भारत की विदेश नीति बनी आक्रामक और रक्षात्मक
डोकलाम से लेकर यूक्रेन वॉर तक… बदली भारत की विदेश नीति बनी आक्रामक और रक्षात्मक
कुछ दिनों से एक-दो वीडियो काफी चर्चा में आए हैं. उसमें से एक वीडियो को रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने भी शेयर किया. उसमें कुछ भारतीय बच्चे हवाई अड्डे से बाहर निकल रहे हैं और उसका रिफरेन्स रूस-यूक्रेन वॉर है और पंच लाइन है “वॉर रुकवा दिया और हमें घर ले आया”. ये प्रधानमंत्री मोदी की तरफ इशारा है. हालांकि विपक्ष ने इस दावे का खंडन भी किया, सोशल मीडिया पर तो इसका उपहास उड़ानेवाले जवाबी वीडियो भी बने, विरोधी दलों ने खंडन भी किया, कई ने कहा कि यह सब बेकार बातें हैं, बेकार दावे हैं. यह किसी भी सरकार का फर्ज होता है और इसमें कोई मोदी सरकार का चमत्कार नहीं है.
भारत की विदेश नीति में बदलाव
सालों से नोटिस किया गया है, मुख्य तौर पर जबसे नरेंद्र मोदी की सरकार केंद्र में आई है तब से विदेश नीति काफी रोबस्ट यानी मजबूत हो चली है. एक ज़माना था जब भारत की विदेश नीति को या भारत को अंतरराष्ट्रीय पटलों पर पिछलग्गू देश माना जाता था और हमेशा ये बोला जाता था कि भारत तो पश्चिमी देशों का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्टैंड देख कर अपना रुख तय किया करता था या फिर पक्ष-विपक्ष में खड़ा होता था. पिछले कुछ समय से देखा गया है कि अब भारत और भारत की विदेश नीति में जमीन-आसमान का अंतर आया है. अभी नया भारत है जो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बिल्कुल मुखर होकर अपनी सभी प्रकार की बात रखता है, टेक रखता है और यहां तक कि कई सारे अंतरराष्ट्रीय विषयों या संदर्भों पर उनकी पूरी हवा का रुख बदल देने वाला कार्य भारत करता है या स्टैंड लेता है. इससे समझ में आता है कि भारत की विदेश नीति में बदलाव आया है.
भारत की राजनीति बदल चुकी है
अब भारत वो पिछलग्गू राष्ट्र नहीं रहा जैसा पहले बोला जाता था. अभी जो हाल ही में कुछ चर्चाएं चली है, ये बात बिलकुल सही है कि अश्विनी वैष्णव ने जो ट्वीट किया है या जो वक्तव्य दिया वो बिलकुल सही है की भारत में रूस और यूक्रेन के बीच चलने वाले युद्ध में हस्तक्षेप करते हुए सिर्फ रूस ही नहीं यूक्रेन को भी मनाते हुए पूरी कोशिश की, ताकि भारतीय छात्रों को और भारतीय नागरिक जो उस युद्ध में फंसे हुए थे उनको बिलकुल सुरक्षित तरीके से बाहर निकाला जा सके और वो सुरक्षित घर लौटें. सिर्फ इतना ही नहीं अभी हमास और इजराइल के बीच में भी जंग चल रही है उसमें भी भारत ने दोनों पक्षों को समझाते हुए कहीं ना कही शांति की बात की और वहां से भी अपने नागरिक निकाले है. पिछले कुछ सालों से जहां पर भी किसी भी तरह का विवाद, गृह युद्ध या किसी तरह की युद्ध की स्थिति या फिर महामारी की स्थिति में भी भारत ने भारतीय नागरिकों को सुरक्षित बाहर निकाला है. भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तान के नागरिक, नेपाल के नागरिकों को यहां तक कि कुछ और पश्चिमी देशों के नागरिकों को भी भारत ने सुरक्षित उनके मुल्क पहुंचाया है. भारत की राजनीति अब बदल चुकी है और अब हर जगह भारत की धाक है.
भारत ने कहा, “यह युद्ध का युग नहीं”
यह बात किसी से छुपी नहीं है कि रूस के साथ भारत के बहुत पुराने और घनिष्ठ संबंध है. उसी को मद्देनज़र रखते हुए कहीं ना कहीं अमेरिका और नाटो अलायन्स, वो सभी लोग भारत की तरफ बड़ी उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे है कि रूस-यूक्रेन के बीच में युद्ध चल रहा है तो उसको कैसे रोका जाए. यह बात सही है कि जब खरसान में 2022 में रूस को कुछ समय के लिए थोड़ा सा मुँह की खानी पड़ी थी, ऐसे में पुतिन को लग रहा था की इसमें तकनीकी या सामरिक तौर पर परमाणु हमला कर के वह यूक्रेन की पीठ तोड़ सकते है. युद्ध में लगभग इसके प्लान उन्होंने बनाये थे और अमेरिका की सुरक्षा एजेंसियां, उन लोगों ने भी रूस में परमाणु संबंधित हरकतें या जो मूवमेंट चल रही थी, उसको देखा था. उन्होंने बोला कि रूस परमाणु हमला करने की पूरी तैयारी कर चुका है और यूक्रेन पर परमाणु बम गिराएगा, ऐसे में नेटो और अमेरिका की नींदें उड़ गई थी और वो पूरी तैयारी में लग गए कि किसी भी तरह से रूस को ऐसा करने से रोकना है. उन्होंने कई देशों को गुहार लगाई और उसमें भारत भी था. प्रधानमंत्री मोदी ने इस पूरे मामले को हाथोंहाथ लिया और पुतिन से बात की और खतरे को टाला. इतना ही नहीं जब शांघाई को ऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन की मीटिंग हुई थी तब भी भारत में साफ तौर पर बोला कि ये युग युद्ध का युग नहीं है. आपसी सहयोग के माध्यम से विवादों का निपटारा किया जा सकता है. जब जी 20 की भी अध्यक्षता भारत ने की तब भी इस बात को दोहराया गया की ये युद्ध का समय नहीं है, हमें मिल-बैठकर आपसी विवादों का निपटारा करना चाहिए.
भारत की लीडरशिप की धाक
भारत ने एक पॉज़िटिव रोल अदा किया और रूस को राजी किया, उसी वजह से ही रशिया ने परमाणु हथियार का इस्तेमाल यूक्रेन युद्ध में नहीं किया. यह चुनावी समय की बात नहीं है. इसे भारतीय मीडिया या विपक्ष चुनावी समय के साथ जोड़ कर देखता है. जो बात सामने आयी भारतीय मीडिया में सीएनएन ने इसको रिपोर्ट किया कि नरेन्द्र मोदी के माध्यम से ही कहीं ना कहीं परमाणु युद्ध रुका है और ये अमेरिका की सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट बोलती है, जिसको सीएनएन ने चलाया. शायद यही भारत की लीडरशिप का नतीजा है कि इतने सालों से जिस जी 20 का एक साझा वक्तव्य जॉइंट स्टेटमेंट नहीं आता था, लेकिन भारत की अध्यक्षता में वह भी संभव हुआ. भारत ने अपनी लीडरशिप साबित की थी. इसलिए अमेरिका, रूस और यहां तक कि चीन भी एक जॉइंट स्टेटमेंट के लिए तैयार हुआ. सारे मुल्कों ने यानी इतिहास में पहली बार एक साझा वक्तव्य भारत की अध्यक्षता वाले जी 20 में आया. भारत की जो धाक है अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वो साफ तौर पर देख की जा सकती है, एक पुख्ता विदेश नीति देखी जा सकती है. इसी वजह से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व के कई नेता कायल हैं, कई एजेंसियां लीडरशिप की एक अप्रूवल रेटिंग भी निकालती हैं तो उसमें नरेंद्र मोदी सर्वोच्च स्तर पर हैं. जिस धमक के साथ एस जयशंकर अपनी बात अंतर्राष्ट्रीय पटल पर रखते हैं या फिर पश्चिमी देशों को जवाब देते हैं. उससे साफ पता चलता है कि ये एक नया भारत है. अभी कुछ दिन पहले भारत के संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधि, कांबोज ने भी बिल्कुल खुलकर ये वकालत की कि अगर संयुक्त राष्ट्र रक्षा परिषद में सुधार नहीं करेगा, कुछ नए सदस्यों को नहीं लाएगा तो उसकी प्रासंगिकता ही खत्म हो जाएगी.
ईयू के साथ फ्री ट्रेड अग्रीमेंट पर डील.
पिछले 10 सालों की विदेश नीति का लेखाजोखा यही है कि भारत के नेतृत्व में कई अंतरराष्ट्रीय शुरुआतें (इनीशिएटिव) हुईं हैं. उसको भारत के साथ-साथ विश्व के कई संगठन हाथोंहाथ ले रहे हैं, चाहे वो सोलर अलायन्स की बात हो या फिर जी 20 सबमिट की बात हो या शांघाई को ऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन की बात. अभी हाल ही में यूरोपियन यूनियन के साथ फ्री ट्रेड अग्रीमेंट पे भी डील किया है, जो भारत की शर्तों पर हुआ. आई टू यु टू (भारत, इजरायल, अमेरिका और यूएई) नामक एक नया संगठन भारत के माध्यम से बना. यहां तक कि चीन को काउंटर करने के लिए, चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को काउंटर करने के लिए जी 20 में नया कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट पश्चिमी एशिया के देशों और अमेरिका के माध्यम से उसको अमली जामा पहनाया है, इससे भारत की लीडरशिप सामने आती है. पश्चिमी एशिया के मुल्कों में हिंदू मंदिर का निर्माण किया जा रहा है, काफी मुस्लिम राष्ट्र भारत के प्रधानमंत्री को अपनी सर्वोच्य सम्मान से नवाज चुके हैं. इजराइल के साथ भी भारत के अच्छे संबंध है लेकिन फिर भी भारत इजराइल को भी समझा रहा है. भारत फिलिस्तीन के साथ भी खड़ा है लेकिन भारत सिर्फ इतना चाहता है कि विवादों का निपटारा शांतिपूर्ण ढंग से हो और फिलिस्तीन भी रहना चाहिए और इजराइल भी रहना चाहिए. इससे पहले ये सभी चीजें नजर नहीं आती थी और कहीं न कहीं भारत पिछलग्गू राष्ट्र नजर आता था. यदि ये मामला ऐसे ही चलते रहा तो 2047 तक भारत का विकसित भारत बनने का सपना जिसमें भारत विश्व गुरु बनना चाहता है, वो जल्द ही पूरा होगा.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि ….न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]