अयोध्या में आडवाणी: मस्जिद गिराने के लिए सीक्रेट मीटिंग की ?

अयोध्या में आडवाणी: मस्जिद गिराने के लिए सीक्रेट मीटिंग की, गुंबद गिरा तो कारसेवकों से दुश्मनी मोल ली
बीजेपी के आधिकारिक पत्र कमल संदेश में उस वक्त आडवाणी लिखते हैं- मैं और मेरी पार्टी यह चाहती है कि जिस तरह से सोमनाथ मंदिर का गुजरात में कायाकल्प हुआ है, उसी तरह अयोध्या का कायाकल्प हो. 
अयोध्या इस वक़्त देश-दुनिया में चर्चा का केंद्र है. ये वो समय है जब न सिर्फ राम की नगरी को कई बदलावों से गुजरना पड़ रहा है, बल्कि इतिहास के भी अनेक पन्ने पलटकर उसे नए सिरे से लिखने की कोशिश की जा रही है. 

इस पूरे घटनाक्रम के केंद्र में है- राम मंदिर और उससे जुड़ा आंदोलन. सबसे ताज़ा घटनाक्रम है इसके निर्माण और इसको लेकर श्रेय लेने की होड़.

अब राम मंदिर हकीकत बन चुका है, लेकिन अतीत के पन्ने इस बात की चुगली कर रहे हैं कि इसका आंदोलन अनेक कहानियों, किस्सों, बयानों और दंगों से पटा पड़ा है. 

कभी इस मंदिर आंदोलन के हीरो रहे अब हाशिए पर हैं. तो कभी, इस आंदोलन से लोहा लेने वाले अब नेपथ्य में हैं. एबीपी न्यूज़ ऐसे ही एक सीरीज के साथ हाजिर है जिसमें उन किस्सों, कहानियों और तथ्यों की जानकारी दी गई है जो अब के शोर में कहीं गुम सा हो गया है. 

इस सीरीज को हमने नाम दिया है अयोध्या कांड. आज पहली कड़ी में पेश है लालकृष्ण आडवाणी से जुड़ा पूरा सच.

अयोध्या कांड में लालकृष्ण आडवाणी की एंट्री 1988 में हुई थी. आडवाणी उस वक्त दूसरी बार भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए थे. आडवाणी की एंट्री होते ही राम मंदिर का आंदोलन राजनीतिक रंग में रंग गया.

बीजेपी आंदोलन का अगुवा बन गई और पार्टी के बड़े-बड़े नेता इसको लेकर रणनीति तैयार करने लगे.

1989 के लोकसभा चुनाव ने राम मंदिर आंदोलन की धार को और तेज कर दिया. दो मुख्य वजहें थीं- पहला, राजीव गांधी की नेतृत्व वाली कांग्रेस केंद्र में सरकार नहीं बना पाई और दूसरा 1984 के मुकाबले बीजेपी के परफॉर्मेंस में सुधार हुआ.

आडवाणी ने मौके को भुनाने में देरी नहीं की. 1990 में उन्होंने सोमनाथ से अयोध्या तक कारसेवा करने का ऐलान कर दिया. कारसेवा का मतलब था – मस्जिद हटाकर मंदिर का निर्माण करना. 

पालमपुर में अटल के गांधी-समाजवाद को उड़ाया

1988 में आडवाणी के अध्यक्ष बनने के प्रस्ताव को जैसे ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से हरी झंडी मिली, वैसे ही दिल्ली के अशोका रोड स्थित बीजेपी मुख्यालय से पालमपुर में अधिवेशन बुलाने की घोषणा की गई. 

हिमाचल के पालमपुर का यह अधिवेशन बीजेपी के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण अधिवेशन माना जाता है. इसी अधिवेशन में अटल बिहारी के गांधी-समाजवाद विचार के बदले हिंदुत्व के विचार पर चलने का फैसला पार्टी ने किया. 

आडवाणी के नेतृत्व में पार्टी ने प्रस्ताव पास किया कि राम मंदिर विवाद को अदालत के माध्यम से नहीं सुलझाया जा सकता है. इसी अधिवेशन में आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा निकालने की घोषणा की.

बीजेपी के आधिकारिक पत्र कमल संदेश में उस वक्त आडवाणी लिखते हैं- मैं और मेरी पार्टी यह चाहती है कि जिस तरह से सोमनाथ मंदिर का गुजरात में कायाकल्प हुआ है, उसी तरह अयोध्या का कायाकल्प हो. 

पालमपुर अधिवेश के तुरंत बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने संघ प्रचारक केएन गोविंदाचार्य को आडवाणी के सहयोग के लिए तैनात कर दिया. सोमनाथ से अयोध्या रथ यात्रा की स्क्रिप्ट गोविंदाचार्य ने ही लिखी थी.

वीपी सिंह के साथ धोखा किया, सरकार गिरा दी

1990 की शुरुआत में आडवाणी ने जब रथयात्रा की घोषणा की, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह हत्थे से उखड़ गए. उन्होंने बीजेपी के बड़े नेताओं से साफ कह दिया कि यह कदम दंगा भड़कने वाला है और रथयात्रा को रोकने पर विचार करें.

पूर्व केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान की जीवनी ‘पासवान : संघर्ष, साहस और संकल्प’ में लेखक प्रदीप श्रीवास्तव लिखते हैं- बीजेपी के बड़े नेताओं ने सरकार चलाने के लिए वीपी सिंह को रथयात्रा नहीं निकालने का आश्वासन दिया था. इन बड़े नेताओं में आडवाणी भी शामिल थे.

पासवान कहते हैं- जैसे ही मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने की बात हुई, बीजेपी ने रथयात्रा पर काम शुरू कर दिया.

सितंबर 1990 में भोपाल के एक कार्यक्रम में आडवाणी ने वीपी सिंह को खुली चुनौती दी. इंडिया टुडे में छपी उस वक्त की एक रिपोर्ट के मुताबिक आडवाणी ने भोपाल की रैली में कहा कि वीपी सिंह बीजेपी को हल्के में नहीं ले सकते हैं.

इसके बाद आडवाणी ने 10 हजार किमी की पदयात्रा की शुरुआत कर दी. यह यात्रा जैसे ही बिहार पहुंची, आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया. आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद बीजेपी ने संयुक्त मोर्चा सरकार से समर्थन वापस ले लिया. 

पासवान अपनी जीवनी में लिखते हैं- जब बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया तो मैं पीएम आवास पहुंचा. वीपी सिंह से हमने इस्तीफा देने के लिए कहा, तो उन्होंने इससे इनकार कर दिया.

पासवान के मुताबिक सिंह ने उनसे कहा कि आडवाणी ने मेरे साथ धोखा किया है और यह बात संसद की माध्यम से मैं देश की जनता को बताऊंगा. इसलिए मैं अविश्वास प्रस्ताव का सामना करुंगा.

आडवाणी की गिरफ्तारी की खबर जब लीक हो गई

यह कहानी 1990 की है. सोमनाथ से चली लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा बिहार (अब झारखंड) के धनबाद पहुंची थी. उस वक्त लालू यादव के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार थी. लालू यादव ने बिहार में आडवाणी को गिरफ्तार करने का प्लान बनाया था. 

अपनी जीवनी ‘गोपालगंज टू रायसीना’ में लालू यादव लिखते हैं-  धनबाद में ही मैंने आडवाणी को गिरफ्तार करने का प्लान बनाया, इसके लिए हमने धनबाद के अफसरों को बता दिया. हमारी प्लानिंग धनबाद में आडवाणी को गिरफ्तार कर कोलकाता ले जाने की थी.

लालू आगे लिखते हैं- मैंने रोहतास के तत्कालीन जिला अधिकारी मनोज श्रीवास्तव को पूरी योजना को अमलीजामा पहनाने की जिम्मेदारी सौंपी. श्रीवास्तव रेलवे अधिकारियों को कन्फिडेंस में ले भी लिए थे, लेकिन यह प्लान धनबाद में लीक हो गई. 

लालू यादव के मुताबिक गिरफ्तारी की योजना लीक होने के बाद मैंने पूरे मसले पर चुप्पी साध ली. इसी बीच आडवाणी की यात्रा पटना पहुंच गई. मैंने तय किया कि इस बार गिरफ्तारी में चूक नहीं होगी. मैंने तुरंत दुमका के डीएम सुधीर कुमार  को फोन मिलाया और उसे मसानजोर के गेस्ट हाउस को तैयार रखने के लिए कहा. यह गेस्ट हाउस काफी बाहरी एरिया में था.

लालू अपनी जीवनी में लिखते हैं-  मैं गिरफ्तारी की तैयारी कर रहा था, तो दूसरी ओर आडवाणी की यात्रा समस्तीपुर पहुंच गई. मैंने तुरंत पुलिस अधीक्षक आरके सिंह और डीआईजी रामेश्वर उरांव को अपने आवास बुलाया. दोनों को गिरफ्तारी का प्लान समझाया. 

लालू के मुताबिक दोनों अधिकारी सरकारी हेलिकॉप्टर से समस्तीपुर गए और सर्किट हाउस से आडवाणी को गिरफ्तार कर लिए. इसके बाद पटना होते हुए दुमका चले गए.

यूट्यूब पर लोकसभा में आडवाणी की गिरफ्तारी पर बोलते हुए लालू का एक वीडियो खूब वायरल है. लालू आडवाणी से कहते हैं कि आपकी नियत गलत थी, इसलिए मैंने आपको गिरफ्तार किया था.

मस्जिद गिराने के लिए की सीक्रेट मीटिंग, गिरा तो काला दिन बताया

5 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विनय कटियार के निजी आवास पर लाल कृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता में एक सीक्रेट मीटिंग हुई. इसी बैठक में बाबरी मस्जिद गिराने पर सहमति बनी.

बाबरी विध्वंस की जांच के लिए गठित सीबीआई के चार्जशीट के मुताबिक सीक्रेट मीटिंग के बाद सभी नेताओं ने मोर्चे संभाल लिए और अपने-अपने काम में जुट गए. 

1992 में आडवाणी के निजी सुरक्षा में तैनात आईपीएस अधिकारी अंजू गुप्ता के मुताबिक 6 दिसंबर को कारसेवक जब अयोध्या के आसपास एकजुट हुए, तो आडवाणी ने जोशीला भाषण दिया. आडवाणी ने अपने भाषण में कहा कि जहां मंदिर था, वहीं बनेगा.

गुप्ता के मुताबिक आडवाणी के भाषण के दौरान मंच पर उमा भारती, विनय कटियार भी मौजूद थे. आडवाणी के भाषण के तुरंत बाद कारसेवकों ने मस्जिद पर चढ़ाई कर दी.

6 दिसंबर को दोपहर 12 बजते-बजते कारसेवक मस्जिद के गुंबद पर चढ़ गए और उसे गिरा दिया. 

दिलचस्प बात है कि जिस मस्जिद को गिराने के लिए आडवाणी ने कारसेवा की थी, उसी मस्जिद के गिरने के बाद उन्होंने दुख जताया. पहले एक इंटरव्यू और बाद में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि मस्जिद गिरना उनके जीवन का सबसे काला दिन था. 

आडवाणी ने बाबरी विध्वंस की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उस वक्त नेता प्रतिपक्ष के पद से इस्तीफा देने की पेशकश की थी.

जब कारसेवकों ने आडवाणी की बातें सुननी छोड़ दी

यह वाकया बाबरी विध्वंस से कुछ वक्त पहले की है. दरअसल, 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या पहुंचे कारसेवकों की भीड़ को पुलिस ने कारसेवकपुरम के पास रोक दिया था. इधर, ढांचे से 150 मीटर की दूरी पर बड़े नेताओं की मीटिंग चल रही थी. 

इंडिया टुडे में छपी उस वक्त की एक रिपोर्ट के मुताबिक आडवाणी समेत कई लोग कारसेवा को प्रतीकात्मक रखना चाहते थे. इसको लेकर आडवाणी और अयोध्या के तत्कालीन एसपी डीबी रॉय के बीच बातचीत भी चल रही थी. कारसेवकों को जैसे ही इस बात की सूचना दी गई, वैसे ही सभी लोग भड़क गए.

कारसेवकों ने आंदोलन के शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ ही बिगुल फूंक दिया. स्थिति बिगड़ता देख सभी बड़े नेता बैकफुट पर आ गए. कारसेवकों ने किसी भी नेता की बात नहीं सुनने की घोषणा कर दी. कारसेवकों को मनाने का जिम्मा विनय कटियार को दिया गया. हालांकि, कटियार भी असफल रहे.

रिपोर्ट के मुताबिक मस्जिद के गुंबद पर जब कारसेवक चढ़ गए, तो आडवाणी ने सभी कारसेवकों से कारसेवा बंद करने की अपील की, लेकिन कारसेवकों पर आडवाणी के इस अपील का कोई असर नहीं हुआ.

आडवाणी ने इसके बाद उमा भारती से इसे बंद कराने के लिए कहा. हालांकि, भारती भी इसे बंद कराने में नाकाम रही.

बाबरी विध्वंस के बाद बैकफुट पर चले गए

अयोध्या में बाबरी विध्वंस के बाद आडवाणी बैकफुट पर चले गए. 1995 में इंडिया टुडे को दिए एक इंटरव्यू में आडवाणी ने कहा कि राम मंदिर का हल सरकार से ही निकलेगा, इसलिए हमारी कोशिश सरकार बनाने की है. 

आडवाणी के अध्यक्ष रहते भारतीय जनता पार्टी की 1996 में सरकार भी बनी, लेकिन आडवाणी प्रधानमंत्री नहीं बन पाए. इसके बाद 1998 और 1999 में एनडीए की सरकार अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में बनी.

अटल सरकार ने बाबरी विवाद को अदालत पर छड़ दिया. 2002 में जब विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के नेताओं ने जब अटल सरकार के इस रुख का विरोध किया, तब अरुण जेटली ने डैमेज कंट्रोल की कमान संभाली.

हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं का कहना था कि बीजेपी अपने वादे और पालमपुर के प्रस्ताव से मुकर रही है. 2005 में पाकिस्तान में बाबरी को लेकर आडवाणी ने विवादित बयान दिए, जिसका हिंदू परिषद ने ही विरोध किया.

2009 में लिब्राहन आयोग ने बाबरी विध्वंस के लिए आडवाणी को जिम्मेदार ठहराया. इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को करारी शिकस्त मिली.

2009 में हार के बाद बीजेपी ने नए सिरे से संगठन को खड़ा करना शुरू कर दिया. 2013 में नरेंद्र मोदी को बीजेपी ने पीएम का चेहरा घोषित किया. मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही बीजेपी में आडवाणी का दौर समाप्त हो गया.

राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा में आडवाणी को आमंत्रण दिया गया है, लेकिन उनके जाने पर सस्पेंस बरकरार है. 

 

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