ ही दिनों में उनकी जगह पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बना दिया गया.

त्रिपुरा में भी 2018 में चुनाव जीतने के बाद बीजेपी ने विप्लव देव को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन 2022 में ही उन्हें पद से हटा दिया. देव की जगह पर माणिक साहा को राज्य की कमान सौंपी गई.

कांग्रेस में भी हाईकमान कल्चर, सीएम सरकार नहीं बचा पाए

  • 2017 में कांग्रेस ने पंजाब में सरकार बनाने के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री बनाया. सिंह को 2022 के चुनाव से ठीक 5 महीने पहले पद से हटा दिया गया था. उनकी जगह चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया. हालांकि, चन्नी सरकार रिपीट कराने में नाकाम रहे. चन्नी खुद चुनाव भी हार गए.
  • 2018 में कांग्रेस को 3 राज्यों में सरकार बनाने का मौका मिला. पार्टी ने मध्य प्रदेश में कमलनाथ, राजस्थान में अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी. कमलनाथ की सरकार 15 महीने में ही गिर गई.
  • वहीं अशोक गहलोत और भूपेश बघेल 5 साल बाद चुनाव में वापसी नहीं कर पाए. तीनों मुख्यमंत्री का चयन हाईकमान ने किया था. कांग्रेस ने अध्यक्ष के नाम से पर्चा निकालकर कर्नाटक और तेलंगाना में मुख्यमंत्री का चयन किया है. दोनों ही राज्यों में इसी साल सरकार बनी है. 

पर्ची से मुख्यमंत्री क्यों बनाती है पार्टियां?

वरिष्ठ पत्रकार मनमोहन शर्मा के मुताबिक, हाईकमान कल्चर से मुख्यमंत्री बनाने की परंपरा की शुरुआत कांग्रेस से हुई. जनसंघ के नेता इसका विरोध करते थे. 1977 में जब जनसंघ को सरकार बनाने का मौका मिला, तो उसने मध्य प्रदेश और राजस्थान में विधायकों के मत के आधार पर मुख्यमंत्री बनाए. बीजेपी का जब गठन हुआ, तो उसे भी कांग्रेस वाला रोग लग गया और वहां भी दिल्ली से सबकुछ तय होने लगा. 

मनमोहन शर्मा आगे कहते हैं, ‘हाल ही में 3 राज्यों में मुख्यमंत्री का चयन हुआ है, वो सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र मोदी की पसंद है. संघ का बैकग्राउंड भी उसके साथ है, इसलिए ज्यादा विरोध नहीं हुआ. केंद्र में सरकार होने की वजह से भी सभी शांत रहे.’

पार्टी पर्ची से मुख्यमंत्री क्यों बनाती है? इस सवाल के जवाब में  मनमोहन शर्मा कहते हैं- राजनीति में भी शक्तिशाली व्यक्ति शतरंज की तरह अपना प्यादा सेट करते हैं. यह काम पहले कांग्रेस करती थी अब बीजेपी करती है. 

पूर्व राज्यसभा सांसद अली अनवर के मुताबिक, देश में जितनी भी राजनीतिक पार्टियां अभी काम कर रही हैं, वहां अब आंतरिक लोकतंत्र नहीं बचा है. वामदलों को आप अपवाद मान सकते हैं, लेकिन वह भी अब ज्यादा प्रासंगिक नहीं है. सभी पार्टियों में एक-दो व्यक्ति हाईकमान हैं और वही सारे फैसले ले रहे हैं. पार्टी और सरकार के भीतर उन्हीं लोगों को पद दिया जा रहा है, जो आगे उनके लिए खतरा न बन जाए. मुख्यमंत्री का जो चयन होता है, उसे भी आप इसी कैटेगरी में रख सकते हैं.

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