19 साल पहले 171 रूट पर थीं सरकारी बसें … कमाई वाले रूट निजी हाथों में

19 साल पहले 171 रूट पर थीं सरकारी बसें
धीरे-धीरे परिवहन निगम का घाटा बढ़ाया, बसें घटाईं… कमाई वाले रूट निजी हाथों में

मप्र में निजी ऑपरेटरों और भाजपा-कांग्रेस के नेताओं की बसों के कारण परिवहन निगम उबर ही नहीं पाया। 43 साल का सफर 2 जनवरी 2005 में बंद हो गया। मप्र में रोड टैक्स के 267 करोड़ रुपए बकाया और बसों का 756 करोड़ का घाटे होने से बसें बंद हो गईं। निगम के अफसर अब भी नागपुर और झांसी में प्रदेश की बेशकीमती जगहों को पाने के लिए कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं।

मप्र में 19 साल पहले सड़क परिवहन निगम को 171 रूट मिले थे, लेकिन अब इनमें निजी ऑपरेटर्स का कब्जा है। दूसरे राज्यों में भी परिवहन निगम घाटे में है, पर वहां सरकारें इनका संचालन कर रही हैं। सड़क परिवहन निगम के पूर्व कर्मचारी नेता श्यामसुंदर शर्मा कहते हैं कि परिवहन माफिया के दबाव में सरकार ने बसें घटाईं। कर्मचारी बढ़ाए। इससे वेतन मिलना तक बंद हो गया।

ये 3 कारण, जिनसे कागजी हो गया निगम

  • कर्मचारियों की ज्यादा भर्ती…उनके वेतन भत्ते पर आय से ज्यादा भुगतान।
  • महंगा कर्ज : 2002 में नई बसों के लिए 36% ब्याज पर 100 करोड़ का कर्ज।
  • ग्वालियर में बॉडी मेकिंग वर्कशॉप थी, पर गोवा की कंपनी से 1,000 बसें बनाईं।

परिवहन निगम को मिटाने में नेता और अफसरों की भूमिका रही। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सरकारों के समय रहे चेयरमैनों के कार्यकाल में आर्थिक अनियमितताएं हुईं। बस, टायर, डीजल, पार्ट्स तक की खरीदी में जमकर भ्रष्टाचार हुआ। भर्तियों में भी गड़बड़ी कर सड़क परिवहन निगम को बर्बाद कर दिया गया।
-श्याम सुंदर शर्मा, अध्यक्ष सड़क परिवहन निगम कर्मचारी संघ

ऐसे बढ़ा घाटा, बेड़ा घटाया, एक बस के लिए औसतन 10-12 कर्मचारी हो गए

शुरुआत में यहां 4200 बसों के संचालन के लिए 26 हजार कर्मचारी। यानी एक बस में 5 कर्मचारी पर 1999 में 1600 बसेां पर 19 हजार कर्मचारी हो गए। यानी एक बस पर 10 से 12 कर्मचारी। यही नहीं, राजनीतिक नियुक्तियों और गठजोड़ के कारण 2000 और भर्तियां रिजर्व कोटे में की गईं। ऐसा मानो जानबूझकर परिवहन निगम को घाटे में डुबोया गया। जिससे वह अपने आप बंद हो जाए।

दूसरे राज्यों के संचाल​क बोले- मप्र में एंट्री के पुलिस-आरटीओ 4000 लेते हैं

नागपुर से जो निजी बसें आती हैं, उन्हें एमपी में परेशान किया जाता है। बॉर्डर पर प्राइवेट लोग वसूली करते हैं। टूरिस्ट बसों तक को नहीं छोड़ते। पुलिस और आरटीओ को हर ट्रिप पर 2000 से 4000 तक भरना पड़ता है।
– महेंद्र लूले, उपाध्यक्ष, ऑल इंडिया बस ऑनर्स एसो. महाराष्ट्र, डॉ. हरीश सभरवाल, चेयरमैन, पैसेंजर सेगमेंट ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस

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