अपराधों के दुश्चक्र में नाबालिग…नाबालिगों द्वारा बढ़ते अपराध ?
समाज: अपराधों के दुश्चक्र में नाबालिग… सही-गलत की पहचान कराना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए
जिस उम्र में बच्चों के हाथों में किताब और बैट-बॉल जैसी चीजें शोभा देती हैं, उस उम्र के बच्चों के हाथों में चाकू-छुरे जैसी चीजें देखना दिल दहला देने वाली घटना है। हाल के कुछ वर्षों में नाबालिग बच्चों द्वारा अपराध की घटनाओं में तेजी दिख रही है। हाल ही में तिमारपुर इलाके में महज माचिस देने से मना करने पर एक नाबालिग ने 21 साल के युवक की चाकू से हत्या कर दी। साल भर पहले भी उसी नाबालिग ने महज कंधा टकराने पर 16 साल के एक नाबालिग की चाकू से गोदकर हत्या कर दी थी। उसके बाद कुछ समय तक बाल सुधार गृह में रहने के बाद वह बाहर आ गया। वहीं 2023 के अंत में दक्षिण पूर्वी जिले के बदरपुर इलाके में तीन नाबालिगों ने किशोरी दोस्त के साथ गैंगरेप किया और वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। ये घटनाएं आपराधिक मामलों में नाबालिगों की संलिप्तता की बानगी हैं।
पुलिस के लिए भी ऐसी विकृत मानसिकता चिंता का कारण बनी हुई है, क्योंकि ऐसे संगीन अपराधों में भी नाबालिगों को कड़ी सजा देने का प्रावधान नहीं है। उन्हें बाल सुधार केंद्र भेज दिया जाता है या उनकी काउंसिलिंग करा कर ही घर भेज दिया जाता है, जिस कारण कई बार बड़े-बड़े अपराधी उनका फायदा उठाते हैं और उन्हें अपराध के दलदल में फंसा देते हैं। बालमन को पैसों का मोह, मौज-मस्ती तेजी से अपनी ओर आकर्षित करता है। अपराध से जुड़ी फिल्मों और वेब सीरीज का भी बच्चों के दिमाग पर बुरा असर पड़ता है और उनमें आपराधिक मानसिकता को बढ़ावा देता है।
बच्चे देश के भावी नागरिक होते हैं। यदि इनका भविष्य संवर गया, तो देश का विकास मुमकिन है और यदि इसी गति से नाबालिगों के अपराध के ग्राफ में बढ़ोतरी होती रही, तो वह दिन दूर नहीं, जब देश पर माफिया का राज होगा। इसलिए जरूरी है कि नाबालिगों द्वारा बढ़ते अपराध को कम करने के लिए सही सजा का प्रावधान हो और ऐसी नीति बनाई जाए कि बच्चों को जुल्म की दुनिया में कदम रखने से रोका जा सके। नाबालिगों को उसके अपराध की प्रकृति के आधार पर सजा का उचित प्रावधान होना चाहिए, ताकि जघन्य अपराधों की तरफ रुख करने से बालमन बचा रहे व कोई उन्हें बहला-फुसलाकर अपराध की राह पर न धकेल सके।
सरकार, समाज, माता-पिता, अभिभावकों को बच्चों के बेहतर व्यक्तित्व विकास के लिए उन्हें नैतिक शिक्षा देनी चाहिए और स्वस्थ सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण प्रदान करना चाहिए। 11 से 16 वर्ष की किशोरावस्था किसी भी बच्चे के व्यक्तित्व निर्माण के लिए महत्वपूर्ण समय होता है, इसलिए इस उम्र में उन्हें सही-गलत की पहचान कराना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए, ताकि स्वस्थ मानसिकता के साथ बच्चे अपनी जिम्मेदारी को समझ सकें और अपने परिवार का ही नहीं, बल्कि पूरे देश का गौरव बन सकें।