एक दस्तखत जो बना हत्या की वजह?

राजीव गांधी हत्याकांड: एक दस्तखत जो बना हत्या की वजह?
21 मई 1991 को चेन्नई में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की रैली होने वाली थी. इस रैली में राजीव गांधी पहुंच तो गए, लेकिन मंच तक पहुंचने से पहले ही मानव बम से उनकी हत्या कर दी गई. 

30 जुलाई 1987… भारत और श्रीलंका के बीच एक शांति समझौते पर दस्तखत हो चुके थे. राजीव गांधी को गार्ड ऑफ ऑनर दिया जा रहा था. अचानक श्रीलंका के एक सैनिक ने राजीव गांधी पर जानलेवा हमला कर दिया, लेकिन उस वक्त राजीव गांधी उस हमले से बच गए. इस घटना को पूरे देश ने दूरदर्शन पर देखा था. 

इसी घटना के 4 साल बाद राजीव गांधी पर एक और हमला हुआ. इस हमले के तार भी श्रीलंका से ही जुड़े हुए पाए गए, लेकिन इस बार राजीव गांधी बच नहीं पाए. ये दिन था 21 मई 1991. उस दिन चेन्नई के पास श्रीपेरंबदूर में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की रैली होने वाली थी. राजीव गांधी इस रैली में पहुंच तो गए थे, लेकिन मंच तक पहुंचने से पहले ही मानव बम से उनकी हत्या कर दी गई. 

राजीव गांधी की हत्या के दो दिनों तक किसी को अंदाजा नहीं था कि आखिर ऐसा क्यों, कैसे हुआ और किसने किया. इन हमले के दो बाद पता चला कि ये हत्या एक महिला ने किया है, जो मानव बम बनकर रैली में पहले से ही मौजूद थी. 

उस रैली में वह महिला जब राजीव गांधी के पैर छूने के लिए झुकी उसी वक्त उसने अपने कमर में लगा बम का ट्रिगर दबा दिया और देखते ही देखते राजीव गांधी और हमलावर धनु सहित 16 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई. इस हमले में 45 लोग भी गंभीर रूप से घायल हुए थे. 

राजीव गांधी की हत्या के बाद ट्रायल कोर्ट ने इस पूरे मामले में 26 दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी. हालांकि साल 1999 के  मई महीने में सर्वोच्च न्यायालय ने 19 लोगों को बरी कर दिया था. बांकि सात में से चार अभियुक्तों जिसमें नलिनी, मुरुगन, संथन और पेरारिवलन का नाम शामिल था, उन्हें मृत्युदंड सुनाया गया था और किन अभियुक्तों को (रविचंद्रन, रॉबर्ट पायस और जयकुमार) को उम्र कैद की सजा मिली थी. 

एक दस्तखत जो बना हत्या की वजह 

इस पूरी कहानी की शुरुआत श्रीलंका की आजादी से होती है. भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में बहुसंख्यक आबादी बौद्ध धर्म को मानने वाले सिंहली लोग थे. इस देश में बड़ी संख्या में तमिल आबादी भी रहती थी, लेकिन वो लगातार उपेक्षा का शिकार हो रहे थे. 

साल 1972 में इस देश का संविधान बना जिसमें बहुसंख्यक आबादी वाले बौद्ध धर्म को यहां का प्राथमिक धर्म घोषित किया गया. इस संविधान में बौद्ध धर्म के सिंहली लोगों को बहुसंख्यक होने के बाद भी  हर जगह वरीयता और आरक्षण दिया जाने लगा और तमिल हाशिये पर जाते गए.

नतीजतन वहां रहने वाले तमिल लोगों ने हथियार उठा लिए. उस वक्त तमिल युवा वेलुपिल्लई प्रभाकरण ने लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम यानी लिट्टे  नाम का एक संगठन बनाया, जो 80 के दशक में आते-आते एक आतंकी संगठन के तौर पर पहचाना जाने लगा था. 

इस संगठन ने 23 जुलाई 1983 श्रीलंकाई सेना के 13 जवानों की हत्या कर. जिसके बाद देश के भीतर गृहयुद्ध शुरु हो गया. देश में दो समुदाय सिंहली और तमिलों आपस में लड़ रहे थे बाद में श्रीलंकाई सरकार भी इसमें उतर गई. 

अब आता है साल 1987, इस साल भारत और श्रीलंका सरकार के बीच एक शांति समझौता हुआ. जिसमें तय किया गया कि भारत लिट्टे से हथियार रखवा देगा. समझौते के बाद भारत ने अपनी सेना को श्रीलंका भेज दिया. इस सेना का नाम इंडियन पीस कीपिंग फोर्स यानी IPKF रखा गया था. 

आईपीकेएफ और लिट्टे के बीच का रिश्ता 

इस सेना ने अपना बेस श्रीलंका के पलाली में जाफना के पास बनाया था. वहीं दूसरी तरफ लिट्टे भी हथियार डालने को राजी हो गया था. धीरे धीरे लिट्टे संगठन के कई आतंकी सरेंडर करने लगे थे. उस साल अक्टूबर के महीने में श्रीलंकाई सेना ने इस संगठन के दो कमांडरों को पकड़ लिया और उसे श्रीलंकाई सेना और IPKF की साझा हिरासत में रखा गया. 

इंडियन पीस कीपिंग फोर्स लिट्टे संगठन के उन को कमांडरों को श्रीलंका सरकार को सौंपने को राजी हो गया. लेकिन इससे पहले की वो उसे सौंप पातें इन कमांडरों ने सायनाइड खाकर अपनी जान दे दी. इस घटना के बाद लिट्टे और IPKF के बीच के रिश्ते खराब हो गए. 

ऑपरेशन पवन 

साल 1987 के 13 अक्टूबर इंडियन पीस कीपिंग फोर्स  ने ‘ऑपरेशन पवन’ चलाया. इस ऑपरेशन को तीन साल तक चलाया गया और इस दौरान कई भारतीय सेना शहीद भी हो गए थे. 24 मार्च 1990 को IPKF का आखिरी बेड़ा श्रीलंका से लौट आया. ऐसा माना जाता है कि भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में भारतीय सेना का ये ऑपरेशन ही तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या का कारण बना. 

हमले की पीछे की वजह 

दरअसल श्रीलंका में राजीव गांधी की सरकार ने ही भारतीय सेना भेजी थी. श्रीलंका में जब गृह युद्ध चल रहा था, उस वक्त लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण को भारत की राजधानी दिल्ली बुलाया गया. उस वक्त राजीव गांधी ने उसे मुलाकात भी की थी. कहा जाता है कि दोनों के बीच की मुलाकात अच्छी नहीं रही और उसी वक्त प्रभाकरण ने सोच लिया था कि इसका बदला लिया जाएगा. 

साल 1989 में जब भारत में राजीव गांधी की सरकार गिरी और देश में राजनीतिक अस्थिरता बनी. उसी वक्त राजीव गांधी ने श्रीलंका के साथ हुए शांति समझौते का समर्थन किया था. उस इंटरव्यू में  उन्होंने अखंड श्रीलंका की बात कही थी. जिससे लिट्टे का अलग इल्म का सपना टूट गया. 

इस संगठन को डर था कि अगर राजीव गांधी भारत के प्रधानमंत्री बनते हैं तो इससे उनके सपने और संगठन को खतरा हो सकता है. लिहाजा लिट्टे ने उनकी हत्या की साजिश रची. 

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