1981 में ऐसा क्या हुआ जो इंदिरा गांधी के गुप्त समर्थन से अयोध्या आंदोलन खड़ा हो गया?

1981 में ऐसा क्या हुआ जो इंदिरा गांधी के गुप्त समर्थन से अयोध्या आंदोलन खड़ा हो गया?
घटना के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी एक्टिव हुआ. अशोक सिंघल के प्रयास से दिल्ली में ‘विराट हिंदू समाज’ बना. कांग्रेस पृष्ठभूमि के डॉ. कर्ण सिंह इसके अध्यक्ष बनाए गए. कहा जाता है इंदिरा गांधी का इस प्रयास को समर्थन था.
1981 में ऐसा क्या हुआ जो इंदिरा गांधी के गुप्त समर्थन से अयोध्या आंदोलन खड़ा हो गया?

देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी

22 जनवरी को अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम है. भव्य आयोजन हो रहा है. देश-विदेश से मेहमान इसमें शिरकत करने वाले हैं. इतिहास के नजरिए से बात करें तो ये सब हुआ सैकड़ों सालों के संघर्ष के बाद. पर जिस राजनीतिक और सामाजिक आंदोलन के जरिए ये सब हो पाया, उसकी नींव पड़ी अयोध्या से दो हजार किलोमीटर दूर ‘मीनाक्षीपुरम’ में घटी एक घटना से. इसी मामले ने अयोध्या मामले में खाद-पानी का काम किया. आप कहेंगे आखिर मीनाक्षीपुरम में ऐसा क्या हुआ था?

दरअसल, 1981 में तमिलनाडु के ‘मीनाक्षीपुरम’ में धर्म-परिवर्तन की एक घटना हुई. करीब 400 परिवारों ने सामूहिक रूप से इस्लाम कबूल कर लिया. उनमें ज्यादातर पिछड़ी जाति के हिंदू थे. हिंदू नेताओं ने मीनाक्षीपुरम के धर्म-परिवर्तन की घटना को देश में बढ़ते इस्लामिक खतरे के रूप में देखा और यही प्रचारित भी किया. सड़क पर शोर बढ़ा तो पीएमओ तक भी इसकी आवाज पहुंची. उस वक्त देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी हुआ करती थीं. उनकी पहल पर बने एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने घटना की जांच रिपोर्ट दी, जिस पर संसद में बहस भी हुई. इसी दरम्यान इस मुद्दे पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी एक्टिव हुआ. अशोक सिंघल के प्रयास से दिल्ली में ‘विराट हिंदू समाज’ बना. कांग्रेस पृष्टभूमि के डॉ. कर्ण सिंह इसके अध्यक्ष बनाए गए. इस मंच ने रामलीला मैदान में सर्वपंथ हिंदू सम्मेलन किया, जो सफल रहा.

इंदिरा गांधी ने भांप ली थी देश की हवा

किताब के मुताबिक, इस सम्मेलन से सांप्रदायिक माहौल इस कदर बिगड़ा कि देश भर में जगह-जगह छोटी-मोटी बातों पर तनाव होने लगा. उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में ईद की नमाज के बाद दंगे हुए. उस वक्त मुसलमानों की देखभाल के लिए कांग्रेस नमाज स्थल पर कैंप लगाया करती थी. मुरादाबाद में इस कैंप का इंतजाम कांग्रेस के दाऊ दयाल खन्ना कर रहे थे. दाऊ दयाल खन्ना उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रह चुके थे. तभी नमाज स्थल पर सूअर के घुस जाने की अफवाह से उपद्रव के हालात पैदा हो गए.

मुस्लिम उपद्रवी तत्वों ने खन्ना और दूसरे कांग्रेसियों पर हमला कर दिया. दाऊ दयाल खन्ना और मुरादाबाद कांग्रेस के अध्यक्ष प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को मुरादाबाद कांड की असलियत बताने पहुंचे. उस वक्त खन्ना की इतनी हैसियत नहीं थी कि इंदिरा उन्हें कोई जवाब देतीं. खन्ना निराश हो उलटे पांव लौट आए. मगर इसके बाद उन्होंने हिंदुत्व की लाइन पकड़ ली. उन्हीं दिनों अशोक सिंघल विश्व हिंदू परिषद में संयुक्त महासचिव हुए. विराट हिंदू समाज 1983 के अंत तक सक्रिय रहा. माना जाता है कि उन्हें इंदिरा गांधी की अनुमति प्राप्त थी. इसे ऐसे समझिए कि इंदिरा देश की हवा का रुख भांप चुकी थीं. उनको हिंदुत्व की आती लहर नजर आ गई थी और वो इसी हिसाब से फैसले ले रहीथीं.

धर्म संसद में पास हुआ एक प्रस्ताव

मौका तलाश रहे दाऊदयाल खन्ना भी इसी दरम्यान हिंदू जागरण के मंचों पर दिखाई देने लगे. दाऊ दयाल खन्ना प्रयासरत थे कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अयोध्या का प्रश्न उठाए. वे सफल भी रहे. अशोक सिंघल भी इसी विचार के थे. इसी दिशा में पहला कदम उठा, धर्म संसद के आयोजन में. मीनाक्षीपुरम की घटना और देश के हालात पर रास्ता ढूंढने के लिए कोई 500 साधु-संत धर्म संसद के नाम पर नई दिल्ली के विज्ञान भवन में जमा हुए. यह अप्रैल 1984 की बात है. इस पहली धर्म संसद के पीछे 1964 के दौर में बनी विश्व हिंदू परिषद ही थी जिसके बाद में अशोक सिंघल सर्वे सर्वा बने.

इसी धर्म संसद में एक प्रस्ताव पास हुआ कि हिंदुओं के तीन सबसे पवित्र धर्मस्थलों को वापस हिंदू समाज को सौंपा जाए. इन स्थलों में अयोध्या की राम जन्मभूमि, मथुरा की कृष्ण जन्मभूमि और काशी का विश्वनाथ मंदिर थे. उस वक्त तक इन धार्मिक स्थलों का कोई प्रस्ताव विश्व हिंदू परिषद के पास नहीं था. पहली बार इन तीनों मंदिरों के मुक्ति की मांग किसी मंच से हुई थी. पर धर्म संसद ने एजेंडे पर सबसे तय हुआ कि सात अक्टूबर को देश भर से साधु-संत अयोध्या में सरयू के किनारे इकट्ठा होंगे. और राम जन्मभूमि को मुक्त कराने की कसम खा लखनऊ के लिए कूच करेंगे. 14 अक्टूबर को यह रथ यात्रा लखनऊ पहुंची. यहां वह बड़ी सभा में तब्दील हुई. पहले अयोध्या को रखा. इस काम के लिए धर्म संसद ने ‘राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति’ का गठन किया.

बिहार के सीतामढ़ी से एक रथ अयोध्या के लिए चला

इसके अलावा जन्मस्थान की मुक्ति के लिए देश भर में माहौल बनाने के लिए सितंबर, 1984 में बिहार के सीतामढ़ी से एक रथ अयोध्या के लिए चला. इस रथयात्रा से देश का माहौल गरमाया. तय हुआ कि सात अक्टूबर को देश भर से साधु-संत अयोध्या में सरयू के किनारे इकट्ठा होंगे और राम जन्मभूमि को मुक्त कराने की कसम खा लखनऊ के लिए कूच करेंगे.

14 अक्टूबर को यह रथ यात्रा लखनऊ पहुंची. यहां वह बड़ी सभा में तब्दील हुई. इसी दौरान मुक्ति यज्ञ समिति के उपाध्यक्ष परमहंस रामचंद्र दास ने ऐलान किया कि 1986 की रामनवमी तक अगर जन्मभूमि का ताला नहीं खुला तो वे आत्मदाह कर लेंगे. परमहंस 1950 से इस मामले में मुकदमा लड़ रहे थे. वे अयोध्या के दिगंबर अखाड़े के प्रमुख थे. सात अक्टूबर को ही सरयू के किनारे कोई 50 हजार लोगों ने जन्मस्थान को मुक्त कराने की कसम खाई. और फिर आगे जो हुआ वो इतिहास है…

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