‘मौत की फैक्ट्री’ के पास सिर्फ पटाखा बेचने का लाइसेंस ?

‘मौत की फैक्ट्री’ के पास सिर्फ पटाखा बेचने का लाइसेंस
हरदा में मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस दिया ही नहीं, फिर भी रोज 14 लाख बम बने

 ….. ने फैक्ट्री को जारी किए गए लाइसेंस की पड़ताल की तो ये भी खुलासा हुआ कि मंत्रालय के वरिष्ठ अफसरों ने हरदा में पटाखा फैक्ट्री के 12 लाइसेंस होने की झूठी जानकारी सीएम डॉ. मोहन यादव को दी। इसी आधार पर मुख्यमंत्री ने विधानसभा में कहा कि हरदा के सभी 12 लाइसेंस सस्पेंड कर दिए गए हैं। जबकि हकीकत ये है कि राजेश और सोमेश अग्रवाल बिना लाइसेंस के ही 4 फैक्ट्रियां चला रहे थे।

यह भी खुलासा हुआ कि जिस लाइसेंस पर फैक्ट्री संचालित की जा रही थी, उसे तत्कालीन कलेक्टर ऋषि गर्ग ने 2022 में ही सस्पेंड कर दिया था। फैक्ट्री मालिक राजेश और सोमेश अग्रवाल ने इस फैसले के खिलाफ कमिश्नर कोर्ट में अपील की थी। नर्मदापुरम संभाग के तत्कालीन कमिश्नर माल सिंह ने कलेक्टर के आदेश के खिलाफ स्टे दिया था, लेकिन यह केवल एक महीने के लिए था। इसके बाद तत्कालीन एडीएम ने इसे बगैर कलेक्टर की इजाजत के रिन्यू कर दिया था।

फैक्ट्री को दिए लाइसेंस का पूरा गणित और घालमेल समझिए…

 ….. के इन्वेस्टिगेशन में खुलासा हुआ है कि जिस LE-5 लाइसेंस क्रमांक E/CC/MP/24/323 (E46729) और LE-5 E/CC/MP/24/328 (E56079) को प्रदेश सरकार के वरिष्ठ अफसर मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस बता रहे हैं, वो पटाखे की मैन्युफैक्चरिंग का नहीं है। यह पटाखे बेचने और स्टॉक करने का है। ये दोनों लाइसेंस भी 7 फरवरी को सस्पेंड किए जा चुके हैं।

वहीं, जिला प्रशासन ने 2010 में राजेश अग्रवाल के नाम पर लाइसेंस क्रमांक LE-1 2/2010 जारी किया था। इस लाइसेंस में भी सिर्फ 15 किलो पटाखा निर्माण की अनुमति थी। ये लाइसेंस 2 जून 2021 को ही सस्पेंड किया जा चुका है। चौथा और एक मात्र जिंदा लाइसेंस LE-1 3/2010 सोमेश अग्रवाल के नाम पर था। इस लाइसेंस को भी तत्कालीन कलेक्टर ऋषि गर्ग ने 26 सितंबर 2022 को सस्पेंड कर दिया था। वजह बताई गई थी कि फैक्ट्री में लाइसेंस की शर्तों का पालन नहीं हो रहा है।

जिन शर्तों पर लाइसेंस दिया था, उससे कई गुना ज्यादा पटाखे वहां मिले थे। लेकिन, कलेक्टर के इस आदेश पर राजेश अग्रवाल ने नर्मदापुरम के तत्कालीन संभागायुक्त माल सिंह के कोर्ट में अपील की थी। माल सिंह ने कलेक्टर के आदेश के विरुद्ध 1 महीने का स्टे दिया। इसके बाद हरदा के तत्कालीन एडीएम प्रवीण फूलपगारे ने 29 मई 2023 को इस लाइसेंस को रिन्यू कर दिया। हालांकि, हादसे के बाद अब ये लाइसेंस भी सस्पेंड हो चुका है। यानी इसी लाइसेंस पर राजेश और सोमेश का इतना बड़ा कारोबार चल रहा था।

अफसरों की भूमिका पर क्यों उठे सवाल

इस पूरे मामले में तत्कालीन संभागायुक्त माल सिंह भयडिया और तत्कालीन एडीएम प्रवीण फूलपगारे की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। पहला सवाल ये कि जब फैक्ट्री की जांच के बाद मिली रिपोर्ट के आधार पर कलेक्टर ने लाइसेंस सस्पेंड कर दिया था तो तत्कालीन संभागायुक्त ने कलेक्टर के आदेश के विरुद्ध स्टे क्यों दिया?

दूसरा सवाल ये कि लाइसेंस का स्टे क्लियर नहीं हुआ था तो तत्कालीन एडीएम प्रवीण फूलपगारे ने कलेक्टर से बिना अनुमति लिए इस लाइसेंस को रिन्यू किसके इशारे पर किया?

इससे ज्यादा अहम बात ये है कि यदि कमिश्नर ने एक महीने का स्टे दिया था तो फिर महीने भर बाद अगली तारीख पर संभागायुक्त माल सिंह ने हरदा जिला प्रशासन को इस बात की सूचना क्यों नहीं दी कि स्टे खत्म हो चुका है। ये दोनों सवाल हैं, जो नर्मदापुरम के तत्कालीन संभागायुक्त माल सिंह भयडिया, एडीएम प्रवीण फूलपगारे की भूमिका को जांच के घेरे में ला रहे हैं।

कमिश्नर मालसिंह ने जवाब नहीं दिया

इस सवाल का जवाब तलाश करने के लिए दैनिक भास्कर ने तत्कालीन कमिश्नर माल सिंह भयडिया से संपर्क किया। वे इस समय इंदौर कमिश्नर हैं। उन्होंने इस सवाल का कोई सीधा जवाब नहीं दिया। उनसे जवाब नहीं मिला तो हमने जवाब उनके ऑर्डर में ढूंढने की कोशिश की।

तत्कालीन संभागायुक्त माल सिंह ने पटाखा फैक्ट्री के लाइसेंस को रद्द करने के आदेश के विरुद्ध अपने आदेश में लिखा- जांच प्रतिवेदन के अनुसार आगामी दिशा निर्देश प्राप्त होने तक सभी प्रकार की गतिविधियों को स्थगित रखकर कार्यवाही किया जाना उचित प्रतीत नहीं होता है।

चूंकि अपीलार्थी (राजेश अग्रवाल एवं सोमेश अग्रवाल) को पटाखा निर्माण एवं क्रय विक्रय सबंधी व्यवसाय के लिए उप मुख्य विस्फोटक नियंत्रक भोपाल ने विधिवत लाइसेंस जारी किया है। ऐसे में बगैर किसी सक्षम अधिकारी के दिशा निर्देश प्राप्त किए लाइसेंस स्थगित किया जाना विधिसंगत नहीं है। कलेक्टर हरदा का 26 सितंबर 2022 को लाइसेंस सस्पेंड करने का आदेश आगामी सुनवाई तक स्थगित किया जाता है।

पटाखा कारोबारी अग्रवाल के प्रभाव में थे अधिकारी

संभागायुक्त माल सिंह ने कलेक्टर के आदेश के विरुद्ध जब ये आदेश पारित किया तो उन्होंने ये भी जांच करने की कोशिश नहीं की कि पटाखा फैक्ट्री को विस्फोटक उप नियंत्रक से पटाखा निर्माण का लाइसेंस ही जारी नहीं हुआ था। उन्होंने अपने ऑर्डर में लिखा कि पटाखा विनिर्माण का लाइसेंस था। इसका मतलब साफ है कि वरिष्ठ अधिकारी पटाखा कारोबारी अग्रवाल के प्रभाव में थे।

तत्कालीन एडीएम फूलपगारे बोले- रजिस्टर में एंट्री नहीं

इस मामले में तत्कालीन एडीएम प्रवीण फूलपगारे ने भास्कर से फोन पर कहा, ‘उस समय के दस्तावेज मेरे पास नहीं हैं।’ प्रवीण फूलपगारे इस समय देवास में एडीएम के पद पर हैं।

उन्होंने कहा कि लाइसेंस सितंबर 2022 में सस्पेंड हुआ था। हरदा में उनकी पोस्टिंग दिसंबर 2022 में हुई। जहां तक उनकी जानकारी है कि जब लाइसेंस रिन्यू करने का मामला उनके सामने आया तो उन्होंने सारे दस्तावेजों की जांच की थी।

उनसे पूछा कि इस लाइसेंस को तो कमिश्नर ने एक महीने का स्टे दिया था, आपने मई 2023 में इसे रिन्यू किया। वे बोले कि लाइसेंस इसलिए रिन्यू हुआ होगा क्योंकि लाइसेंस रजिस्टर में उसके सस्पेंड होने की जानकारी लाइसेंस शाखा के बाबू ने दर्ज नहीं की थी। यदि जानकारी दर्ज होती तो मैं रिन्यू ही नहीं करता।

लाइसेंस 15 किलो का, 7 हजार किलो बारूद से बन रहे थे पटाखे

अब इस लाइसेंस को सही भी मान लिया जाए तो ये केवल 15 किलो पटाखे बनाने के लिए ही था। लेकिन, इस फैक्ट्री में रोज 14 लाख सुतली बम बनाए जा रहे थे। विस्फोटक विभाग के एक सीनियर अधिकारी कहते हैं कि एक सुतली बम को बनाने के लिए 5 ग्राम गन पाउडर इस्तेमाल होता है। इस हिसाब से 15 किलो गन पाउडर में सिर्फ 3 हजार सुतली बम बन सकते हैं।

इस फैक्ट्री में तो रोजाना औसतन 700 लोग काम करते थे। एक-एक व्यक्ति कम से कम 2 हजार सुतली बम रोज बनाता था। यानी रोजाना औसत 14 लाख सुतली बम बन रहे थे। इस तरह से रोजाना तय सीमा से 466 गुना ज्यादा पटाखों का निर्माण हो रहा था। इस कैलकुलेशन को आधार मानें तो रोजाना 7 टन यानी 7 हजार किलो बारुद से यहां पटाखे बनाए जा रहे थे।

ये तो सिर्फ गन पाउडर का कैलकुलेशन है, अभी दूसरे विस्फोटक केमिकल का कोई जिक्र नहीं है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि जिस तरह का धमाका हुआ है, उससे ये अंदेशा भी है कि यहां अमोनियम नाइट्रेट और पोटेशियम क्लोरेट जैसे विध्वंसक केमिकल का भी इस्तेमाल हो रहा था। इन केमिकल का एक्सप्लोसिव इम्पैक्ट ही ऐसा होता है, जैसा इस फैक्ट्री में दिखा है।

ये भी जांच का विषय है कि इस फैक्ट्री के पास 15 किलो के लाइसेंस के बावजूद इतनी भारी मात्रा में बारूद और दूसरा केमिकल कौन सप्लाई कर रहा था?

एक्सप्लोसिव विंग ने सरकार को सुझाव दिया है कि केमिकल कंपोजिशन की जांच के लिए मलबे का सैंपल जांच के लिए फोरेंसिक साइंस लैबोरेटरी में भेजा जाए, ताकि यह पता चल सके कि इस फैक्ट्री में किस तरह के केमिकल का इस्तेमाल हो रहा था?

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