चीन के लिए ताइवान पर जीत आसान नहीं …? गुरिल्ला युद्ध में माहिर हैं 35 लाख ताइवानी;
जंग के लिए पहले से तैयार की 5 पॉइंट स्ट्रैटजी…?
चीन की तमाम धमकियों के बावजूद नैंसी पेलोसी ताइवान आईं और पूरा एक दिन गुजारकर वापस चली गईं। एक्सपर्ट आशंका जता रहे हैं कि पेलोसी की यात्रा से बौखलाया चीन अब ताइवान पर हमला भी कर सकता है। चीनी सेना ने ताइवान के चारों तरफ मिलिट्री ड्रिल भी शुरू कर दी है।
भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे कि अगर जंग हुई तो ताइवान खुद को चीन की विशाल सेना से कैसे बचाएगा?
सबसे पहले जानिए कि एक्सपर्ट युद्ध की आशंका क्यों जता रहे हैं
ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रोफेसर डॉनल्ड रॉथवेल डी डब्ल्यू से कहते हैं कि नैंसी पेलोसी का ताइवान जाना चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व को चुनौती है। इसी साल चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं कांग्रेस होनी है। जिसमें शी जिनपिंग लगातार तीसरा राष्ट्रपति कार्यकाल पाने का दावा करेंगे। ऐसे में पेलोसी की यात्रा शी के दावे को कमजोर करने की है, इसलिए वह इस कदम का कड़ा जवाब दे सकते हैं।
पेलोसी के जाते ही चीन ने नॉर्थ, साउथ-वेस्ट और साउथ-ईस्ट में ताइवान के जल और हवाई क्षेत्र में मिलिट्री ड्रिल, यानी सैन्य अभ्यास की घोषणा कर दी है। चीनी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने कहा है कि असली हथियारों और गोला-बारूद से ये अभ्यास इस पूरे हफ्ते तक किया जाएगा। PLA ईस्टर्न थिएटर कमांड के प्रवक्ता सीनियर कर्नल शी यी ने कहा कि सैन्य अभ्यास के दौरान लॉन्ग रेज लाइव फायर शूटिंग की जाएगी। साथ ही मिसाइल का भी टेस्ट होगा।
इस तुलना में ताइवान भले ही कमजोर लग रहा हो, लेकिन उसे जीतना आसान नहीं होगा। ताइवान ने जंग की स्थिति में 5 स्ट्रैटजी बना रखी हैं। आइए एक-एक करके समझते हैं…
स्ट्रैटजी 1 : चीन ने हमला किया तो अमेरिका मदद करेगा
ताइवान को कुछ ही देशों ने मान्यता दी है। ताइवान को ज्यादातर देश चीन का हिस्सा मानते हैं। अमेरिका का भी ताइवान के साथ आधिकारिक रूप से राजनयिक संबंध नहीं हैं, लेकिन अमेरिका ताइवान रिलेशंस एक्ट के तहत उसे हथियार बेचता है। इस कानून में कहा गया है कि वो ताइवान की आत्मरक्षा के लिए जरूरी मदद देगा।
अक्टूबर 2021 में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा था कि चीन अगर ताइवान पर हमला करता है तो अमेरिका ताइवान का बचाव करेगा। यह अमेरिका के पुराने रुख से अलग लाइन थी।
अमेरिकी राष्ट्रपति से पूछा गया था कि क्या अमेरिका ताइवान की रक्षा करेगा तो बाइडन ने कहा, ‘हां, ऐसा करने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं।’ बाद में व्हाइट हाउस के एक प्रवक्ता ने कहा कि इस टिप्पणी को पॉलिसी में बदलाव के तौर पर नहीं लेना चाहिए।
स्ट्रैटजी 2 : पार्कुपाइन स्ट्रैटजी से दुश्मन के लिए जंग को महंगा और कठिन बना दो
चीन और ताइवान के बीच तनाव ऐतिहासिक है। 1940 के दशक में गृहयुद्ध के दौरान चीन और ताइवान अलग हुए थे। उसके बाद से ताइवान खुद को स्वतंत्र देश कहता है। जबकि, चीन उसे अपने प्रोविंस के तौर पर देखता है और जरूरत पड़ने पर बल पूर्वक मिला लेने की बात करता है। यानी ताइवान पर चीन के हमले का खतरा दशकों से बना हुआ है।
ताइवान ने चीन जैसी विशाल शक्ति से निपटने के लिए एसिमिट्रिक वॉरफेयर के मेथड को अपनाया है। इसे पार्कुपाइन स्ट्रैटेजी भी कहते हैं। इसका उद्देश्य हमले को दुश्मन के लिए ज्यादा से ज्यादा कठिन और महंगा बनाना होता है।
ताइवान ने एंटी-एयर, एंटी-टैंक और एंटी-शिप हथियारों और गोला-बारूद के बड़े भंडार को इकट्ठा कर रखा है। इसमें ड्रोन और मोबाइल कोस्टल डिफेंस क्रूज मिसाइल यानी CDCM जैसे कम लागत वाले युद्धपोत शामिल हैं। ये चीन के महंगे नेवल शिप और नेवल इक्विपमेंट को नष्ट करने की कैपेसिटी रखते हैं।
स्टील्थ फास्ट-अटैक क्राफ्ट्स और मिनिएचर मिसाइल असॉल्ट बोट वैसे तो सस्ते होते हैं, लेकिन ये काफी प्रभावी मिलिट्री इक्विपमेंट हैं। इन्हें ताइवान के बंदरगाहों में मछली पकड़ने वाली नौकाओं के बीच फैलाया जा सकता है। समुद्री माइंस और फास्ट माइन लेइंग शिप किसी भी हमलावर नौसेना के लैंडिंग ऑपरेशन को जटिल बना सकते हैं।
स्ट्रैटजी 3 : मल्टीलेयर्ड सी डिफेंस से चीन की हर फ्लीट पर नजर
ताइवान चारों तरफ समुद्र से घिरा है। ताइवान पर कब्जा करने के लिए चीन को बड़ी संख्या में सैनिकों, बख्तरबंद वाहन, हथियार, गोला-बारूद, फूड, मेडिकल सप्लाई और फ्यूल को उस पार ले जाने की जरूरत होगी। यह केवल समुद्र से ही संभव है, क्योंकि एयरलिफ्ट और विमानों के बेड़े में सीमित क्षमता होती है।
ताइवान के इलाके में द्वीपों की एक श्रृंखला भी है। इनमें से कुछ चीनी तटों के पास हैं। इन द्वीपों पर पहले से लगे निगरानी इक्विपमेंट चीन के तटों से चलने वाले पहले फ्लीट्स या बेड़े का पता लगा सकते हैं। इससे ताइवान की सेना को मल्टीलेयर्ड सी डिफेंस के लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा।
इससे पहले कि PLA के जवान ताइवान की जमीन पर उतरें और ऑपरेशन शुरू करें, उन्हें ताइवान की समुद्री माइंस, फास्ट अटैक क्राफ्ट और मिसाइल असॉल्ट बोट के साथ लैंड बेस्ड नौसैनिकों का भी सामना करना पड़ेगा। इससे PLA की स्थित काफी कमजोर होगी।
स्ट्रैटजी 4 : गुरिल्ला युद्ध के लिए हर 4 में से एक ताइवानी तैयार
यदि मल्टीलेयर्ड सी डिफेंस को भेदकर चीन के सैनिक ताइवान पहुंच भी जाते हैं, तो उसने अपने शहरों को गुरिल्ला युद्ध के लिए भी तैयार कर रखा है।
ताइवान मैन-पोर्टेबल एयर-डिफेंस सिस्टम यानी MANPADS और मोबाइल एंटी-आर्मर हथियार जैसे कि हाई मोबिलिटी आर्टिलरी रॉकेट सिस्टम यानी HIMARS का यूज शहरी लड़ाई में कर सकता है। साथ ही बिल्डिंग्स को बैरक में बदल सकता है।
RAND फाउंडेशन की 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक, ताइवान में मिलिट्री रिजर्व सिस्टम में 25 लाख लोग हैं और 10 लाख सिविल डिफेंस वॉलेंटियर्स हैं। यह संख्या ताइवान की आबादी का 15% है यानी हर 4 में से एक व्यक्ति इससे जुड़ा है।
रूस ने इस साल फरवरी में यूक्रेन पर हमला किया था, तब से ताइवानियों के बीच गन ट्रेनिंग की दर तेजी से बढ़ी है। राजधानी ताइपे के पोलर लाइट ट्रेनिंग सेंटर के CEO मैक्स चियांग कहते हैं कि बहुत से लोग जिन्होंने अपने जीवन में कभी गन नहीं देखी थी, वे इसका इस्तेमाल करना सीख रहे हैं।
स्ट्रैटजी 5 : डिफेंस सिस्टम से डिफेंड
युद्ध के समय ताइवान की टैक्टिस अपने डिफेंस सिस्टम जैसे कि एयरक्रॉफ्ट और एंटी बैलिस्टिक डिफेंस सिस्टम को बचाने की होगी। इन्हीं डिफेंस सिस्टम से ताइवान चीन की बैलिस्टिक मिसाइलों को इंटरसेप्ट कर खत्म कर सकता है। पिछले कुछ सालों से ताइवान अमेरिका से दर्जनों एडवांस फाइटर जेट खरीदे हैं। साथ ही खुद से स्वदेशी AIDC F-CK-1 चिंग कुओ फाइटर जेट बनाया है।
ताइवान ने अपने एयरक्राफ्ट को सबसे ज्यादा सुरक्षा वाले बेस में रखा है। साथ ही पायलट्स को एयरपोर्ट्स पर बमबारी होने की स्थिति में हाइवे पर एयरक्रॉफ्ट उतारने की ट्रेनिंग दी जा रही है।
इसके साथ ही अमेरिका ने युद्ध की स्थिति में ताइवान को डिफेंस सिस्टम और इंटेलिजेंस सपोर्ट देने की बात कही है। इन सभी उपायों से ताइवान को चीन को यह संदेश देने में मदद मिलेगी कि यदि युद्ध छिड़ता है, तो यह लंबा, महंगा और काफी खून-खराबे वाला होगा।