नाबालिग लड़के की लापरवाही से हुए सड़क हादसों के लिए माता-पिता जिम्मेदार?

नाबालिग लड़के की लापरवाही से हुए सड़क हादसों के लिए माता-पिता जिम्मेदार?
पुणे में नाबालिग लड़के ने तेज रफ्तार कार से दो लोगों को कुचल दिया. उसी दिन नाबालिग को अजीबोगरीब शर्तों के साथ जमानत भी मिल गई. इसके बाद से देशभर में इस पूरे मामले की चर्चा हो रही है.

18 मई की देर रात पुणे में एक नाबालिग ने अपनी तेज रफ्तार पोर्श कार से दो लोगों को टक्कर मार दी. हादसे में बाइक पर सवार दो IT इंजीनियर्स अनीष अवधिया और अश्विनी कोस्टा की मौके पर मौत हो गई. आरोपी दो अलग-अलग पब में अपने दोस्तों के साथ शराब पीकर लौट रहा था. 

घटना के बाद नाबालिग आरोपी को पुलिस ने गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया. खास बात ये है कि जुवेनाइल बोर्ड ने आरोपी नाबालिग को 15 घंटे के भीतर कुछ मामूली शर्तों के साथ जमानत पर रिहा कर दिया.

15 घंटे में आरोपी को जमानत कैसे मिली
पुणे के येरवडा पुलिस स्टेशन में दर्ज FIR के मुताबिक, नाबालिग लड़का शराब के नशे में 160 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से कार चला रहा था. उसने पूछताछ में बताया कि उसके पिता ने उसे Porsche कार दी थी, जबकि उन्हें पता था कि उसने ड्राइविंग नहीं सीखी है और उसके पास लाइसेंस भी नहीं है.

नाबालिग ने यह भी कहा कि उसके पिता ने उसे दोस्तों के साथ पार्टी करने की इजाजत दी थी और उन्हें इस बात की भी जानकारी थी कि वह शराब पी रहा था. नाबालिग के पिता एक बड़े कारोबारी हैं. उन्होंने इसी साल मार्च में Porsche खरीदी थी, लेकिन कार का अभी तक रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ था क्योंकि उन्होंने 44 लाख रुपये का रोड टैक्स नहीं चुकाया था. 

आरोपी के खिलाफ 304ए (लापरवाही से मौत)  और अन्य धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया है. वहीं आरोपी के पिता और दोनों पब के मालिक के खिलाफ जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 75 और 77 के तहत मामला दर्ज कर गिरफ्तार किया गया है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के एडवोकेट राजेश वर्मा ने एबीपी न्यूज से बातचीत में बताया कि ऐसे मामलों में जमानत मिल जाती है. क्योंकि इसे मर्डर नहीं माना जाता है, ये लापरवाही के कारण हुआ हादसा माना जाता है. कानून के अनुसार, जानबूझकर या किसी इरादे से हत्या नहीं की गई. इसलिए जमानत दे दी जाती है. आमतौर पर सड़क हादसों के मामलों में दो धाराओं में ही केस दर्ज होता है- धारा 304 और धारा 304ए. हालांकि अब 1 जुलाई से नया कानून लागू हो रहा है उसमें आसानी से जमानत का प्रावधान नहीं है.

किन शर्तों पर आरोपी को मिली जमानत
एफआईआर के मुताबिक, शनिवार रात करीब 2.30 बजे एक महंगी ग्रे रंग की कार चलाते हुए नाबालिक ने टक्कर मार दी. कार पर कोई नंबर प्लेट नहीं लगी थी और कार चला रहे नाबालिग की उम्र 17 साल 8 महीने है. अदालत ने आरोपी को जिन शर्तों पर जमानत दी है, उस पर लोग हैरानी जता रहे हैं.

नाबालिग लड़के की लापरवाही से हुए सड़क हादसों के लिए माता-पिता जिम्मेदार?

क्या पहले भी सामने आए हैं ऐसे मामले
नाबालिग कार एक्सीडेंट के ऐसे मामले पहले भी सामने आ चुके हैं. इसी साल फरवरी में कानपुर के बैराज पर स्टंटबाजी कर रहे नाबालिग ने कार से दवा कारोबारी (62 साल) को टक्कर मार दी थी. इतना ही नहीं, नाबालिग आरोपी कार में फंसे व्यापारी को दूर तक घसीटता ले गया था जिससे उनकी मौत हो गई थी. आरोप लगा कि स्टंटबाजी और ओवरस्पीड की वजह से हादसा हुआ.

मृतक कारोबारी के साथियों ने ग्रामीणों की मदद से आरोपी और उसके दोस्त को दबोच लिया था. पूछताछ में पता चला कि नाबालिग लड़का एक बड़े व्यापारी का बेटा है और हाईस्कूल का छात्र है. हादसे के वक्त गाड़ी की स्पीड 90 किमी प्रति घंटा से ज्यादा थी. इस कारण नाबालिग कार पर अपना कंट्रोल खो दिया था. वहीं कारोबारी के साथियों का ये भी कहना है कि गाड़ी स्पीड में होने के साथ ही नाबालिग स्टंट भी कर रहे थे. कार को दो पहियों पर चलाने की कोशिश कर रहे थे.

इससे पहले दिसंबर 2021 में ऐसे ही एक मामले में अदालत ने नाबालिग बेटे की करनी की सजा पिता को दी थी. श्रीनगर में नाबालिग बेटे ने कार से एक सड़क हादसे को अंजाम दिया था, जिसके बाद कोर्ट ने पिता को इसका जिम्मेदार ठहराते हुए 25 हजार रुपये जुर्माने के साथ तीन साल की जेल की सजा सुनाई थी. 

भारत में शराब पीने की कानूनी उम्र क्या है?
भारत में अलग-अलग राज्यों के कानूनों के हिसाब से शराब पीने की कानूनी उम्र 18 से 25 साल के बीच में है. कुछ राज्य जैसे गुजरात, बिहार, नगालैंड और मणिपुर में शराब पूरी तरह से बैन है. हरियाणा, गोवा और कुछ अन्य राज्यों में शराब पीने की कानूनी उम्र 25 साल है, जबकि बाकी राज्यों में 21 साल या उससे ज्यादा उम्र के लोगों को शराब पीने की इजाजत है. मतलब ये कि अगर आप 18 साल के हैं तो आप किसी भी राज्य में कानूनी रूप से शराब नहीं खरीद सकते.

साल 1988 के मोटर वाहन अधिनियम में 2019 में संशोधन किया गया था. इस संशोधन में शराब पीकर गाड़ी चलाने की समस्या से निपटने के लिए प्रावधान शामिल किए गए थे. इस अधिनियम की धारा 185 खासतौर पर शराब या नशे के पदार्थ के प्रभाव में गाड़ी चलाने से जुड़ी है. ये धारा इस अपराध के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश और सजा का प्रावधान करती है.

शराब पीकर गाड़ी चलाने के कानून 
भारत में मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 185 के मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति शराब या नशीली दवाओं के प्रभाव में गाड़ी चलाते हुए पाया जाता है, तो उसे सजा हो सकती है. प्रति 100 मिलीलीटर खून में अल्कोहल की मात्रा 30 मिलीग्राम से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.

नाबालिग लड़के की लापरवाही से हुए सड़क हादसों के लिए माता-पिता जिम्मेदार?

ये सख्त कानून इसलिए बनाए गए हैं ताकि सड़कों पर सुरक्षा बनी रहे और शराब पीकर गाड़ी चलाने से होने वाले हादसों को रोका जा सके.  

अगर शराब पीकर गाड़ी चलाने वाला नाबालिग हो तो क्या होगा?
मोटर वाहन अधिनियम की धारा 199A के मुताबिक, अगर कोई नाबालिग शराब पीकर गाड़ी चलाता है और कोई अपराध करता है, तो उस नाबालिग के अभिभावक या गाड़ी के मालिक को दोषी माना जाएगा और उन्हें सज़ा मिलेगी. उसके अभिभावक को 3 साल तक की जेल, 25000 रुपये का जुर्माना और जिस गाड़ी से अपराध किया गया है उसका रजिस्ट्रेशन 12 महीने के लिए रद्द किया जा सकता है. 

वहीं नाबालिग को 25 साल की उम्र होने तक ड्राइविंग लाइसेंस या लर्नर लाइसेंस नहीं मिलेगा. नाबालिग को जुर्माना तो भरना होगा, लेकिन जेल जाने की सजा को जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2000 के तहत बदला जा सकता है.

‘नाबालिग के हादसे के लिए गाड़ी मालिक जिम्मेदार’
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2011 में एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा था कि अगर कोई नाबालिग गाड़ी चलाते हुए हादसा करता है तो उस गाड़ी के मालिक को मुआवजा देना होगा. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मृतक के परिवार को आठ लाख रुपये से ज्यादा के मुआवजे को सही ठहराया था. साथ ही कोर्ट ने कहा मोटरसाइकिल के मालिक की ये जिम्मेदारी है कि वो ये सुनिश्चित करे कि उसकी गाड़ी का गलत इस्तेमाल न हो या फिर ट्रैफिक नियमों को तोड़कर गाड़ी न चलाई जाए.

जस्टिस अल्टामस कबीर और जस्टिस साइरियक जोसेफ की बेंच ने कार मालिक जवाहर सिंह की उस दलील को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि उनके नाबालिग भतीजे ने उनकी जानकारी के बिना बाइक की चाबी ली थी. इसलिए उन्हें इस दुर्घटना के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.

ये पूरा मामला 18 जुलाई 2004 का है. दिल्ली की गीता कॉलोनी में एक नाबालिग लड़के ने बाइक से मुकेश जैन के स्कूटर को टक्कर मार दी थी. उस वक्त मुकेश जैन के साथ उनके बेटे शशांक जैन भी स्कूटर पर सवार थे. हादसे में मुकेश जैन की दुर्भाग्य से मौत हो गई. मोटर वाहन दुर्घटना दावा अधिकरण ने मृतक के परिवार को 8,35,067 रुपये के मुआवजे देने का आदेश दिया. 

इस मामले में हाई कोर्ट ने ये माना था कि दुर्घटना करने वाला नाबालिग था और वो बाइक चलाते समय मोटर वाहन अधिनियम 1988 और उसके अंतर्गत बनाए गए नियमों को तोड़ रहा था. इस फैसले से असंतुष्ट जवाहर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी.

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