देश की आंतरिक सुरक्षा मजबूत करने के लिए जरूरी है पुलिस सुधार !

देश की आंतरिक सुरक्षा मजबूत करने के लिए जरूरी है पुलिस सुधार

ब्रिटिश कालीन आपराधिक कानूनों की जगह लेने वाले तीन संशोधन विधेयकों को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी है। तीनों नए कानून अब भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम कहे जाएंगे। अंग्रेजों की सामंती कानूनी व्यवस्था में बदलाव की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी, जिसे सरकार ने इन संशोधनों द्वारा दूर कर दिया है। पर इन कानूनों को लागू करवाने वाली संस्था पुलिस को जब तक देश को गुलाम रखने वाले पुलिस ऐक्ट, 1861 से मुक्त नहीं किया जाएगा, तब तक नई कानून-व्यवस्था से ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती।

वर्ष 1857 की विफल क्रांति के बाद अंग्रेजों ने पुलिस ऐक्ट, 1861 को देश को पूर्णतया गुलाम रखने के लिए बनाया था। इस कानून के अनुसार, पुलिस पूरी तरह सरकार के अधीन होती है और प्रजातांत्रिक व्यवस्था में सरकारों को जनता का वोट चाहिए, जिसके लिए सत्ता पाने के लिए राजनीतिक दलों को बाहुबलियों और माफियाओं द्वारा जनता के वोट लेने होते हैं। नतीजतन सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों के इशारे पर पुलिस संगठित अपराधों की अनदेखी शुरू कर देती है। जब कानून लागू करने वाली पुलिस ही संगठित अपराधों की अनदेखी करेगी और अपराधी को बचाने के लिए साक्ष्य पेश नहीं करेगी, तब कानून अपराधी को सबूत के अभाव में सजा नहीं दे सकता। ऐसे में, नए कानून भी पुरानी व्यवस्था की तरह अपराधों पर लगाम लगाने में नाकाम साबित होंगे।

देश की बाहरी सीमाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी सेना की है और आंतरिक सुरक्षा पुलिस संभालती है। सैन्य कानून की धारा 34 के तहत सेना की सफलता और उसके उद्देश्यों में बाधा आने पर जिम्मेदार सैनिकों के लिए मृत्युदंड तक का प्रावधान है। पर पुलिस को अपनी जिम्मेदारी का एहसास दिलाने के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। देश के अलग-अलग हिस्सों में कुछ बाहुबली अगर बड़े माफिया बन पाए, तो वह पुलिस के संरक्षण और परोक्ष सहयोग के कारण ही।

पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने सत्ता से बेदखल होने के डर से आपातकाल लगा दिया था, जिसके तहत पुलिस ने पूरे देश में विपक्षी नेताओं को बिना किसी अपराध के और न्यायालय के आदेश के बिना जेल में बंद कर दिया। आपातकाल हटने के बाद जनता पार्टी की सरकार ने पुलिस व्यवस्था में सुधार करने और उसे जनता के प्रति उत्तरदायी बनाने के लिए पुलिस सुधार आयोग का गठन किया। पर कुछ समय बाद जनता पार्टी सत्ता से बाहर हो गई और सत्ता में आई कांग्रेस ने पुलिस सुधार आयोग की सिफारिशों को नकारते हुए एक और पुलिस आयोग का गठन किया। इस प्रकार वर्ष 1996 तक कई पुलिस आयोग गठित किए गए और उनकी रिपोर्टों में यही कहा गया था कि राज्य पुलिस को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाना चाहिए, जिससे राजनेता और नौकरशाह अपने प्रभाव से उसकी कार्यप्रणाली को प्रभावित न कर सकें पर 1996 तक केंद्र सरकार ने पुलिस आयोग की यह रिपोर्ट लागू करने की तरफ कोई कदम नहीं उठाया। तब डीजीपी रहे पुलिस अधिकारी प्रकाश सिंह ने पुलिस आयोग की रिपोर्ट लागू करवाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की। उस पर 2006 में सर्वोच्च न्यायालय ने सात सूत्रीय पुलिस सुधारों का आदेश दिया और केंद्र व राज्य सरकारों को इन सुधारों को लागू करने के लिए जनवरी, 2007 की समय सीमा तय की। पर अब तक इन सुधारों की दिशा में ठोस कार्रवाई नहीं हुई है, क्योंकि कोई भी राज्य सरकार पुलिस पर अपना नियंत्रण गंवाना नहीं चाहती।

जाहिर है कि आंतरिक सुरक्षा के महत्वपूर्ण तंत्र पुलिस बल को अपने कर्तव्य निर्वहन में सक्षम बनाने के लिए पूरे देश में पुलिस सुधार लागू किए जाने चाहिए। तभी देश की आंतरिक सुरक्षा मजबूत बनेगी। तीन नए संशोधित आपराधिक कानूनों की सफलता भी पुलिस सुधार पर निर्भर है।

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