चंदे के पैसे से क्या करती है राजनीतिक पार्टियां ?

चंदे के पैसे से क्या करती है राजनीतिक पार्टियां: कैंडिडेट कैसे करते हैं खर्च; 5 सवालों के जवाब
कांग्रेस को इलेक्टोरल ट्रस्ट से 17.40 करोड़ रुपए का चंदा मिला. इतना ही चंदा आम आदमी पार्टी और वाईएसआर कांग्रेस को भी मिला है.
एडीआर यानी एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की है. जिसमें बताया गया कि बीजेपी को पिछले साल यानी 2022-23 में इलेक्टोरल ट्रस्ट से 259.08 करोड़ का चंदा मिला.

हालांकि ये साल 2021-22 के चंदे से कम है लेकिन अन्य सभी छोटी बड़ी पार्टियों को मिले चंदे का यह 70.69 प्रतिशत है. साल 2021-22 में भारतीय जनता पार्टी को 336.50 करोड़ रुपए का चंदा मिला था.

एडीआर के इसी रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस को इलेक्टोरल ट्रस्ट से 17.40 करोड़ रुपए का चंदा मिला. इतना ही चंदा आम आदमी पार्टी और वाईएसआर कांग्रेस को भी मिला है.

रिपोर्ट कहती है कि भारतीय जनता पार्टी के बाद सबसे ज्यादा चंदा पाने वाली पार्टी है भारतीय राष्ट्र समिति यानी वीआरएस. इस पार्टी को इलेक्टोरल ट्रस्ट से 90 करोड़ रुपये मिले है.

अब सवाल ये उठता है कि जिन पार्टियां को करोड़ो में चंदा मिल रहा है क्या वह पार्टी चुनाव में इन पैसों को खर्च कर पाती है, अगर नहीं तो समझते है कि पार्टियां चंदा कितना और कैसे खर्च करती है?

पहले समझते हैं की चंदा का पैसा किस-किस पर खर्च किया जाता है 

  • कैंडिडेट यानी उम्मीदवार पर 
  • पार्टी पर

चुनावी खर्च को दो कैटेगरी में रखा गया है

1. पहली कैटेगरी इलेक्शन एक्सपेंसेस है, जिसे कानून के तहत चुनाव प्रचार के लिए अनुमति दी जाती है, बशर्ते वह तय की गई सीमा के भीतर हो.

इसमें सार्वजनिक बैठकों, रैलियों के पोस्टर, बैनर, गाड़ियां, प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में विज्ञापन आदि जैसे प्रचार से जुड़ा खर्च शामिल होगा.

2. चुनावी खर्च की दूसरी कैटेगरी में उन खर्चों को रखा जाता है जिसकी कानून के तहत अनुमति नहीं है. उदाहरण के लिए, मतदाताओं को अपने पाले में करने के इरादे से उन्हें धन, शराब या किसी अन्य वस्तु देना.

ऐसा करना रिश्वतखोरी की परिभाषा के अंतर्गत आता है और आईपीसी के तहत अपराध है.

चुनावों में खर्च की अधिकतम सीमा क्या है

चुनाव आचार संहिता के नियम 90 में साल 2022 में कुछ परिवर्तन किए गए थे. जिसके तहत निर्वाचन आयोग ने चुनाव व्यय को यानी चुनाव में होने वाले खर्च को लोकसभा और विधानसभा के लिए बढ़ा दिया था.

चुनावी खर्च की ऊपरी सीमा हर राज्यों में अलग- अलग तय की गई है. इन राज्यों को छोटे और बड़े राज्यों में बांटा गया है और ये बंटवारा उनकी जनसंख्या के हिसाब से किया गया है.

बड़े राज्यों में यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों को शामिल किया गया है और छोटे राज्यों में सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, गोवा और सभी यूनियन टेरिटरी को रखा गया है.

लोकसभा चुनाव में खर्च की सीमा 

बड़े राज्यों की खर्च सीमा- लोकसभा सीट के लिए चुनाव आयोग ने पर प्रत्याशी खर्च की सीमा 95 लाख तय की है. जिसका मतलब है कि लोकसभा चुनाव के दौरान एक कैंडिडेट पर कोई भी पार्टी 95 लाख तक खर्च कर सकती है.

यह लिमिट साल 2022 से पहले 70 लाख थी जिसे साल 2014 में बढ़ाया गया था. 2014 से पहले इस खर्च की सीमा 40 लाख थी.

यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि केवल बड़े राज्यों की लिस्ट में शामिल कैंडिडेट ही लोकसभा चुनाव के दौरान 95 लाख खर्च कर सकते हैं. यानी छोटे राज्यों की कैटेगरी वाले तीन राज्य  सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, गोवा इतना खर्च नहीं कर सकते हैं.

छोटे राज्यों के खर्च की सीमा भी जान लीजिए- छोटे राज्यों और यूनियन टेरिटरी में लोकसभा चुनाव के दौरान एक उम्मीदवार पर 75 लाख तक खर्च किया जा सकता है. ये सीमा साल 2022 से पहले 54 लाख थी और साल 2014 से पहले 22 लाख.

विधानसभा चुनाव में खर्च सीमा 

बड़े राज्यों की खर्च सीमा- विधानसभा चुनाव के दौरान मैदान में उतरने वाले किसी भी उम्मीदवार पर पार्टी अधिकतम 40 लाख खर्च कर सकती है. यह सीमा साल 2022 से पहले 28 लाख थी और साल 2014 से पहले ये लिमिट केवल 16 लाख तक की थी. 

छोटे राज्यों का खर्च लिमिट- छोटे राज्यों की बात की जाए तो यहां साल 2022 में 20 लाख की सीमा को बढ़ाकर 28 लाख कर दी गई थी. वहीं साल 2014 से पहले ये लिमिट 14 लाख थी. 

क्यों बढ़ाई गई चुनावी खर्च की लिमिट 

दरअसल चुनावी खर्च की सीमा का अध्ययन करने के लिए इलेक्शन कमीशन ने साल 2020 में एक समिति का गठन किया था. इस समिति ने इसमें कॉस्ट फैक्टर और संबंधित मुद्दों का अध्य्यन करने के बाद ये पाया कि साल 2014 के बाद से मतदाताओं की संख्या और कॉस्ट इंफ्लेशन इंडेक्स में पर्याप्त वृद्धि हुई है.

चुनाव आयोग ने इसमें चुनाव प्रचार के बदलते तौर तरीकों को भी ध्यान में रखा जो कि अब फिजिकल के साथ धीरे धीरे वर्चुअल मोड में बदल रहा है.

  • इलेक्शन कमीशन के अनुसार साल 2014 से 2021 के बीच में 834 मिलियन से 936 मिलियन (12.23%) मतदाताओं की वृद्धि हुई है.
  • लागत मुद्रास्फीति सूचकांक में भी 2014-15 से 2021-22 में भी 32.08 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है.

अधिकतम सीमा तय करने के बाद भी क्यों बढ़ता जा रहा है चुनावी खर्च

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओम प्रकाश रावत, इस सवाल के जवाब में कहते हैं- चुनाव में जो खर्चा है, इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि एक उम्मीदवार पर कितना खर्च किया जा सकता है इसी सीमा तो तय की गई है. लेकिन, एक पार्टी कितना खर्च कर सकती है इसकी कोई लिमिट अब तक तय नहीं हुई है.

अगर एक बार पार्टी के खर्चे की सीमा भी तय हो जाए तो पता लगाया जा सकता है कि किसी पार्टी को जितना चंदा मिल रहा है वह उसका कितना प्रतिशत खर्च कर पा रहा है. 

चुनाव में कोई भी बड़ी पार्टी चंदा कहां खर्च करती है 

चुनाव प्रचार के दौरान पार्टियों को हर दिन डीजल, गैसलीन, बैनर,होडिंग, प्रिस्क्रिप्शन और अन्य प्रमोशन मटेरियल पर खर्च करना पड़ता है. इसके अलावा जुलूस या रैली निकाले जाने के लिए किराए पर गाड़ी लेने का खर्च, अखबार और टीवी पर प्रमोशनल विज्ञापन छपवाने और मार्केटिंग का खर्च भी इसी चंदे से पैसे से किया जाता है.

इतना ही नहीं पार्टी कार्यकर्ताओं के खाने पीने का खर्च भी इस फंड से पार्टी खर्च के रूप में जाता है.

कुछ मामलों में तो लोगों को रैलियों में शामिल होने के लिए भी नकदी दी जाती है. अब तो फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया के जरिए भी प्रचार शुरू हो गया है और पेड कैंपेनिंग भी चलाया जाता है. 

कहां कितना प्रतिशत खर्च करती है पार्टियां, आंकड़ों से समझें  

  • चुनाव प्रचार में वाहनों पर खर्च कुल खर्च का 34 प्रतिशत होता है. 
  • अभियान सामग्री पर कुल खर्च का 23 प्रतिशत खर्च होता है.
  • सार्वजनिक जनसभाओं पर खर्च होता है 13 प्रतिशत. 
  • इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया पर खर्च होता है 7 प्रतिशत.
  • बैनर, होडिंग और पर्चे पर खर्च होता है 4 प्रतिशत.
  • चुनाव क्षेत्र भवन पर खर्च होता है 3 प्रतिशत 

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