जलवायु परिवर्तन … साफ दिख रहा है असर !

साफ दिख रहा है असर, चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति में वृद्धि

जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति में वृद्धि हुई है। इसके अलावा, हिमालय के ऊपरी इलाकों में जिस तरह से एरोसोल का घनत्व बढ़ता जा रहा है, उसका सीधा असर हिमखंडों पर पड़ेगा। अतः ऐसी रणनीति बनाने की जरूरत है कि आपदा की स्थितियों में कम से कम नुकसान हो।

अब दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन भीषण असर दिखने लगा है। यह वैश्विक स्तर पर बड़ी चर्चा का विषय है, क्योंकि पूरी दुनिया में अब सब कुछ बदल रहा है और आशंका है कि आने वाले समय में यह कई तरह के संकटों को जन्म देगा। अब यह महज वैश्विक मुद्दा नहीं रहा, बल्कि स्थानीय स्तर पर भी इसके बड़े असर दिखाई दे रहे हैं। उदाहरण के लिए, अगर अपने देश में ही देख लें, तो 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, देश के सभी हिस्सों में किसी न किसी रूप में चरम मौसमी घटनाएं हुई हैं और लगभग हर राज्य इनकी चपेट में आया है। भारी बारिश, बादल फटना, आकाशीय बिजली गिरना, सूखा और शीत लहर जैसी चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति में वृद्धि हुई है।

यही नहीं, अपने देश में करीब  3,287 नागरिकों की मौतें असामान्य मौसम के कारण हुईं।  इसके अलावा, 1,24,000 जानवरों को भी किसी न किसी मौसमी घटना का शिकार होना पड़ा। देश में करीब 20 लाख हेक्टेयर भूमि सूखे या अतिवृष्टि के कारण बाढ़ की चपेट में आई। पिछले वर्ष हिमालयी राज्य उत्तराखंड में मौसम की घटनाओं के कारण हालात काफी बिगड़ गए। उत्तराखंड में करीब 150 दिन ऐसे निकले, जब किसी न किसी बुरी स्थिति का न सामना करना पड़ा हो। ऐसे ही मध्य प्रदेश में 141 दिन और उत्तर प्रदेश एवं केरल में 119 दिन खराब थे।

मौसम की इस असामान्यता का सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है। पूरे देश में जून और सितंबर के बीच करीब 123 दिन ऐसे रहे, जिन्हें असामान्य कहा जा सकता है। पर हम अब भी इन आंकड़ों से यह नहीं सीख पाए हैं कि हमारे चारों तरफ की परिस्थितियां बिगड़ चुकी हैं और आने वाले समय में हमें और भी घातक दुष्परिणामों का सामना करना होगा। पूरे देश में करीब आठ राज्य ऐसे रहे, जहां 100 से ज्यादा असामान्य घटनाएं हुईं और 208 दिनों में भारी बारिश, बाढ़, भूस्खलन की घटनाएं सामने आईं।  इतना ही नहीं, बिजली और तूफान की घटनाएं 202 दिन और 50 दिन शीत लहर, 29 दिन बादल फटने, नौ दिन बर्फबारी और पांच दिन चक्रवात की घटनाएं देखने को मिलीं। इन घटनाओं से यह साफ हो गया है कि जलवायु परिवर्तन का घातक असर अब स्पष्ट दिखने लगा है।

वर्ष 2024 में जनवरी से ही मौसम में वह सामान्यता नहीं दिख रही है, जो अक्सर होती थी। वैज्ञानिकों का मानना है कि लगातार नौ महीनों से तापक्रम वह नहीं रहा, जो पिछले दशकों में था। मतलब औसतन तापक्रम में वृद्धि देखी गई। वर्ष 2023 में जुलाई को सबसे गर्म महीना बताया गया था, लेकिन आशंका है कि इस वर्ष भी दुनिया को गर्मी के बड़े संकटों का सामना करना पड़ेगा। वैसे वैज्ञानिकों का मानना है कि अल नीनो जून-जुलाई तक शांत हो जाएगा। लेकिन उसके तत्काल बाद अल नीना दूसरी तरह की मौसमी विषमताओं को खड़ा करेगा, जिसमें शीतकालीन स्थितियां और भी गंभीर होंगी। और यह सब सिर्फ अपने ही देश में नहीं, बल्कि सारी दुनिया में होगा।

जलवायु परिवर्तन के चलते पूरी दुनिया में इस बार वसंत समय से पहले ही आ गया। समय से पहले ही गर्मी ने दस्तक दे दी। जापान और मैक्सिको में समय से पहले ही फूल खिल गए। यूरोप में बर्फ तेजी से पिघलने लगी। टेक्सास, जहां अत्यधिक गर्मी पड़ती है, वहां अभी से ही तापमान काफी बढ़ गया है। ये आंकड़े बड़े डरावने हैं, अगर हम इन्हें गंभीरता से नहीं लेंगे, तो आने वाले समय में शायद हवा-मिट्टी-पानी की कमी तो झेलेंगे ही, हमारी सेहत पर भी इसका बुरा असर पड़ेगा।

अमेरिका के नेशनल ओशनिक ऐंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन ने पर्यावरण के शुरुआती रुझानों के बारे में बताया कि आंकड़ों के लक्षण ठीक नहीं दिखाई देते। जल्दी ही यह संस्थान एक रिपोर्ट पेश करेगा, जिसमें दुनिया के पर्यावरणीय हालात के बारे में बताया जाएगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि 2024 के मध्य तक अल नीनो खत्म होने से थोड़ी राहत मिलेगी। पर पुराने अनुभव बताते हैं कि जब सब कुछ भटक जाता है, तो सटीक स्थिति का पता नहीं चलता। अपने देश में पश्चिमी विक्षोभ ही आगे सरक गया। जो वर्षा दिसंबर में होनी थी, वह मार्च में हो रही है।

अब तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर माना जाने लगा कि 2024 सबसे गर्म होगा, और यह अब तक के पांच सबसे गर्म वर्षों में शामिल हो जाएगा। इस बात की 99 फीसदी आशंका है कि हम आने वाले समय में बहुत ज्यादा गर्मी झेलेंगे। हमने पिछले दो-तीन दशकों से इसी तरह का रुझान देखा है और इसमें कोई सुधार नहीं दिखा। हमने ऐसा कुछ नहीं किया, जो आने वाले समय में हमें इससे राहत दे सके। सबसे बड़ी बात यह है कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को देखने के बावजूद हमारी गतिविधियां, चाहे वह ढांचागत विकास हो और या फिर अन्य विकास गतिविधियां, उन पर कोई अंकुश नहीं लगा है, बल्कि वे बदस्तूर जारी हैं। खास तौर से निर्माण कार्य, आवाजाही, औद्योगिकीकरण आदि पर कोई नियंत्रण नहीं दिखता।

इसके अलावा, जिस तरह से ऊर्जा खपाती जीवन-शैली लगातार बढ़ती चली जा रही है, वह घातक सिद्ध होने वाली है। इसके अलावा, हिमालय की चोटियों पर अब एरोसोल का दबाव बढ़ गया है। इसरो द्वारा जारी ताजा रिपोर्ट के अनुसार, हिमालय के ऊपरी इलाकों में जिस तरह से एरोसोल का घनत्व बढ़ता जा रहा है, इसकी बढ़ती ऑप्टिकल डेंसिटी स्थानीय तापक्रम को बढ़ाएगी, जिसका सीधा असर हिमखंडों पर पड़ेगा, जो झील के रूप में परिवर्तित हो जाएंगे। इस तरह की झीलों के दो-तीन बड़े असर होंगे। सबसे पहले, तो आने वाले समय में पानी का संकट बढ़ेगा।

दूसरा, इन झीलों से मीथेन गैस निकलती है, जो स्थानीय तापक्रम को और बढ़ा देगी और तीसरी बड़ी बात यह है कि यह किसी बाढ़ का कारण भी बन सकती है। इन सब बातों को संज्ञान में लेकर अगर हम अपनी आपदा प्रबंधन रणनीति बनाएं, तो भले ही प्राकृतिक आपदाओं को रोक न सकें, लेकिन उससे होने वाले नुकसान को जरूर कम कर सकते हैं। यही समय है कि हम अपनी नीतियों का, खासतौर से परिस्थितिकी दृष्टिकोण से अवलोकन कर लें। वरना बाद में प्राकृतिक आपदाएं ज्यादा सोचने का अवसर नहीं देंगी और सब कुछ बर्बाद हो जाएगा। प्रकृति के संकेतों को समझने में ही हमारी भलाई है।

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