मध्यप्रदेश की 10 लोकसभा सीटों पर भाजपा के लिए मुश्किल !

मध्यप्रदेश की 10 लोकसभा सीटों पर भाजपा के लिए मुश्किल …
विधानसभा जैसा वोटिंग पैटर्न रहा तो 5 का नुकसान; 5 पर खतरे की घंटी

सबसे पहले बात उन 5 सीटों की जहां बीजेपी पिछड़ गई

छिंदवाड़ा में कांग्रेस ने बढ़त बनाई
2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा तीन विधानसभा क्षेत्र चौरई, सौंसर, परासिया में बढ़त बनाने में कामयाब हुई थी। कांग्रेस ये सीट महज 37,536 वोटों के अंतर से ही बचा पाई थी। विधानसभा चुनाव में छिंदवाड़ा लोकसभा की सभी सातों विधानसभा सीटें कांग्रेस ने जीती। 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले अपने वोटों में 91 हजार से ज्यादा की बढ़ोतरी की है।

मुरैना में लोकसभा की तुलना में बीजेपी का वोट शेयर 9 फीसदी घटा
लोकसभा में भाजपा के नरेंद्र सिंह तोमर ने यहां की सात विधानसभाओं में लीड ली थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में भाजपा श्योपुर, विजयपुर, सबलगढ़, मुरैना व अम्बाह में हार गई। अब नरेंद्र सिंह तोमर दिमनी से विधायक एवं विधानसभा अध्यक्ष बन चुके हैं। पार्टी यहां किसी नए चेहरे की तलाश में जुटी है।

भिंड लोकसभा में पार्टी ने 8 में से 4 विधानसभा सीटें जीती
चंबल संभाग में आने वाले इस लोकसभा क्षेत्र की सभी 8 विधानसभाओं में भाजपा को 2019 में बढ़त मिली थी। इस विधानसभा चुनाव में भाजपा सिर्फ 4 ही सीट जीत पाई है। विधानसभा पैटर्न पर लोकसभा में भी वोट पड़े तो ये सीट पार्टी खो बैठेगी। इस सीट पर भाजपा को 10 फीसदी वोट शेयर बढ़ाने की भी चुनौती होगी।

ग्वालियर में लोकसभा के मुकाबले 2 सीटें और गंवाई
लोकसभा में पार्टी यहां की 6 विधानसभाओं में बढ़त लेने में सफल रही थी। पिछले चुनाव में 2 लोकसभा सीटों पर हार मिली थी। पर इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा 4 सीट ही जीत सकी। लोकसभा में यदि विधानसभा के पैटर्न पर वोटिंग हुई तो पार्टी को हार का सामना करना पड़ सकता है।

मंडला सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते खुद विधानसभा चुनाव हारे
प्रदेश के बड़े आदिवासी चेहरे और केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते को इस बार पार्टी ने निवास विधानसभा से प्रत्याशी बनाया था। वे खुद हार गए। इस लोकसभा की 5 विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी की हार हुई है। जबकि लोकसभा 2019 में भाजपा को 6 क्षेत्रों में बढ़त मिली थी।

वे 5 लोकसभा सीटें जहां विधानसभा चुनाव में लीड कम हुई..

टीकमगढ़ लोकसभा में भाजपा का वोट शेयर 17% घटा
केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार खटीक की इस सीट पर भाजपा विधानसभा की 8 में से 3 सीटें हार गई। यहां पार्टी का वोट शेयर भी 17 फीसदी घट गया। जबकि लोकसभा चुनाव में पार्टी ने सभी 8 सीटें जीती थीं।

बालाघाट लोकसभा के पूर्व सांसद बिसेन भी चुनाव हार गए
महाराष्ट्र की सीमा से सटे बालाघाट में भी मराठी, ओबीसी व आदिवासी वोटर निर्णायक हैं। भाजपा ने लोकसभा में यहां 50 प्रतिशत से अधिक वोट पाने में सफल रही थी। जिले के गौरीशंकर बिसेन पार्टी के बड़े नेता माने जाते हैं। इस बार विधानसभा चुनाव में वो अपनी सीट भी हार गए। पार्टी यहां की 8 सीटों में 4 पर ही जीत पाई है। जबकि लोकसभा में 7 सीटों पर पार्टी को बढ़त मिली थी।

धार में भाजपा का वोट शेयर 53 फीसदी से घटकर 44 फीसदी हुआ
लोकसभा में भाजपा यहां 53 प्रतिशत से अधिक वोट पाने में सफल रही थी। तब 6 विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी को बढ़त मिली थी। चार साल बाद इस बार हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी 5 विधानसभाओं में कांग्रेस से पिछड़ गई। ये अलग बात है कि सभी 8 क्षेत्रों में मिले कुल वोट कांग्रेस से अधिक हैं, लेकिन पार्टी के लिए यहीं चिंता वाली बात है। लोकसभा चुनाव में पार्टी यहां से किसी नए चेहरे की तलाश में है।

खरगौन: आदिवासी बाहुल्य विधानसभा सीटों पर हारी बीजेपी
लोकसभा में भाजपा को यहां 54 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे। सभी 8 क्षेत्रों में पार्टी को बढ़त मिली थी। इस बार भाजपा कसरावद, भगवानपुरा, सेंधवा, बड़वानी व राजपुर में हार गई है। महज तीन सीटें महेश्वर, खरगौन, पानसेमल ही भाजपा के खाते में आई है। यदि लोकसभा में भी यही पैटर्न रहा, ताे ये सीट भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है।

रतलाम लोकसभा की एक विधानसभा सीट पर BAP का कब्जा
भाजपा को लोकसभा में यहां 49 प्रतिशत से कुछ अधिक वोट मिले थे। तब पार्टी को 5 विधानसभाओं में कांग्रेस पर बढ़त मिली थी। इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा 4 सीट ही जीत पाई है। एक सीट भारत आदिवासी पार्टी के खाते में तो 3 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। पार्टी की चिंता बढ़ाने वाली सीटों में रतलाम भी शामिल है।

अब बात भाजपा की मजबूत सीटों की..
इस बार की प्रचंड जीत में भाजपा के लिए कई अच्छे संकेत भी मिले हैं। मसलन प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के खजुराहों लोकसभा की सभी 8 सीटों पर भाजपा का कब्जा हो गया है। होशंगाबाद के सांसद उदय प्रताप सिंह अब गाडरवारा से विधायक बनकर प्रदेश सरकार में मंत्री बन चुके हैं।

होशंगाबाद लोकसभा की सभी 8 सीटों पर भाजपा का कब्जा है। इसी तरह देवास, इंदौर और खंडवा लोकसभा के अंतर्गत आने वाली सभी विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा है। मतलब साफ है कि यहां के सांसदों को फिलहाल कोई खतरा नहीं दिख रहा है।

8 लोकसभा क्षेत्र जहां भाजपा एक-एक सीट हारी
सागर, दमोह, रीवा, सीधी, जबलपुर, शहडोल, विदिशा व मंदसौर ऐसे संसदीय क्षेत्र हैं जहां विधानसभा चुनाव में भाजपा एक-एक सीट ही भाजपा हारी है। जबलपुर सांसद अब पश्चिम क्षेत्र से विधायक चुने जा चुके हैं। वे प्रदेश सरकार में मंत्री हैं।

इसी तरह दमोह सांसद प्रहलाद सिंह पटेल भी अब विधायक एवं मंत्री बन चुके हैं। इसी तरह सीधी की सांसद रीति पाठक भी विधायक बन चुकी हैं। संभावना है कि इन सीटों पर लोकसभा चुनाव में नए चेहरे आएंगे।

6 लोकसभा की 2-2 क्षेत्रों में ही भाजपा हारी
प्रदेश की गुना, सतना, भोपाल, राजगढ़, उज्जैन, बैतूल ऐसी लोकसभा सीटें हैं, जहां पार्टी को दो-दो विधानसभाओं में हार का सामना करना पड़ा, हालांकि यहां भाजपा को कांग्रेस की तुलना में बड़ी लीड मिली है। पर कुछ बातें पार्टी की चिंता बढ़ा सकती है। चार बार के सतना सांसद गणेश सिंह इस बार सतना विधानसभा से प्रत्याशी थे। पर, वे खुद का चुनाव हार गए।

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