मौसम ने बाढ़ और जलसंकट दोनों के संकेत दे दिए हैं !

मौसम ने बाढ़ और जलसंकट दोनों के संकेत दे दिए हैं

भारत लगातार पिछले दो बरसों से ‘सर्दियों में गर्मी’ से जूझ रहा है। इसमें कोई शक नहीं कि मौसम का यह बदलता रुख जलवायु परिवर्तन की ही वजह से है। इसके चलते हिमालय के पर्वत शिखरों पर बर्फबारी भी कम हो रही है। ऐसे में गर्मी में एक तरफ हिमालय ग्लेशियर पिघल रहे हैं, दूसरी तरफ सर्दी के मौसम में उनमें बर्फ की चादर नहीं बन रही है। यह बड़ा खतरा है।

साइंस एडवांसेज नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में साफ कहा गया है कि भारत, चीन, नेपाल, भूटान में 40 वर्षों के दौरान किए गए सैटेलाइट अवलोकन से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन हिमालय के ग्लेशियरों को निगल रहा है।

इस साल भी सर्दियों की शुरुआत से बर्फबारी व बारिश कम हुई। साल 1975 से 2000 के बीच जिस मात्रा-रफ्तार से ग्लेशियर की बर्फ पिघल रही है, साल 2000 के बाद से वह दोगुनी हो गई है। वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि साल 2100 आने तक हिमालय के 75% ग्लेशियर पिघलकर खत्म हो जाएंगे।

इससे हिमालय के नीचे वाले भू-भाग में रहने वाले 8 देशों के 200 करोड़ लोगों को पानी की किल्लत और बाढ़ का खतरा होगा। इनमें भारत, पाकिस्तान, भूटान, अफगानिस्तान, चीन, म्यांमार, नेपाल, बांग्लादेश हैं। ओशंस एंड क्रयोस्फीयर पर विशेष रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन ने प्राकृतिक खतरों की आवृत्ति और पैमाने को बदल दिया है।

क्लाइमेट ट्रेंड्स की एक हालिया रिपोर्ट इस स्थिति की गंभीरता पर प्रकाश डालती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते सर्दी के सीजन में बारिश कम हुई है। वर्षा की यह कमी पानी की कमी और पर्यावरणीय स्थिरता के बारे में मौजूदा चिंताओं को बढ़ा रही है।

रिपोर्ट कहती है कि फरवरी में जरूर थोड़ी बारिश-बर्फबारी हुई, लेकिन यह भी सर्दी में वर्षा की कमी को पूरा करने के लिए काफी नहीं लगती है। विशेषज्ञ असामान्य मौसम के इस पैटर्न के लिए जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों की वजह से बढ़ रही ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

गौरतलब है कि ‘पश्चिमी विक्षोभ’ प्रणाली भारत में शीतकालीन वर्षा और बर्फबारी के लिए जिम्मेदार मानी जाती है। इस वर्ष सर्दी में पश्चिमी विक्षोभों की तीव्रता और बारंबारता कम रही है। पश्चिमी विक्षोभ इस साल ज्यादातर ऊपरी अक्षांश वाले क्षेत्रों में ही सीमित रहे, जिससे पश्चिमी हिमालय में इसका प्रभाव कम रहा।

दिसंबर अधिक तापमान के साथ शुरू हुआ और पहाड़ी राज्यों में सर्दियां देर से आईं। जनवरी में केवल एक पश्चिमी विक्षोभ (28 से 31 जनवरी) पश्चिमी हिमालय और उसके आसपास के मैदानी इलाकों में बारिश या बर्फबारी का कारण बना। फरवरी में केवल उत्तर-पश्चिम भारत में बारिश-बर्फबारी हुई।

इस वर्ष, विक्षोभों ने बड़े पैमाने पर पश्चिमी हिमालय को पार कर लिया है, जिससे यह क्षेत्र शुष्क हो गया है। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि पानी की कमी के अलावा हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर तेजी से पिघलने से हिमनद झील फटने के कारण बाढ़ का सामना करना पड़ सकता है।

वहीं बढ़ती गर्मी और ग्लेशियरों के पिघलने से हिमालयी क्षेत्र में हिमनद झीलों की संख्या वर्ष 1990 में 4,549 (398.9 वर्ग किमी) से बढ़कर वर्ष 2015 में 4,950 (455.3 वर्ग किमी) हो गई। भारतीय मौसम विभाग के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा कहते हैं कि वर्ष 1990 के बाद के आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर से फरवरी के लिए पश्चिमी विक्षोभों की आवृत्ति कम हो रही है।

यह बात साफ है कि हिंदुकुश हिमालयी क्षेत्र में तापमान बढ़ रहा है। ऐसे में इस क्षेत्र में ना केवल पानी की कमी बल्कि हिमनदों के अचानक पिघलने से आई बाढ़ जैसे खतरों का सामना करने के लिए कमर कसनी होगी।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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