गाजा और यूक्रेन में चल रहे युद्ध आपस में जुड़े हुए हैं ?

गाजा और यूक्रेन में चल रहे युद्ध आपस में जुड़े हुए हैं

वे राष्ट्रों के दो विरोधी नेटवर्कों और नॉन-स्टेट एक्टर्स के बीच एक व्यापक भू-राजनीतिक संघर्ष को प्रतिबिम्बित करते हैं, जिनके मूल्य और हित शीत युद्ध के बाद के भी बाद वाली हमारी दुनिया पर हावी होंगे। 1989 में बर्लिन की दीवार के पतन के बाद जो अमेरिका-नीत वैश्वीकरण का अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण युग शुरू हुआ था, वो अब समाप्त हो रहा है। हां, यह कोई सामान्य भू-राजनीतिक क्षण नहीं है। एक तरफ रेजिस्टेंस नेटवर्क है, जो अपने में बंद और निरंकुश प्रणालियों की रक्षा के लिए समर्पित है।

दूसरी तरफ इनक्लूज़न नेटवर्क है, जो अधिक खुली, जुड़ी हुई, बहुलतावादी प्रणालियां बनाने की कोशिश कर रहा है। इन दोनों के संघर्ष में कौन जीतता है, यह इस युग के प्रमुख चरित्र के बारे में बहुत कुछ निर्धारित करेगा। डराने वाली बात यह है कि यह टकराव बढ़ता जा ही रहा है। हाल ही में हमने देखा कि रेजिस्टेंस नेटवर्क के ईरान समर्थित उग्रवादियों ने जॉर्डन में इनक्लूज़न नेटवर्क वाले अमेरिका के सैन्य अड्डे पर एक क्रूर ड्रोन हमला किया।

और अगर आप चीजों पर बारीक नजर रखे हुए हैं तो पाएंगे कि शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन की उपरोक्त दोनों नेटवर्कों में भूमिका है, साथ ही उसका प्रभाव-क्षेत्र ग्लोबल साउथ के अधिकांश हिस्सों तक भी फैला हुआ है। उसका दिल रेजिस्टेंस नेटवर्क के साथ है तो दिमाग इनक्लूज़न नेटवर्क के साथ। यूक्रेन यूरोपीय संघ का हिस्सा बनने के लिए रूसी प्रभाव क्षेत्र से अलग होने की कोशिश कर रहा है।

व्लादिमीर पुतिन इसे रोकने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि अगर यूक्रेन- अपनी विशाल इंजीनियरिंग प्रतिभा, थलसेना और कृषि सम्बंधी खाद्य-क्षमताओं के साथ- यूरोपियन गठजोड़ में शामिल हो जाता है, तो उसके प्रभुत्व में सेंध लग जाएगी। हालांकि पुतिन आसानी से नहीं हारेंगे, खासकर अपने नेटवर्क सहयोगियों ईरान और उत्तर कोरिया के हथियारों की मदद, और चीन, बेलारूस और उनके सस्ते तेल के भूखे ग्लोबल साउथ के कई सदस्य देशों के समर्थन से।

दूसरी तरफ इजराइल सऊदी अरब के साथ सामान्य-संबंध बनाने की कोशिश कर रहा था, जो मध्य-पूर्व के कई अरब-राज्यों और दक्षिण-एशिया के मुस्लिम देशों का प्रवेश द्वार है। सऊदी के साथ इजराइल के अभी तक संबंध नहीं थे। लेकिन केवल इजरायल को ही ई1ए1 विमानों की दरकार नहीं थी और वह अपने टेक्नोलॉजिस्टों को रियाद में प्रवेश नहीं दिलाना चाहता था, सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के नेतृत्व में सऊदी अरब भी आर्थिक संबंधों का एक विशाल केंद्र बनने की आकांक्षा रखता है।

मोहम्मद बिन सलमान चाहते हैं कि सऊदी अरब एशिया, अफ्रीका, यूरोप, अरब दुनिया और इजराइल को अपने में केंद्रित एक नेटवर्क में बांध दे। उनका विज़न मध्य-पूर्व के एक प्रकार का यूरोपीय संघ बनाने का है, जिसमें सऊदी अरब की भूमिका वैसी ही हो, जैसी ईयू में आज जर्मनी की है। ईरान और हमास संयुक्त और विभिन्न कारणों से इसे रोकना चाहते हैं।

वे जानते है कि अगर इजराइल आधुनिकीकरण कर रहे सऊदी अरब से अपने संबंधों को मजबूत करता है, जबकि अब्राहम समझौते के तहत यूएई, मोरक्को और बहरीन के साथ इजराइल के संबंध पहले ही निर्मित हैं- तो इस क्षेत्र में शक्ति का संतुलन सेकुलर, सर्वसमावेशी और बाजार-आधारित नेटवर्क की ओर झुक जाएगा और इसकी तुलना में अधिक बंद, बहुलता-विरोधी, राजनीतिक-इस्लाम से प्रेरित ईरान और हमास का नेटवर्क अलग-थलग पड़ सकता है।

इसलिए इस भुलावे में न रहें कि यूक्रेन और गाजा में चल रहे युद्ध एक-दूसरे से अलग-अलग हैं और अमेरिका उनकी उपेक्षा कर सकता है। वास्तव में अमेरिका के पास सिवाय इसके कोई और चारा ही नहीं है कि वह इनमें गहरी दिलचस्पी ले, क्योंकि दोनों ही संघर्षों से उसके हित जुड़े हैं। अमेरिका इनक्लूज़न नेटवर्क का लीडर है और उसको इस बात को याद रखना चाहिए कि जहां वह यूक्रेन के युद्ध में अपनी शर्तों पर शरीक हुआ है, वहीं मध्य-पूर्व में चल रहे युद्ध में उसे ईरान की शर्तों पर शामिल होना पड़ रहा है।

अमेरिका दो युद्धरत नेटवर्कों में से एक का लीडर है और उसको यह याद रखना चाहिए कि जहां वह यूक्रेन के युद्ध में अपनी शर्तों पर शरीक हुआ है, वहीं मध्य-पूर्व में चल रहे युद्ध में उसे ईरान की शर्तों पर शामिल होना पड़ रहा है।
(द न्यूयॉर्क टाइम्स से)

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