नेताओं की रिश्वतख़ोरी पर लगाम लगाना ज़रूरी था !

नेताओं की रिश्वतख़ोरी पर लगाम लगाना ज़रूरी था

यह छूट उन्हें विशेषाधिकार के तहत मिली हुई थी। अब पैसा लेकर दूसरी पार्टी के पक्ष में वोट करने या अनुपस्थित रहने या पैसा लेकर प्रश्न पूछने और बहुत हद तक दल बदलने के मामलों में सांसदों या विधायकों का मुक़दमों से बचना मुश्किल हो जाएगा।

अब से पच्चीस साल पहले इसी कोर्ट की एक बेंच ने इन नेताओं को यह छूट दी थी, लेकिन अब यह छूट समाप्त हो गई है। सही भी है। जब आम आदमी या कर्मचारी को इस तरह की कोई छूट नहीं है तो नेताओं यानी सांसदों और विधायकों को इस तरह की छूट क्यों मिलनी चाहिए?

अब तक पैसा लेकर संसद में प्रश्न पूछने के कई मामले सामने आ चुके हैं। कुछ में सांसद बर्खास्त किए गए, जबकि कुछ मामलों में वे बच भी गए। हालाँकि पैसा लेकर दूसरी पार्टी के पक्ष में वोट देने के मामले छिप जाते हैं, क्योंकि इसके लिए इन नेताओं के पास अंतरात्मा की आवाज़ पर वोट देने की आड़ हमेशा रहती है। ऐसे मामले कम ही उजागर हो पाते हैं। भीतर ही भीतर सबको पता होता है कि असल मामला क्या है, लेकिन ऐसे मामलों में कोई सबूत पेश नहीं कर पाता या सबूत छोड़े ही नहीं जाते।

बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से कुछ हद तक तो सांसदों और विधायकों की रिश्वतख़ोरी पर रोक लगेगी ही, ऐसा समझा जा सकता है। ठीक है इसके लिए कई गलियाँ हैं और नेता अपना काम निकाल ही लेते हैं, लेकिन राजनीति में नैतिकता लाने की कोशिशों की दिशा में यह फ़ैसला ज़रूर सकारात्मक और अच्छा है।

हो सकता है कुछ नेताओं को यह निर्णय ठीक न लगे, लेकिन राजनीति में भ्रष्टाचार को ख़त्म करने या कम करने की दिशा में यह निर्णय एक मिसाल साबित होगा। पच्चीस साल से जिस सुविधा को हमारे सांसद- विधायक भोग रहे थे अब वह पूरी तरह बंद हो जाएगी। स्वच्छ राजनीति के लिए यह ज़रूरी भी था। आख़िर संसदीय विशेषाधिकार के तहत किसी नेता को रिश्वतख़ोरी की छूट कैसे और क्यों दी जानी चाहिए?

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